नारीवाद हर बार सुनने को मिला, “सो कॉल्ड फेमिनिस्ट की तरह बातें करना बंद करो”

हर बार सुनने को मिला, “सो कॉल्ड फेमिनिस्ट की तरह बातें करना बंद करो”

गलती दोहराने में बुराई है और मैंने अपनी गलती सुधार ली है। आज मैं यह गर्व से कह सकती हूं कि हां, "मैं फ़ेमिनिस्ट हूं।"

“स्टॉप एक्टिंग लाइक सो कॉल्ड फेमिनिस्ट”, जब कभी भी परिवारवालों या दोस्तों के सामने औरतों या नारीवाद के किसी भी मुद्दे को लेकर कुछ बोलती तो सब यही कहकर मुझे चुप करा देते। अक्सर मैं भी यही सोचती थी कि शायद नारीवादी एकदम सख्त होती होंगी जो पुरुषों से नफरत करती होंगी। जो सही-गलत सब में बस महिलाओं की‌ ही पक्षधर रहती होंगी। जिनका इस पितृसत्तात्मक समाज में जीवन बहुत कठिन होता होगा क्योंकि वह सिर्फ स्त्रियों के विकास के बारे में सोचती होंगी और यह समाज उन्हें हमेशा दबाता होगा। इसलिए मैं खुद भी इस नारीवादी शब्द से दूर ही रहना चाहती थी। मेरे मध्यमवर्गीय परिवार में औरतों को उनका मूल अधिकार मिल जाए वह भी काफ़ी है तो मुझे तो मेरे जीवन में काफी अधिकार दिए गए थे लेकिन इस चीज़ का भरसक एहसास भी कराया गया था। मैं भी इसी समाज का हिस्सा हूं और मुझे भी बाकी लोगों की तरह यही सिखाया गया था कि औरत हो तो तुम्हें अपनी इच्छाएं एक हद तक सीमित करनी पड़ेंगी। शायद इसीलिए मेरे मन में यह बात घर कर गई थी कि अगर मैं खुद को नारीवादी कहने लगूंगी तो मेरे लिए मेरा जीवन बेहद मुश्किल हो जाएगा। मेरे दिमाग में ऐसी बातें घूमने लगेंगी जिससे मुझे मेरे परिवार का ख्याल रखने में भी परेशानी होने लगेगी।

फिर मैं किसी तरह फेमिनिज़म इन इंडिया से जुड़ी। आप सभी पढ़ने वाले पाठकों को पता होगा कि यह एक समावेशी नारीवाद संस्था है और समावेशी नारीवाद की बात रखता है। इस संस्था से जुड़ने का मेरा मुख्य मकसद लेखन-शैली सीखने का था। इसलिए पहले ही दिन मैंने यह कहा था कि मैं समाज में बराबरी की तो पक्षधर हूं लेकिन नारीवादी नहीं हूं। मेरी तरह आपको भी यह दोनों चीजें अलग-अलग लगती हैं ना पर ऐसा बिल्कुल नहीं है। बिना नारीवादी विचारधारा के समाज में बराबरी आ ही नहीं सकती क्योंकि नारीवादी विचारधारा का उद्देश्य भी समाज में बराबरी लाना ही है ना कि महिलाओं को पुरुषों से ऊपर रखना। जीवन में सीखने से बहुत ज्यादा ज़रूरी है गलत सीखी हुई चीज को भूलना यानि अनलर्न करना और मेरे जीवन का यह मोड़ भी कुछ ऐसा ही था। इस संस्थान से जुड़ने के बाद मैंने नारीवाद विचारधारा के हर पहलुओं को करीब से जाना और समझा।

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अगर परिभाषा के अनुसार देखा जाए तो नारीवाद राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक समानता के आधार पर महिलाओं के अधिकारों की वकालत करता है। नारीवाद समाज में महिलाओं की विशेष स्थिति के कारणों का पता लगाता है और उनकी बेहतरी के लिए समाधान पेश करता है। यह महिलाओं को समान शैक्षिक और पेशेवर अवसर देने की वकालत करता है। नारीवादी सिद्धांतों का उद्देश्य लैंगिक असमानता की प्रकृति और कारणों को समझना तथा इसके फलस्वरूप पैदा होने वाले लैंगिक भेदभाव के असर की व्याख्या करना है। स्त्री विमर्श संबंधी महिलाओं के स्वास्थ्य, प्रजनन संबंधी अधिकार, घरेलू हिंसा, मातृत्व अवकाश, समान वेतन संबंधी अधिकार, यौन उत्पीड़न, भेदभाव एवं यौन हिंसा आदि के मुद्दों पर रहता है।

पर जितना मैं नारीवाद के बारे में समझ पाई हूं उस से मैंने यही जाना है कि नारीवाद पुरुषों और महिलाओं के साथ-साथ अन्य सभी तबकों जो इस पितृसत्तात्मक समाज द्वारा वर्ग, जाति, धर्म, यौनिकता, विकलांगता आदि के आधार पर शोषित हैं, उनके लिए समाज में समान अधिकार दिलाने के बारे में है। कई वर्षों से महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम या कमजोर के रूप में देखा गया है। आपने ऐसे कई उदाहरण अपने घर में भी देखे होंगे। हां समय के अनुसार बहुत कुछ बदला है लेकिन अभी बहुत कुछ बदलना बाकी है। लिंग आधारित भूमिकाएं पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए हानिकारक हो सकती हैं। महिलाओं के लिए यह किस तरह से हानिकारक है यह तो बहुत प्रचलित है लेकिन पुरुषों के लिए भी यह समान रूप से हानिकारक है क्योंकि यह समाज पुरुष को हमेशा कठोर रहने की प्रेरणा देता है और उन्हें अपनी भावनाएं व्यक्त करने का इजाज़त नहीं देता।

लोकप्रिय धारणा यह है कि महिलाएं और लड़कियां घर की देखभाल करने के लिए होती हैं, जबकि लड़के और पुरुष बाहर जाने और परिवार के लिए धन अर्जित करने के लिए होते है। देखने में तो ये बस काम के बंटवारे का आधार लगते हैं लेकिन असल में इसी बंटवारे के आधार पर ज्यादातर महिलाओं का शोषण होता है। नारीवादी विचारधारा का प्रयास इसी शोषण को रोकना और समाज को बेहतर बनाना है। परिवर्तन समय का नियम है, इसलिए हमें भी रूढ़िवादी धारणाओं को तोड़कर समाज को एक बेहतर भविष्य की तरह ले जाना चाहिए। नारीवाद मात्र एक विचारधारा है जिसका लिंग और पेशे से कोई संबंध नहीं है। एक औरत हाउसवाइफ होकर भी नारीवादी हो सकती है, एक पुरुष भी नारीवादी हो सकता है। हां, यह अलग बात है कि यह पितृसत्तात्मक समाज नारीवादी महिलाओं को ‘मतलबी औरत’, ‘संस्कार विहीन’ औरत इत्यादि कहता है। घबराइए मत पहले मेरा विचार भी कुछ ऐसे ही थे पर गलती करने में कोई बुराई नहीं है बल्कि गलती दोहराने में बुराई है और मैंने अपनी गलती सुधार ली है। आज मैं यह गर्व से कह सकती हूं कि हां, “मैं फ़ेमिनिस्ट हूं।”

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तस्वीर साभार : Conversation

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