क्या आप जानते है पॉली सिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (PCOS) या पॉली सिस्टिक ओवरी डिसऑर्डर (PCOD) 5 से 10 प्रतिशत महिलाओं को 15 और 44 वर्ष के बीच होने का खतरा रहता है। आज FII Hindi के इस हेल्थ वीडियो में हम पॉली सिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (PCOS) के बारे में बता रहे हैं। पीसीओएस सोसायटी ऑफ़ इंडिया के अनुसार पॉली सिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (PCOS) एक बीमारी नहीं बल्कि एक कंडीशन है, जिससे कई दिक़्क़तों शुरू होती है। PCOD/PCOS यानि ‘पॉली सिस्टिक ओवरी डिसऑर्डर’ या ‘पॉली सिस्टिक ओवरी सिंड्रोम’। इसमें महिला के गर्भाशय में मेल हार्मोन androgen का स्तर बढ़ जाता है परिणामस्वरूप ओवरी में सिस्ट्स बनने लगते हैं। डॉक्टरों का मानना है कि महिलाओं में ये समस्या हार्मोनल असंतुलन, मोटापा या तनाव के कारण होती हैं। साथ ही यह जैनेटिकली भी होती है। शरीर में अधिक चर्बी होने की वजह से एस्ट्रोजन हार्मोन की मात्रा बढ़ने लगती है,जिससे ओवरी में सिस्ट बनता है। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि जो महिलाएं ज़्यादा स्ट्रेस में रहती है उनमें पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम होने की संभावना अधिक होती है। साथ ही, ये जेनेटिक भी हो सकता है।
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इन 15 महिलाओं ने भारतीय संविधान बनाने में दिया था अपना योगदान
संविधान सभा में हम उन प्रमुख पंद्रह महिला सदस्यों का योगदान आसानी से भुला चुके है या यों कहें कि हमने कभी इसे याद करने या तलाशने की जहमत नहीं की| तो आइये जानते है उन पन्द्रह भारतीय महिलाओं के बारे में जिन्होंने संविधान निर्माण में अपना अमूल्य योगदान दिया है|
पितृसत्ता क्या है? – आइये जाने
पितृसत्ता एक ऐसी व्यवस्था के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसमें पुरुषों का महिलाओं पर वर्चस्व रहता है और वे उनका शोषण और उत्पीड़न करते हैं|
इलाहाबाद हाई कोर्ट की टिप्पणी और सोशल मीडिया पर महिला विरोधी अभियान
इस फैसले के बाद सोशल मीडिया पर एक ट्रेंड चल निकला। दहेज के केस से प्रताड़ित पुरुषों की कहानी और महिलाओं के द्वारा झूठे केस से जुड़ी तर्कहीन बातें दी जाने लगी। ट्विटर पर #Genderbaisedlaws और #498A के तहत महिलाओं को शादी के नाम पर मर्दों से पैसा वसूलने का जरिया बनाने की बात कही गई।
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उफ्फ! क्या है ये ‘नारीवादी सिद्धांत?’ आओ जाने!
नारीवाद के बारे में सभी ने सुना होगा। मगर यह है क्या? इसके दर्शन और सिद्धांत के बारे में ज्यादातर लोगों को नहीं मालूम। इसे पूरी तरह जाने और समझे बिना नारीवाद पर कोई भी बहस या विमर्श बेमानी है। नव उदारवाद के बाद भारतीय समाज में महिलाओं के प्रति आए बदलाव के बाद इन सिद्धांतों को जानना अब और भी जरूरी हो गया है।