अच्छी ख़बर पद्मश्री छुटनी देवी : डायन प्रथा को दे रही हैं चुनौती, कभी खुद किया था इसका सामना

पद्मश्री छुटनी देवी : डायन प्रथा को दे रही हैं चुनौती, कभी खुद किया था इसका सामना

छुटनी समझ चुकी थीं कि अपने हिस्से की लड़ाई अब उन्हें खुद ही लड़नी है। सिर्फ अपने हिस्से की ही नहीं बल्कि उन सभी महिलाओं की, जिन्हें समाज डायन मानता

एडिटर्स नोट: यह लेख हमारी नई सीरीज़ ‘बदलाव की कहानियां’ के अंतर्गत लिखा गया पहला लेख है। इस सीरीज़ के तहत हम अलग-अलग राज्यों और समुदायों से आनेवाली उन 10 महिलाओं की अनकही कहानियां आपके सामने लाएंगे जिन्हें साल 2021 में पद्म पुरस्कारों से नवाज़ा गया है। इस सीरीज़ की दूसरी कड़ी में पेश है पद्मश्री छुटनी देवी की कहानी।

भारत के लिए साल 1995 बहुत ऐतिहासिक है। इसी साल देश में इंटरनेट आया था। यह आधुनिक भारत बनने की नई तकनीक युक्त सीढ़ी थी। उम्मीद की गई कि अब हमारा देश भी रूढ़िवादिता को छोड़ आगे बढ़ेगा। लेकिन, शायद सिर्फ तकनीक के सहारे समाज की रूढ़िवादी पितृसत्तात्मक सोच को बदलना मुमकिन नहीं था। उस दौरान झारखंड के सुदूर गांव में कुछ लोग एक महिला को पीट रहे थे। उसे अर्द्धनग्न अवस्था में गांव की गलियों में घुमा रहे थे। उसे डायन कहकर भीड़ मार रही थी। वह महिला दर्द से कराह रही थी। समय बीतता है। 2021 का साल आता है। घोषणा होती है कि उस ‘डायन महिला’ को देश का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री दिया जाएगा। यह कोई फिल्मी कहानी नहीं है, हकीकत है और, उस महिला का नाम है, छुटनी देवी। छुटनी महतो झारखंड के सरायकेला के खरसांवा जिले के भोलाडीह गांव में रहती हैं।

साल था 1978 में महज़ 12 साल की उम्र में छुटनी देवी की शादी हो गयी। तब वह तीसरी कक्षा में पढ़ती थीं। शादी के बाद उनकी पढ़ाई छूट गई। छोटी-सी उम्र में तमाम सपने लेकर वह अपने पति धनंजय महतो के घर आ गईं। सब सही चलने लगा। फिर, धीरे-धीरे समय बीतता गया। बात 1995 की है, उनकी भाभी गर्भवती थीं। छुटनी ने खुश होकर कहा, “देखना! लड़का ही होगा” पर लड़की हुई। पैदा होने के कुछ समय बाद लड़की बहुत बीमार पड़ गई। घरवालों ने डॉक्टरों की जगह ओझा को दिखाया। झाड़-फूंक वाले ओझा ने कहा कि बच्ची पर डायन का साया है। छुटनी पर काला जादू करने के आरोप लगाए गए, उन्हें इस ओझा ने डायन करार दे दिया। बस, फिर क्या था, सब उनके खिलाफ हो गए। घरवाले, गांववाले सब। उन्हें ‘गांव की आफत’ कहा जाने लगा। वैसे, बात सिर्फ इस बच्ची के बीमार पड़ने भर की नहीं थी। ये कुछ घटनाओं के सिलसिले थे जिनकी एक साथ प्रतिक्रिया हुई थी। असल में छुटनी देव के जेठ भजोहरि अपने भाई धनंजय यानि छुटनी के पति की शादी अपनी पत्नी की बहन से करवाना चाहते थे लेकिन ऐसा हो नहीं सका। इस कुढ़न को बच्ची के बीमार होने ने और गहरा कर दिया। छुटनी अपने बच्चों को पढ़ाना चाहती थीं, घरवाले इसके खिलाफ थे। उनकी जगह- जमीन को जेठ हड़पना चाहते थे, यह भी एक बड़ी वजह थी। 

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खैर, डायन वाली बात पूरे गांव में फैल चुकी थी। लिहाज़ा पंचायत बुलाई गई। पंचायत ने छुटनी पर ही 500 रुपए का जुर्माना लगा दिया। बिना किसी गलती के, गरीब छुटनी ने वह भी मंजू़र कर लिया। 6 महीने तक, वह लोगों के ताने सुनती रहीं लेकिन, सब कुछ सही तब भी नहीं हुआ था। उन पर हमला किया गया। जबरन मानव मल खिलाने की कोशिश की गई। अर्धनग्न करके गांव भर में घुमाया गया। बुरी तरह घसीटा गया। पेड़ से बांध दिया गया। इतना ही नहीं, हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट बताती है कि डायन बताने की आड़ में उनके साथ यौन हिंसा करने की कोशिशें भी की गईं। उन्हें जान से मारने की योजना बनाई जाने लगी। इस बात की खबर जैसे-तैसे छुटनी को लग गई। छुटनी ने उसी रात अपने बच्चों के साथ चुपचाप घर छोड़ दिया। घर से निकलने के बाद वह आठ महीने तक पास के जंगल में पेड़ों के नीचे रहीं। काफी वक्त तक, इस डर में कि कहीं कोई उन्हें खोज न ले। उसके बाद वह अपने मायके झाबुआकोचा भी गईं। वहां उनके घरवालों ने पुलिस के पास चलने की सलाह दी। छुटनी ने हिम्मत की और पुलिस के पास गईं। पुलिस ने उनसे दस हज़ार रुपए की मांग की न देने पर शिकायत तक दर्ज नहीं की। छुटनी देवी के पति ने भी साल 1997 में साथ छोड़ दिया। वह अपने परिवार के खिलाफ न जा सके थे। 

छुटनी समझ चुकी थीं कि अपने हिस्से की ही नहीं उन महिलाओं की भी लड़ाई उन्हें लड़नी है जिसे समाज डायन मानता है।

छुटनी समझ चुकी थीं कि अपने हिस्से की लड़ाई अब उन्हें खुद ही लड़नी है। सिर्फ अपने हिस्से की ही नहीं बल्कि उन सभी महिलाओं की, जिन्हें समाज डायन मानता है। सदी बदली तो उन्होंने भी खुद को बदल लिया। प्रशासनिक अधिकारी निधि खरे ने उन्हें एक एनजीओ के पास भेजा। यह एनजीओ झारखंड में डायन प्रथा को लेकर काम करता है। नाम है, आशा (एसोसिएशन फ़ॉर सोशल एंड ह्यूमन अवेयरनेस)। आज छुटनी देवी आशा के सौजन्य से डायन कुप्रथा से पीड़ित महिलाओं के लिए पुनर्वास केंद्र चलाती हैं। सरायकेला इकाई में वह आशा की निदेशक हैं। उन्होंने अपने जैसी 70 महिलाओं को जोड़कर एक संगठन भी बनाया है। छुटनी देवी को जैसे ही इस तरह के किसी मामले की सूचना मिलती है, संगठन की टीम तुरंत मौके पर पहुंच जाती है। वहां पहुंचकर टीम सबसे पहले पीड़िता को बचाती है और आरोपियों को समझाने की कोशिश करती है। न समझने पर पुलिस में शिकायत दर्ज कर देती है। शिकायत दर्ज कराने के साथ ही टीम मामले पर लगातार नज़र रखे रहती है। ज़रूरत पड़ने पर कोर्ट में साथ देती है। वह अब तक 125 से अधिक महिलाओं को बचा चुकी हैं।

दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट के अनुसार, पद्म पुरस्कारों की घोषणा होने पर छुटनी देवी को प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से फोन आया। फोन करने वाले व्यक्ति से वह बोलीं, “अभी मेरे पास टाइम नहीं है। एक घंट बाद फोन करना।” फिर एक घंटे बाद फोन आया, तब उन्होंने बात की। सरायकेला- खरसांवा जिले से अब तक आठ लोग पद्मश्री पुरस्कार पा चुके हैं। खास ये है कि इन आठ में छुटनी देवी इकलौती महिला हैं। बाकी सभी सात पुरुष हैं। पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि साल 2000 से 2020 तक डायन बताकर करीब 1800 महिलाओं की हत्या की जा चुकी है। इन हत्याओं को आरोपी डायन बताकर सही ठहराने की हमेशा कोशिश करते हैं। वहीं, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो एनसीआरबी के अनुसार, सिर्फ झारखंड राज्य में ही 2001 से साल 2016 तक 523 महिलाओं को डायन बताकर मार दिया गया। इनमें से 27 हत्याएं सिर्फ एक साल 2019 में हुईं। सोचिए! ये सिर्फ वो मामले हैं, जो पुलिस की नज़रों में आ गए। छुटनी देवी जैसी महिलाएं इस आंकड़े को लगातार कम करने की कोशिश कर रही हैं। धीरे-धीरे अन्य महिलाओं के सहयोग से उन्हें मज़बूती भी मिली है। पद्म पुरस्कार मिलने से उनकी यह मज़बूती और हौसला दोनों ही बढ़ेंगे।

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