एडिटर्स नोट : यह लेख हमारी नई सीरीज़ ‘बदलाव की कहानियां’ के अंतर्गत लिखा गया छठा लेख है। इस सीरीज़ के तहत हम अलग-अलग राज्यों और समुदायों से आनेवाली उन 10 महिलाओं की अनकही कहानियां आपके सामने लाएंगे जिन्हें साल 2021 में पद्म पुरस्कारों से नवाज़ा गया है। इस सीरीज़ की छठी कड़ी में पेश है पद्मश्री मंजम्मा जोगती की कहानी।
कर्नाटक में दावणगेरे के पास का बस स्टैंड। पिता- पुत्र की जोड़ी नाच-नाच के सबका मन बहला रही है। पिता लोक गीत गाते है। बेटा नाचता है। सिर्फ नाच ही नहीं रहा बल्कि स्टील के घड़े को सिर पर रखकर, उसे बिना गिराए अपनी कला का प्रदर्शन भी कर रहा है। वह ज़मीन पर गिरे सिक्कों को अपने मुंह से उठा सकता है, इसी अवस्था में। यह ‘जोगती नृत्य’ है। दूर खड़े तमाम लोगों के बीच एक महिला बड़े ध्यान से इन्हें देख रही है। जैसे, इस नृत्य, इस कला के साथ उसका कोई पुराना रिश्ता हो। उदास चेहरे वाली यह महिला कौन थी, जो जा तो रही थी मरने पर अब नहीं जाएगी। यह महिला थी, मंजम्मा जोगती। इस नृत्य से उसका क्या जुड़ाव? असल में, यह नृत्य जोगप्पा लोगों का लोक नृत्य है। इस पारंपरिक लोक नृत्य को जो महिलाएं करती हैं, वह आमतौर पर ‘ट्रांस वीमेन’ होती हैं। मंजम्मा जोगती भी ट्रांस वीमेन हैं, लेकिन उनकी पहचान सिर्फ इतनी ही नहीं है। वह इस साल की ‘पद्मश्री’ पुरस्कार विजेता हैं क्योंकि अपनी ज़िंदगी में तमाम संघर्षों को झेलते हुए वह कर्नाटक जनपद अकादमी के अध्यक्ष पद तक पहुंची है।
कर्नाटक के बेल्लारी जिले में कल्लुकंब नाम का एक गांव है। इसी गांव में 50 के दशक में मंजूनाथ शेट्टी का जन्म हुआ। मां- बाप का दुलारा था। उसने स्कूल जाना शुरू किया। इसी दौर में, उसे लगा कि वह एक ‘लड़का’ है। उसे कक्षा की लड़कियों के साथ रहना पसंद था, उनके हाव-भाव पसंद थे। उनके साथ नाचना, उनके जैसा नाचना पसंद था। वह अक्सर अपनी कमर पर तौलिया बांधता और ऐसे महसूस करता, जैसे वह तौलिया नहीं स्कर्ट हो। मंजूनाथ के भाई को लगा कि उस पर माता आ गई है। माता उतारने के लिए उसने मंजूनाथ को खंभे से बांध दिया और खूब मारा। उन्हें डॉक्टर के पास और फिर पुजारी के साथ लाया गया। पुजारी ने कहा कि इसके पास दैवीय शक्ति है।
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सबको समझ आ गया था कि लड़के के रूप में जन्मा मंजूनाथ अन्तर्मन से लड़की है। उनके जीवन में बदलाव का साल आया 1975। होस्पत के पास हुलीगेयम्मा का मंदिर है। यहां ‘जोगप्पा’ बनाने की दीक्षा दी जाती है। जोगप्पा या जोगती, वह ट्रांस पर्सन होते हैं, जो खुद को देवी येलम्मा से विवाहित मानते हैं। ये देवी के भक्त होते हैं। देवी येलम्मा को उत्तर भारत में रेणुका के नाम से जाना जाता है। मां- बाप मंजूनाथ को यहीं ले आए। इसमें दीक्षा के लिए, उडारा काटा जाता है। उडारा लड़कों की कमर के नीचे बंधा एक तार होता है। उडारा काटने के बाद मंगलसूत्र, स्कर्ट- ब्लाउज और चूड़ियां दी जाती हैं। यहीं उनको नया नाम मिला मंजम्मा जोगती। द हिन्दू बिजनस लाइन से बात करते हुए वह बताती हैं कि उस दिन के बारे में उन्हें सिर्फ इतना याद है कि उस दिन मां लगातार चीख रहीं थीं, रो रही थीं। उस दिन उन्होंने अपना बेटा खो दिया था। उस दिन उनका बेटा मर गया था।
इस दीक्षा के बाद उन्हें घर पर कभी प्यार- सम्मान नहीं मिला। द हिंदू बिजनसलाइन के ही मुताबिक मंजम्मा ने ज़हर खा लिया। घरवाले अस्पताल ले गए और जान बच गई। पूरी तरह ठीक होते ही उन्होंने घर छोड़ दिया। घर से निकली तो न खाने को कुछ और न सही से रहने का कोई ठिकाना। मंजम्मा भीख मांगकर गुज़ारा करने लगीं। ऐसे ही किसी एक दिन, उनका छह लोगों ने रेप किया, जो पैसे उन्होंने भीख मांगकर जुटाए थे, वे भी लूट लिए गए। मंजम्मा को लगा कि अब इस दुनिया में आखिर जीने के लिए क्या है, किसके लिए जिया जाए। उन्होंने फिर से आत्महत्या का रास्ता चुनना चाहा। इस बार रुक गईं, उस बाप- बेटे की जोड़ी के कारण। मंजम्मा ने वह नृत्य देखकर सोचा कि जब एक आम व्यक्ति जोगप्पा का जोगती नृत्य कर सकता है, तो वह क्यों नहीं? उन्होंने आदमी से विनती की, कि वह उन्हें भी यह नृत्य कला सिखाए। आदमी मान गया। मंजम्मा अब रोज उस आदमी की झोपड़ी में जाकर नृत्य सीखने लगीं।
उनके नृत्य के लगाव को देखते हुए साथी जोगप्पा ने उन्हें एक लोक कलाकार से मिलवाया। उसका नाम था, कालव्वा। इन्होंने मंजम्मा से सामने नृत्य करने को कहा। कालव्वा एक विशेषज्ञ थे और मंजम्मा नौसिखिया। वह डर गई कि इतने बड़े लोक कलाकार के सामने वह कैसे नाचेंगी, लेकिन होनी को यह डर मंजूर न था। मंजम्मा नाचीं और बेहद खूबसूरत नाचीं। कालव्वा जैसे-जैसे धुन बदलते, मंजम्मा उतना ही बेहतरीन नाचतीं। अब कालव्वा ने उन्हें नाटकों में छोटे-मोटे रोल के लिए बुलाना शुरू किया। धीरे- धीरे वह लीड रोल करने लगीं। उनका थिएटर और नृत्य में मन लग गया। अब उनके नाम भर से शो चलने लगे। खास बात तो ये है कि जोगती नृत्य का आज जो भी नाम है, उसकी सबसे बड़ी वजह मंजम्मा जोगती ही हैं। उन्होंने ने ही इस नृत्य को आम जनमानस में पहचान दिलाई। डेक्कन हेराल्ड से बातचीत में वह कहती हैं, “सच कहूं तो मैंने ये नृत्य इसलिए नहीं सीखा क्योंकि मेरा बहुत मन था। मैंने ये नृत्य सीखा ताकि अपनी भूख से लड़ सकूं। इससे अपनी ज़िंदगी चला सकूं। अगर मैंने सड़कों पर भीख मांगना या फिर सेक्स वर्कर बनना चुना होता तो आज मैं ज़िंदा नहीं होती। जोगती नृत्य ही मुझे आगे लेकर आया है और मैं चाहती हूं कि ये नृत्य और जोगप्पा समुदाय आगे बढ़े। जो इसने मेरे लिए किया, मैं भी इसके लिए वही कर सकूं।” जोगप्पा, ट्रांस समुदाय है। ये मुख्यतः उत्तरी कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में रहते हैं।
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साल 2006 में मंजम्मा जोगती को कर्नाटक जनपद अकादमी अवॉर्ड दिया गया। फिर साल 2010 में कर्नाटक राज्योत्सव सम्मान। आज वह ‘कर्नाटक जनपद अकादमी’ की अध्यक्ष हैं। पहली ट्रांस अध्यक्ष। अब तक इस पद पर सिर्फ पुरुष ही चुने जाते थे। यह अकादमी साल 1979 में बनी थी। इस संस्था का काम राज्य में लोक कला को आगे बढ़ाना है। पिछली सरकार के दौरान मंजम्मा इसकी सदस्य थीं। इस बार उनका कद बढ़ गया। द हिन्दू से ही बातचीत में कहती हैं, “पहली बार अध्यक्ष पद की कुर्सी पर बैठते समय मेरे हाथ कांप रहे थे। मैं जब सदस्य थी, तब इसके बगल वाली कुर्सी पर बैठती थी। उस वक्त, मुझे तब के अध्यक्ष को ‘नमस्ते सर’ कहने तक में घबराहट होने लगती थी। मेरे जैसी कोई महिला, इतने बड़े पद पर आएगी, कभी नहीं सोचा था। जब इस साल उन्हें देश का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पद्मश्री’ मिला, वे बोलीं, “ये प्यार, सबका मेरी ओर ध्यान और तारीफ मुझे अभिभूत कर देती है। मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी इस अपनेपन और प्यार की आस में ग़ुज़ार दी है।”
उनकी आत्मकथा ‘नाडुवे सुलिवा हेन्नु’ है। यह किताब सिर्फ एक ट्रांस की ज़िंदगी पर आधारित नहीं है बल्कि यह जोगती नृत्य के बारे में भी बहुत कुछ बताती है। कर्नाटक में वह इतनी लोकप्रिय हैं कि उनकी ज़िंदगी हावेरी ज़िले के स्कूलों और कर्नाटक लोक विश्वविद्यालय के स्नातक डिग्री में पढ़ाई जाती है। लोग उनसे प्रेरणा लेते हैं। गुलबर्ग विश्वविद्यालय ने अगले तीन साल के लिए उनकी आत्मकथा का 100 पन्नों का सारांश तैयार किया है, जिसे स्नातक के विद्यार्थी चौथे सेमेस्टर के दौरान पढ़ेंगे। इससे पहले, कर्नाटक राज्य अक्का महादेवी महिला विश्वविद्यालय ने मंजम्मा जोगती की बायोग्राफी को अपने पाठ्यक्रम की किताबों का हिस्सा बनाया था। वाक़ई, उनके साहस की कोई पराकाष्ठा नहीं। जीवन में इतना सब सहने के बाद अब सफलता की सीढ़ी चढ़ना, मामूली बात नहीं।
बेहतरीन
आशा है कि आप पत्रकारिता में बडा़ नाम करेंगी.