ओमप्रकाश वाल्मीकि, हिंदी दलित साहित्य के प्रमुख लेखकों में से एक हैं जिन्होंने कविताएं लिखीं, ‘ठाकुर का कुआं’ उनकी बहुचर्चित कविता है। उन्होंने कहानियां लिखीं, लगभग 60 नाटकों में अभिनय, निर्देशन किया, कई कृतियों का अनुवाद भी किया।
जूठन
जूठन हिंदी के साहित्यकार ओमप्रकाश वाल्मीकी की आत्मकथा है। जिसका पहला भाग 1997 में और दूसरा 2015 में आया था। अपनी इस आत्मकथा में ओमप्रकाश वाल्मिकी ने उन सारी स्मृतियों को उकेरा हैं जहां उन्होंने जातिगत भेदभाव झेला। अपनी आत्मकथा के माध्यम से उन्होंने इस समाज की ब्राह्मणवादी व्यवस्था की पोल खोल दी है। अस्मिता के सवाल की लड़ाई से जूझते रहने वाले व्यक्ति के लिए ‘जूठन’ चेतना पैदा करने और व्यक्तित्व में मुखरता, संघर्ष की भावना पैदा करने वाली साहित्यिक कृति है।
घुसपैठिये
घुसपैठिये ओमप्रकाश वाल्मीकि की लिखी कहानियों का संग्रह है। ये सारी कहानियां दलित संदर्भों से जुड़ी हुई हैं। इन कहानियों में जातिवादी व्यवस्था के प्रति गहरा आक्रोश है और इसमें दलितों के सुख-दुख, उनकी मुखरता और संघर्षों की कहानियां हैं।
अब और नहीं
‘अब और नहीं’ ओमप्रकाश वाल्मीकि की लिखी कविताओं का संग्रह है। ‘अब और नहीं’ संग्रह की कविताओं में साहित्यकार ओमप्रकाश वाल्मीकि ने ऐतिहासिक संदर्भों को वर्तमान से जोड़कर नए अर्थों में प्रस्तुत किया है। दलित कविता के आंतरिक भाव और दलित चेतना के व्यापक स्वरूप को इस संग्रह की कविताओं में देखा जा सकता है और इन कविताओं के संग्रह में दलित कविता के मानवीय पक्ष को प्रभावशाली ढंग से उभारा गया है।
सलाम
सलाम 14 कहानियों का संग्रह है और ये सारी कहानियां दलित जीवन के आईने को दिखाती है। सलाम, बिरम की बहू, पच्चीस चौका डेढ़ सौ इस संग्रह की चर्चित कहानियां हैं। ये सभी कहानियां सामाजिक, आर्थिक,सांस्कृतिक और राजनीतिक संदर्भों के बीच लिखी गई हैं।