औरतों, लड़कियों के साथ होने वाले अपराध के लिए उनके कपड़ों, कैरेक्टर, वह कहां थी, किस वक्त किसके साथ थी, रात में देर तक बाहर क्यों थी, अपराध के खिलाफ बोलने, चुप रहना, यहां तक कि चाउमीन खाना, अलग-अलग कारण देकर हर बार औरतों और लड़कियों की ही जवाबदेही तय होती है। मर्दों का क्या है, उनसे तो ‘गलती’ हो जाती है, हम नहीं कह रहे हमारा पितृसत्तात्मक समाज कहता है। तो चलिए आज FII के इस वीडियो में हम बात करेंगे क्या होती है विक्टिम ब्लेमिंग?
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पितृसत्ता क्या है? – आइये जाने
पितृसत्ता एक ऐसी व्यवस्था के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसमें पुरुषों का महिलाओं पर वर्चस्व रहता है और वे उनका शोषण और उत्पीड़न करते हैं|
इन 15 महिलाओं ने भारतीय संविधान बनाने में दिया था अपना योगदान
संविधान सभा में हम उन प्रमुख पंद्रह महिला सदस्यों का योगदान आसानी से भुला चुके है या यों कहें कि हमने कभी इसे याद करने या तलाशने की जहमत नहीं की| तो आइये जानते है उन पन्द्रह भारतीय महिलाओं के बारे में जिन्होंने संविधान निर्माण में अपना अमूल्य योगदान दिया है|
लैंगिक असमानता समाज के रूढ़िवादी विचारों और प्रक्रियाओं की देन है
महिलाएं, पुरुषों से कमजोर नहीं हैं, बल्कि यह लैंगिक असमानता ऐसे सामाजिक - सांस्कृतिक मूल्यों, विचारधाराओं और संस्थाओं की देन है, जो महिलाओं की वैचारिक तथा भौतिक अधीनता को सुनिश्चित करती हैं।
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मासिकधर्म और सैनिटरी पैड पर हमारे घरों में चर्चा करने की बेहद ज़रूरत है और जिसकी शुरुआत हम महिलाओं को ही करनी होगी।
लैंगिक समानता : क्यों हमारे समाज के लिए बड़ी चुनौती है?
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उफ्फ! क्या है ये ‘नारीवादी सिद्धांत?’ आओ जाने!
नारीवाद के बारे में सभी ने सुना होगा। मगर यह है क्या? इसके दर्शन और सिद्धांत के बारे में ज्यादातर लोगों को नहीं मालूम। इसे पूरी तरह जाने और समझे बिना नारीवाद पर कोई भी बहस या विमर्श बेमानी है। नव उदारवाद के बाद भारतीय समाज में महिलाओं के प्रति आए बदलाव के बाद इन सिद्धांतों को जानना अब और भी जरूरी हो गया है।