इंटरसेक्शनलयौनिकता महिलाओं के यौन सुख और ऑर्गेज्म पर चुप्पी क्यों?| नारीवादी चश्मा

महिलाओं के यौन सुख और ऑर्गेज्म पर चुप्पी क्यों?| नारीवादी चश्मा

जब महिलाएँ कभी भी अपने यौन-सुख पर बात करने या पाने की कोशिश करती है तो इसे समाज ग़लत मानता है और महिलाओं को चरित्रहीन कहकर सिरे से ख़ारिज कर देता है।

मालिनी (बदला हुआ नाम) अपने साथी के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहती थी। लेकिन एक रात जब वो अपने साथी के साथ सेक्स कर रही थी तो उस दौरान उसके दरवाज़े से गुजरते एक पड़ोसी ने मालिनी की आवाज़ें सुनी। अगले ही दिन उसके मकान-मालिक ने मालिनी को मकान ख़ाली करने को बोल दिया। मालिनी बताती है कि सेक्स के दौरान जब उसे ऑर्गनज़्म हुआ तो उसकी आवाजें पड़ोसी को ग़लत लगी। इसलिए उसके चरित्र पर सवाल उठाते हुए, उसे मकान ख़ाली करने को बोल दिया गया।‘

कितना अजीब है ये कि जब अपने पड़ोस में कोई महिला घरेलू हिंसा का शिकार होती है तो अक्सर लोग अपने घर के दरवाज़े बंद करके उसे नज़रंदाज़ कर देते है। ये कहकर कि ‘ये उनके घर का मामला है।‘ लेकिन जैसे ही उनके कान में किसी महिला के सेक्स के दौरान चरमआनंद मिलने पर उसकी धीमी आवाज़ भी सुनाई देती है तो वो महिला समाज के लिए चरित्रहीन हो जाती है और उसका घर निकाला किया जाने लगता है।

सेक्स यूँ तो अपने समाज में शर्म का विषय है। इसके बावजूद अपना देश ज़नसंख्या विस्फोट की समस्या जूझ रहा है और आज भी देश में सेक्स से जुड़ी समस्याओं की तादाद कितनी ज़्यादा है, इसका अंदाज़ा शहरों-गाँव की दीवारों में सेक्स संबंधित समस्याओं से जुड़े ढ़ेरों विज्ञापनों से लगाया जा सकता है। हर सरकार परिवार नियोजन को लेकर नई-नई योजनाएँ लेकर आती है, लेकिन इन सबके बावजूद सेक्स पर बात करना हमारे तथाकथित सभ्य समाज में मना है। ऐसे में जब सेक्स की बात महिलाओं के संदर्भ में होतो उसके लिए समाज पूरी तरह चुप्पी साध लेता है, फिर क्या हिंसा और क्या सुख। न तो समाज शादी के बाद ज़बरदस्ती यौन संबंध पर मुँह खोलता है और न महिला की यौन-इच्छा या सुख पर। सेक्स इंसान की शारीरिक और मानसिक ज़रूरत है। जिस तरह खाना-पीना और साँस लेना इंसान के लिए ज़रूरी है, ठीक उसी तरह एक समय के बाद इंसान की ज़िंदगी में सेक्स की भी अहम भूमिका होती है। सेक्स से जुड़ा अनुभव इंसान के व्यक्तित्व को सीधेतौर पर प्रभावित करता है। ग़ौरतलब है कि यहाँ बात जेंडर की बाइनरी से परे इंसान की हो रही है, जिसका दायरा महिला-पुरुष के संबंध से बड़ा है। पर अफ़सोस जब बात महिलाओं के यौन-सुख पर बात आती है तो इसे अपने पुरुष साथी को पूरी तरह संतुष्ट करने तक ही सीमित कर दिया जाता है।

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महिलाओं के हिस्से का यौन-सुख और ऑर्गेज्म

कंडोम बनाने वाली कम्पनी डयूरेक्स ने भारत में किए एक सर्वे में पाया कि 70 फ़ीसद महिलाओं को सेक्स के दौरानऑर्गेज्म नहीं होता है। ऑर्गेज़्म का मतलब है शारीरिक ख़ुशी और उत्तेजना। यौन उत्तेजक गतिविधियों या सेक्स के दौरान योनि का विस्तार होता है, योनि की चिकनाई शुरू होती है और स्तन सूजने लगते हैं। श्वास और रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) बढ़ जाता है। जांघों, और कूल्हों की मांसपेशियां खिंचने या तनने लगती हैं और ऐंठनयुक्त जकड़न शुरू हो सकती है।ऑर्गेज्म यौन उत्तेजना का चरम है और यह अक्सर योनि से डिस्चार्ज के बाद होता है और जब दो इंसान सेक्स करते है और उसमें से एकऑर्गेज्म महसूस करता है और एक नहीं तो कहे-अनकहे उनके यौन-सुख के बीच एक दूरी बन जाती है, जिसेऑर्गेज्म गैप कहा जाता है।

जब महिलाएँ कभी भी अपने यौन-सुख पर बात करने या पाने की कोशिश करती है तो इसे समाज ग़लत मानता है और महिलाओं को चरित्रहीन कहकर सिरे से ख़ारिज कर देता है।

ज़रूरी नहीं कि हर महिला को सिर्फ सेक्स सेऑर्गेज्म हो पाता है। ऑर्गेज्म के लिए महिलाओं का उत्तेजित होना ज़रूरी होता है। महिलाओं की ठीठीनी को सहलाके या मुहं से मुखमैथुन के ज़रिये उन्हें उत्तेजित किया जा सकता है। साथ ही, महिलाओं को एक से ज़्यादा ऑर्गेज्म हो सकता है और उनका चरम आनंद पुरुषों की तुलना में ज़्यादा देर तक रहता है। लेकिन हर बार ऑर्गेज्म ना होना भी स्वाभाविक बात है। तो इसके लिए ज़्यादा परेशान होने की ज़रूरत भी नहीं है।

महिलाओं के यौन-सुख पर चुप समाज

भारतीय समाज में महिलाओं को समर्पण की प्रतिमूर्ति बताया जाता है। फिर चाहे ये समर्पण परिवार के संदर्भ में हो या फिर सेक्स के संदर्भ में हो। इसलिए बचपन से ही महिलाओं की कंडीशनिंग ही इस तरह की जाती है कि उनका सजना-संवरना, इठलाना, मुस्कुराना या फिर सेक्स करना ये अब पति (पुरुष) के लिए समर्पित हो। ये कंडीशनिंग इतनी मज़बूती से काम करती है कि अक्सर महिलाएँ सेक्स के दौरान अपने सुख के बारे में सोच भी नहीं पाती है।

चूँकि धीरे-धीरे ही सही महिलाओं के संदर्भ में समाज में बदलाव आना शुरू हुए है, पर इन बदलावों को लागू करने में अपना समाज कितना तैयार है, ये बड़ा सवाल है। ऐसे में जब महिलाएँ कभी भी अपने यौन-सुख पर बात करने या पाने की कोशिश करती है तो इसे समाज ग़लत मानता है और महिलाओं को चरित्रहीन कहकर सिरे से ख़ारिज कर देता है।

महिलाओं के यौन-सुख पर मुँह सिकोड़ते समाज का जीवंत प्रतिबिंब ‘लस्ट स्टोरी’ में बखूबी दर्शाया गया है, सीरीज़ की चौथी कहानी में रेखा (नेहा धूपिया) और मेघा वर्मा (कियारा आडवाणी) दोनों ही स्कूल टीचर रहती हैं| रेखा हमेशा अपनी दोस्त मेघा को बोल्ड लेक्चर देती है| मेघा की शादी पारस के साथ होती है और शादी के साथ शुरू होता है सेक्स करने का सिलसिला| पारस अच्छा इंसान है और मेघा से प्यार भी करता है, लेकिन वो मेघा को शारीरिक रूप से संतुष्ट नहीं कर पाता है| इसलिए मेघा अपनी दोस्त रेखा से प्रेरित होकर एक सेक्स टॉय लाती है, जिससे वो अपने आपको संतुष्ट कर सके| यों तो इस सीन को हंसाने वाले सीन के तौर पर फिल्माया गया है, लेकिन ये सेक्स-शादी और औरत के प्रति समाज के नजरिये को खोलने में बेहद मददगार साबित हुआ है| मेघा की सास, पति और जेठानी को ये पता चल जाता है कि वो सेक्स टॉय का इस्तेमाल करती है और उसके बाद शुरू होती मेघा के चरित्र पर पितृसत्ता के छीटें उछालने की वर्षा| बात यहाँ तक बढ़ती है कि शादी टूटने की बात आ जाती है| यहाँ उसकी सास की एक बात इस विषय पर समाज की सोच को बयाँ करती है कि ‘हमारे खानदान में ऐसी कोख से बच्चे पैदा नहीं हो सकते|’ मतलब ये कि जो औरत सेक्स टॉय का इस्तेमाल करे वो इतनी बुरी होती है उसके बच्चे को भी स्वीकारा नहीं जा सकता है| इस सबके बीच मेघा अडिग रहती है और वो बिना डरे इस बात को स्वीकारती है कि ‘मैंने जो किया वो गलत नहीं है| लेकिन ये जिस जगह हुआ शायद वो गलत था|’

आज जब हम महिलाओं के साथ शिक्षा, रोज़गार, स्वास्थ्य, सुविधाओं और सुख की बात कर रहे है तो ऐसे में महिलाओं के यौन-सुख पर चर्चा ज़रूरी हो जाती है, क्योंकि ये न केवल उनकी यौनिकता बल्कि उनके अधिकार का भी हिस्सा है। आज जब हम महिलाओं के साथ होने वाली यौनिक हिंसा पर बात करना सीख रहे है तो इसके साथ ही हमें उनके यौन-सुख पर भी अपनी समझ बनानी होगी, क्योंकि बिना इस समझ के जब हम यौन-सुख के बहाने महिलाओं के चरित्र पर सवाल करते है तो ये अपने आप में हिंसा का ही एक स्वरूप कहलाता है।

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तस्वीर साभार : dailyo

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