साल 2020 में हुए दिल्ली दंगों से जुड़े मामलों में उमर खालिद को गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था। उमर खालिद को जेल गए एक साल बीत गया है। पुलिस के पास पुख्ता सबूत नहीं है। हाल ही में दिल्ली पुलिस मीडिया रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट में अपना पक्ष सामने रखती नज़र आई। इस वक्त हमारे देश की जेलों में बहुत से ऐसे लोग हैं जिनकी गलती सत्ता की नज़र में यह है कि वे उनसे सवाल करते हैं। ये लोग लगातार असमानता, कट्टर राष्ट्रवाद, शोषण और नफरत की राजनीति के ख़िलाफ़ बोल रहे थे। लोगों को उनके अधिकारों के लिए सजग बना रहे थे। इसी क्रम में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार की बात करने वाले उमर खालिद की पहचान सिर्फ उसके नाम से बना दी गई। उमर के विचारों से इतर उनके नाम के आधार पर, उनकी धार्मिक पहचान पर लगातार हमले किए गए है।
हमने देखा है कि दिल्ली दंगों से पहले साल 2016 जेएनयू में लगे कथित देश-विरोधी नारों से जुड़ी घटना में गिरफ्तार हुए लोगों में से केवल उमर को अलग तरह से निशाना बनाया गया। उमर के मुसलमान होने की वजह से उनके नाम को हमेशा सोशल मीडिया पर पाकिस्तान और आंतकवाद से जोड़ा गया। उसके विचारों से अलग सत्ता ने उसकी एक ऐसी छवि बना दी कि दिन-दहाड़े उन पर गोली चलाकर उनकी जान लेने की कोशिश की गई। इस घटना के बाद कुछ लोग खुशियां मनाने लग गए थे। यहां हम एक ऐसे देश में रह रहे है जहां एक देश के नागरिक पर गोली चलने पर लोग सरे आम खुश हो रहे थे। उमर खालिद के नाम को भले ही नफरत की राजनीति सिर्फ उनकी धार्मिक पहचान तक सीमित कर दे, भले ही उन्हें राष्ट्र-विरोधी बताकर जेल में डालने वाली सरकार उन्हें कैद करे लेकिन हमेशा संविधान के पक्ष में बात करने वाले उमर खालिद एक ज़िम्मेदार नागरिक की मिसाल रहे हैं।
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उमर खालिद जैसे नौजवान वे शख्स हैं जो राष्ट्र के असली वजूद को गढ़ते हैं। उमर की बातें उसकी सोच एक स्वस्थ और समान समाज की कल्पना पर आधारित है। वह हमें बताते हैं कि राष्ट्र क्या होता है। राष्ट्र वह जगह है जहां सभी लोग अलग-अलग होने के बावजूद असहमति रखते हुए भी साथ-साथ रहते हैं। जहां विभिन्नता में एकता होती है। जहां नाइंसाफी के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाकर उसे खत्म किया जाता है। उमर एक लोकतांत्रिक देश के नागरिक होने का असली कर्तव्य निभा रहे हैं। वह देश के संवैधानिक मूल्यों और जनता के अधिकारों की बात करते हैं। वह सवाल करते हैं, जिसमें वह अपने नागरिक धर्म का पालन करते हमेशा नज़र आए हैं।
उमर खालिद जैसे नौजवान वे शख्स हैं जो राष्ट्र के असली वजूद को गढ़ते हैं। उमर की बातें उसकी सोच एक स्वस्थ और समान समाज की कल्पना पर आधारित हैं।
गिरफ्तारी से अब तक की जांच
दिल्ली दंगों के बाद कई एक्टिविस्ट्स, छात्र नेताओं और विद्यार्थियों लोगों के ख़िलाफ़ मुकदमे दर्ज हुए, गिरफ्तारियां हुई। लंबे समय से लोगों को जेल में रखा जा रहा है। पिछले साल इस मामले में उमर खालिद को दिल्ली पुलिस ने सितंबर में लंबी पूछताछ के बाद दंगों के साजिशकर्ता बताते हुए गिरफ्तार कर लिया था। मूल एफआईआर में यूएपीए की धाराओं के अलावा उन पर दंगा कराने, भड़काऊ भाषण देने और आपराधिक साजिश करने के आरोप लगाये गए।
एक साल के बीत जाने पर अब तक दिल्ली पुलिस कोर्ट में कोई भी ठोस सबूत या गवाह पेश नहीं कर पाई है। पुलिस ने सबूत के तौर पर टीवी चैनलों पर चल रही टीवी फुटेज को कोर्ट में पेश किया। हम आप को बता दें कि पुलिस ने सबूत के तौर पर जो वीडियो क्लिप अदालत में पेश की है वह उमर के भाषण का पूरा वीडियो नहीं है, बल्कि भाजपा नेता अमित मालवीय के ट्वीट से जारी एक वीडियो क्लिप है, जिसके आधार पर कुछ टीवी चैनलों ने उनको आरोपी तक घोषित कर दिया।
उमर खालिद को 15 अप्रैल 2021 को दिल्ली के खजूरी खास इलाके से जुड़े मामले में ज़मानत मिल गई थी। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने कहा कि खालिद के ख़िलाफ़ ऐसे सबूत नहीं हैं जिसके आधार पर उन्हें सलाखों के पीछे रखा जाए। हालांकि बाकी केस में उन्हें ज़मानत नहीं मिली इस कारण वह अब तक जेल में ही हैं। इसके अलावा अपने केस की सुनवाई के दौरान और परिजनों से मुलाकतों के दौरान जारी होती उनकी तस्वीरें दिखाती हैं कि वह सिस्टम और सत्ता की साज़िश का मुकाबला हंसते-हंसते कर रहे हैं। बीते हफ्ते उन्होंने एक नई जमानत अर्जी दी है जिस पर अदालत 23 सितंबर को सुनवाई करेंगी।
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दमन के इस दौर में उमर ख़ालिद का होना हमारे लिए बेहद ज़रूरी है क्योंकि ऐसे युवा क्रांति और परिवर्तन की आवाज़ को मज़बूती देते हैं, वे हम सबको आइना दिखाते हैं।
अदालत ने भी लगाई फटकार
दिल्ली दंगों की जांच को लेकर दिल्ली पुलिस की कारवाई शुरू से ही विवादों के घेरे में रही है। अदालत ने भी दिल्ली दंगे से जुड़े मामलों की जांच की आलोचना की है। कई स्वतंत्र मीडिया की रिपोर्टों में भी इस तरह की बातें सामने आ चुकी हैं कि किस तरह पुलिस की जांच एकतरफा चल रही है और कुछ लोगों को सीधा निशाना बनाकर उनको फंसाया जा रहा है। एंटी-सीएए एक्टिविस्टों पर पुलिस के आरोप सोशल मीडिया और व्हाट्सएप के मैसेज के संदेशों के आधार पर बनाई हुई कल्पना जैसे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ऐसे तथ्यों के आधार पर बनाई चार्जशीट के आरोपों को पुलिस सिद्ध भी नहीं कर पा रही है, जिस कारण पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठ रहे हैं।
उमर की रिहाई की मांग
उमर खालिद को एक साल से जेल में रखने के ख़िलाफ़ तमाम सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स पर एक मुहिम चलाई गई, जिसमें उनकी रिहाई की मांग की गई। देश की कई जानी-मानी हस्तियों ने उनके जेल में रखे जाने के ख़िलाफ़ आवाज उठाई। कई सिविल सोसायटी सदस्यों, पत्रकारों, नेताओं और आंदोलनकारियों ने प्रेस क्लब में एक कार्यक्रम आयोजन किया जिसमें उमर की रिहाई की मांग की।
हम एक भयानक दमन के दौर में रह रहे हैं, जहां न बोलने का हक है न सोचने का हक। देश के लोगों को एक भीड़ में तब्दील किया जा रहा है। जाति, धर्म और वर्ग के आधार पर असमानता और हिंसात्मक रवैया हमेशा से हमारे समाज में रहा है। गरीब, वंचित, दलित, बहुजन और अन्य शोषित तबको के लोग इसे पीढ़ियों से सहते भी आ रहे हैं। आज जो हो रहा है वह नया नहीं है लेकिन बहुत क्रूर है। हर उस चीज़ को खत्म किया जा रहा है जिसे सोचकर इस देश की नींव रखी गई थी। देशभक्ति के सुरमयी गीतों में देश की जनता को उलझाकर उन्हें राष्ट्र की असली परिभाषा से अंजान रख सत्ता लोकतांत्रिक मूल्यों को धता बता रही है।
दमन के इस दौर में उमर ख़ालिद का होना हमारे लिए बेहद ज़रूरी है क्योंकि ऐसे युवा क्रांति और परिवर्तन की आवाज़ को मज़बूती देते हैं, वे हम सबको आइना दिखाते हैं। वे सत्ता से सवाल करना और उनके जवाब तलाशना सिखाते हैं। वे बदलाव की मशाल को जलाए रखते हैं। हमें उमर से सीखना चाहिए कि आलोचना करके ही हम एक सच्चे प्रगतिशील नागरिक बन सकते हैं। आज संघर्ष उमर जैसे विचारों को बचाने का है। विचार परिवर्तन की नींव होते हैं और उमर एक विचार है।
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