मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी ऐक्ट 1971 के तहत भारत में अबॉर्शन कानूनी रूप से वैध है। साल 2021 में, इस ऐक्ट में संशोधन किया गया जिसमें विशेष मामलों में प्रेगनेंसी के 24 हफ्तों तक अबॉर्शन को वैधता दी गई। हालांकि हमारे समाज में अबॉर्शन से जुड़ी मानसिकता आज भी पितृसत्तात्मक मूल्यों पर आधारित है, जिसकी झलक मीडिया रिपोर्टिंग में भी दिखती है। आज इंटरनेशनल सेफ अबॉर्शन डे पर, आइए देखते हैं कि कैसे मीडिया अबॉर्शन के मुद्दे पर संवेदनशील रिपोर्टिंग कर सकता है।
अबॉर्शन, कानूनी वैधता और रूढ़िवादी मानसिकता
अबॉर्शन वह मेडिकल प्रकिया है जिसमें दवा और सर्जरी के माध्यम से प्रेगनेंसी को रोका जा सकता है। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी ऐक्ट 1971 के तहत भारत में अबॉर्शन कानूनी रूप से वैध है। साल 2021 में, इस ऐक्ट में संशोधन किया गया जिसमें विशेष मामलों में प्रेगनेंसी के 24 हफ्तों तक अबॉर्शन को वैधता दी गई। हालांकि हमारे समाज में अबॉर्शन से जुड़ी मानसिकता आज भी पितृसत्तात्मक मूल्यों पर आधारित है, जिसकी झलक मीडिया रिपोर्टिंग में भी दिखती है।
अबॉर्शन को मीडिया में कैसे दिखाया जाता है?
मीडिया में अबॉर्शन और उससे से जुड़ी खबरों को स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे से अधिक सामाजिक- राजनीतिक मुद्दों के तौर पर कवर किया जाता है। इससे अबॉर्शन के प्रति लोगों की मानसिकता प्रभावित होती है। भारत में अबॉर्शन कानूनी रूप से वैध होने के बावजूद समाज इसे एक ‘अपराध’ की तरह देखता है।
हमें अबॉर्शन पर प्रगातिशील कवरेज की क्यों ज़रूरत है?
मीडिया में अबॉर्शन को जिस तरह से दिखाया जाता है उसका बड़े पैमाने पर लोगों पर प्रभाव पड़ता है। इसलिए अबॉर्शन पर रिपोर्ट करते वक़्त एक संवेदनशील और सटीक नज़रिया और समझ ज़रूरी होती है। अबॉर्शन पर रिपोर्टिंग का उद्देश्य अबॉर्शन को सामान्य और लोगों की सोच को इस पर संवेदनशील बनाना होना चाहिए।
मीडिया अबॉर्शन को सही तरीके से कैसे रिपोर्ट कर सकता है?
अबॉर्शन को बेहतर और प्रगातिशील तरीके से कवर करने के लिए मीडिया को तथ्यों और विश्वनीय स्रोत के आधार पर अबॉर्शन के महत्व, शरीर पर अपने अधिकार और अबॉर्शन से जुड़ी दिक्कतों, स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी, उन तक पहुंच जैसे मुद्दों को दिखाना चाहिए। मीडिया रिपोर्ट में अबॉर्शन को लेकर लोगों के बीच चर्चा और उससे जुड़ी रूढ़िवादी मानसिकता को खत्म के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
किस तरह की तस्वीरों का इस्तेमाल करें?
अबॉर्शन पर रिपोर्ट के दौरान मीडिया को गर्भवती महिलाओं और पूरी तरह विकसित भ्रुण जैसी ग्राफिक तस्वीरों के इस्तेमाल से बचना चाहिए। इन ग्राफिक तस्वीरों की वजह से अबॉर्शन कराने वाले व्यक्ति के प्रति नकारात्म छवि बनती है। अबॉर्शन पर रिपोर्ट का उद्देश्य अबॉर्शन को स्वास्थ्य सेवाओं और स्वास्थ्य संबंधी फैसलों को बढ़ावा देने से है। इस तरह की ग्राफिक तस्वीरों के इस्तेमाल से अबॉर्शन को लेकर गलत धारणाएं पैदा हो सकती हैं।
अबॉर्शन को समर्थन देने की ज़रूरत है।
अबॉर्शन पर प्रगातिशील मीडिया कवरेज में नीति निर्माताओं के अलावा स्वास्थ्य विशेषज्ञों के विचारों को भी शामिल करना चाहिए। मीडिया उन लोगों का समर्थन करने में भी सक्रिय भूमिका निभा सकता है जो अपनी कहानियों को बताने चाहते हैं। इससे अबॉर्शन को लेकर ज्यादा जागरूकता पैदा होगी और इससे जुड़े मिथ्य भी टूटेगें।
अबॉर्शन की रिपोर्टिंग के दौरान इन बातों का रखें ध्यान
- अबॉर्शन से जुड़ी खबरों को कवर करते वक्त मीडिया को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:
– अबॉर्शन के बजाय किसी व्यक्ति के अबॉर्शन को चुनने के अधिकार पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
– भ्रूण बच्चा नहीं होता है। इसलिए ‘अजन्मे बच्चे’ शब्द का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। यह शब्द अबॉर्शन विरोधी है।
– गर्भवती व्यक्ति के जीवन को अधिक महत्व देना चाहिए क्योंकि भ्रूण पूरी तरह से उन पर निर्भर करता है।
अबॉर्शन पर समावेशी कवरेज क्यों ज़रूरी है?
अबॉर्शन के अधिकतर मामलों में रिपोर्टिंग करते समय केवल अबॉर्शन से जुड़े कानूनों पर ध्यान केंद्रित करना पूरी तरह से सही नहीं है, क्योंकि ज्यादातर मामलों में ये कानून सिस-हेट्रोनॉर्मेटिव होते हैं, जो केवल सिसजेंडर महिलाओं के संदर्भ में होते हैं। मीडिया कवरेज को ट्रांस व्यक्तियों के अबॉर्शन के अनुभवों की कठिनाइयों को पर भी ज़ोर देते हुए उसे एक संवेदनशील तरीके से दिखाना चाहिए।