अब इसमें कोई संदेह नहीं कि मानवीय गतिविधियां ही जलवायु परिवर्तन के लिए ज़िम्मेदार हैं। जितनी तेज़ गति से ये हो रहा है, वह डराने वाला है और हम इसको प्राकृतिक घटनाओं का नाम देकर अपना पल्ला नहीं झाड़ सकते हैं। दुनिया के सबसे बड़े द्वीप ग्रीनलैंड की बर्फ से ढ़की चोटियों पर बरसात होना जहां पर तापमान हमेशा ही जमाव बिंदु से नीचे रहता है। उत्तरी ध्रुव का तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चले जाना। जंगलों में आग लगने की घटनाओं में बढ़ोतरी। पहले से ज्यादा घातक गर्म हवाओं का चलना, अतिवृष्टि, सूखा, समुद्री जलस्तर का लगातार बढ़ना, कोरल भित्तियों की मात्रा में कमी जैसी कई अनेक घटनायें हैं जिनको पढ़कर -देखकर हमें चौंकना तो नहीं चाहिए लेकिन हां, डरना जरूर चाहिए।
जलवायु परिवर्तन आज के समय का एक निर्विवाद तथ्य है और समय की मांग यही है कि इस पर गंभीरता के साथ सोच-विचार कर हम सबको अपने-अपने स्तर पर एक्शन लेना चाहिए। रोज़मर्रा की जिंदगी में कई ऐसे काम हम लोग करते हैं जिनका पर्यावरण पर गहरा असर पड़ता है। अब मसला यह है कि कैसे पता चले कि किसकी गतिविधियों से पर्यावरण पर कितना असर पड़ता है। इसके लिए वैज्ञानिक कार्बन फुटप्रिंट की अवधारणा को लेकर आए। कार्बन फुटप्रिंट यानी कि कोई व्यक्ति जो काम रोज़ाना करता है, जिन चीजों का इस्तेमाल करता है, उनसे कितना कार्बन उत्सर्जित होता है। इंसान अपने कार्बन फुटप्रिंट को कई तरीकों से कम कर सकता है। तो आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही तरीकों के बारे में।
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1- यात्रा करते समय अधिक से अधिक पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग करने की कोशिश करें। जहां तक हो सके छोटे कामों के लिए अपनी निजी कार का कम उपयोग करें। आप यह कर सकते हैं कि सभी छोटे-मोटे कामों को एक बार में ही पूरा कर लें। इससे कार्बन तो कम उत्सर्जन होगा ही, साथ ही ट्रैफिक जैसी समस्या से भी थोड़ी निजात मिल सकती है। यदि आप लंबी यात्रा के लिए गाड़ी का इस्तेमाल करने जा रहे हैं तो क्रूज़ कंट्रोल का इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे आप बिना एक्सीलेटर दबाए गाड़ी को एक निश्चित गति पर चला सकते हैं। इसके साथ ही कार चलाते समय एयर कंडीशनर का कम उपयोग करें। यदि आप नई कार खरीदने का प्लान बना रहे हैं तो हाइब्रिड या इलेक्ट्रिक कार खरीदने पर विचार करें। इसके साथ ही खरीदने से पहले ऐसे एप्स और वेबसाइट्स पर जाकर वाहन के बारे में जानकारी प्राप्त करें जहां कार्यक्षमता के अनुसार रेटिंग दी जाती हो।
2- खरीददारी के लिए जाते वक्त आप प्लास्टिक बैग की बजाय रियूज़ेबल बैग जैसे कि पेपर, जूट और कॉटन बैग का इस्तेमाल कर सकते हैं। एक ज़िम्मेदार और जागरूक नागरिक होने के नाते ब्रांड के बारे में पता लगाएं कि वह सस्टेनेबल है या नहीं। उत्पाद के पीछे की प्रक्रिया को जानने की कोशिश करें कि वह कहां बना है और कैसे बना है, उसके बनने में पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचाया गया है। एक साल में जितने कपड़े आप खरीदते हैं, उसे कम करना शुरू कर दें। जितनी ज़रूरत हो, उतना ही खरीदें। ये नहीं कि मेरे वार्डरोब में फलां कलर और डिज़ाइन नहीं है और उसे खरीदने चल दिए। कपड़ों को दो-चार बार पहनने के बाद फेंके नहीं। उनका लंबे समय तक उपयोग करें।
3- खाद्य प्रणालियां बड़ी जटिल हैं और इसलिए लगातार इस बात पर रिसर्च की जा रही है कि सबसे अधिक इको फ्रेंडली डाइट कौन-कौन सी हैं। लेकिन वैज्ञानिक इस बात पर पूरी तरीके से सहमत हैं कि मीट इंडस्ट्री से जलवायु पर बहुत बुरा असर पड़ता है और मीट की खपत को कम करने की ज़रूरत है। स्कैंडेनेवियन थिंक टैंक ईएटी की एक रिसर्च के मुताबिक, हालात को बेहतर करने के लिए सभी को ऐसी डाइट अपनानी होगी जिसमें सब्जियां, मेवे और फल ज्यादा हो और मीट और दूध से बने उत्पादों का कम इस्तेमाल हो। कोशिश करें कि खाने को बेकार होने से बचाएं। खाद्य पदार्थों से निकलने वाले बेकार हिस्से यानी छिलके आदि को खाद के रूप में दोबारा उपयोग में लाएं।
4- जब भी घर से बाहर जायें तो घर की लाइट्स को बंद करना न भूलें और सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को भी स्विच से निकालकर जाएं। इलेक्ट्रॉनिक्स सामान या लाइटिंग उपकरण खरीदते समय एनर्जी स्टार वाले उत्पाद ही लें। इन स्टार का मतलब बिजली की सेविंग से होता है यानि जितने अधिक स्टार, उतनी ज्यादा सेविंग। एलईडी बल्बों का इस्तेमाल करें क्योंकि ये सामान्य बल्बों की तुलना में कम ऊर्जा उस्तेमाल करते हैं और 25 गुना ज्यादा चलते हैं। फ्रिज का तापमान आवश्यकता से कम पर सेट न करें।
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तस्वीर : सुश्रीता भट्टाचार्जी फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए