इंटरसेक्शनलजेंडर पितृसत्ता की नज़र में एक ‘बुरी औरत’ कौन है?

पितृसत्ता की नज़र में एक ‘बुरी औरत’ कौन है?

अब आपने 'अच्छी महिला' के गुण के बारे में तो बहुत सुना और समझा होगा पर आइए आज चर्चा करते हैं उस 'बुरी महिला' के बारे में जिसे हमारा पितृसत्तात्मक समाज स्वीकार नहीं करता।

हम महिलाओं को बचपन से ही अच्छी महिला बनने की सीख दी जाती है। इस सीख को हम लोगों के व्यवहार में लाने के लिए बहुत बारीकी से काम भी किया जाता है। बैठने-उठने का ढंग, खाने-पीने का ढंग, कामकाज का ढंग और बात-व्यवहार, यहां तक कि विचार के ढंग को भी पितृसत्तात्मक समाज के बनाए गए नियमों के अनुसार ढाला जाता है।

एक अच्छी औरत कैसी होगी है? इस सवाल के जवाब के रूप में पितृसत्ता के बताए मानकों के आधार पर हम महिलाओं की परवरिश की जाती है। ज़ाहिर है जैसे ही कोई महिला पितृसत्ता द्वारा तय इस ‘अच्छी महिला’ वाले गुण को नकारती है, उसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाती है तो वह बुरी महिला कहलाती है। अब आपने ‘अच्छी महिला’ के गुण के बारे में तो बहुत सुना और समझा होगा पर आइए आज चर्चा करते हैं उस ‘बुरी महिला’ के बारे में जिसे हमारा पितृसत्तात्मक समाज स्वीकार नहीं करता।

1. समानता और अधिकार पर बोलने वाली ‘बुरी महिला’

समान अवसर और विकास के लिए ज़रूरी अधिकार हर इंसान के लिए ज़रूरी हैं, जिससे अक्सर महिलाओं को दूर किया जाता है। जब कोई महिला समानता और अपने अधिकारों के बारे में बोलती है तो वह समाज के लिए बुरी बन जाती है। पितृसत्ता में महिला का बोलना पूरे समाज को खलता है और ख़ासकर तब जब महिला समानता और अपने बुनियादी अधिकारों की बात करे।

2. शिक्षा और विकास अवसर की तरफ़ कदम बढ़ाने वाली ‘बुरी महिला’

जब कोई महिला अपनी शिक्षा और विकास की तरफ़ अपने कदम बढ़ाती है तो वह समाज को बुरी लगती है। आधुनिक दौर की पितृसत्ता ने महिला-शिक्षा के नाम पर कुछ छूट तो दी है, पर वह सिर्फ़ घर को अच्छी तरह संभालने या बच्चों को पढ़ाने तक की। लेकिन जैसे ही कोई महिला स्वावलंबी बनने के दृष्टिकोण से शिक्षा की तरफ़ कदम बढ़ाती है तो उसे बुरी महिला कहा जाने लगता है।

3. अपनी दुनिया ख़ुद बसाने वाली ‘बुरी औरत’

एक महिला की ज़िंदगी कैसी होगी, समय-समय पर उसकी ज़िंदगी में क्या बदलाव आएंगे और उसकी ज़िंदगी में किसी क्या भूमिकाएं होंगी, ये सब पितृसत्ता ने पहले ही तय किया हुआ है। लेकिन जब कोई आत्मनिर्भर-स्वावलंबी महिला अपनी दुनिया खुद बसाती है, उसके हर छोटे-बड़े फ़ैसले खुद करती है, अपने रिश्तों और रिवाजों का चुनाव ख़ुद करती है तो वह पूरे समाज के लिए बुरी बन जाती है।

4. पसंद-नापसंद ज़ाहिर करने वाली ‘बुरी औरत’

पितृसत्ता महिला को इंसान की बजाय समाज को आगे बढ़ाने वाली एक माध्यम के रूप में देखती है। ऐसे में वस्तु की तरह उसकी पसंद-नापसंद के परे उसकी जीवनशैली और रहन-सहन के हर मायने तय किए गए। जब कोई महिला समाज की बनाई इस व्यवस्था में अपनी पसंद और नापसंद को ज़ाहिर करती है तो वह समाज के लिए बुरी बन जाती है।

5. पुरुष से अधिक योग्य ‘बुरी औरत’

पितृसत्ता की ये ख़ासियत है कि वो पुरुष को ही श्रेष्ठ मानती है। उसे ही सबसे शक्तिशाली और योग्य मानती है। ऐसे में जब कोई महिला समाज के बनाए योग्यता के मानक (जिसे समाज ने पुरुष के अनुसार तय किया है) से भी ज़्यादा बेहतर या उसके बराबर होती है तो वो समाज के लिए बुरी औरत बन जाती है। अगर महिला बॉस हो तो अधिकतर वो पुरुष कर्मचारियों के लिए बुरी होती है। अगर वो घर में अपने पति से अधिक कमाए तो वो बुरी कहलाती है।

6. अपने फ़ैसले खुद करने वाली ‘बुरी औरत’

जब कोई महिला अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी से लेकर अपनी ज़िंदगी के हर छोटे-बड़े फ़ैसले खुद लेती है तो वह समाज में बुरी कहलाती है। वह क्या पढ़ेगी, क्या करेगी, किसके साथ रहेगी और कहां रहेगी, ऐसे छोटे-बड़े हर फ़ैसले को जब महिला खुद अपने लिए अपने अनुसार लेती है तो वह समाज के लिए बुरी औरत बन जाती है।

7. नारीवादी नेतृत्व में आने वाली ‘बुरी औरत’

पितृसत्ता कभी भी महिला नेतृत्व को स्वीकार नहीं करती है, लेकिन बदलते समय के साथ अब इसने उन्हीं महिला नेतृत्व को स्वीकृति दी है जो पितृसत्ता के एजेंट के रूप में काम करें। ऐसे में जब कोई महिला जेंडर समानता की वैचारिकी के साथ नारीवादी नज़रिए के साथ नेतृत्व में आती है तो वह समाज को बुरी लगती है। जब वह अपने साथ-साथ अन्य महिलाओं को भी आगे बढ़ाने की बात करती है तो वह समाज को बुरी लगती है।

पितृसत्ता ने महिला एकता में फूट डालने के लिए अच्छी औरत के मानक बहुत सख़्ती से बनाए हैं। हर उस महिला को ‘बुरी महिला’ का टैग लगाकर अलग किया है, जो पितृसत्ता के नियमों को अस्वीकार करती है। ‘अच्छा’ या ‘बुरा’ होना यह प्रकृति से ज़्यादा नज़रिए का विषय है, ये विषय इस बात का है कि आप किसे अच्छा और किसे बुरा मानते हैं। इसलिए ज़रूरी है कि जब हम महिला एकता की बात करते हैं, महिला अधिकार या समानता की बात करते है तो इन बातों से पहले से हम खुद अच्छे और बुरे से फ़र्क़ को समझने और मज़बूत समझ के साथ इनकी जड़ों को समझें। कहीं ऐसा न हो कि अच्छा बनने के चक्कर में हम खुद अपने बुनियादी अधिकारों से दूर होकर पितृसत्ता की कठपुतली बन जाएं।


तस्वीर साभार : सुश्रीता भट्टाचार्जी फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए

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