आज हमारे यहां हर पुरुष प्रधान माने जानेवाले क्षेत्र में महिला रोल मॉड्लस मौजूद हैं। समाज के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है। जब हर क्षेत्र में सिर्फ चुनिंदा महिलाएं ही हुआ करती थीं उस समय से यहां तक का सफर महिलाओं के लिए काफी संघर्ष भरा रहा है। लेकिन वे चुनिंदा महिलाएं ही अगली पीढ़ी के लिए प्ररेणा और हिम्मत का ज़रिया बनकर उभरी थीं। इन महिलाओं में शामिल एक नाम हैं डा.अर्चना शर्मा। डा.अर्चना शर्मा एक प्रसिद्ध भारतीय वनस्पतिशास्त्री, साइटोजेनेटिकिस्ट, कोशिका जीवविज्ञानी और साइटोटोक्सिकोलॉजिस्ट थीं।
शुरुआती जीवन और शिक्षा
अर्चना शर्मा का जन्म 16 फरवरी साल 1932 को पुणे, महाराष्ट्र में हुआ था। उनका पालन-पोषण शिक्षाविदों के परिवार में हुआ। उनके पिता एनपी शर्मा, बीकानेर में रसायन विज्ञान के प्रोफेसर थे। उनके दादा जी भी प्रोफेसर थे। अपनी प्रांरभिक शिक्षा अर्चना ने राजस्थान से ही पूरी की थी। बीकानेर से उन्होंने अपनी बीएससी पूरी करने के बाद साल 1951 में कलकता यूनिवर्सिटी से वनस्पति विज्ञान में एमएससी की डिग्री प्राप्त की। साइटोजेनेटिक्स, मानव आनुवंशिकी और पर्यावरण उत्परिवर्तन में साल 1955 में उन्होंने पीएचडी की डिग्री भी ली। इसके बाद साल 1960 में डीएससी पूर्ण किया। उस समय कलकता यूनिवर्सिटी से डीएससी की डिग्री प्राप्त करने वाली वह दूसरी महिला थी। साल 1955 में ही अर्चना ने अरुण कुमार शर्मा से शादी कर ली थी। अर्चना शर्मा और एके शर्मा, को ‘भारतीय कोशिका विज्ञान के जनक’ के रूप में भी जाना जाता है।
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काम और उपलब्धियां
डा.अर्चना शर्मा के योगदानों में विशेष रूप से वनस्पतिक रूप से प्रजनन करने वाले पौधों में प्रजातियों का अध्ययन, वयस्क नाभिक में कोशिका विभाजन को शामिल करना, फूलों के पौधों की साइटोटैक्सोनॉमी और आर्सेनिक का पानी में प्रभाव, पौधों में विभेदित ऊतकों में पॉलीटेनी का कारण शामिल हैं। अपनी डिग्री पूरी करने के बाद, 1967 में वह कलकता यूनिवर्सिटी से अध्यापक के रूप में जुड़ गई। बाद में साल 1972 में कलकत्ता यूनिवर्सिटी में ‘सेंटर ऑफ़ एडवांस्ड स्टडीज़ इन सेल एंड क्रोमोसोम रिसर्च’ में जेनेटिक्स की प्रोफेसर बन गईं। साल 1981 में उन्हें वनस्पति विज्ञान विभाग का प्रमुख बनाया गया। एक विभाग का महिला के द्वारा संचालन होना उस दौर के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी। डा.अर्चना शर्मा एक बहुत अच्छी शिक्षिका थीं। वह लगभग 70 से अधिक छात्रों के ‘साइटोजेनेटिक्स, मानव आनुवांरीकी और पर्यावरण उत्परिवर्तन’ के क्षेत्रों में उनकी पीएचडी के दौरान उनकी पर्यवेक्षक रहीं।
फूलों के पौधों पर क्रोमोसोम संबंधी अध्ययन पर उनके शोध ने एक नए वर्गीकरण को उत्पन्न किया। अर्चना ने मानव आबादी में आनुवंशिक की बहुरूपता पर व्यापक रूप से काम किया। डा. अर्चना क्रोमोसोम संरचना का अध्ययन और इसकी लेबलिंग के लिए तकनीकों को विकसित के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर ‘क्रोमोसोम टेक्निक्सः थ्योरी एंड प्रैक्टिस‘ नामक एक किताब लिखी। यह किताब दुनियाभर में क्रोमोसोम स्टेनिंग के लिए एक मानक बन गई। पौधों के साथ साथ उन्हें मानव साइटोजेनेटिक्स में काफी रुचि थी। उन्होंने पूर्वी भारत की आबादी में बहुरूपता और रोगों के संबंध का व्यापक अध्ययन किया। कोशिकाओं में कीटनाशकों और अन्य पर्यावरण प्रदूषकों के उत्परिवर्तजन और जीनोटॉक्सिक प्रभावों पर भी उन्होने शोध किए। वह कोशिका विज्ञान पत्रिका ‘न्यूक्लियस‘ की संस्थापक थीं और साल 2007 तक इसकी संपादक बनी रहीं। अपने करियर के दौरान उन्होंने लगभग 400 रिसर्च पेपर और 8 किताबें लिखीं। इसके साथ उन्होने सीआरसी प्रेस, ऑक्सफर्ड, क्लूवर एकेडमिक (नीदरलैंड्स), और गॉर्डन और बीच यूके जैसे प्रकाशकों के लिए कई वैज्ञानिक संस्करणों का संपादन भी किया।
इसके अलावा वह कई नीति निर्माण निकायों की भी सक्रिय रूप से हिस्सा रहीं। वह विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान परिषद सहित प्रमुख नीति-निर्माण निकायों के साथ सक्रिय रूप से शामिल थीं। पर्यावरण और वन मंत्रालय, भारत सरकार की पर्यावरण अनुसंधान परिषद, यूनेस्को के साथ सहयोग पैनल, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की विभिन्न तकनीकी समितियां और जैव प्रौद्योगिकी विभाग का भी हिस्सा थीं। वह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग, विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान परिषद, पर्यावरण विभाग, विदेशी वैज्ञानिक सलाहकार समिति संगठनों की भी सदस्य थीं।
सम्मान और पुरस्कार
डा.अर्चना शर्मा भारत के वैज्ञानिकों में खास महत्व रखती हैं। उनके द्वारा योगदानो को कई पुरस्कारों से सराहा गया है। साल 1972 में उन्हें जेसी बोस पुरस्कार, 1975 में शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार, 1977 में भारतीय विज्ञान अकादमी में फैलोशिप, 1983 में फिक्की पुरस्कार, 1984 में बीरबल साहनी पदक, साल 1995 में एसजी सिन्हा पुरस्कार और जीपी चटर्जी पुरस्कार से नवाजा गया। साल 1984 में ही उन्हें भारत के राष्ट्रपति द्वारा तीसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। 14 जनवरी 2008 को अर्चना शर्मा का निधन हो गया। डा.अर्चना शर्मा एक प्रेरक महिला थीं। भारतीय वैज्ञानिकों में आज भी उनकी एक खास जगह है। उनके द्वारा क्रोमोसोम की संरचना का अध्ययन करने के लिए जिन तकनीकों का विकास किया जिसका आज भी दुनियाभर में पालन किया जा रहा है।
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