किसी व्यवसाय को बढ़ाने के लिए मार्केटिंग एक बेहतरीन ज़रिया है। यह लोगों को उन चीजों में दिलचस्पी देता है जिनकी उन्हें शायद जरूरत भी नहीं होती। इसका सबसे बड़ा साधन है विज्ञापन। विज्ञापन जरूरतों और भावनाओं के ज़रिये लोगों पर गहरा और लंबे समय तक प्रभाव डालता है। ऐसा करके यह लोगों के सोचने-समझने के तरीके को भी प्रभावित करता है। ट्रेंड को फॉलो करने वाले इस समय में कोई भी कंपनी विज्ञापन की इस दौड़ में पीछे नहीं छूटना चाहती। उनकी मार्केटिंग तकनीक ट्रेंड के अनुसार बदलती रहती है। विज्ञापनों का प्रभाव नारीवादी आंदोलन पर भी देखा जा सकता है। आज जहां नारीवादी आंदोलन की अपनी एक आवाज़ और पहचान है, जिस तरह से लोग इसके प्रति जागरूक हो रहे हैं, वहीं कंपनियां अब अपने फायदे के लिए खुद को बतौर नारीवादी पेश कर रही हैं। इन ब्रैंड्स की ये मार्केटिंग स्कीम दशकों से चल रहे नारीवादी संघर्ष को कई पैमानो पर धूमिल करती है। ब्रैंड्स के इस चलन को ‘कमोडिटी फेमिनिज़म’ कहा जाता है यानि नारीवादी संघर्ष का सिर्फ अपने व्यवसाय के लिए इस्तेमाल करना।
क्या है कमोडिटी फेमिनिज़म ?
कमोडिटी फेमिनिज़म एक कॉर्पोरेट, पूंजीवादी रणनीति है। यह नारीवादी विषयों को केंद्र बनाकर अपने उत्पादों को बेचने के लिए महिला ग्राहकों को आकर्षित करती है। कमोडिटी फेमिनिज़म के माध्यम से बड़े ब्रांड्स महिलाओं को सशक्त बनाने और खुद को नारीवादी के तौर पर पेश करते हैं। अक्सर ब्रांड्स अपने विज्ञापनों के ज़रिए अपने उत्पादों को नारीवादी संदेश के साथ जोड़ते हैं। जब 80-90 के दशक में विज्ञापन बनानेवालों को आभास हुआ की महिलाओं को ऑब्जेक्टिफाई करना उनके उत्पादों की बिक्री के लिए सही नहीं हैं, क्योंकि यह देखा गया कि उपभोक्ताओं में अक्सर महिलाएं ज्यादा हैं, तब मार्केटिंग तकनीक में बदलाव किया गया। महिलाओं और उनकी जरूरतों को विज्ञापनों के जरिए टारगेट कर उन्हें आकर्षित किया जाने लगा।
कमोडिटी फेमिनिज़म नारीवाद को केवल एक कार, चाय का पैकेट, काजल, शैम्पू, कपड़े आदि खरीदने के विचार तक सीमित कर देते हैं। ये सब इतने सरल तरीके से किया जाता है कि लोगों को पहली झलक में इसमें कुछ गलत नज़र नहीं आता क्योंकि इनको एक भारी प्रोग्रसिव हैशटैग या टैगलाइन से जोड़ दिया जाता है
विज्ञापनों की सहायता से अपने उत्पादों को महिला समर्थक दिखाया जाने लगा। महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए, महिला समर्थक संदेशों से भरे विज्ञापनों को ‘फेमवर्टिसिंग’ भी कहा जाता है। फेमवर्टिसिंग सभी महिलाओं से सुंदर महसूस करने का आग्रह करता है, लेकिन यह उस दबाव को कायम रखता है जो महिलाएं लगातार अपने आप को आत्मविश्वासी, मजबूत और सुंदर महसूस करने के लिए करती हैं।
हालांकि, कई विज्ञापन कुछ रूढ़ीवादी सोच पर सवाल करने में सफल होते हैं। उदाहरण के लिए साल 2017 में ‘स्टार प्लस’ का ‘गुरदीप सिंह एंड डॉटर्स’ का विज्ञापन जिसने ‘फादर एंड संस’ व्यवसाय नाम वाली सदियों पुरानी भारतीय परंपरा पर चोट की थी। लेकिन ब्रांड्स द्वारा मार्केटिंग और फेमिनिज़म का यह मेल महिलाओं की समानता की लड़ाई पर बहुत नकारात्मक प्रभाव भी डाल रहा है। ये ब्रांड्स और विज्ञापन नारीवादी नहींं अवसरवादी है। अवसर के मुताबिक समय-समय पर इनका नारीवादी रुख़ देखने को मिलता है। यह तभी नारीवाद का समर्थन करते नज़र आते हैं जब इनके ब्रांड या कंपनी को भी बदले में फायदा मिलता नज़र आता है।
और पढ़ें : आज भी मर्दों के प्रॉडक्ट्स बेचने के लिए महिलाओं का ऑब्जेक्टिफिकेशन जारी है
क्यों नारीवाद के लिए खतरा है कमोटिडी फेमिनिज़म ?
कमोडिटी फेमिनिज़म अवसरवादी नारीवाद का एक बेहतरीन उदाहरण है, जो अपने फायदे के लिए नारीवाद का इस्तेमाल करता है। महिलाओं को अधिक से अधिक उत्पादों को कैसा बेचना है, सिर्फ यहां तक ही इन कॉर्पोरेट संस्थानों का नारीवाद सीमित रहता है। ऐसा करने से इन उत्पादों का मीडिया एक्सपोज़र बढ़ता है जिससे उनकी बिक्री बढ़ती है और इन्हें कई गुना मुनाफा होता है। महिला-समर्थक ये विज्ञापन बहुल सरल तरीके से लोगों में नारीवाद की परिभाषा को धूमिल कर रहे हैं। ये विज्ञापन महिलाओं को अपनी पसंद के लिए स्वतंत्र होने की सीख देते हैं लेकिन साथ ही उन्हें यह सिखाते हैं कि एक आदर्श महिला का शरीर, बाल, होंठ, त्वचा आदि कैसे होने चाहिए।
कमोडिटी फेमिनिज़म नारीवाद को केवल एक कार, चाय का पैकेट, काजल, शैम्पू, कपड़े आदि खरीदने के विचार तक सीमित कर देते हैं। ये सब इतने सरल तरीके से किया जाता है कि लोगों को पहली झलक में इसमें कुछ गलत नज़र नहीं आता क्योंकि इनको एक भारी प्रोग्रसिव हैशटैग या टैगलाइन से जोड़ दिया जाता है। जैसे, “Why should boys have all the fun, #LikeAGirl ~Let’s celebrate a change #KanyaMaan, #ShineStrong- Real women have real curves”
रियल वुमन की क्या कोई परिभाषा है? कन्यादान से कन्यामान की बात कर प्रोग्रसिव दिखने वाले ये विज्ञापन आखिरकार भारी मंहगे लंहगे,कपड़े, गहनों को ही प्रमोट कर रहे हैं। इस तरह ही साबुन से जुड़े विज्ञापन महिलाओं के युवा होने पर जोर देते हैं। एक महिला के बालों की चमक का उसके आत्मविश्वास और मजबूत होने से कोई ताल्लुक नहीं है। ये विज्ञापन उत्पादों से कई अधिक कुछ बेच रहे हैं। महिला केंद्रित हैशटैग और टैगलाइन से लैश ये विज्ञापन अपने उत्पादों की बिक्री में तो इज़ाफा कर लेते हैं, लेकिन अपने फायदे के लिए नारीवाद संघर्ष का एक प्रकार से शोषण करते हैं। प्रगतिशील होने का दावा करते ये हैशटैग और टैगलाइन समय-समय पर बदलती रहती है। इनके सहारे ही उत्पादों को भावनात्मक तरीके से महिलाओं के मुद्दो से जोड़कर परोसा जाता है। गौर करने का विषय यह भी है कि आज भी विज्ञापन एजेंसियों के शीर्ष पर पुरुषों की तुलना में बहुत कम महिलाएं हैं।
और पढ़ें : नयी पैकेजिंग में वही रूढ़िवादी विचार बेच रहे हैं फेम ब्लीच जैसे विज्ञापन
ऐसे विज्ञापनों के झूठे नारीवाद से बचने की ज़रूरत है
नारीवाद एक आंदोलन है जिसने 19वीं और 20वीं शताब्दी में शुरू हुए आंदोलन के बाद से ही लैंगिक समानता के लिए एक सतत लड़ाई जारी रखी है। इस संघर्ष का अपने फायदे के लिए लाभ उठाना और इसके विपरीत काम करना, इसका शोषण है। ये विज्ञापन जिस सौंदर्य मानक का विरोध कर रहे होते हैं आखिरकार अपने उपभोक्ताओ को वही परोस रहे होते हैं। नारीवादी संदेशों से भरे ये विज्ञापन उपभोक्ताओं को बता रहे हैं कि एक प्रकार का उत्पाद खरीदने से वे भी नारीवादी बन सकते हैं। नारीवाद का विषय कोई हैशटैग या टैगलाइन नहीं है। इसलिए इसको किसी प्रगतिशील हैशटैग तक सीमित नहीं किया जाना चाहिए। महिलाओं को नारीवाद के नाम पर सशक्तिकरण की इस बिक्री से खुद को बचाने की जरूरत है क्योंकि सशक्तिकरण की आड़ में ये विज्ञापन महिलाओं को वही पुरानी पितृसत्तात्मक सोच ही परोस रहे हैं।
और पढ़ें : कन्यादान से कन्यामान : प्रगतिशीलता की चादर ओढ़ बाज़ारवाद और रूढ़िवादी परंपराओं को बढ़ावा देते ऐड
तस्वीर साभार : Al Jazeera