दिल्ली के बॉर्डर पर लगभग एक साल से भी ज्यादा चलने वाले किसान आंदोलन में पंजाब से आई महिलाओं ने बहुत ही निर्णायक भूमिका निभाई। पंजाब के हर ज़िले से आई क्रांतिकारी महिलाओं ने मंच संभालने से लेकर सड़कों पर पुलिस की बर्बरता का भी जमकर मुकाबला किया। ये महिलाएं न मौसम की मार से घबराई और न ही सरकार की प्रताड़नाओं से डरकर पीछे हटीं। अपना हक मांगती इन महिलाओं ने संघर्ष अपने इतिहास से सीखा है।
पंजाब के इतिहास में अनेक ऐसी महिलाएं हुई हैं जिन्होंने संघर्ष का रास्ता चुना था। इतिहास में सिख महिलाओं ने लड़ाई, सेवाएं देने और शिक्षा के प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने समुदाय का नेतृत्व कर उनका संरक्षण किया। सामाजिक कुप्रथाओं से लेकर पितृसत्ता का विरोध कर खुद को सशक्त करने का हर काम किया। पंजाब की महिलाओं के सशक्त किरदार को बनाने के लिए इतिहास में कई ऐसी महिलाएं हैं जिन्होंने अपने तरीके से दुनिया को आकार दिया। भविष्य के लिए एक कीमती विरासत का गठन किया। सामाजिक न्याय और लैंगिक समानता के लिए जिन्होंने समाज के लिए नये रास्ते बनाएं। आइये जानते हैं ऐसी ही कुछ क्रांतिकारी महिलाओं के बारे में जिन्होंने अपने दौर में अपनी कहानी खुद लिखकर एक मिसाल कायम की।
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1- माता भाग कौर (1666- अज्ञात)
माता भाग कौर, जिन्हें माई भागो के नाम से जाना जाता है। माई भागो 1705 में युद्ध में लड़ने वाली पंजाब की पहली महिला योद्धा थीं। इनका जन्म झाबल कलां गांव वर्तमान में पंजाब के अमृतसर ज़िले में हुआ था। इनके पिता मालो शाह गुरु हरगोविंद की सेना में थे। उन्होंने बचपन में अपने पिता से पारंपरिक सिख मार्शल आर्ट ‘गतका’ सीखा था। यह मुग़ल सेना के खिलाफ खालसा सेना में शामिल हुई थीं। इन्होंने मुगलों के खिलाफ 40 सिख योद्धाओं का नेतृत्व किया था। 29 दिसंबर 1705 में मुक्तसर के युद्ध में खालसा के 250 योद्धाओं के साथ 20,000 मुगल सैनिकों का सामना करने मैदान में उतरी थी। वह उस युद्ध में एकमात्र जीवित योद्धा बची थीं। इस युद्ध में 4000 से अधिक मुगल सैनिक मारे गए थे। इसके बाद वह गुरु गोविंद सिंह की अंगरक्षक बन गयी थीं।
2- बीबी साहिब कौर (1771-1801)
बीबी साहिब कौर एक सिख राजकुमारी और पटिलाया के राजकुमार राजा सहिब सिंह सिंधू की बड़ी बहन थीं। राजकुमारी साहिब कौर उन महिलाओं में से हैं जिन्होंने ब्रिटिश जनरल के खिलाफ युद्ध में सफलता हासिल की थीं। इनका जन्म 1771 में हुआ था। इनका विवाह छोटी उम्र में फतेहगढ़ के जयमल सिंह के साथ हुआ था। साल 1793 में राजा साहिब सिंह ने अपने राज्य के भीतर बढ़ते असंतोष और असुरक्षा को देखते हुए अपनी बहन को राज्य वापिस बुला लिया था। राजा ने उन्हें प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त किया था। हालांकि जल्द ही अपने पति को बचाने के लिए पटियाला सेना को फतेहगढ़ की ओर कूच करना पड़ा। जहां उनके पति को एक विरोधी ने बंधक बना लिया था। 1799 में जार्ज थॉमस, एक आयरिश योद्धा ने हांसी और हिसार क्षेत्रों को नियंत्रित कर कौर के राज्य के क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया। हौसले से भरी प्रधानमंत्री कौर ने स्वयं पटियाला सेना का नेतृत्व किया। उन्होंने तब तक युद्ध किया जब तक ब्रिटिश सेना पीछे हटने के लिए मजबूर नहीं हुई।
3- सोफिया दिलीप सिंह (1876- 1948)
सोफिया का जन्म 8 अगस्त 1876 में हुआ था। इनके पिता सिख साम्राज्य के राजा दिलीप सिंह थे। इनके पिता के राज्य पर ब्रिटिश अधिकार होने के बाद इंग्लैंड निर्वासित कर दिया गया था। जब सोफिया सत्रह वर्ष की थी इनके पिता की मृत्यु हो गई थी। इनकी परवरिश ब्रिटिश घराने में शाही अंदाज में हुई थी। साल 1903 और 1907 में भारत यात्रा के बाद ये ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ हो गई थी। इनकी मुलाकात स्वतंत्रता सेनानी गोपाल कृष्ण गोखले और लाला लाजपत राय से हुई थी। इंग्लैंड से वापिस लौटने के बाद ये ‘वुमन सोशल एंड पॉलटिकल यूनियन’ से जुड़ गई। वहां उन्होंने मताधिकार आंदोलन में काम करना शुरू किया। उन्होंने 1910 में अपने नाम के आगे राजकुमारी की उपाधि लगानी शुरू की थी। वह महिलाओं की उन्नति पर होने वाली चर्चाओं में शामिल हुआ करती थीx। उन्हें दो बार अदालत में जुर्माना भरने के लिए बुलाया गया। जब उन्हें छोटी-छोटी चीजों के जुर्माना देने के लिए कहा गया जैसे कुत्ता रखने के लिए लाइसेंस न होना। तब उन्होंने कहा था कि यदि उन्हें वोट देने का अधिकार नहीं है तो वह जुर्माने की फीस का भुगतान भी नहीं करेंगी। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान रेड क्रॉस में शामिल होकर उन्होंने घायल सैनिकों का उपचार किया।
4- गुलाब कौर ( 1890-1931)
गुलाब कौर एक क्रांतिकारी महिला थीं। वह गदर पार्टी से जुड़ी हुई थी। इनका जन्म 1890 में बक्शीवाला जिला संगरूर, पंजाब में हुआ था। इनका विवाह मान सिंह के साथ हुआ था। वह और उनके पति अमेरिका जाने के रास्ते से ब्रिटिश भारत से फिलीपींस चले गए थे, जहां अधिकांश गदर पार्टी सक्रिय रूप से स्थित थी। मनीला में उन्होंने विस्थापित भारतीयों के समूह का नेतृत्व किया और भारत को ब्रिटिश शासन से आजाद करने का प्रण लिया। वह पार्टी के साहित्य के मुद्रण और वितरण की प्रभारी थीं। गुलाब कौर गदर पार्टी से लोगों को जोड़ने के लिए जहाजों में भारतीय यात्री के बीच स्वतंत्र साहित्य और प्रेरक भाषण दिया करती थी। गुलाब कौर गदर पार्टी के लोगों को गुप्त तरीके से हथियार बांटने का भी काम करती थी। जब भारत लौटकर आंदोलन में हिस्सा लेना चाहती थी, उन्होंने वापिस आना चुना। उन्हें अन्य गदर पार्टी के क्रांतिकारियों के साथ लाहौर के शाही किले में दो साल की कैद मे रखा गया और प्रताड़ना दी गई थी। 1931 में इनकी मृत्यु हो गई थी। गुलाब कौर पर पंजाबी में एक किताब ‘गदर दी धी- गुलाब कौर’ यानि गदर की बेटी-गुलाब कौर लिखी हुई है।
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नोट : यह सूची अपने आप में संपूर्ण नहीं हैं। पंजाब के इतिहास में ऐसी कई और बहादुर और प्रभावशाली महिलाएं ज़रूर होंगी जिनका ज़िक्र किया जाना ज़रूरी है। अगर आपके पास कोई सुझाव हो तो हमें ज़रूर दें।