कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपनी परिस्थितियों से लड़कर बहुत कुछ करते हैं और सबके लिए प्रेरणास्त्रोत बन जाते हैं। ऐसी ही एक जांबाज़ महिला थीं शांति तिग्गा। आज़ादी की लड़ाई में महिलाओं ने पुरुषों से कंधे से कंधे मिलाकर अंग्रेज़ों से लोहा लिया। लेकिन, आज़ादी के बाद जब भारत की सेना तैयार हुई, तो महिलाओं को सेना में स्थान मिलने में बहुत समय लग गया। आज भी रक्षा क्षेत्र के कई विभागों में महिलाओं के लिए राह खुलनी बाकी है। पितृसत्तात्मक समाज की बनाई इन नीतियों को चुनौती देनेवाली अनेक महिलाएं इतिहास में हुई हैं जिन्होंने अन्य महिलाओं के लिए मार्गदर्शक का काम किया। इसी कड़ी में एक नाम हैं शांति तिग्गा। भारतीय सेना में शामिल होने वाली पहली महिला जवान शांति तिग्गा थीं। इसी हौसले की बदौलत इन्हें बेस्ट ट्रेनी के अवार्ड से भी सम्मानित किया गया था।
कौन थी शांति तिग्गा?
शांति तिग्गा भारतीय सेना की पहली महिला जवान थी। वह मूल रूप से पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी की रहने वाली थी। वह अनुसूचित जनजाति समुदाय से आती थीं। उनकी शादी बहुत कम उम्र में कर दी गई थी। उनका जीवन शुरू से ही कठिनाइयों भरा रहा। किसी आम महिला की तरह शांति भी एक गृहणी थीं और अपना घर संभाल रही थी। साल 2005 में शांति तिग्गा के पति की मौत हो गई। वह रेलवे में नौकरी करते थे। शांति दो बच्चों की मां थी। पति की नौकरी के आधार पर शांति को रेलवे में अनुकंपा के तौर पर पॉइंट्समैन की नौकरी मिल गई। पांच सालों तक नौकरी करने के बाद उनके मन में सेना में भर्ती होने की इच्छा जगी।
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शांति ने टेरिटोरियल आर्मी का ज़िक्र सुन रखा था। उनके कुछ रिश्तेदार इसका हिस्सा भी थे। साल 2011 में शांति ने टेरिटोरियल आर्मी के लिए आवेदन किया। आवेदन करते समय ही उन्हें पता चला कि अब तक कोई भी महिला भारतीय सेना में अफसर रैंक से नीचे भर्ती नहीं हुई है। लेकिन शांति फिर भी पीछे नहीं हटी। बिना किसी तरह की हिचकिचाहट के उन्होंने आगे कदम बढ़ाने शुरू कर दिए। परीक्षा में होने वाले फिजिकल टेस्ट के लिए शांति ने खूब मेहनत की। टेरिटोरियल आर्मी में जवान बनने के लिए शांति ने सारी लिखित परीक्षा पास कर ली।
शांति ने सभी फिजिकल टेस्ट में बेहतरीन प्रदर्शन किया। 1.5 किलोमीटर की दौड़ पूरी करने में उन्होंने पुरुष प्रतिभागियों से 5 सेकेंड से कम का समय लिया था। इसके अलावा 50 मीटर की दौड़ उन्होंने केवल 12 सेकंड में पूरी कर ली थी जिसे उत्कृष्ट माना गया। उन्हें दौड़ते देख वहां मौजूद सभी पुरुष हैरान रह गए। सभी परीक्षा पास करने के बाद वह भर्ती प्रशिक्षण शिविर पहुंची। वहां रहने के दौरान तिग्गा ने बंदूक को हैंडल करने के अपने कौशल से अपने प्रशिक्षकों को काफी प्रभावित किया। उन्होंने निशानेबाजों में सर्वोच्च स्थान हासिल किया।
साल 2011 में शांति ने टेरिटोरियल आर्मी के लिए आवेदन किया। आवेदन करते समय ही उन्हें पता चला कि अब तक कोई भी महिला भारतीय सेना में अफसर रैंक से नीचे भर्ती नहीं हुई है। लेकिन शांति फिर भी पीछे नहीं हटी। बिना किसी तरह की हिचकिचाहट के उन्होंने आगे कदम बढ़ाने शुरू कर दिए। परीक्षा में होने वाले फिजिकल टेस्ट के लिए शांति ने खूब मेहनत की।
इतना ही नहीं, रिक्रूटमेंट ट्रेनिंग कैंप में उनका जोश देखने लायक था। उन्होंने ट्रेनिंग के दौरान इतना शानदार प्रदर्शन किया की उन्हें सर्वोच्च ट्रेनिंग कैडेट घोषित किया गया। इसके लिए उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल से पुरस्कार भी मिला। साल 2011 में शांति तिग्गा ‘969 रेलवे इंजीनियर रेजीमेंट ऑफ टेरिटोरियल आर्मी’ में शामिल हुई। शांति तिग्गा कोई साधारण महिला नहीं थी। जब उन्होंने यह उपलब्धि हासिल की थी तब वह 35 वर्ष की थीं। वह बेहद फिट महिला थीं। उन्होंने अपने सपनों के रास्ते में उम्र को कभी कोई बाधा नहीं बनने दिया। जब तिग्गा भारतीय सेना में जवान बनीं तो वह दो बच्चों की मां भी थी।
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रहस्यमयी मौत
जहां 2011 में शांति ने इतिहास रचा, वहीं इसके ठीक 2 साल बाद 2013 में उनकी मौत हो गई। खबरों की मानें तो 9 मई 2013 को कुछ अज्ञात लोगों ने उनका अपहरण कर लिया। इससे अगली सुबह वो बेहोशी की हालत में रेलवे ट्रैक के किनारे एक खंभे से बंधी मिली। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। पुलिस जांच शुरू हुई। शांति के कमरे की सुरक्षा भी बढ़ा दी गई थी। उन्होंने पुलिस को बताया कि अपहरणकर्ताओं ने उन्हें किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाया है।
अस्पताल में इलाज के दौरान एक दिन वह काफ़ी देर तक बाथरूम से बाहर नहीं आईं। दरवाज़ा तोड़कर पुलिस अंदर गई तो शांति का मृत शरीर लटका हुआ मिला। 13 मई, 2013 को शांति तिग्गा की मौत हो गई। शांति के परिवार ने हत्या का शक जताते हुए जांच करने की मांग की। जांच हुई लेकिन किसी तरह का सबूत नहीं मिलने पर इस रहस्यमयी मौत को आत्महत्या से हुई मौत ही माना गया और केस को बंद कर दिया गया।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, शांति तिग्गा पर लोगों से पैसे लेकर उन्हें नौकरी दिलाने का झांसा देने के गंभीर आरोप भी लगे थे। शांति तिग्गा का केस इसी बात पर बंद कर दिया गया कि इन इल्ज़ामों और जांच की वजह से उनकी आत्महत्या से मौत हुई। जांच में भी कुछ खास पता नहीं चला और शांति की फ़ाइल बंद कर दी गई। इस तरह भारत की एक जांबाज़ महिला का दुखद अंत हुआ, जो आगे चलकर कई लोगों की प्रेरणा बनीं।
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तस्वीर साभारः firstpost.com
सोर्सः indiatimes.com