समाजख़बर औरतें शराब पी सकती हैं या नहीं, इसकी ‘नैतिक ज़िम्मेदारी’ हमारे नेता क्यों उठा लेते हैं?

औरतें शराब पी सकती हैं या नहीं, इसकी ‘नैतिक ज़िम्मेदारी’ हमारे नेता क्यों उठा लेते हैं?

देश की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी के ' भारतीय आदर्श नारी' के मूल्यों में कहीं भी, किसी भी कारण से शराब पी रही महिला फिट बैठती नहीं दिखती। यह अलग-अलग समुदाय और उनके दर्शन-संस्कृति को खारिज़ करते हुए 'एक पहचान, एक देश' बनाने की कोशिश है।

उत्तर-पश्चिमी दिल्ली से बीजेपी के सांसद हंस राज हंस दिल्ली सरकार की नई उत्पाद नीति की आलोचना करते हुए एक विवादित बयान दे गए। पत्रकारों को दिए बयान में वह कहते हैं, “पिंक ठेका से पीकर गलियों और नालियों में अगर कोई गिर गई, अच्छी लगेंगी औरतें ऐसे झूमती हुईं। तरस करो इस दिल्ली पर और इसको रोको।” प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने यह भी कहा कि आम आदमी पार्टी की सरकार को ये सब करने की जगह ‘हमारी महिलाओं’ में अच्छे मूल्य डालने पर काम करना चाहिए। सबसे पहले तो समझते हैं कि ‘पिंक ठेका’, जिसकी बात की जा रही है, वह आख़िर है क्या और दिल्ली सरकार ने किस नीति में क्या बदलाव किए हैं।

दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार ने नंवबर 2021 से अपनी उत्पाद नीति में कुछ बदलाव किए हैं। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले कुछ दिनों से कई ठेके एमआरपी से कम दाम में, यहां तक कि गुरुग्राम या नोएडा में जिस दाम पर शराब उपलब्ध हैं उससे भी कम दाम में बेच रहे हैं। नई नीति शराब विक्रेताओं के बीच प्रतिस्पर्धा कायम कर रही है। दिल्ली के साकेत से लेकर जीटीबी नगर के कई ठेकों पर ‘एक पर एक फ्री’ की स्कीमें चल रहीं थीं। साथ ही, यह नीति शराब के क़ीमत की एक ऊपरी सीमा तय कर देती है, उससे ज्यादा दाम पर शराब नहीं बेची जा सकती है। पहले नियम में ऐसा नहीं था। हालांकि, विक्रेता उस तय किए गए दाम से कम में शराब बेच सकते हैं। इससे विक्रेताओं के बीच दाम कम से कम कर के बिक्री बढ़ाने की होड़ लग गई थी। इसके साथ ही, दिल्ली में शराब का व्यवसाय अब पूरी तरह से गैर-सरकारी हाथों में है। 32 ज़ोन में बंटी दिल्ली में 849 शराब की दुकानें खोलने की स्वीकृति दी गई है।

और पढ़ें : हिला विरोधी बयान क्यों हमारे देश के चुनावों का एक ज़रूरी हिस्सा बन चुके हैं?

पत्रकारों को दिए बयान में वह कहते हैं, “पिंक ठेका से पीकर गलियों और नालियों में अगर कोई गिर गई, अच्छी लगेंगी औरतें ऐसे झूमती हुईं। तरस करो इस दिल्ली पर और इसको रोको।” प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने यह भी कहा कि आम आदमी पार्टी की सरकार को ये सब करने की जगह ‘हमारी महिलाओं’ में अच्छे मूल्य डालने पर काम करना चाहिए।

शराब की दुकानों पर लगनेवाली भीड़ को देखते हुए दिल्ली सरकार ने दुकानदारों द्वारा दी जा रही भारी छूट और ‘एक पर एक फ्री‘ पर फिलहाल प्रतिबंध लगा दिया है। इस आर्डर के ठीक कुछ घंटे बाद हंस राज हंस का बयान आया। उनके बयान पर ‘द प्रिंट’ को दिए एक बयान में दिल्ली सरकार के एक अधिकारी ने बताया कि ‘पिंक ठेका’ जैसी कोई चीज़ दिल्ली सरकार नहीं बना रही है। बदली हुई नीति के बाद अब यह मामला सरकारी नहीं रहा। अगर शराब विक्रेता और व्यवसायी, महिलाओं के लिए अलग से एक काउंटर बनाना चाहें तो यह उनकी मर्जी पर निर्भर करता है।

साल 2016 में हंस राज हंस ने बीजेपी जॉइन की थी। बीजेपी के सांसद बनने या सक्रिय राजनीति में आने से पहले पंजाबी लोकगीत, भक्ति, सूफी गाने गाया करते थे। अगर पद्मश्री सम्मानित कलाकर राजनीतिक कारणों से विपक्षी सरकार की किसी नीति का विरोध कर रहा हो, तब भी उनसे इस तरह की भाषा और मानसिकता की उम्मीद नहीं की जा सकती है। हंस राज हंस ने अपने गायकी के करियर में संत रविदास के गाने गाए हैं। संत रविदास ने जाति व्यवस्था, धार्मिक और ब्राह्मणवादी पितृसत्तात्मक शुद्धतावाद पर प्रहार किया था।

भक्तिकाल के इस गुरु और दार्शनिक की प्रशंसा में गीत गानेवाले बीजेपी से पहले वाले ‘हंस राज हंस’ आज के समय में बीजेपी की भाषा बोलने लगे हैं। ‘हमारी औरतें’ और औरतों को सही मूल्य सिखाने की जिम्मेदारी लेने जैसी बात कह कर हंस राज बीजेपी और दक्षिणपंथी संगठनों की ‘आदर्श भारतीय नारी’ के विचार को अपनाते नज़र आते हैं। ‘आदर्श भारतीय नारी’ बहुसंख्यक संस्कृति, ब्राह्मणवादी पितृसत्ता और संस्कृति को सहर्ष स्वीकारने वाली होगी। उनके जीवन पर उनके निजी अधिकार, उनके साथ जुड़ी अन्य पहचानों के कारण उनके अनुभव, विचार, संघर्षों और दुविधाओं की कोई जगह नहीं बचती।

और पढ़ें : राजनीति और महिला नेताओं के ख़िलाफ़ सेक्सिज़म का नाता गहरा है

देश की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी के ‘ भारतीय आदर्श नारी’ के मूल्यों में कहीं भी, किसी भी कारण से शराब पी रही महिला फिट बैठती नहीं दिखती। यह अलग-अलग समुदाय और उनके दर्शन-संस्कृति को खारिज़ करते हुए ‘एक पहचान, एक देश’ बनाने की कोशिश है।

‘आदिवासी जीवन दर्शन’ पर बात करते हुए ज़ोराम यालाम नाबाम कहती हैं कि आदिवासी जीवन का अपना दर्शन है जो संगठित धर्मों के दर्शन और संस्कृति से अलग है। वह अरुणाचल प्रदेश के न्यीशी समुदाय से हैं। वह कहती हैं, “जैसे किसी धर्म में शराब मना है, हमारे दर्शन में ऐसा नहीं है। हम शराब पीने को अपने पूर्वजों को सम्मान देने से जोड़कर देखते हैं। हमें शराब पीने के बाद गुनाह या पाप नहीं लगता है क्योंकि हम स्वर्ग-नरक नहीं जाते। हमारे दर्शन में ये जगहें नहीं हैं। हम अपने पूर्वजों के पास जाते हैं।”

दिल्ली में बिकनेवाली अंग्रेज़ी शराब और अरुणाचल प्रदेश की जिस पारंपरिक शराब की बात नाबाम कर रही हैं, संभव है दोनों में अंतर हो। उन्हें पीनेवाले लोगों के वर्ग और अन्य पहचान में अंतर हो, कारण भी एकदम अलग हो लेकिन एक बात यह भी है कि देश की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी के ‘भारतीय आदर्श नारी’ के मूल्यों में कहीं भी, किसी भी कारण से शराब पी रही महिला फिट बैठती नहीं दिखती। यह अलग-अलग समुदाय और उनके दर्शन-संस्कृति को खारिज़ करते हुए ‘एक पहचान, एक देश’ बनाने की कोशिश है।

बीजेपी सांसद हंस राज हंस की चिंता है कि महिलाएं शराब पीकर नाले में पड़ी न मिलें, वे उन समुदाय की महिलाओं को लेकर क्या सोचते होंगे जिन के समुदाय का दर्शन ब्राह्मणवादी पितृसत्तात्मक सोच से अलग है? हंस राज हंस का बचाव करने वाले कह सकते हैं कि उन्होंने केवल दिल्ली को लेकर ऐसा कहा। लेकिन क्या महिलाओं का खुद पर अधिकार, खुद को लेकर जिम्मेदारी का भाव दिल्ली में कम हो जाता है? क्या दिल्ली सरकार की नई नीति की आलोचना अर्थव्यवस्था, उत्पाद नीति की संरचना के पैमाने पर नहीं की जा सकती थी? क्यों बीजेपी के किसी संसद ने एक बार फिर से मोरल पुलिसिंग का तरीका अपनाया? यह बयान बीजेपी के हिंदू राष्ट्रवाद में किस तरह से समाज महिलाओं को देखेगा उसे साफ़ करता है।

और पढ़ें : पितृसत्तात्मक समाज से सवाल करती है राजनीति में महिलाओं की भागीदारी

महिलाओं को लेकर बीजेपी नेताओं के बयान और सोच कई बार आपत्तिजनक रहे हैं। ‘हमारी महिलाओं’ का इस्तेमाल बीजेपी के परिवार की संस्था की पितृसत्तात्मक जड़ों को बचाए रखने की सोच से आती है। हंस राज हंस जाहिर है दिल्ली की महिलाओं को अपना ‘विस्तृत परिवार’ समझते होंगे, एक सांसद के रुप में उन में ‘उचित मूल्यों’ को भरने की ज़िम्मेदारी उन्होंने ख़ुद-ब-ख़ुद ले ली।

ब्राह्मणवादी पितृसत्ता जेंडर रोल में भरोसा करते हुए पुरुषों द्वारा महिलाओं के नैतिक और अन्य सभी मार्गदर्शन करने का हक़दार मानता है, बिना उनकी सहमति, सहजता या इच्छा जाने। इसी तरह की सोच का शिकार भारतीय जनता पार्टी नज़र आती है। यहां तक कि इसे गर्व के साथ प्रदर्शित किया जाता है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के स्टार चेहरे योगी आदित्यनाथ अक्सर लड़कियों को सुरक्षा देने के नाम पर उन्हें मनुवादी समाज के नियम बताते नज़र आते हैं। “शास्त्रों में महिलाओं को सुरक्षा देने की बात कही गई है। ऊर्जा को अकेला और आज़ाद छोड़ने से विनाश होता है। महिलाओं को स्वतंत्रता नहीं सुरक्षा की जरूरत है। उनकी ऊर्जा सही दिशा में जानी चाहिए।”

योगी आदित्यनाथ की तरह कई बीजेपी के चेहरे महिलाओं की ऊर्जा और उनके व्यवहार को सही करने के नैतिक ठेकेदार खुद को मान चुके हैं। उनके लिए सभी महिलाओं को हिन्दू धर्म के शास्त्रों के हिसाब से जीना चाहिए। यहां स्वाधिकार के हक़ की जगह नहीं बचती है। सीएए-एनआरसी के ख़िलाफ हुए विरोध-प्रदर्शन के दौरान ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव वुमेन्स असोसिएशन के साथ कमला भसीन, लायला त्याब्जी, देवकी जैन ने सम्मिलित रूप से एक चिट्ठी लिखी थी। दिल्ली में बीजेपी के नेताओं द्वारा कैम्पेन में डर का माहौल पैदा करने और अपने समर्थकों को शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रही महिलाओं पर हिंसा करने के लिए ‘रेप की धमकी’ का प्रयोग करने पर चिट्ठी में सवाल पूछे गए थे। “आप बीजेपी के लिए वोट करें वरना आपका रेप हो जाएगा! क्या ये आपका चुनावी संदेश है?” चिट्ठी में लिखा था। बीजेपी का हिन्दू राष्ट्रवाद महिलाओं की आज़ादी, स्वाधिकार का पक्षधर कहीं से नज़र नहीं आता। महिलाओं के बीच भी उनके अन्य पहचानों के कारण जो विविधता और भिन्नता है उसे स्टेट अपनी पॉलिसी में समावेशी रूप से जगह दे यह उम्मीद भी इस सरकार से करना बेमानी है। 

और पढ़ें : रिप्ड जीन्स नहीं, रिप्ड पितृसत्तात्मक मानसिकता पर है काम करने की ज़रूरत


तस्वीर साभार : The Tribune

Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content