पाकिस्तान के पिशिन जिले में एक विश्राम गृह के लॉन में सौ से ज्यादा पुरुष एक घेरे में बैठे हैं। वे सभी महत्वपूर्ण व्यक्ति है जैसे पख्तून, मलिक, सुप्रीम कोर्ट के वकील, वे पिता जिनके बेटों का अपहरण खुफिया एजेंसियों ने किया, स्थानीय नगर समिति अध्यक्ष। यह पाकिस्तान में एक आम दृश्य है जहां पुरुष बैठकर आपस में बात करते दिखते हैं। लेकिन इस बैठक की अध्यक्षता एक महिला कर रही थीं। पुरुषों की इस मीटिंग में मौजूद तीन-चार महिलाओं में से एक थीं आसमा जहांगीर।
वह खुले आसमान के नीचे एक घेरे में बैठकर बीड़ी पीते हुए लोगों की बातें सुन रही हैं। ये आदमी उनके सामने सरकार के बारे में शिकायत, शासन की कमी, मदरसों और तालिबान के विषय में के बात कर रहे हैं। इस पूरी मीटिंग के पुरुषों को उनसे बहुत उम्मीदें हैं। पाकिस्तान मुल्क में महिला के नेतृत्व की ऐसी तस्वीर को साकार करने वाली आसमा जहांगीर का पूरा जीवन इस तरह लोगों के बीच उनकी परेशानियों को दूर करते हुए, उनके अधिकारों के लिए संघर्ष करते हुए बीता है। यह ब्योरा पाकिस्तान की बेवसाइट डॉन में दी गई है।
आसमा जहांगीर पाकिस्तान की एक प्रमुख मानवाधिकार कार्यकर्ता और वकील थीं। तीन दशकों तक, उन्होंने पाकिस्तान में महिलाओं, बच्चों, धार्मिक अल्पसंख्यकों और गरीबों की रक्षा करने में अविश्वसनीय साहस के साथ काम किया। उन्होंने एक ऐसे मुल्क में अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने के लिए अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की जहां प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष आवाज़ें हमेशा खतरे में रही हैं। साल 2010 में आसमा जहांगीर ने पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की पहली महिला अध्यक्ष चुनी जाने पर इतिहास बनाया।
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शुरुआती जीवन
आसमा जिलानी जहांगीर का जन्म 27 जनवरी 1952 को लाहौर में हुआ था। इनके पिता का नाम मलिक गु़लाम ज़िलानी था। इनके पिता एक सिविल सेवक थे जिन्होंने रिटायरमेंट के बाद राजनीति करनी शुरू कर दी थी। सार्वजनिक तौर पर मिलिट्री शासन के खिलाफ बोलने पर इनके पिता कई बार जेल गए और नज़रबंद किए गए। उनकी माँ का नाम साहिबा जिलानी था। जिस दौर में महिलाओं का पढ़ना मना था उस समय उन्होंने को-एड कॉलेज से अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त की थीं। उन्होंने पारंपरिक व्यवस्था का विरोध कर, अपना खुद के कपड़ों का व्यवसाय शुरू किया था। उनके पति की नज़रबंदी और जेल जाने पर वह परिवार की आय का मुख्य स्रोत थीं।
शिक्षा
आसमा जहांगीर की स्कूली शिक्षा कॉन्वेंट ऑफ जीजस एंड मैरी से हुई। उन्होंने किन्नेयर्ड कॉलेज फॉर वुमन से स्नातक की पढ़ाई पूरी की। साल 1978 में पंजाब विश्वविद्यालय से कानूनी में डिग्री हासिल की। उन्होंने स्विट्जरलैंड के सेंट गैलेन यूनिवर्सिटी, क्वींस यूनिवर्सिटी, कॉर्नेल यूनिवर्सिटी, अमेरिका और साइमन फ्रेजर यूनिवर्सिटी से मानक उपाधि भी प्राप्त थीं। आसमा ने बहुत ही कम उम्र में धरना-प्रदर्शनों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था। वह मिलिट्री शासन के खिलाफ होनेवाले प्रदर्शनों में हिस्सा लेती थी। उन्होंने अपने पिता की कैद के विरुद्ध तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो तक का विरोध किया।
मानवाधिकार संरक्षक वकील
जहांगीर पाकिस्तान की पहली महिला वकील थीं जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ वकील का दर्जा दिया था। 1980 में उन्हें लाहौर उच्च न्यायलय और 1982 में सुप्रीम कोर्ट बुलाया गया। उन्होंने बार एसोसिएशन की राजनीति में ‘इंडिपेंडेंट लॉयर्स ग्रुप’ का नेतृत्व किया था। साल 1980 में ही वह एक लोकतांत्रिक कार्यकर्ता बन गई थीं। 1983 में सैन्य शासन के खिलाफ लोकतंत्र की बहाली के लिए जिया-उल-हक के खिलाफ हो रहे आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए उन्हें कैद कर लिया गया था।
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आसमा जहांगीर के बुलंद हौसलों और बेबाकी के लिए उन्हेंं ‘लिटिल हिरोइन’ नाम दिया गया। 1982 में उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति ज़िया-उल-हक के धार्मिक कानूनों को लागू करने के फैसले के खिलाफ इस्लामाबाद में एक मार्च का नेतृत्व किया। जहां उन्हें लिटिल हीरोइन उपनाम दिया गया। यहां उन्होंने कहा, “पारिवारिक कानून महिलाओं को कुछ अधिकार देते हैं।, पाकिस्तान इस घुटन में नहीं रह सकता है इसलिए इसे सुधारना होगा। हम गुलामी में नहीं रह सकते जब अन्य महिलाएं आगे बढ़ रही हो।”
असमानता के खिलाफ लड़ाई
इसी साल उन्होंने भेदभावपूर्ण कानून से लड़ने वाली एक टीम ‘वीमंस एक्शन फोरम’ (डब्ल्यूएएफ) गठित की। इस टीम का काम विशेष रूप से पाकिस्तान के भेदभावपूर्ण कानून जैसे ‘एवीडेंस लॉ’, जिसके अनुसार एक महिला की गवाही को पुरुष की तुलना में कम माना जाना और ‘हुदूद अध्यादेश’, जिसमें बलात्कार की सर्वाइवर को खुद को निर्दोष साबित करने या सजा भुगतने के खिलाफ संघर्ष करना शामिल था। 12 फरवरी 1983 में पंजाब महिला वकील संघ, लाहौर की ओर से ‘लॉ ऑफ एविडेंस’ के विरोध में प्रदर्शन का आयोजन किया। इस प्रदर्शन का नेतृत्व जहांगीर ने ही किया था। इसमें शामिल होने वाले डब्ल्यूएएफ के सदस्यों को पुलिस ने पीटा, आंसू गैस छोड़े और गिरफ्तार किया। हालांकि, डब्ल्यूएएफ के पहले प्रदर्शन में 25-50 महिलाओं ने साफिया बीबी के केस को लेकर सड़क मार्च निकाला था। साफिया एक तेरह साल की अंधी लड़की थी, जिसके साथ यौन हिंसा हुई थी और वह गर्भवती हो गई थी। इस अपराध में उसे ही गिरफ्तार कर लिया था और उसे सजा सुनाई थी। इस फैसले के खिलाफ आसमा जहांगीर ने अपील की थी।
आसमां से बनी ‘लिटिल हीरोइन’
आसमा जहांगीर के बुलंद हौसलों और बेबाकी के लिए उन्हेंं ‘लिटिल हिरोइन’ नाम दिया गया। 1982 में उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति ज़िया-उल-हक के धार्मिक कानूनों को लागू करने के फैसले के खिलाफ इस्लामाबाद में एक मार्च का नेतृत्व किया। जहां उन्हें ‘लिटिल हीरोइन’ उपनाम दिया गया। यहां उन्होंने कहा, “पारिवारिक कानून महिलाओं को कुछ अधिकार देते हैं, पाकिस्तान इस घुटन में नहीं रह सकता है इसलिए इसे सुधारना होगा। हम गुलामी में नहीं रह सकते जब अन्य महिलाएं आगे बढ़ रही हो।”
साल 1986 में जहांगीर ने एजीएचएस लीगल ऐड की शुरुआत की। उन्होंने अपनी बहन हिना जिलानी और अन्य वकील साथियों और कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर पाकिस्तान की पहली महिला ‘लॉ फर्म’ की शुरुआत की। लाहौर में ‘एजीएचएस लीगल ऐड’ सेल के द्वारा एक महिला शेल्टर ‘दस्तक’ भी चलाया गया जिसका संचालन मुनीब अहमद कर रही थी। वह जबरन धार्मिक कानून के विरोध और पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ होने वाले अत्याचार के खिलाफ मुखर होकर बोलती थी।
जहांगीर 1986 में जेनेवा चली गईं। यहां वह ‘डिफेंस फॉर चाइल्ड इंटरनेशनल’ का हिस्सा बनीं और 1988 तक इस पद पर कायम रही। इसके बाद वह दोबारा पाकिस्तान लौट आई। साल 1987 में जहांगीर, ‘पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग’ की सह-संस्थापक बनीं। जहां उन्होंने महासचिव और बाद में 1993 से अध्यक्ष के तौर पर काम किया। 1996 में लाहौर हाईकोर्ट ने एक फैसला दिया जिसके अनुसार व्यस्क मुस्लिम महिला बिना अपने पुरुष अभिभावक की सहमति के शादी नहीं कर सकती। जो महिलाएं अपनी मर्जी से शादी करेंगी उनके विवाह को रद्द करने के लिए मजबूर किया जा सकता है। जहांगीर ने ऐसा ही एक केस (सायमा वहीद) का लड़ा और कानून का विरोध किया।
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मानवाधिकारों के उल्लघंन के खिलाफ बुलंद आवाज
उन्होंने परवेज़ मुशरर्फ की सरकार से देश के मानवाधिकार रिकॉर्ड को सुधारने की मांग की। उन्होंने मानवाधिकारों के उल्लंघन के उदाहरणों को देते हुए कहा, ‘एक हिंदू टैक्स अधिकारी को एक व्यापारी की दाढ़ी पर एक कथित टिप्पणी करने से ही देश में सेना की मौजूदगी में मार दिया जाता है। उस हिंदू अधिकारी के खिलाफ ईशनिंदा का आरोप लगाया जाता है।’ उन्होंने कहा, “हमनें कभी सही पाठ नहीं सीखा। हम कभी समस्या की जड़ में नहीं गए। एक बार जब आप धर्म का राजनीतिकरण करना शुरू कर देंगे आप आग से खेलते हैं और उस आग में साथ में आप भी जलते हैं।” वह साथ में बाल मजदूरी और फांसी की सजा के खिलाफ थी।
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अंतरराष्ट्रीय उपलब्धियां
आसमा जहांगीर ने संयुक्त राष्ट्र के साथ भी लंबे समय तक काम किया है। 1988-2004 तक आसमा जहांगीर संयुक्त राष्ट्र में ‘एक्सट्रा ज्यूडिशियल एक्जीक्यूशन’ के विशेष दूत के तौर पर सेवा दीं। 2004 से 2010 तक वह संयुक्त राष्ट्र में ही धार्मिक स्वतंत्रता की विशेष उद्धोषक नियुक्त की गईं। आसमा जहांगीर पाकिस्तान की पहली नागरिक हैं जिन्होंने ‘लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स’ में अमर्त्य सेन व्याख्यान में 18 जनवरी 2017 में हिस्सा लिया। जिसमें उन्होंने धार्मिक असहिष्णुता का मुकाबला करने के लिए आधुनिक राजनीति करने का आग्रह किया।
नज़रबंदी
मानवाधिकार की पैरोकार और धार्मिक असहिष्णुता के खिलाफ लगातार बोलने के कारण जहांगीर ने पाकिस्तान में बहुत विरोध का भी सामना किया। 5 नवंबर 2007 को 500 से अधिक वकील, मानवाधिकार कार्यकर्ता, और विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार किया गया। इसमें आसमा जहांगीर को भी घर में बंद करने का आदेश दिया गया। इस तरह वह नब्बे दिन तक नजरबंद रही। उन्होंने इस दौरान एक मेल लिखा था, जिसमें लिखा था, “जनरल मुर्शरफ ने समझ खो दी है।”
समानता और महिला अधिकारों की बात करनेवाली आसमा जहांगीर के बारे में बहुत से लोगों की राय बहुत नकारात्मक थी। उनका नाम लेने पर कुछ लोग नाराज़ हो जाते थे। उनके खिलाफ़ बेबुनियाद दावे किए जाते थे। आसमा जहांगीर को देशद्रोही और अमेरिकी एजेंट तक करार दिया गया। उन्हें पाकिस्तान को बदनाम करने और महिला अधिकारों और अल्पसंख्यकों के अधिकारों के नाम पर पाकिस्तान के सामाजिक ताने को बर्बाद करने तक वाली कहा गया। यही नहीं पाकिस्तान के डॉन अखबार ने उनकी कानूनी रणनीति के बारे में नियोजित आक्रामकता, हास्य और त्वरित जैसे शब्दों को इस्तेमाल करके दर्शाया था।
बहुत से राष्ट्रवादी और रूढिवादी लोग आसमा जहांगीर की आलोचना करने में मुखर रहते थे। उनके मानव अधिकारों के संरक्षण की लड़ाई के कारण उन्हें कई बार जान से मारने की धमकी तक दी गई। साल 1995 में 14 साल के ईसाई लड़के को ईशनिंदा के आरोप से बचाव और उसका मुकदमा जीतने के बाद उग्र भीड़ ने उनकी कार को तोड़ दिया उनके ड्राइवर और उनके साथ मारपीट की और उन्हें धमकी दी गई। एक वकील, मानवाधिकार कार्यकर्ता के साथ आसमा जहांगीर एक लेखक भी थीं। उन्होंने डिवाइन सेक्शनः द हुदूंड ऑर्डिनेश (1988), चिल्ड्रेन ऑफ ए लेसर गॉडः चाल्लड प्रिसनर्स ऑफ पाकिस्तान (1992) लिखीं।
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सम्मान
आसमा जांहगीर को मानव हितों के लिए किए गए उनके काम के लिए देश और दुनिया में सम्मानित किया गया। 1995 में उन्हें मानवाधिकार संरक्षण के लिए ‘मार्टिन एनल्स अवार्ड’ से सम्मानित किया गया। इसी के साथ उन्हें लोगों की सेवा करने के लिए ‘रैमन मैग्सेसे पुरस्कार’ मिला। 2001 में जहांगीर और उनकी बहन हिना जिलानी को मिलेनियम पीस प्राइस (यूएनआईएफईएम) की ओर से दिया गया। 2005 में उन्हें 1000 ‘वीमंस फॉर पीस प्रोजेक्ट’ के तौर पर ‘नोबेल शांति पुरस्कार’ के लिए भी नॉमिनेट किया गया। 23 मार्च 2010 में मानवाधिकार क्षेत्र में सेवा के लिए उन्हें पाकिस्तान के दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘हिलाल-ए-इम्तियाज़’ से सम्मानित किया गया था। 26 अक्टूबर 2018 को संयुक्त राष्ट्र की ओर से मानवाधिकार अवार्ड से सम्मानित किया। 2018 में उनकी मौत के बाद पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘निशान-ए-इम्तियाज़’ से सम्मानित किया गया।
आसमा जहांगीर अपने जीवन के अंतिम समय तक महिला समानता और मानवाधिकार के लिए काम करती रही। वह पाकिस्तान में होने वाले मानवाधिकार रैली और प्रदर्शनों में हमेशा सक्रिय रहीं। उन्होंने साल 2017 में लाहौर में होने वाली रैली ‘वीमंस ऑन व्हील’ में भी हिस्सा लिया था। 11 फरवरी 2018 को दिल का दौरा पड़ने के कारण इस बुलंद शखिस्यत ने हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह दिया। लोकतंत्र के लिए संघर्ष और पितृसत्तात्मक समाज में सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक को चुनौती देने के उनके संघर्ष ने पाकिस्तान के बदलाव की नींव रखी थी।
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तस्वीर साभारः RightLivelihood.org
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