हम भारतीय संसद के सदनों लोकसभा-राज्यसभा या राज्यों के विधानमंडल के सदनों विधानसभा-विधानपरिषद यानी कहीं भी अपनी नज़रें दौड़ा लें, हर सदन में आज भी महिलाओं की भागीदारी या संख्या ना के बराबर ही है। भारत अब जब आजादी के 75वें साल में प्रवेश कर चुका है और आज़ादी का ‘अमृत महोत्सव’ मना रहा है तब हमें यह सोचने की ज़रूरत है कि आखिर आज़ादी के इतने सालों बाद भी महिलाओं को उनकी संख्या के मुकाबले नेतृत्व में भागीदारी क्यों नहीं मिल पाई है?
वे कौन से कारण हैं कि आज भी राजनीति में महिलाओं को दोयम दर्जे़ पर रखा जा रहा है? एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक देश में आधी आबादी को बिना नेतृत्व के हाशिए पर रखना कितना उचित है? अब इन कारणों को खोजा जाना न केवल ज़रूरी है बल्कि समय की मांग है, क्योंकि जब तक महिलाओं को उनका उचित नेतृत्व नहीं मिलेगा तब तक उनकी असल समस्याओं का समाधान नहीं हो पाएगा।
आज जो भी महिलाएं राजनीति में हैं, उनमें से लगभग अधिकतर महिला नेताओं का संबंध राजनीति में सक्रिय परिवारों से है, यानी ये अपने परिवारों को विरासत संभाल रही हैं। इस से यह साफ है कि बिना राजनीतिक विरासत के किसी महिला का राजनीति में प्रवेश करना बेहद ही चुनौतीपूर्ण है। अगर हम हाल ही में हुए पांच राज्यों के चुनावों के आंकड़ों का विश्लेषण करें तो साफ हो जाता है कि महिलाओं की चुनावों में सफलता दर पुरुषों के मुकाबले ज्यादा है, लेकिन इसके बावजूद पितृसत्तात्मक सोच के कारण उन्हें ज्यादा मौके नहीं मिल रहे।
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अगर हम हाल ही में हुए पांच राज्यों के चुनावों के आंकड़ों का विश्लेषण करें तो साफ हो जाता है कि महिलाओं की चुनावों में सफलता दर पुरुषों के मुकाबले ज्यादा है, लेकिन इसके बावजूद पितृसत्तात्मक सोच के कारण उन्हें ज्यादा मौके नहीं मिल रहे।
पंजाब में महिलाओं की राजनीति में भागीदारी
हम हाल ही में पंजाब में 16वीं विधानसभा के लिए संपन्न हुए चुनावों और उनके नतीजों का विश्लेषण करके पंजाब विधानसभा में महिला नेतृत्व को देखने का प्रयास करेंगे। जैसे कि इस चुनाव में सभी 117 विधानसभा सीटों के लिए कुल 1304 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमाने के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्हों पर और स्वतंत्र रूप से चुनावी मैदान में उतरे। इन 1304 उम्मीदवारों में 1209 यानी 92.8 फीसदी पुरुष थे और महिलाओं की संख्या केवल 93 अर्थात 7.13 फीसदी थी। 1209 पुरुष उम्मीदवारों में से 104 पुरुषों ने जीत का परचम लहराया और पुरुषों की सफलता दर 8.60 फीसदी रही। वहीं, दूसरी तरफ 93 महिला उम्मीदवारों में से 13 महिला उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की और महिलाओं की सफलता दर 13.97 फीसदी रही यानी महिलाओं की चुनावी सफलता दर पुरुषों के मुकाबले लगभग डेढ़ गुना ज्यादा है।
पंजाब में सरकार बनाने वाली और सबसे ज्यादा 92 सीटें जीतने वाली आम आदमी पार्टी की महिलाओं की सफलता दर 91.66 फीसदी रही है, आम आदमी पार्टी ने 117 विधानसभा सीटों वाले पंजाब में कुल 12 महिलाओं को चुनावी मैदान में उतारा था और केवल एक महिला उम्मीदवार को छोड़ कर बाकी 11 ने भारी मतों से जीत दर्ज की। वहीं आम आदमी पार्टी ने 105 उम्मीदवार पुरुषों को बनाया जिसमें से 81 जीते और पुरुषों की सफलता दर 77.14 फीसदी रही, जो कि महिलाओं के मुकाबले काफी कम है।
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पंजाब मुख्य रूप से मालवा, दोआबा और माझा तीन क्षेत्रों में बंटा हुआ है। इस बार दोआबा क्षेत्र में जहां 23 विधानसभा सीटें हैं यहां महिलाओं का मतदान प्रतिशत (टर्नआउट) पूरे पंजाब के मुकाबले सबसे ज्यादा रहा। दोआबा क्षेत्र की महिलाओं ने पुरुषों के मुकाबले ज्यादा मतदान किया और यहां पर 23 विधानसभा सीटों में से 3 पर महिलाओं ने जीत दर्ज की। इस क्षेत्र में महिलाओं को चुनावों में भागीदारी सबसे ज्यादा रही है यहां महिलाओं के चुनाव जीतने की दर 13.04 फीसदी रही है। वहीं, पंजाब के अन्य दो क्षेत्रों मालवा और माझा जहां पर पुरुषों का मतदान प्रतिशत ज्यादा रहा है वहां पर कुल 94 सीटों में से केवल 10 पर महिलाएं जीत दर्ज कर पाई हैं और यहां महिलाओं की सफलता दर 10.63 फीसदी रही है।
इससे स्पष्ट है कि जहां पर महिलाएं मतदान के लिए पुरुषों के मुकाबले ज्यादा आई हैं वहां पर महिलाओं ने ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज की है। उपरोक्त तीन उदाहरणों से हम समझ सकते हैं कि महिलाओं की सफलता दर हर क्षेत्र में पुरुषों के मुकाबले बेहतर है, इसके बावजूद उन्हें उनकी हिस्सेदारी नहीं मिल रही। इसके पीछे का सबसे महत्वपूर्ण कारण समाज की पितृसत्तातमक सोच और महिलाओं को कमज़ोर मानना है।
भारत में आज भी माना जाता है कि महिलाओं को राजनीति में आना समाज के लिए अच्छा नहीं है। साथ ही, राजनीति में जो दांव पेच चलने पड़ते हैं वे महिलाओं के बस की बात नहीं है। समाज में पुरुषों को ऐसी सोच के कारण आज भी महिलाएं अपने नेतृत्व को प्राप्त नहीं कर पा रही हैं। महिलाओं की सफलता दर को देखते हुए हम सभी को ज्यादा से ज्यादा महिलाओं की राजनीति में भागीदारी सुनिश्चित करने के प्रयास और कोशिश करनी चाहिए ताकि भारत की आधी आबादी को समझने वाला कोई उन्हीं में से हो।
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तस्वीर साभार: Prabhjot Gill/AP Photo
(राजेश, शोधार्थी हैं, अभी हाल ही में “मतदान व्यवहार का विश्लेषण” विषय पर अपना एम.फिल खत्म किया है, इसी दौरान अशोका यूनिवर्सिटी में इंटर्न के तौर पर कार्य करने का अनुभव भी प्राप्त किया। इन्होंने अपना एम.ए.पॉलिटिकल साइंस में दिल्ली यूनिवर्सिटी से किया। इनकी विशेषज्ञता दलितों और महिलाओं से संबंधित विषयों के साथ-साथ चुनावी राजनीति पर भी है। पिछले दो वर्षों से चुनावी आंकड़ों के विश्लेषक के तौर पर कार्य कर रहे हैं। लाइब्रेरी और कॉफी शॉप इनकी सबसे पसंदीदा जगह है)