नारीवाद, एक ऐसा ‘टैग’ जिसे कलंक की तरह देखा जाता है। यह एक ऐसा शब्द है जिसे अक्सर गलत समझा जाता है और इसका मज़ाक बनाया जाता है। ‘फेमिनिज़म’ या ‘फेमिनिस्ट’ शब्द को अक्सर गाली की तरह इस्तेमाल किया जाता है। नारीवाद को इतना गलत समझा जाता है कि कई लोग नारीवादी मूल्यों और विचारों को मानने के बावजूद ये स्वीकार नहीं करते कि वे नारीवादी हैं। इनमें कुछ मशहूर और विशेषाधिकार प्राप्त हस्तियां भी शामिल हैं जिन्होंने खुद को नारीवादी कहने से परहेज किया है।
उदाहरण के लिए, मशहूर गायिका टेलर स्विफ्ट ने साल 2012 के एक साक्षात्कार में खुद को नारीवादी कहने से परहेज किया, लेकिन साल 2014 में स्पष्ट किया कि वह खुद को नारीवादी मानती हैं और नारीवाद पर उनकी पिछली टिप्पणी शब्द की गलतफहमी पर आधारित थी। इस पितृसत्तात्मक समाज ने हमेशा नारीवाद को अपने तरीके से परिभाषित किया है। इसे अक्सर क्रोध, आलोचना और पुरुषों से घृणा करने से जोड़कर देखा जाता रहा है। बहुत से लोग नारीवाद से केवल इसलिए दूरी बना लेते हैं क्योंकि उन्हें इस बारे में गलत धारणाएं होती हैं कि नारीवाद का वास्तव में क्या मतलब है।
पितृसत्तात्मक विचारों पर आधारित सालों से चले आ रहे सामाजिक ढर्रे और पारिवारिक संरचना के हिलने की आंशका मात्र से नारीवाद को दुश्मन की तरह देखा जाता है। सालों से सत्ता में रहा पुरुष प्रधान समाज अपनी जगह नहीं छोड़ना चाहता है और अपने ख़िलाफ़ कुछ भी सुनने में बहुत असहज महसूस करता है।
नारीवाद केवल महिलाओं के विषय में है
नारीवाद को गलत समझे जाने का एक कारण यह भी है कि ज्यादातर लोग मानते हैं कि नारीवाद केवल महिलाओं के बारे में है और ये सिर्फ स्त्री समानता और अधिकारों की बातें करता है। नारीवाद किसी एक जेंडर के बारे में नहीं है। यह केवल महिलाओं के लिए समानता प्राप्त करने के विषय में नहीं है। नारीवाद सभी लिंगों, धर्मों ,वर्गों और जातियों के लोगों के बीच समानता की मांग करता है। यह प्रत्येक व्यक्ति के लिए स्वतंत्रता, समानता और गौरव के साथ जीने का अधिकार मांगता है।
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नारीवादी होने का मतलब पुरुषों से घृणा
कुछ लोगों का मानना है कि नारीवादी होने का मतलब पुरुषों से नफ़रत करना है। नारीवाद पुरुषों से नफरत या विरोध करने के विषय में बिल्कुल नहीं है। नारीवाद के बारे में एक आम गलत धारणा है कि नारीवादी रिवर्स सेक्सिस्ट हैं। हालांकि, पुरुष सेक्सिस्टों के विपरीत (जो महिलाओं पर अत्याचार करते हैं), नारीवादी पुरुषों पर अत्याचार नहीं करना चाहते हैं। इसके बजाय यह विचारधारा सभी लिंगों में समान मुआवज़ा, अवसर और उपचार की बात करती है। पितृसत्ता जितनी महिलाओं के लिए खतरनाक है उतनी ही पुरुषों के लिए भी। यह इस बारे में भी नहीं है कि एक जेंडर से सत्ता छीनकर दूसरे जेंडर के हाथों में दे दी जाए। नारीवाद समानता की बात करता है और सत्ता को खत्म करने की बात करता है।
नारीवादी धर्म के खिलाफ़ होती हैं
कई लोगों का मानना है कि नारीवादी धर्म के खिलाफ होती हैं। वे ईश्वर और धर्म पर विश्वास नहीं करतीं। नारीवादी धर्म के खिलाफ नहीं हैं, बशर्ते वह सबकी समानता की बात करता हो। ताराबाई शिंदे अपने निबंध ‘स्त्री-पुरुष तुलना’ में लिखती हैं, ” ईश्वर की निंदा के लिए मैं क्षमा प्रार्धी हूं, परंतु इसके सिवा दूसरा उपाय भी तो नहीं। शास्त्रों और पुराणों का उदाहरण देकर नारी को किस तरह से झुकाया जा रहा है, यह तो समझना चाहिए ना!”
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नारीवादी विचारधारा पाश्चात्य संस्कृति की उपज
बहुत से लोग यह भी मानते हैं कि नारीवाद पश्चिम से आई विचारधारा है। नारीवाद पश्चिम से आयी विचारधारा नहीं है, बल्कि यह वह विचारधारा है जिसे समय-समय पर अलग-अलग वर्ग और समुदायों ने अपनाया है। भारत में ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले, बाबा साहब आंबेडकर, पेरियार, ताराबाई शिंदे, पंडिता रमाबाई, रुखैया सखावत हुसैन, राजाराम मोहन राय, जैसे अनेक लोगों ने अपने-अपने समय पर इसे अपनाया है और इसके लिए काम भी किया है।
तो नारीवाद वास्तव में क्या है?
नारीवाद अपने सभी रूपों में असमानता से लड़ने के बारे में है। यह वर्गवाद, नस्लवाद, जातिवाद, वैश्विक कॉर्पोरेट उपनिवेशवाद, धार्मिक असहिष्णुता और निश्चित रूप से लैंगिक असमानता की समस्याओं के खिलाफ आवाज़ उठाना है। नारीवाद सामाजिक बराबरी की बात करता है। नारीवाद सभी को लाभ पहुंचाता है, इसका उद्देश्य हाशिये पर गए सभी लोगों के लिए समानता प्राप्त करना है, क्योंकि जो सबसे अधिक उत्पीड़ित हैं उन्हें प्राथमिकता देने का मतलब है बाकी सभी को मुक्त करना।
नारीवाद कार्य और संस्कृति के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं को समान अवसर दिए जाने और विभिन्न भूमिकाओं में समान सम्मान दिये जाने की मांग करता है। नारीवाद इस विचार पर केंद्रित है कि चूंकि महिलाएं दुनिया की आबादी का आधा हिस्सा हैं, इसलिए महिलाओं की पूर्ण और सहज भागीदारी के बिना सच्ची सामाजिक प्रगति कभी हासिल नहीं की जा सकती है। नारीवाद समाज में महिलाओं की स्थिति की बारे में बातें करता है और उसे बेहतर बनाने का प्रयास करता है। नारीवाद पितृसत्तात्मक सामाजिक संरचनाओं को रूढ़िवादिता को बदलने की कोशिश के बारे में है। एक नारीवादी का फोकस एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था की आलोचना करना है या उसके खिलाफ आवाज उठाना है जिसे पुरुषों द्वारा डिज़ाइन किया गया है और उन्हीं के विचारों और अनुभवों द्वारा निर्देशित किया जाता है।
पितृसत्तात्मक विचारों पर आधारित सालों से चले आ रहे सामाजिक ढर्रे और पारिवारिक संरचना के हिलने की आंशका मात्र से नारीवाद को दुश्मन की तरह देखा जाता है। सालों से सत्ता में रहा पुरुष प्रधान समाज अपनी जगह नहीं छोड़ना चाहता है और अपने ख़िलाफ़ कुछ भी सुनने में बहुत असहज महसूस करता है। आज हमें ज़रूरत है कि हम अपने इस नज़रिये को बदलें।
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तस्वीर: श्रेया टिंगल फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए