आज महिलाएं हर क्षेत्र में अपना योगदान दे रही हैं। पितृसत्तात्मक समाज की मानसिकता को चुनौती देकर महिलाओं ने चारदीवारी में बंद ‘घरेलू स्त्री’ के दायरे से बाहर निकल पहली शुरुआत जब की होगी वह आसान नहीं थी। चाहे वह शिक्षिका के तौर पर हो, वकील, जज, डॉक्टर, पुलिस, इंजीनियर, प्रोफेसर और पायलट आदि जैसे प्रोफेशनल पेशों में उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा होगा। लेकिन उन्होंने डटकर उन चुनौतियों का सामना किया और आगे आनेवाली पीढ़ियों के लिए रास्ते आसान किए। उन्हीं महिलाओं में से एक वीएस रमादेवी भी हैं। इन सभी चुनौतियों के बीच वीएस रमा देवी ने भारत की पहली और एकमात्र महिला मुख्य चुनाव आयुक्त बनने का कीर्तिमान स्थापित किया।
रमा देवी उस दौर को देख चुकी थीं जब भारत ब्रिटिश हुकूमत के अधीन था। भारतीय समाज में एक तरफ स्वतंत्रता आंदोलन तो दूसरी और समाज सुधार आंदोलन भी जोरों पर था। उनका जन्म 15 मार्च 1934 में आंध्र प्रदेश के चेब्रोलु में हुआ। उनकी पढ़ाई-लिखाई आंध्र प्रदेश के एलुरु में ही हुई। एलएलबी की अपनी डिग्री पूरी करने के बाद उन्होंने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में वकील के रूप में अपना नाम दर्ज करवाया।
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वीएस रमादेवी न सिर्फ भारत की पहली महिला चुनाव आयुक्त रही थीं बल्कि इसके साथ ही वह राज्य सभा की पहली और एकमात्र सेक्रेटरी जनरल भी रह चुकी थीं। मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में उन्होंने आरवीएस पेरिशास्त्री की जगह ली थी।
मुख्य चुनाव आयुक्त और राजनीतिक सफर
वीएस रमादेवी न सिर्फ भारत की पहली महिला चुनाव आयुक्त रही थीं बल्कि इसके साथ ही वह राज्य सभा की पहली और एकमात्र सेक्रेटरी जनरल भी रह चुकी थीं। मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में उन्होंने आरवीएस पेरिशास्त्री (1 जनवरी 1986-25 नवंबर 1990) की जगह ली थी, जिन्हें चुनाव आयोग में सुधारों के लिए जाना जाता है। भारत की नौवीं और पहली महिला चुनाव आयुक्त के रूप में उन्होंने अपना पदभार 26 नवंबर 1990 को संभाला था जो महज़ कुछ दिनों तक ही चला।
11 दिसंबर 1990 में उन्हें इस पद से हटा दिया गया। उन्हें हटाकर उनके स्थान पर टी एन शेषन को चुनाव आयुक्त का कार्यभार दे दिया गया। भारत में अब तक 24 चुनाव आयुक्त रहे हैं, जिनमें रमादेवी ही एकमात्र महिला चुनाव आयुक्त बनी हैं। वह भी मात्र दो हफ्ते की अवधि के लिए। बता दें कि मुख्य निर्वाचन अधिकारी अपनी शक्ति संविधान के अनुच्छेद 324 से प्राप्त करता है। इसके तहत वह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव संपन्न करवाने का दायित्व निभाता है। इस ओहदे पर बैठनेवाले की जिम्मेदारी लोकतांत्रिक तरीके से जनता के लिए, जनता द्वारा एक ईमानदार और निष्पक्ष नेता को चुनने में मदद करना है।
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न जाने कितनी महिलाओं के योगदान को इतिहास के पन्नों में स्थान नहीं दिया गया है, जैसे वीएस रमादेवी के संदर्भ में ही बात की जाए तो उनकी बहुत कम जानकारी उपलब्ध है।
भारत की पहली महिला चुनाव आयुक्त होने के साथ-साथ वी.एस रमादेवी के नाम और भी कई कीर्तिमान स्थापित हैं। राज्य सभा की पहली और एकमात्र सेक्रेटरी जनरल के रूप में उन्होंने 1 जुलाई 1993 से 25 सितंबर 1997 से काम किया। इसके बाद वह 26 जुलाई 1997 से 1 दिसंबर 1999 तक हिमाचल प्रदेश की राज्यपाल के पद पर रही थीं। इसके अलावा वह कर्नाटक की भी 13वीं राज्यपाल के तौर पर पहली महिला रही हैं। कर्नाटक में उनका कार्यकाल 9 दिसंबर 1999 से 30 अगस्त 2002 तक रहा। 79 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से 17 अप्रैल 2013 में उनका बेंगलुरू में निधन हो गया।
आज जब पार्टियां महिला सशक्तिकरण के नाम पर पितृसत्ता को पोषित करनेवाली महिलाओं को राजनीति में प्रवेश देकर अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रही हैं तो ऐसे में उन महिलाओं को सावधान होने की जरूरत है जो सिर्फ वोट बैंक बनकर रह जाती हैं और उनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं आता। यहां यह भी ध्यान देनी की ज़रूरत है कि न जाने कितनी महिलाओं के योगदान को इतिहास के पन्नों में स्थान नहीं दिया गया है, जैसे वीएस रमादेवी के संदर्भ में ही बात की जाए तो उनकी बहुत कम जानकारी उपलब्ध है।
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