सिरीमावो भंडारनायके, आधुनिक इतिहास की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में चुनी गयी थीं। साल 1960 में श्री लंका के प्रधानमंत्री के तौर पर उन्होंने कार्यभार संभाला। दुनिया की पहली महिला प्रधानमंत्री सिरीमा रतवते डायस जिन्हें सिरीमावो भंडारनायके के नाम से भी जाना जाता हैं। उन्होंने श्री लंका की प्रधानमंत्री के रूप में तीन बार सत्ता संभाली। वह श्री लंका की ‘श्री लंका फ्रीडम पार्टी‘ की प्रमुख नेता थीं। सिरीमावो श्री लंका के पूर्व प्रधानमंत्री सोलोमेन भंडारनायके की पत्नी थी।
प्रांरभिक जीवन
सिरीमावो भंडारनायके का जन्म जन्म 17 अप्रैल 1916 में रतनपुरा, ब्रिटिश सीलोन हुआ था। इनके पिता का नाम बार्न्स रतवते था, जो एक राजनीतिज्ञ थे। इनकी माँ का नाम महावलाथेने कुमारीहामे था। वह एक संपन्न कांडियान परिवार से ताल्लुक रखती थी। उस समय कई प्रमुख कांडियान परिवारों ने सरकार की सेवा में शामिल थे। अंग्रेजी नामों को अपनाया लेकिन अधिकांश कट्टर बौद्ध बने रहे और सिंहली परंपरा को संरक्षित किया। वह अपने माता-पिता की छह संतानों में सबसे बड़ी थीं। उनके माता-पिता ने उन्हें आठ साल की उम्र में राजधानी कोलंबो के एक कॉन्वेंट बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया था।
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पढ़ाई पूरी होने के बाद सिरीमावो ने सामाजिक सेवा करनी शुरू कर दी थी। वह ग्रामीण क्षेत्र में भोजन, दवाईयों और मेडिकल कैम्प लगाने का काम करने लगी थीं। वह अपने काम से सिंहली किसानों में बहुत प्रसिद्ध हो गई थी। उनका सामाजिक कार्य मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं और लड़कियों के जीवन उत्थान पर केंद्रित था। साल 1940 में उनका विवाह सोलोमन रिजवे डायस भंडारनायके के साथ हुआ था। वह उस समय सरकार में मंत्री के पद पर कार्यरत थे जिन्होंने आगे जाकर श्री लंका के प्रधानमंत्री का पद भी संभाला था। इन दोंनो के विवाह को ‘सदी का विवाह’ कहा गया था। साल 1941 में सिरीमावो भंडारनायके ने ‘लंका महिला समिति’ से जुड़ी। यह श्री लंका का सबसे बड़ा महिला स्वैच्छिक सेवा संगठन था।
साल 1960 के आमचुनाव के बाद वह देश की प्रधानमंत्री बनीं। इसके साथ वह दुनिया पहली महिला बनी जो किसी राष्ट्र में प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त हुई थीं। समाजवादी सुधार के लिए उन्होंने देश में कई नीतियों को बदला और लागू किया।
सबसे पहले, सिरीमा की सार्वजनिक भूमिका एक पत्नी की थी। साल 1943 में उन्होंने पहली संतान सुनेत्रा को जन्म दिया। उसके बाद चंद्रिका और अंत में एक लड़के अनुरा को जन्म दिया। साल 1948 में स्वतंत्रता की ओर बढ़ते सीलोन के कारण उनके पति हमेशा अपने काम में व्यस्त रहते थे। उनके घर पर राजनीतिक लोगों की आवाज़ाही चलती रहती थी। सिरीमावो एक पत्नी के रूप में घर और आनेवाले मेहमानों को संभालने में व्यस्त रहती थीं।
राजनीति में प्रवेश
पति की हत्या के बाद उन्हें पार्टी नेतृत्व संभालने के लिए कहा गया। साल 1959 में उनके पति की हत्या के बाद वह श्री लंका फ्रीडम पार्टी की प्रमुख नेता बनीं। जनता की सहानुभूति की लहर से फ्रीडम पार्टी ने बहुमत प्राप्त किया। साल 1960 के आमचुनाव के बाद वह देश की प्रधानमंत्री बनीं। इसके साथ वह दुनिया पहली महिला बनी जो किसी राष्ट्र में प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त हुई थीं। प्रधानमंत्री नियुक्त होने पर भंडारनायके ने अपने पति की बनाई नीतियों पर काम करना शुरू किया। समाजवादी सुधार के लिए उन्होंने देश में कई नीतियों को बदला और लागू किया।
पहली प्रधानमंत्री के तौर पर काम
उन्होंने कुछ उद्योगों का राष्ट्रीयकरण किया और सिंहली को आधिकारिक राष्ट्रीय भाषा बनाने का कानून पास किया। विदेशी तेल कंपनियों का राष्ट्रीयकरण किया और सभी सरकारी व्यवसायों को सरकारी बैंक, बैंक ऑफ सिलोन और न्यू पीपल बैंक को सौंपा गया। इस फैसले से देश में अमेरिकी साहयता को खत्म किया गया। औद्योगिक साहयता के लिए सोवियत सहायता ली गई। विदेश नीति के तौर पर भंडारनायके ने गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाई। साल 1962 में भारत-चीन सीमा विवाद के समय उन्होंने गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाकर सक्रिय भूमिका निभाई। देश की शिक्षा नीति में सुधार किया। बौद्ध और सिंहली के पक्ष को शैक्षिक पाठ्यक्रमों में शामिल किया।
भंडारनायके ने अपने कार्यकाल में मुख्य रूप से श्री लंका के ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाली महिलाओं और लड़कियों को केंद्र में रखते हुए नीतियां बनाई। लेकिन भंडारनायके को अपनी राजनीतिक फैसलों के कारण एक बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ी। 1964 के अंत में दक्षिणपंथी बौद्ध नेताओं और फ्रीडम पार्टी के सांसदों के विरोध के बाद सरकार भंग हो गई। सिरीमावो अगला चुनाव हार गई। लेकिन वह पहली बार खुद संसद के लिए चुनी गई। पांच साल बाद चुनाव में यूनाइटेड लेफ्ट फ्रंट जिसका नेतृत्व फ्रीडम पार्टी कर रही थी उसने दो-तिहाई बहुमत प्राप्त किया। एक बार दोबारा भंडारनायके प्रधानमंत्री बनीं।
1975 में भंडारनायके ने महिला और बाल विकास मंत्रालय की स्थापना की। उनके नेतृत्व में श्री लंका में भूमि सुधार किये गये। चाय बगानों का राष्ट्रीयकरण किया गया। नया गणतंत्र संविधान के तहत सीलोन का नाम बदलकर श्री लंका किया गया। देश को बौद्ध धर्म को राज्य धर्म घोषित किया गया। इस फैसले से देश के तमिल हिंदुओं को काफी निराशा हासिल हुई थी। भंडारनायके के अर्थव्यवस्था पर लिए कठोर फैसलों और राजनीतिक अंसतोष के कारण उन्हें गद्दी गंवानी पड़ी।
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राजनीतिक अधिकारों से हुई वंचित
साल 1980 में श्री लंका सदन के द्वारा उनके राजनीतिक अधिकारों को छीन लिया गया। हालांकि 1985 में राष्ट्रपति जे.आर. ज्यावर्धने ने उन्हें माफी दी और उनके अधिकारों को बहाल कर दिया। इस बीच उन्हें राजनीतिक और पारिवारिक मतभेदों का भी सामना करना पड़ा। पार्टी नेतृत्व के उत्तराधिकार को लेकर उनके बेटे के साथ हुए विवाद का भी सामना किया। 1986 में भंडरानायके ने गृहयुद्ध में भारतीय शांति सेना के हस्तक्षेप करने की अनुमति देने का विरोध किया। उनके मानना था कि यह श्री लंका की संम्प्रभुता के खिलाफ है। 1988 में राष्ट्रपति का पद जीतने में असफल होने कारण उन्होंने 1989 से 1994 तक विधायिका में विपक्ष के नेता की भूमिका अपनायी। इसके बाद उनकी बेटी के राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद भंडारनायके ने तीसरी बार देश के प्रंधानमंत्री पद को संभाला। वह साल 2000 तक इस पद पर बनी रही।
भंडरानायके की मृत्यु 10 अक्टूबर 2000 में कदावथा में हार्ट अटैक से हुई थी। मौत के समय वह घर से कोलंबो जा रही थी। अपनी मौत से कुछ घंटे पहले उनका आखिरी काम 2000 में संसदीय चुनाव में वोट डालना था। अपने लंबे राजनीतिक जीवन में उन्होंने कई स्तर पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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तस्वीर साभारः Modern Diplomacy
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