इतिहास हेमंत कुमारी देवीः हिंदी पत्रकारिता की पहली महिला पत्रकार| #IndianWomenInHistory

हेमंत कुमारी देवीः हिंदी पत्रकारिता की पहली महिला पत्रकार| #IndianWomenInHistory

हेमंत कुमारी देवी पहली हिंदी महिला पत्रकार हैं। जिन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में महिलाओं के लिए रास्ता बनाने का काम किया। हेमंत कुमारी देवी केवल पत्रकार तक ही सीमित नहीं रही। उन्होंने कई पत्रिकाओं का संपादन भी किया था। पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका अद्वितीय योगदान हैं जिसे भुलाया नहीं जा सकता है।

पत्रकारिता, दुनिया के सबसे पुराने पेशों में से एक रही है। लेकिन जब बात पत्रकारिता के क्षेत्र में महिलाओं के काम करने की आती है तो पितृसत्तात्मक रूढ़िवादी सोच इस काम को भी महिलाओं के लिए अनुचित ठहराती है। लेकिन जब इरादे बुलंद हो तो हर बाधा को पार किया जा सकता है। आज भारत में पत्रकारिता के क्षेत्र में कई महिला पत्रकार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने काम के ज़रिये पहचान बना रही हैं। ऐसी ही महिलाओं में से एक थीं हेमंत कुमार देवी।

हेमंत कुमारी देवी को पहली हिंदी महिला के रूप में जाना जाता पत्रकार है। इन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में महिलाओं के लिए रास्ता बनाने का काम किया। हेमंत कुमारी देवी केवल पत्रकारिता तक ही सीमित नहीं रही। उन्होंने कई पत्रिकाओं का संपादन भी किया था। पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका अद्वितीय योगदान है जिसे भुलाया नहीं जा सकता है। पत्रकार के अलावा वह एक सामाजिक कार्यकर्ता भी थीं। वह जीवनभर महिला सशक्तिकरण की दिशा में काम करती रहीं।

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हेमंत कुमारी देवी पहली हिंदी महिला पत्रकार हैं। इन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में महिलाओं के लिए रास्ता बनाने का काम किया। हेमंत कुमारी देवी केवल पत्रकारिता तक ही सीमित नहीं रहीं। उन्होंने कई पत्रिकाओं का संपादन भी किया था। पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका अद्वितीय योगदान है जिसे भुलाया नहीं जा सकता है। पत्रकार के अलावा वह एक सामाजिक कार्यकर्ता भी थीं। वह जीवनभर महिला सशक्तिकरण की दिशा में काम करती रहीं।

शुरुआती जीवन

हेमंत कुमारी देवी का जन्म साल 1868 में एक बंगाली परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम नवीनचंद राय था। उनके बचपन में ही इनकी माता का देहांत हो गया था। उनके पिता लाहौर के ओरिएंटल कॉलेज के प्राचार्य थे। उनके पिता ब्रह्म समाजी और एक समाज सुधारक भी थे। वह महिलाओं की शिक्षा और विधवा विवाह के प्रबल समर्थक थे।

हेमंत कुमारी देवी की पढ़ाई लाहौर के क्रिश्चन गर्ल्स स्कूल में हुई थी। उनके घर का माहौल पढ़ाई-लिखाई वाला था। उनके पिता स्वयं एक लेखक भी थे। यही वजह थी कि स्कूल में अंग्रेज़ी की शिक्षा के अलावा उन्हें हिंदी, बांग्ला और संस्कृत की भी शिक्षा दी गई। हेमंत कुमारी देवी की शिक्षा पर तो विशेष ध्यान दिया ही गया था साथ ही उन्हें धार्मिक शिक्षा भी दी गई। 

हेमंत कुमारी देवी आगे की पढ़ाई कोलकत्ता से पूरी करने के बाद दोबारा लाहौर लौट आई। वह अपने पिता के साथ सामाजिक गतिविधियों में साथ देने लगीं। उनके साथ सभाओं में शामिल होने लगीं। उसी दौरान उन्होंने महिलाओं की स्थिति को देखकर उस दिशा में काम करने का फ़ैसला लिया। पंजाब प्रांत में उन्होंने महिलाओं की शिक्षा की दिशा में काम किया।

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शादी और निजी जीवन

2 नवंबर 1885 में उनका विवाह सिलहट के राजचंद्र चौधरी के साथ ब्रह्मा समाज के रीति-रिवाज़ के अनुसार हुआ था। शादी के बाद वह पति के घर चली गई थी। ससुराल जाकर भी उन्होंने महिलाओं की शिक्षा के लिए अपना काम जारी रखा। सिलहट में उन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए दो स्कूल खुलावाए। साथ ही वहां महिलाओं के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए महिला चिकित्सक की भी व्यवस्था की। 

साल 1887 में पति की नौकरी के सिलसिले में हेमंत कुमारी देवी उनके साथ मध्यप्रदेश के रतलाम में रहने आ गई थी। उन्होंने खुद को कभी भी घर की सीमाओं तक सीमित नहीं रखा। वह घर के काम के बाद सामाजिक उत्थान के कामों में हमेशा खुद को व्यस्त रखा करती थी। रतलाम में आकर भी उन्होंने जन-सरोकार कार्य में अपनी सक्रियता जारी रखी। उन्होंने रतलाम की महारानी को पढ़ाना शुरू कर दिया था। वह महारानी की अवैतनिक शिक्षिका बन गई थी।

उन्होंने अपनी पत्रिका के प्रकाशन के संदर्भ में महिलाओं को संबोधित करते हुए कहा था,  “ओ मेरी प्रिय बहनों, अपने दरवाजों को खोलो और देखो कौन तुमसे मिलने आया है। यह आपकी बहन ‘सुगृहणी’ है। यह आपके पास इसलिए आई है क्योंकि आप पर अत्याचार हो रहा है, आप अशिक्षित हो और एक बंधन में बंधी हुई हो।”

पत्रिका का किया संपादन

ब्रिटिश शासन उच्च श्रेणी की विशेषाधिकार प्राप्त महिलाओं के लिए एक उम्मीद बन रहा था जिमसें कई भूमिकाओं में महिलाएं अपने कदम रख रही थी। यही वह समय था जब महिलाएं पत्रकारिता के जगत में भी अपने कदम रख रही थीं। 1880 से 1885 के दौर में तीन महत्वपूर्ण महिला पत्रिकाओं की शुरुआत हुई थी जिनका संपादन स्वयं महिलाएं कर रही थीं। इसमें पहली पत्रिका ‘सुगृहणी’ का संपादन 1888 में हेमंत कुमारी देवी ने किया था। यह पत्रिका हिंदी भाषा में निकली थी। हिंदी नवजागरण काल के इतिहास में पहली बार किसी महिला ने एक पत्रिका का संपादन किया था।

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उन्होंने अपनी पत्रिका के प्रकाशन के संदर्भ में महिलाओं को संबोधित करते हुए कहा था,  “ओ मेरी प्रिय बहनों, अपने दरवाज़ों को खोलो और देखो कौन तुमसे मिलने आया है। यह आपकी बहन ‘सुगृहणी’ है। यह आपके पास इसलिए आई है क्योंकि आप पर अत्याचार हो रहा है, आप अशिक्षित हो और एक बंधन में बंधी हुई हो।”

हेमंत कुमारी देवी जब रतलाम में रहती थीं तब वहां शिक्षा का ज्यादा प्रसार नहीं था और हिंदी प्रिंटिंग की कोई सुविधा नहीं थी। पत्रिका को छपवाने के लिए उसे राज्य से बाहर भेजना पड़ता था। सबसे पहले सुख संवाद प्रेस, लखनऊ और बाद में लाहौर तक भेजना पड़ा था। साल 1889 में वह दोबारा पति के साथ शिलांग चली गई थी। लेकिन उन्होंने अपने रतलाम प्रवास के दौरान पहली महिला पत्रिका को प्रकाशित कर जो काम शुरू किया था उसे आगे भी जारी रखा। देवी ने शिलांग में भी पत्रिका का प्रकाशन किया।

महिलाओं से संबंधित मुद्दों पर अपनी राय रखने के लिए पत्रिका ने अपना एक विशेष स्थान बना लिया था। हेमंत कुमारी देवी ने पत्रिका में पर्दा प्रथा, महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य और शारीरिक स्वायत्ता को लेकर प्रमुख लेख लिखे। उनकी पत्रिका के मुख्य पेज पर महिलाओं को शिक्षा की ओर प्रेरित करने के लिए हमेशा एक संदेश प्रकाशित हुआ करता था। प्रकाशन के चौथे साल में यह पत्रिका बंद आर्थिक कारणों की वजह से बंद हो गई थी। 

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महिलाओं से संबंधित मुद्दों पर अपनी राय रखने के लिए पत्रिका ने अपना एक विशेष स्थान बना लिया था। हेमंत कुमारी देवी ने पत्रिका में पर्दा प्रथा, महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य और शारीरिक स्वायत्ता को लेकर प्रमुख लेख लिखे। उनकी पत्रिका के मुख्य पेज पर महिलाओं को शिक्षा की ओर प्रेरित करने के लिए हमेशा एक संदेश प्रकाशित हुआ करता था।

पत्रिका के बंद होने के बाद देवी ने महिलाओं के सरोकार की दिशा में अपना काम जारी रखा। साल 1899 में वह सिलहट वापस आकर रहने लगी। उन्होंने एक महिला समिति का गठन किया। साथ ही वहां जाकर उन्होंने एक अन्य क्षेत्रीय भाषा की पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया था। बढ़ती उम्र के साथ भी हेमंत कुमारी देवी ने सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर अपना काम हमेशा जारी रखा। समाज सेवा के लिए जो भी अवसर उन्हें मिलता वह उससे जुड़ने में कभी पीछे नहीं हटीं। 

महिला की शिक्षा के लिए किए गए उनको कामों की चर्चा सुनकर ही उन्हें पटियाला में बालिकाओं के विद्यालय को संभालने का मौका मिला। उन्होंने प्रस्ताव स्वीकार कर, सिलहट से पटिलाया में जिम्मेदारी संभाल ली। विक्टोरिया हाई स्कूल की सुपरिटेंडेंट के तौर पर काम करने बाद 1907 में वह स्कूल की प्रधानाचार्या नियुक्त की गई। स्कूल में शिक्षण कार्य संभालने के बावजूद देवी लगातार पत्र-पत्रकाओं के लिए लिखती रहीं।

हेमंत कुमारी देवी एक कुशल पत्रकार, संपादक, सामाजिक कार्यकर्ता, प्रधानाचार्य के बाद वह एक कुशल प्रशासक भी साबित हुई। साल 1924 में उन्हें देहरादून नगरपालिका की कमिश्नर नियुक्त किया गया था। दस वर्षों तक उन्होंने इस पद पर काम किया। साल 1953 में उन्होंने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। मौत से पहले हेमंत कुमारी देवी अपने काम की वजह से इतिहास में अपना नाम दर्ज करवा चुकी थी। 

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स्रोतः  

Jankipul.com

Swayamsiddha

Sarcajc.com

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