अनुराधा गांधी के नाम के बिना भारत के किसी भी नारीवादी आंदोलन का उल्लेख नहीं किया जा सकता हैं। लगभग तीन दशक लंबे समय में अनुराधा गांधी छात्र आंदोलन, नागरिक अधिकार, महिला, मज़दूर, आदिवासी और दलित आंदोलनों में आगे खड़ी नज़र आई। अनुराधा एक क्रांतिकारी, कम्युनिस्ट, नेता और लेखक भी थीं। वह बड़े पैमाने पर महिलाओं, जाति व्यवस्था और फासीवाद पर लिखा करती थीं।
शुरुआती जीवन
अनुराधा गांधी का जन्म 28 मार्च 1954 में मुंबई में हुआ था। उनके पिता का नाम गणेश और माता का नाम कुमुद शानबाग था। उनके माता-पिता दोंनो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े हुए थे। उनके पिता बॉम्बे हाई कोर्ट में एक जानेमाने वकील थे। उनकी माँ एक सामाजिक कार्यकर्ता थीं। अनुराथा के पिता कन्नड और माँ गुजराती थीं। उनके घर का माहौल बहुत राजनीतिक और लोकतांत्रिक विचारों वाला था। पढ़ाई-लिखाई और रचनात्मक माहौल की वजह से ही अनुराधा बचपन से ही क्रांतिकारी विचारों वाली थी।
अनुराधा गांधी ने ‘प्रोग्रेसिव यूथ मूवमेंट’ और ‘नक्सलबाड़ी’ से जुड़ने के बाद कई आंदोलनों का नेतृत्व किया। वह न केवल प्रगतिशील आंदोलनों से जुड़ी बल्कि ग्रामीण और आदिवासी महिलाओं के उत्थान के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया।
राजनीतिक जीवन की शुरुआत
अनुराधा गांधी के राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1972 में एलफिंस्टन कॉलेज, मुंबई से हुई थी। उन दिनों यह कॉलेज वामपंधी विचारधारा का केंद्र हुआ करता था। उसी समय महाराष्ट्र का बड़ा ग्रामीण क्षेत्र इतिहास के सबसे भीषण सूखे का सामना कर रहा था। अनुराधा अपने सामाजिक परिवेश के प्रति बहुत संवेदनशील थीं। वह कॉलेज के साथियों के समूह के साथ सूखा प्रभावित क्षेत्र में गरीब लोगों की स्थिति जानने के लिए गई। अकाल और गरीबी में रहने वाले लोगों की जीवन के प्रति आशा को देखकर वह बहुत प्रभावित हुई थी। इसके बाद उन्होंने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और वह सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर सक्रिय होकर काम करने लगीं।
अनुराधा गांधी ने ‘प्रोग्रेसिव यूथ मूवमेंट’ और ‘नक्सलबाड़ी’ से जुड़ने के बाद कई आंदोलनों का नेतृत्व किया। वह न केवल प्रगतिशील आंदोलनों से जुड़ी बल्कि ग्रामीण और आदिवासी महिलाओं के उत्थान के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। अनुराधा गांधी ने अपने जीवन में पूरे समय इंटरसेक्शनल नारीवादी विचारों के साथ समानता को स्थापित करने की दिशा में काम किया। उन्होंने हर संघर्ष में हर जाति और वर्ग की महिलाओं को आगे आने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने बहुत सी महिलाओं को नेतृत्व के लिए प्रभावित किया और आंदोलनों से जोड़ा।
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अनुराधा ने दलितों से लगातार बातचीत कर उनकी समस्याओं के बारे में जाना। वह 1974 में दलित पैंथर आंदोलन में भी शामिल रहीं। आपातकाल के दौरान लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन के विरोध में उन्होंने आवाज़ उठाई। साल 1982 में विदर्भ क्षेत्र में महिलाओं, दलित संगठन और ट्रेड यूनियन के साथ काम करने के सिलसिले में उन्होंने मुंबई से नागपुर की ओर प्रस्थान किया। साल 1986 में अनुराधा उत्तरी नागपुर के इंडोरा क्षेत्र में रहने लगी थीं। यह क्षेत्र दलित राजनीति का मुख्य क्षेत्र हुआ करता था। उन्हीं दिनों वह पार्ट टाइम नागपुर यूनिवर्सिटी में लेक्चरर के तौर पर भी काम किया करती थीं। ट्रेड यूनियन और दलित आंदोलन में हिस्सा लेने की वजह से कई बार उन्हें जेल भी जाना पड़ा था।
महिलाओं को किया शिक्षित
अनुराधा गांधी ने महिलाओं को सामाजिक आंदोलन से जोड़ने की दिशा में बहुत काम किया था। वह महिलाओं को आगे बढ़ाकर पितृसत्ता की जंजीरों को तोड़ने के लिए प्रेरित किया करती थीं। उन्होंने विशेषतौर पर ग्रामीण और आदिवासी महिलाओं को केंद्र में लाने का काम किया। वह अक्सर मीटिंग में ग्रामीण और आदिवासी महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में शिक्षित कर उन्हें जागरूक करने का काम किया करती थीं।
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अनुराधा एक नारीवादी भी थीं। उन्होंने भारतीय नारीवाद पर कई महत्वपूर्ण लेख लिखें। वह वर्ग संघर्ष और सामाजिक स्थिति को महिला आंदोलन से जोड़ती थीं। वह भारत में नारीवाद के सिद्धांत के साथ ज़मीनी स्तर पर आंदोलन स्थापित करने की पक्षधर थीं।
क्रांतिकारी लेखक
अनुराधा गांधी अपने लेखन के माध्यम से भी लोगों के अधिकारों की बात और सरकारों की आलोचना का काम किया करती थीं। वह मुख्य तौर पर मराठी और अंग्रेजी में लिखा करती थीं। उन्होंने बहुत से लेख और निबंधों के माध्यम से अपने विचारों को सामने रखा है। मार्क्सवाद में दलित और जाति के दृष्टिकोण को सामने रखने के लिए ‘सत्यशोधक मार्क्सवाद’ के नाम से मराठी में एक लंबा लेख लिखा था। उन्होंने इस लेख में दलित लिबरेनशन पर मार्क्सवाद के नज़रिये को सामने रखने का काम किया था।
अनुराधा गांधी पैंथर मूवमेंट से जुड़ी हुई थी। भारतीय जाति व्यवस्था पर उनकी समझ ‘कॉस्ट क्वश्चेन इन इंडिया’ और ‘द कॉस्ट क्वेश्न रिटर्नस’ जैसे लेखों में सामने आती है। उन्होंने अपने लेख में भारत में प्राचीन काल से वर्तमान तक मौजूद जाति व्यवस्था पर प्रकाश डाला है। उन्होंने लिखा है कि कैसे ग्रामीण क्षेत्र में जाति व्यवस्था मौजूद है और लोग कितनी जल्दी और आसानी से इसे अपनाकर लोगों को शोषित करते हैं। वह पूरी तरह से भारत से जाति व्यवस्था को खत्म करने की पक्षधर थी।
अनुराधा एक नारीवादी भी थीं। उन्होंने भारतीय नारीवाद पर कई महत्वपूर्ण लेख लिखें। वह वर्ग संघर्ष और सामाजिक स्थिति को महिला आंदोलन से जोड़ती थी। वह भारत में नारीवाद के सिद्धांत के साथ ज़मीनी स्तर पर आंदोलन स्थापित करने की पक्षधर थीं। अनुराधा गांधी ने फिलॉसिफिकल ट्रेंड्स इन फेमिनिस्ट मूवमेंट में नारीवाद के विभिन्न पहलुओं पर व्यापक रूप से लिखा है। उन्होंने मार्क्सज़िम और फेमिनिज़म पर भी लिखा है।
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गांधी अपने लेखन के माध्यम से अपने विचारों को हर विषय पर सामने रखती थीं। हिंदुत्व पर अपने विचार रखते हुए वह इसे देश के लोकतंत्र के लिए खतरा बताती हैं। साल 2001 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री की नियुक्ति और हिंदुत्व की राजनीति पर उन्होंने अपने लेख ‘फासिज़्म,फंडामेंटलिज़्म और पेट्रिआरकि’ के ज़रिये हिंदुत्व के उदय और प्रसार पर बातें सामने रखीं। वह अपने लेख में हिंदुत्व की विचारधार के विस्तार और उसकी कार्यशैली पर सवाल करते हुए फासीवाद, धार्मिक कट्टरपंथ और पितृसत्ता के बीच संबंधों पर चर्चा करती हैं।
अनुराधा गांधी ने अपना पूरा जीवन अपनी शर्तों पर जिया। उनका काम दिखाता है कि असमानता के सिद्धांत पर आधारित सामाजिक व्यवस्था को बदलने के लिए उन्होंने अलग-अलग तरीके से काम किया। अनुराधा गांधी एक मार्क्सवादी, शिक्षिका, लेखिका, नेता थीं लेकिन सरकारी तंत्र की दमनकारी नीतियों के विरोध की वजह से इंडियन स्टेट ने उन्हें हमेशा एक ‘माओवादी आंतकवादी’ के तौर पर चिन्हित किया है। साल 2008 में झारखंड के जंगलों में आदिवासी महिलाओं को शिक्षित करते हुए मलेरिया से उनकी मौत हो गई थी।
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स्रोतः Marxists.com