अगर कोई गर्भवती महिला महिला पढ़ाई कर रही होती है या बाहर जाकर काम कर रही है तो ऐसी स्थिति में उसके लिए दोंनो जगह तालमेल बैठाना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। इसलिए किसी भी प्रकार का काम करनेवाली माँओं को उनके बच्चे का ख्याल रखने के लिए छुट्टियों का प्रावधान दिया गया है जिसे वह अपने काम से ब्रेक लेकर बच्चे के जन्म के बाद उसका ध्यान रख सकें और बाद में अपने काम को सुचारू रूप से जारी रख सकें। भारत में कामकाजी महिलाओं को उनके काम के साथ-साथ बच्चे की देखभाल के लिए मैटरनिटी लीव की नीति लागू है जिसके माध्यम से महिलाएं प्रसव के बाद नवजात बच्चे का ख्याल रखने के लिए इस्तेमाल कर सकती हैं।
मैटरनिटी लीव क्या है?
मातृत्व अवकाश या मैटरनिटी लीव वह है, जिसके तहत एक कामकाजी महिला को उसकी गर्भावस्था, बच्चे के जन्म और शुरू में उसकी देखभाल के लिए छुट्टी दी जाती है। महिलाओं को इस छुट्टी के लिए उसकी कंपनी भुगतान करती है यानी इस तरह की छुट्टी के लिए महिलाओं को किसी तरह की पेनल्टी नहीं देनी पड़ती है या उनके पैसे नहीं कटते हैं। ठीक इसी तरह यूनिवर्सिटी, कॉलेज में पढ़ने वाली महिलाओं के माँ बनने पर उनके लिए मैटरनिटी लीव का प्रावधान है।
भारत में मैटनिटी लीव का प्रावधान
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 42 मानवीय कार्य परिस्थिति और मातृत्व राहत प्रदान करता है। भारत में कामकाजी महिलाएं मैटरनिटी बेनिफिट ऐक्ट, 1961 के तहत इसका लाभ ले सकती है। इस ऐक्ट के आधार पर कामकाजी महिलाओं को बच्चे के जन्म के समय, उसकी देखभाल के लिए और मिसकैरिज की स्थिति में भी छह हफ्ते की छुट्टी ले सकती है। मैटरनिटी लीव पर जाने वाली महिलाओं को छुट्टी के दौरान वेतन मिलता है। मैटरनिटी संशोधन बिल, 2017 के अनुसार 12 हफ्ते से बढ़ाकर छुट्टी 26 हफ्ते की कर दी गई थी।
और पढ़ेंः क्या नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति से खत्म होगी आर्ट्स और साइंस की लड़ाई ?
उच्च शिक्षा एमफिल, पीएचडी कोर्स और रिसर्च का काम करने वाली महिला स्टूडेंट्स के लिए यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) की ओर से मैटरनिटी लीव पॉलिसी मौजूद है। जिसके तहत महिला विद्यार्थियों को 240 दिन की मैटरनिटी लीव मिल सकती है।
पढ़ाई कर रही माँओं के लिए मैटरनिटी लीव
उच्च शिक्षा एमफिल, पीएचडी कोर्स और रिसर्च का काम करने वाली महिला स्टूडेंट्स के लिए यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) की ओर से मैटरनिटी लीव पॉलिसी मौजूद है। जिसके तहत महिला विद्यार्थियों को 240 दिन की मैटरनिटी लीव मिल सकती है। इसमें फीमेल स्टूडेंट्स को अटेंडेंस यानी उपस्थिति से जुड़ी रियायत, परीक्षा फॉर्म जमा करने की छूट और महिलाओं के लिए आवश्यक समझी जानेवाली अन्य छूट दी जा सकती है। अगर स्नातक और परास्नात्क में कोई छात्रा प्रेगनेंट है तो वह भी मैटरनिटी लीव की सुविधा ले सकती है।
देश में सबसे पहले कालीकट यूनिवर्सिटी में माँ बननेवाली छात्रा को मैटरनिटी लीव दी गई थी। यूनिवर्सिटी ने माँ बननेवाली छात्राओं को लंबी छुट्टी देने की साथ-साथ अपने कोर्स में भी संशोधन किया था। यूनिवर्सिटी ने लंबी छुट्टी के बाद उन्हें दोबारा पढ़ाई शुरू कर परीक्षा देने की अनुमति दी गई। साल 2013 में यूनिवर्सिटी ने यह कदम उठाया था। ऐसा करने वाली कालीकट यूनिवर्सिटी देश की पहली यूनिवर्सिटी है।
लैंगिक समानता स्थापित करने के छात्राओं को यूनिवर्सिटी स्तर पर मिलने वाली मैटरनिटी लीव एक ज़रूरी कदम है जिससे माँ बनने के बाद कुछ समय के लिए पढ़ाई से ब्रेक लेकर उसे पूरा किया जा सकता है। अक्सर शादी के बाद परिवार बढ़ाने की जिम्मेदारी में महिलाएं पढ़ाई से दूरी बना लेती हैं। मैटरनिटी लीव की नीति को पूरी तरह भारत में लागू करने के बाद से यह छात्राओं के माँ बनने के बाद पढ़ाई को जारी रखने में मददगार है। मैटरनिटी लीव के प्रावधान के बारे में उचित जानकारी और जागरूकता से छात्राओं को शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ाने के काम में मददगार है। शिक्षा व्यवस्था में मैटरनिटी लीव के प्रावधान की वजह से रिसर्च करनेवाली छात्राओं के एकडेमिक और निजी जीवन को बेहतर बनाने के लिए भी आवश्यक है।
और पढ़ेंः बात विश्वविद्यालयों में होनेवाली डिबेट में मौजूद पितृसत्ता और प्रिविलेज की
भले ही कॉलेज स्तर पर छात्राओं के लिए मातृत्व अवकाश का प्रवधान हो लेकिन बावजूद इसके कई बार छात्राओं को इसके लाभ के लिए अदालत का दरवाज़ा खटखटाना पड़ता है। यूनिवर्सिटी प्रशासन की ओर से पढ़ाई पूरी करने की बाधा को दूर करने के साथ छात्राओं को अपनी मांग और अधिकारों के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा है। यूनिवर्सिटी की ओर से मैटरनिटी लीव न मानने की वजह और डिग्री पूरे करने में बाधा डालने के ख़िलाफ़ उत्तर प्रदेश के एक केस में अदालत ने याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाते हुए यूनिवर्सिटी को दिशा-निर्देश पालन करने को कहा।
पिछले साल दिसंबर में इलाहबाद हाईकोर्ट ने डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम टैक्निकल यूनिवर्सिटी को उसी की छात्रा को बीटेक के छुटी हुई परीक्षा कराने का आदेश दिया था। विधि पोर्टल में प्रकाशित ख़बर के अनुसार साल 2013-14 की एक बीटेक की छात्रा को उसकी एक सेमेस्टर की छूटी हुई परीक्षा देने का आदेश दिया। माँ बनने की वजह से वह परीक्षा देने में असमर्थ रही थी। छात्रा की याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा था कि याचिकाकर्ता को परीक्षा देने के लिए एक अतिरिक्त मौका मिलता है।
अदालत ने यूनिवर्सिटी को विभिन्न पाठ्यक्रमों में पढ़ने वाली गर्भवती छात्राओं और माँ के लिए उनकी शिक्षा जारी रखने की दिशा में सहायता प्रदान करने के लिए मैटरनिटी लीव से जुड़ा लाभ देने के लिए आवश्यक नियम या अध्यादेश तैयार करने का निर्देश दिया। इस फैसले को देते हुए अदालत ने कहा था कि ऑल इंडिया कॉउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) सहित अनेक रेगुलेटिरी बॉडी पोस्ट ग्रेजुएट फेलोशिप स्टूडेंट्स की अनदेखी करते हुए मैटरनिटी बैनिफिट्स पर रोक लगाते हैं। अदालत ने कहा यह भेदभावपूर्ण व्यवहार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 15(3) का उल्लंघन है। हालांकि, अदालन ने कहा था कि एआईसीटीई उसके सामने पहले ही यह प्रस्तुत कर चुका है कि यूनिवर्सिटी पोस्ट ग्रेजुएट स्टूडेंट्स को मैटरनिटी बेनिफिट्स देने के लिए किसी तरह के प्रावधान के लिए रेग्युलेटरी स्टैडर्ड के लिए बाध्य नहीं है। इस पर ध्यान देते हुए हुए अदालत ने माना है कि यूनिवर्सिटी ने पूरी तरह से याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया है। वह याचिकाकर्ता के संविधान के अनुच्छेद 14, 15(3) के साथ जीने के अधिकार का भी हनन है।
और पढ़ेंः टीचर बनना ही महिलाओं के लिए एक सुरक्षित विकल्प क्यों मानता है हमारा पितृसत्तात्मक समाज
लैंगिक समानता स्थापित करने के छात्राओं को यूनिवर्सिटी स्तर पर मिलने वाली मैटरनिटी लीव एक ज़रूरी कदम है जिससे माँ बनने के बाद कुछ समय के लिए पढ़ाई से ब्रेक लेकर उसे पूरा किया जा सकता है। अक्सर शादी के बाद परिवार बढ़ाने की जिम्मेदारी में महिलाएं पढ़ाई से दूरी बना लेती है। मैटरनिटी लीव की नीति को पूरी तरह भारत में लागू करने के बाद से यह छात्राओं के माँ बनने के बाद पढ़ाई को जारी रखने में मददगार है।
विभिन्न यूनिवर्सिटी में मैटरनिटी लीव के आंकड़े
यूजीसी, भारतीय विश्वविद्यालयों के वीसी को मैटरनिटी लीव से संबधित दिशा-निर्देश पालन करने के लिए उचित नियम बनाने को कह चुका है। अधिकतर केंद्रीय यूनिवर्सिटी में यूजीसी के 2016 के प्रोविजन को लागू किया जा चुका है। विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा हासिल करनेवाली छात्राओं को मैटरनिटी लीव के तौर पर पूरे कोर्स के तहत 240 दिन का अवकाश मिलता है। टाइम ऑफ इंडिया में छपी ख़बर के मुताबिक भारत के विभिन्न केंद्रीय विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा में शामिल छात्राओं ने मातृत्व अवकाश का इस्तेमाल किया है।
यूनिवर्सिटी ऑफ हैदराबाद में एक सत्र में कुल 1,533 पीएचडी स्टूडेंट्स थे जिनमें 668 महिलाएं थी जिसमें केवल 16 महिलाओं ने इसका प्रयोग किया था। ठीक इसी तरह यूनिवर्सिटी ऑफ दिल्ली के एक सत्र के आंकडें के अनुसार यूनिवर्सिटी के उस सत्र के 4,011 पीएडी विद्यार्थियों में 2,093 महिलाएं थीं डीयू में पीएचडी और एमफिल करने वाली 10 प्रतिशत छात्राओं ने मैटरनिटी लीव के लिए अप्लाई किया।
इस तरह कानून और नीतियों के पूरे तरीके से लागू करके महिलाओं की शिक्षा और उनके करियर में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। ये नीतियां छात्राओं को शिक्षा और परिवार में से किसी एक विकल्प को न चुनकर दोंनो को एकसाथ लेकर आगे बढ़ने का रास्ता बनाती हैं। माँ बनने के बाद खास तौर पर उच्च शिक्षा हासिल करने की दिशा में लैंगिक समानता स्थापित करने के लिए यह महत्वपूर्ण नीति है। समय-समय पर इससे जुड़े दिशा-निर्देशों को जारी कर मैटरनिटी लीव के बारे में बात कर इसे व्यवहार में स्थापित किया जा सकता है।
और पढ़ेंः ”सबका साथ-सबका विकास” के नारे के कितने पास है नई शिक्षा नीति
तस्वीर साभारः The Guardian