वीना मजूमदार का परिचय कई रूप में दिया जा सकता है। वह एक एक्टिविस्ट, नारीवादी, रिसर्चर और एक लेखिका थीं। महिला मुद्दों को लेकर बेबाक अंदाज़ में अपनी बात रखनेवाली वीना मजूमदार को भारतीय महिला आंदोलन की इतिहासकार और महिलाओं की शिक्षा को लेकर किए गए सराहनीय काम के लिए याद किया जाता है। वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के अंतिम चरणों की एक बेहतरीन गवाह हैं जिन्होंने जनता के विरोध-प्रदर्शनों को बारीकी से देखा और समझा, विशेषकर महिलाओं की स्थिति को। वह उन महिलाओं की अंतिम पीढ़ी में से एक थीं, जिन्होंने व्यक्तिगत रूप से भारत की आज़ादी के संघर्ष को महसूस किया। द हिंदू के मुताबिक वीना ने 14 अगस्त की मध्यरात्रि को दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू के ‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ भाषण को सुना और सत्ता के हस्तांतरण को व्यक्तिगत रूप से देखा था।
वीना मजूमदार एक ऐसी पीढ़ी के स्पर्श को महसूस कर रही थीं जहां ‘स्त्री स्वाधीनता ज़िंदाबाद’ के नारे लगाए जा रहे थे और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होकर खुद को गौरांवित करने का अवसर मिल रहा था। वीना में न केवल ‘समानता’ और ‘न्याय’ जैसे शब्दों की व्यापक समझ थी, बल्कि ब्रिटिश शासकों के खिलाफ़ लड़ने के लिए कूटनीतिक ज्ञान भी भरपूर था। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान और आज़ादी मिलने के बाद भी समानता के लिए लड़ने का वीना मजूमदार में जबरदस्त उत्साह था।
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जीवन का शुरुआती दौर
वीना मजूमदार का जन्म 28 मार्च, 1927 को कलकत्ता में हुआ था। वह अपनी गहन अध्ययन और किताबें पढ़ने की आदत के लिए अपने माँ की अंतहीन जिज्ञासा का बखान करते नहीं थकतीं। वीना ने कलकत्ता, बनारस और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से शिक्षा प्राप्त की थी। लगभग एक दशक तक पटना विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के शिक्षक के रूप में काम करने के बाद, उन्हें भारत में महिलाओं की स्थिति पर गौर करने के लिए बनाए गए समिति में सदस्य सचिव के रूप में नियुक्त किया गया और बाद में निदेशक के पद पर। वह भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद मे पांच साल (1975-80) तक लगातार कार्यरत रहीं। उन्होंने महिला विकास अध्ययन केंद्र (सीडब्ल्यूडीएस), नई दिल्ली की संस्थापक-निदेशक के रूप में भी काम किया।
वीना मजूमदार का परिचय कई रूप में दिया जा सकता है। वह एक एक्टिविस्ट, नारीवादी, रिसर्चर और एक लेखिका थीं। महिला मुद्दों को लेकर बेबाक अंदाज़ में अपनी बात रखनेवाली वीना मजूमदार को भारतीय महिला आंदोलन की इतिहासकार और महिलाओं की शिक्षा को लेकर किये गए सराहनीय काम के लिए याद किया जाता है।
महिलाओंं के अध्ययन को लेकर चल रहे आंदोलन में उनके काम की कोई सीमा नहीं थी। उन्होंने न केवल महिला अध्ययन के विकास में योगदान दिया बल्कि देश में अधिकांश गरीब महिलाओं की स्थिति को दर्ज करने का भी काम किया। वीना मजूमदार को साल 1971 में महिलाओं की स्थिति के रिपोर्ट का मसौदा तैयार करने लिए सचिव नियुक्त किया गया था। उन्होंने देश की पितृसत्तात्मक परिस्थितियों में महिलाओं के अनुभवों को समझने के लिए अपना अधिकांश समय देकर इस ड्राफ्ट को तैयार किया।
इस दौरान उन्होंने देखा कि शहरी और शिक्षित पृष्ठभूमि की महिलाएं अपने जीवन पर चर्चा करने के लिए अनिच्छुक थीं, लेकिन देश के सबसे गरीब और एकांत पृष्ठभूमि की महिलाओं और पुरुषों ने सरकारी नीतियों पर बढ़-चढ़कर सवाल उठाया और अपने जीवन के मुद्दों को लेकर खुल कर चर्चा भी की। जब वह 1975 में प्रकाशित समानता रिपोर्ट की समिति का हिस्सा थीं, तब उन्होंने और उनकी सहयोगियों (लीला दूबे, लतिका सरकार और कुमुद शर्मा) ने भारत में महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए सामूहिक चेतना को उजागर करने की ज़रूरत को महसूस किया। उन्होंने समझा कि भारत में गरीब, वंचित महिलाओं के जीवन के अनुभवों के बारे में कोई चेतना या जागरूकता नहीं थी।
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वीना मजूमदार के लिए नारीवाद की समझ समानता और सामाजिक न्याय पर आधारित थी। वह हमेशा मानती थी कि लोकतंत्र में समानता और न्याय एक राजनीतिक आवश्यकता है।उनका जीवन महिलाओं के आंदोलन और महिलाओं के अध्ययन के माध्यम से समानता और न्याय प्राप्त करने के लिए एक असाधारण और अटूट संघर्ष को दर्शाता है।
अपने एक साक्षात्कार में वीना मजूमदार ने बताया कि सीडब्ल्यूडीएस की शुरुआत के लिए जनमत को संगठित करने की ज़रूरत थी। उन्होंने खुलासा किया कि यह राष्ट्रीय महिला संगठन के सदस्यों की मदद से आयोजित किया गया था जो पहले से ही दहेज, घरेलू हिंसा और मथुरा हिरासत में बलात्कार के मामले को उठा रहा था। भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद द्वारा महिलाओं के अनुसंधान को आगे बढ़ाने के लिए एक स्वायत्त संस्थान की स्थापना के लिए सिफारिश किए जाने के बाद, प्लानिंग कमीशन के अधिकारियों द्वारा विधेयक को पारित करने में कई बाधाओं का सामना करना पड़ा। महिला अध्ययन केंद्र के अस्तित्व में आने पर प्रेस की मदद से, अरुणा आसफ अली जैसे कार्यकर्ताओं और राजनेताओं ने सार्वजनिक रूप से अधिकारियों की सराहना की। महिला संगठनों, कार्यकर्ताओं और महिला आंदोलन के सदस्यों की मदद से सरकार की अनिच्छा के खिलाफ इस मुद्दे को उठाया गया और शिक्षण संस्थानों में महिला अनुसंधान के लिए एक विभाग स्थापित करने की मांग के लिए लड़ाई लड़ी गई।
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इंडियन एसोसिएशन फॉर वुमन स्टडीज (IAWS) का गठन
इतने काम के बावजूद वीमन स्टडीज़ के लिए चुनौतियां बरकरार थीं। शैक्षणिक संस्थानों में महिलाओं के शोध को शुरू करने का एक अन्य उद्देश्य एक ऐसा मंच प्रदान करना था जहां महिलाएं अपने संघर्ष की ओर ध्यान आकर्षित कर सकें और पितृसत्तात्मक संरचनाओं और ताकतों के साथ अपने अनुभवों की समझ प्राप्त कर सकें। वीना मजूमदार को उनके अधिकारियों ने एक राष्ट्रीय संघ बनाने की सलाह दी जो देश में महिलाओं के अध्ययन को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार होगा। उन्होंने साल 1981 में भारतीय महिला अध्ययन संघ की नींव रखी।
महिलाओं का सशक्तिकरण सरकार और संगठनों द्वारा इस्तेमाल किए जानेवाले सबसे विवादित शब्दों में से एक है। वीना हमेशा इस तरह के बयान के विरोधाभासी रुख पर सवाल उठाने के लिए खड़ी हुई और महिलाओं को ‘सशक्त’ करने में सरकार की विफलता के बारे में अपनी चिंताओं को उठाया। महिला आंदोलन में अपनी भागीदारी के माध्यम से उन्होंने सुझाव दिया कि कमज़ोर समुदायों के लोगों को स्थानीय स्व-सरकारी निकायों में राजनीतिक निर्णय लेने में शामिल किया जाना चाहिए। वीना मजूमदार के लिए नारीवाद की समझ समानता और सामाजिक न्याय पर आधारित थी। वह हमेशा मानती थीं कि लोकतंत्र में समानता और न्याय एक राजनीतिक आवश्यकता है।उनका जीवन महिलाओं के आंदोलन और महिलाओं के अध्ययन के माध्यम से समानता और न्याय प्राप्त करने के लिए एक असाधारण और अटूट संघर्ष को दर्शाता है।
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नारीवादी लेखक / लेखिकाओं से अवगत कराने के लिए धन्यवाद ! इन्हें जानकर और पढ़कर हमें नारीवादी समझ को विकसित करने में मदद मिलती है ।
Yeeeeh !!! समानता किसी भी स्तर पर बहुत जरूरी होता है ।
शुक्रीया🤘