“मैं कोई सपने देखने वाली नहीं हूं, मेरा स्वभाव सपने देखने वाला नहीं है।” ये शब्द गांधीवादी, श्रम संगठनकर्ता, महिला सशक्तिकरण कार्यकर्ता इला भट्ट के हैं। श्रमिक महिलाओं के लिए इला भट्ट ने अपना पूरा जीवन लगा दिया। आज से पचास साल पहले अहमदाबाद शहर में इला भट्ट ने उन महिला कामगारों के हित, अधिकार के लिए आवाज़ उठाई जो अपने सिर पर कपड़ा ढ़ोती थीं। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में काम करनेवाली खेतिहर मजदूर, कूड़ा बीनने वाली, कढ़ाई करने वाली, निर्माण काम में लगी श्रमिक और दूसरी महिलाएं जो स्वरोज़गार का काम करती हैं उनको एकजुट कर सशक्त करने की दिशा में काम किया।
महिला कामगारों के आर्थिक संरक्षण के लिए उन्होंने पहला महिला बैंक बनाया। उन्होंने महिला श्रमिकों के लिए सेल्फ-इम्लॉइड वीमंस एसोसिएशन (सेवा) की स्थापना की थी। इला भट्ट के सेवा के सफल नेतृत्व के कारण उन्हें न केवल राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिलीं। इला भट्ट भारत में माइक्रो फाइनेंस मूवमेंट के शुरुआती दौर की पहली नेता मानी जाती हैं।
इला भट्ट ने महिला श्रमिकों के लिए सेल्फ-इम्लॉइड वीमंस एसोसिएशन (सेवा) की स्थापना की थी। इला भट्ट के सेवा के सफल नेतृत्व के कारण उन्हें न केवल राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिलीं। इला भट्ट भारत में माइक्रो फाइनेंस मूवमेंट के शुरुआती दौर की पहली नेता हैं।
शुरुआती जीवन
इला भट्ट का जन्म 7 सितंबर 1933 में अहमदाबाद, गुजरात में हुआ था। इनके पिता का नाम सुमंतराई भट्ट था। वह अपने समय के एक सफल वकील थे। इनकी माता का नाम वनलीला व्यास था। इनकी माता महिला आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लेती थी। वह कमलादेवी चट्टोपाध्याय द्वारा स्थापित ऑल इंडिया वीमंस कॉन्फ्रेंस में सचिव के पद पर कार्यरत थीं। इला अपने माता-पिता की तीन बेटियों में से दूसरे नंबर की थी। इनका बचपन सूरत में बीता था।

शिक्षा
इला भट्ट की प्रारंभिक स्कूल शिक्षा 1940 से 1948 तक सूरत के सार्वजनिक गर्ल्स हाई स्कूल में हुई थी। उन्होंने एम.टी.बी कॉलेज से अंग्रेजी विषय में स्नातक की पढ़ाई की। स्नातक के बाद इला ने सर एल.ए. शाह लॉ कॉलेज, अहमदाबाद में कानून की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया। साल 1954 में उन्होंने कानून की डिग्री हासिल की। इला भट्ट ने अपने करियर के शुरुआती समय में एसएनडीटी यूनिवर्सिटी, मुंबई में पढ़ाने का काम भी किया। साल 1955 में वह अहमदाबाद के टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन के कानूनी विभाग से जुड़ीं। यह भारत की सबसे पुरानी टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन है। साल साल 1968 में टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन ने उन्हें अपनी महिला विंग के नेतृत्व करने को कहा। इसी सिलसिले में वह एफ्रो-एशियन इंस्ट्टीयूट ऑफ लेबर एंड कॉर्पोरेटिव की पढ़ाई के लिए इज़राइल गई। वहां उन्होंने साल 1971 में लेबर एंड कॉर्पोरेटिव में तीन महीने का अंतरराष्ट्रीय डिप्लोमा हासिल किया।
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इला भट्ट को इस तथ्य ने बहुत प्रभावित किया था कि हजारों महिलाएं इंडस्ट्री से बाहरी तौर पर जुड़कर परिवार की आय वृद्धि के लिए काम करती हैं। वहीं, राज्य कानून केवल उन श्रमिकों को संरक्षण देता है जो इंडस्ट्री में काम करते हैं न कि स्वरोज़गार से जुड़ीं महिलाओं को। इसके बाद टीएलए के तत्कालीन अध्यक्ष अरविंद बुच के सहयोग से इला भट्ट की देखरेख में स्वरोज़गार से जुड़ीं महिलाओं को टीएलए की महिला विंग के साथ जोड़ा गया। इसके बाद साल 1972 में सेल्फ-इम्पलॉयेड वीमंस एसोसिएशन की स्थापना की गई। भट्ट 1972 से लेकर 1996 तक अपने रिटायरमेंट तक इसके जनरल सेकेट्ररी के पद पर बनी रहीं।
1974 में भट्ट के नेतृत्व में ‘सेवा’ ने एक कॉरपोरेटिव बैंक की स्थापना की। यह बैंक गरीब महिलाओं को उनके व्यवसाय को शुरू करने के लिए छोटे लोन की सुविधा उपलब्ध करवाता था। यह यूनियन साथ में फाइनेंसियल और बिजनेस कॉउंसलिंग का भी काम करती है। 1979 में यह महिला विश्व बैंकिंग की सह-संस्थापक बनीं, जो गरीब महिलाओं की सहायता के लिए माइक्रो फाइनेंस संगठनों का एक ग्लोबल नेटवर्क है। उन्होंने 1984 से 1988 तक महिला विश्व बैंकिंग के चेयरपर्सन के पद पर काम किया। 1986 में इला भट्ट को भारत के राष्ट्रपति की ओर से राज्यसभा में नियुक्त किया। यहां भट्ट ने 1989 तक अपनी सेवा दीं। संसद में इन्होंने स्व-रोजगार महिलाओं के राष्ट्रीय आयोग की अध्यक्षता की। जिसे गरीब महिलाओं की स्थितियों की जांच के लिए स्थापित किया गया था।
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सम्मान और उपलब्धियां
इला भट्ट ने इंटरनैशनल एलायंस ऑफ स्ट्रीट वेंडर के प्रमुख के तौर पर भी सेवाएं दी हैं। इसके साथ वह रॉकफेलर फॉउंडेशन की ट्रस्टी भी रह चुकी हैं। उन्हें जून 2001 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के द्वारा मानक उपाधि दी गई थी। इसके अलावा 2012 में जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी के ओर से डॉक्टेरट ऑफ ह्यूमन लेटर प्राप्त किया। इसके अलावा इला भट्ट के काम के लिए उन्हें येल यूनिवर्सिटी की ओर से भी मानक उपाधि प्राप्त है।
इला भट्ट को भारत सरकार की ओर से 1985 में पद्म श्री और 1986 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। 1977 में कम्यूनिटी लीडरशीप के लिए रमन मैग्सेसे पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। साल 1984 में इन्हें राइट लीवलीहुड अवार्ड मिला था। 2010 में भारत में गरीब महिलाओं को सशक्त बनाने के काम के लिए उन्हें निवानो शांति पुरस्कार के लिए चुना गया था।
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इला भट्ट को महिलाओं के उत्थान के लिए काम और उनके प्रयासों के लिए 27 मई 2011 को रैडक्लिफ दिवस पर रैडक्लिफ मेडल से सम्मानित किया गया। इला भटट् के महिला सशक्तिकरण की दिशा में काम करने के लिए नंवबर 2011 में इंदिरा गांधी प्राइज फॉर पीस की ओर से लाइफटाइम अचीवमेंट के लिए चुना गया। जून 2012 में, तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने इला भट्ट को अपनी हीरोइन कहा था। इला भट्ट के सम्मान में उन्होंने कहा था कि मेरे पास दुनियाभऱ के बहुत से हीरो और हीरोइन हैं और इला भट्ट उनमें से एक हैं जिन्होंने वर्षों पहले भारत में सेवा संगठन खोला था। इला भट्ट का लेखन कार्य केवल हिंदी और अंग्रेजी भाषा तक सीमित नहीं है। उनके द्वारा लिखी किताबें गुजराती, उर्दू, तमिल में अनुदित हो चुकी हैं। उनकी किताब फ्रेंच भाषा में भी अनुदित हो रही है। इनकी प्रमुख किताब ‘वी ऑर पूअर बट सो मेनी’ और ‘अनुबंध’ है।
तस्वीर साभारः Medica Mondiale
स्रोत:
मैं पूजा राठी पश्चिमी उत्तर-प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर की रहने वाली हूँ। अपने आसपास के माहौल मे फ़िट नहीं बैठती हूँ।सामाजिक रूढ़िवाद, जाति-धर्मभेद, असमानता और लैंगिक भेद में गहरी रूचि है। नारीवाद व समावेशी विचारों की पक्षधर हूँ। खुद को एक नौसिखिया मानती हूँ, इसलिए सीखने की प्रक्रिया हमेशा जारी रखती हूँ।