कुंतला कुमारी सबत, ब्रिटिश काल के दौरान एक प्रसिद्ध कवयित्री थीं। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से लोगों को जागरूक कर उन्हें आज़ादी के आंदोलन से जोड़ने का काम किया था। वह बहुमुखी प्रतिभा की धनी थीं। वह एक लेखिका होने के साथ-साथ चिकित्सक और स्वतंत्रता सेनानी भी थीं। कविता लिखने के अलावा वह उपन्यास भी लिखा करती थीं। उन्हें उड़िया भाषा की पहली महिला उपन्यासकार माना जाता है। कुंतला कुमारी सबत को ‘नाइटेंगल यानी ओडिशा की बुलबुल’ भी कहा जाता था।
कुंतला कुमारी सबत का जन्म 8 फरवरी 1901 को बस्तर क्षेत्र के जगदलपुर में हुआ था। उसके पिता का नाम डेनियल सबत था। उनके पिता एक चिकित्सक थे। उनकी माँ का नाम मोनिका सबत था। उनके जन्म के बाद इनके पिता बर्मा चले गए थे। उनका शुरुआती बचपन बर्मा में अपने माता-पिता के साथ बीता था। बर्मा में उनके पिता की दूसरी शादी के बाद वह अपनी मां के साथ ओडिशा वापस लौट आई। कुंतला कुमारी कुछ समय के लिए अपनी माँ के साथ खुर्दा में रहीं। वहीं, उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा रेनशॉ गर्ल्स स्कूल में पूरी की थी।
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कुंतला कुमारी ने उच्च शिक्षा ओ़डिशा मेडिकल स्कूल, कटक से पूरी की थी। उन्होंने 1921 में स्वर्ण पदक के साथ एलएमपी (लाइसेंसियेट मेडिकल प्रैक्टिशनर्स) की डिग्री हासिल की थी। चिकित्सक की डिग्री हासिल करने के बाद, वह डॉ कैलाश चंद्र राव के साथ प्रैक्टिस में शामिल हो गईं। साल 1921 से 1928 तक उन्होंने मेडिकल प्रैक्टिस की। साल 1925 में उन्होंने ओडिशा में रेडक्रॉस सोसायटी के तहत ‘महिला कल्याण केंद्र’ शुरू किया था।
कुंतला कुमारी आधुनिक ओडिशा की एक आवाज़ थीं। सही मायने में वह एक दूरदर्शी और विद्रोही थी। उन्होंने हमेशा शोषित मानव वर्ग के लिए अपनी चिंता व्यक्त की और मानव जाति को शोषण से मुक्त कराने का प्रयास किया। असहयोग आंदोलन के दौरान उन्होंने उड़ीसा के लोगों को स्वतंत्रता के लिए लड़ने का आह्वान किया।
कुंतला कुमारी सबत एक सामाजिक कार्यकर्ता भी थीं। वह जातिगत भेदभाव बाल विवाह, महिलाओं के साथ भेदभाव के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाया करती थीं। साथ ही उन्होंने विधवा पुनर्विवाह और महिला मुक्ति के लिए भी काम किया था। वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ओडिशा की प्रमुख हस्तियों में से एक थीं। उन्होंने ज्यादातर कविताओं की रचना उड़िया भाषा में की थीं। बता दें कि कुंतला कुमारी अपने स्कूल के दिनों से कविताओं की रचना करती थीं। साथ ही वह हिंदी में भी लिखा करती थी।
कुंतला कुमारी एक संपादक भी थीं। उन्होंने महावीर, जीवन, नारी भारती जैसी कई पत्रिकाओं का संपादन किया था। उन्होंने ‘भारती तपोवन संघ’ नामक एक संगठन की स्थापना की थी जिसने उड़िया भाषा के विकास की दिशा में काम किया था। कुंतला कुमारी ने बहुत कम उम्र में काफी तरक्की हासिल कर ली थी। उनकी कविता ‘अंजलि’ के प्रकाशित होने के बाद उनके काम को बेहद सराहा गया था। महिलाओं के एक प्रमुख सांस्कृतिक संघ ने उन्हें ‘उत्कल भारती’ की उपाधि से सम्मानित किया।
साल 1928 में उन्होंने कृष्ण प्रसाद से शादी कर ली थी। शादी के बाद उनके जीवन का नया दौर शुरू हुआ, फिर भी उन्होंने अपना लेखन कार्य नहीं छोड़ा। दिल्ली में उन्होंने कई हिंदी पत्रिकाओं का संपादन किया। दिल्ली प्रवास के दौरान उन्होंने बरेली में ‘अखिल भारतीय आर्य महिला सम्मेलन’ की अध्यक्षता की। उनका यह मानना था की महिलाओं को अपने लिए आवाज़ उठानी चाहिए, ताकि वे अपने हक पा सकें।
कुंतला कुमारी सबत ने हमेशा बुराई और अन्याय से मुक्त विश्व की हिमायत की। न्याय, समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के लिए उनका जुनून अद्भुत था। उन्होंने जीवनभर अन्याय और शोषण के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी। वह महात्मा गांधी की अनुयायी थीं। कुंतला कुमारी सबत ‘स्वतंत्रता उनका जन्मसिद्ध अधिकार है’ इस उद्देश्य के साथ जीती थीं।
कुंतला कुमारी सबत ने हमेशा एक ऐसी दुनिया की कल्पना की जो बुराई और अन्याय से मुक्त हो। न्याय, समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के लिए उनका जुनून अद्भुत था। उन्होंने जीवनभर अन्याय और शोषण के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी। वह महात्मा गांधी की अनुयायी थी। कुंतला कुमारी सबत ‘स्वतंत्रता उनका जन्मसिद्ध अधिकार है’ इस उद्देश्य के साथ जीती थी। उन्होंने महिलाओं को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए भी प्रोत्साहित किया। साल 1938 में महज 38 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया था।
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