आपने फ़िल्मों के क्लाइमैक्स के बारे में अक्सर सुना होगा। किसी भी फ़िल्म का क्लाइमैक्स उसकी जान होता, ये दर्शक को खुद से बांधने और फ़िल्म की कहानी याद रखने के लिए मजबूर करता है, अगर वह क्लाइमैक्स दर्शक को पसंद आता है। जिस तरह फ़िल्म में क्लाइमैक्स बेहद ज़रूरी है। ठीक उसी तरह हम इंसानों की सेक्स लाइफ़ में भी क्लाइमैक्स बेहद ज़रूरी है। क्लाइमैक्स जिसे चरम आनंद या ऑर्गैज़म भी कहा जाता है।
सेक्स यूं तो अपने समाज में शर्म का विषय है। इसके बावजूद आज भी देश में सेक्स से जुड़ी समस्याओं की तादाद कितनी ज़्यादा है, इसका अंदाज़ा शहरों-गाँव की दीवारों में सेक्स संबंधित समस्याओं से जुड़े विज्ञापनों से लगाया जा सकता है। हर सरकार परिवार नियोजन को लेकर नई-नई योजनाएं लेकर आती है, लेकिन इन सबके बावजूद सेक्स पर बात करना हमारे तथाकथित सभ्य समाज में मना है। ऐसे में जब सेक्स की बात महिलाओं के संदर्भ में होतो उसके लिए समाज पूरी तरह चुप्पी साध लेता है, फिर क्या हिंसा और क्या सुख। न तो समाज शादी के बाद मैरिटल रेप पर मुंह खोलता है और न महिला की यौन इच्छा या सुख पर।
पर अफ़सोस जब भी इस चरम आनंद की बात महिलाओं के संदर्भ में होती है तो हमारे समाज की भौंह तनने लगती है। इसलिए हम महिलाओं के यौन सुख की चर्चा तो क्या इसके बारे में सोच भी नहीं पाते। कई बार ये भी कहा जाता है कि ये मुद्दा चर्चा के लिए ज़रूरी नहीं है, लेकिन वास्तव में अगर आप अपने शारीरिक और मानसिक ज़रूरतों पर चर्चा को अगर ज़रूरी मानते हैं तो आपको यौन सुख के मुद्दे को भी ज़रूरी मानना होगा। साथ ही ये अच्छी तरह समझना होगा कि ये आपके शरीर और मन से जुड़ा ज़रूरी विषय है।
क्या है यह ऑर्गैज़म?
सेक्स या हस्तमैथुन के दौरान जब बहुत ज़्यादा काम उत्तेजना महसूस होती है तो आपको ऑर्गैज़म का अनुभव हो सकता है। इस दौरान आपकी मसल्स तन जाती हैं और दिल की धड़कन बढ़ जाती है। ऑर्गैज़म के दौरान वजाइना से गाढ़ा लिक्विड निकलता है, ये ऑर्गैज़म शारीरिक सुख और संतुष्टि का एहसास कराता है। इसे ही हम चरम आनंद या क्लाइमैक्स कहते हैं।
ऐसा नहीं कि ऑर्गैज़म की बात सिर्फ़ महिला-पुरुष के संबंध तक ही है, बल्कि लेस्बियन, बाईसेक्सुल महिलाएँ या हर वो इंसान जिसके पास योनि है, वो ऑर्गैज़म का अनुभव करता है।
जब दो इंसान सेक्स करते हैं और उसमें से एक ऑर्गैज़म महसूस करता है और एक नहीं तो कहे-अनकहे उनके यौन-सुख के बीच एक दूरी बन जाती है, जिसे ऑर्गैज़म गैप कहा जाता है। इसके साथ ही, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जब भी हम यौन-सुख की बात करते हैं तो इसके मायने समाज की बनाई जेंडर की परिभाषा से परे है, यानी कि यौन-सुख और ऑर्गैज़म का मतलब सिर्फ़ महिला-पुरुष ही नहीं है, बल्कि यह हर इंसान और उनके साथी के संदर्भ में है।
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महिलाएं और ऑर्गैज़म
कॉन्डम बनाने वाली कम्पनी डयूरेक्स ने भारत में किए एक सर्वे में पाया कि 70 फ़ीसद महिलाओं को सेक्स के दौरान ऑर्गैज़म नहीं होता है। महिलाएं सेक्स के दौरान एक से अधिक बार ऑर्गैज़म महसूस कर सकती हैं, जिनके बीच अंतर बहुत कम हो सकता है। ऑर्गैज़म महसूस करते समय कुछ महिलाओं की योनि से तरल की धार निकलती है। यह पेशाब नहीं होती, बल्कि योनिस्राव योनि का तरल पदार्थ होता है। ठीक उसी तरह जैसे सेक्स में क्लाइमैक्स के बाद पुरुषों के लिंग से सीमन निकलता है। लेकिन ऐसा नहीं कि ऑर्गैज़म की बात सिर्फ़ महिला-पुरुष के संबंध तक ही है, बल्कि लेस्बियन, बाईसेक्सुल महिलाएं या हर वह इंसान जिसके पास योनि है वह ऑर्गैज़म का अनुभव करता है।
ज़रूरी नहीं कि हर महिला को सिर्फ सेक्स से ऑर्गैज़म महसूस हो। ऑर्गैज़म के लिए महिलाओं का उत्तेजित होना ज़रूरी होता है। महिलाओं की क्लिटोरिस को सहलाकर या ओरल सेक्स के ज़रिये उन्हें उत्तेजित किया जा सकता है। साथ ही, महिलाओं को एक से अधिक बार ऑर्गैज़म हो सकता है और उनका चरम आनंद पुरुषों की तुलना में ज़्यादा देर तक रहता है। लेकिन हर बार ऑर्गैज़म न होना भी स्वाभाविक बात है तो इसके लिए ज़्यादा परेशान होने की ज़रूरत भी नहीं है।
ऑर्गैज़म के साधन
कई बार हमें यह लगता है कि इंटरकोर्स या संभोग से ही ऑर्गैज़म हो सकता है। लेकिन सच यह है कि कई सारे शोध में ये पता चला है कि केवल एक तिहाई महिलाओं को ही इंटरकोर्स के द्वारा ऑर्गैज़म होता है। अधिकतर महिलाओं को ओरल सेक्स और हाथों के इस्तेमाल के ज़रिये ऑर्गैज़म होता है। एक सर्वे के अनुसार 39 फ़ीसद महिलाओं ने यह माना है कि उन्हें हस्तमैथुन से ही ऑर्गैज़म हुआ। इसके साथ ही, ज्यादातर महिलाओं को क्लिटोरल स्टिम्युलेशन के ज़रिये भी ऑर्गैज़म आता है। यह टचिंग ,सकिंग ,लिकिंग और प्रेशर के ज़रिये किया जा सकता है। अब अगर आप यह जानना चाह रहे हैं कि आपके पार्टनर के लिए क्या काम करता है, तो उनसे खुलकर बात करिए, पूछिए और पढ़िए, क्योंकि ये शर्माने की नहीं बल्कि चर्चा का विषय है।
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तस्वीर साभार : dailyo