सविता आंबेडकर एक भारतीय समाज सुधारक और डॉक्टर थीं। सविता आंबेडकर, डॉ. भीमराव आंबेडकर की दूसरी पत्नी थीं। लोग उन्हें सम्मान से ‘माई’ या ‘माईसाहब’ कहकर पुकारते हैं। उन्होंने कई सामाजिक आंदोलनों और किताबों के लेखन में भीमराव आंबेडकर का साथ दिया था।
शुरुआती जीवन
सविता आंबेडकर का जन्म 27 जनवरी 1909 को महाराष्ट्र में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका परिवार रत्नागिरी जिले के राजपुरा तहसील में रहता था। कुछ समय बाद उनका परिवार बॉम्बे (मुंबई) आकर रहने लगा था। उनकी माता का नाम जानकी और पिता का नाम कृष्णाराव विनायक कबीर था। उनके जन्म का नाम ‘शारदा कबीर’ था। शादी के बाद उन्होंने अपना नाम बदल लिया था।
सविता बचपन से पढ़ने में बहुत होनहार थीं। स्कूल की पढ़ाई खत्म होने के बाद उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई की। शुरुआती पढ़ाई उन्होंने पुणे से की थी। उसके बाद साल 1937 में ग्रांट मेडिकल कॉलेज, बॉम्बे से उन्होंने एमबीबीएस की पढ़ाई की। पढ़ाई पूरी करने के बाद मेडिकल ऑफिसर के तौर पर उनकी पहली नियुक्त गुजरात में हुई थी। स्वास्थ्य की खराबी की वजह से वह जल्द ही वहां से वापस अपने घर लौट आईं।
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सविता बचपन से पढ़ने में बहुत होनहार थी। स्कूल की पढ़ाई खत्म होने के बाद उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई की। शुरू की पढ़ाई उन्होंने पुणे से हासिल की थी। उसके बाद 1937 में ग्रॉन्ट मेडिकल कॉलेज, बॉम्बे से उन्होंने एमबीबीएस की पढ़ाई की। पढ़ाई पूरी करने के बाद मेडिकल ऑफिसर के तौर पर उनकी पहली नियुक्त गुजरात में हुई थी।
डॉ. आंबेडकर से पहली मुलाकात
गुजरात से वापिस लौटने के बाद डॉ. सविता ने बॉम्बे में ही अपनी मैडिकल प्रैक्टिस करनी शुरू कर दी थी। वहां के विले पार्ले इलाके में डॉक्टर एस.एम. राव नाम के एक डॉक्टर रहते थे जिनके भीमराव आंबेडकर से घनिष्ठ संबंध थे। दिल्ली से मुंबई की यात्रा पर वह अक्सर उनसे मुलाकात करते थे। डॉ. सविता और डॉ. राव के परिवार आपस में परिचित थे।एक बार जब भीमराव आंबेडकर मुंबई में डॉ. राव से मिले उस समय डॉ. सविता भी वहां मौजूद थी। डॉ. राव ने उन दोंनो का पहला परिचय कराया था। उस समय डॉ. सविता भीमराव आंबेडकर के बारे में ज्यादा नहीं जानती थीं। पहली ही मुलाकात में आंबेडकर ने उनसे उदासी के बारे में जानकारी ली थी। इसकी वजह यह थी कि वे उन दिनों महिलाओं की उन्नति पर काम कर रहे थे। इस बैठक में बौद्ध धर्म के बारे में भी चर्चा हुई थी। पहली ही मुलाकात में वे आंबेडकर से बहुत प्रभावित हुई थीं।
जल्दी ही स्वास्थ्य खराब होने की वजह से भीमराव आंबेडकर की दोबारा डॉ. शारदा से मुलाकात हुई। इलाज के दौरान ही उन दोंनो की अच्छी जान-पहचान हो गई थी। इस सिलसिले में उनकी कई मुलाकाते हुई। उसके बाद दोंनो के बीच पत्र के माध्यम से बात होनी शुरू हो गई थी। वे दोनों धर्म, समाज, साहित्य और महिला उत्थान के विषय पर बातें किया करते थे।
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15 अप्रैल 1948 में उनकी भीमराव आंबेडकर ने नई दिल्ली में शादी हुई। अपनी पहली पत्नी रमाबाई की मृत्यु के 13 साल बाद उन्होंने दूसरी शादी की थी। शादी के बाद आंबेडकर के अनुयायी उन्हें ‘माई’ कहकर पुकारने लगे थे। शादी के बाद उन्होंने सविता नाम अपना लिया था। डॉ. सविता ने हमेशा आंबेडकर के राजनीतिक-सामाजिक आंदोलन में उनका साथ दिया। डॉ. सविता ने उनकी सेहत का बहुत ध्यान रखा। आंबेडकर ने अपनी किताब ‘बुद्ध और उसके धम्म’ में डॉ. सविता के द्वारा की गई सेवा का वर्णन किया है। उन्होंने लिखा था, “सविता आंबेडकर की वजह से मैंने 8-10 साल अधिक जीवन जिया है।”
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सविता आंबेडकर ने अपनाया बौद्ध धर्म
14 अक्टूबर 1956 में अशोक विजया दशमी के अवसर पर सविता आंबेडकर ने अपने पति भीमराव आंबेडकर के साथ नागपुर में बौद्ध धर्म अपनाया था। आंबेडकर ने खुद तीन रत्नों, पांच उपदेशों और बाईस प्रतिज्ञाओं के साथ 5,00,000 अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया था।
बाबा साहब की मुत्यु और आरोप
सविता आंबेडकर ने डॉ. आंबेडकर के अंतिम समय तक उनका साथ दिया। द प्रिंट में प्रकाशित लेख के अनुसार 6 दिसंबर 1956 में आंबेडकर की मृत्यु के बाद कुछ लोगों ने डॉ. सविता पर उनकी हत्या का आरोप लगाया। दरअसल आंबेडकर के कुछ अनुयायी उनकी इस शादी के विरोध में थे। आंबेडकर की हत्या के आरोप की जांच के बाद उन्हें आरोपों से मुक्त कर दिया गया था। बाद में भारत सरकार ने उनके सामने कई बार राज्यसभा की सदस्यता का प्रस्ताव रखा लेकिन उन्होंने हमेशा उसे नकार दिया।
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डॉ. सविता ने अपने पति आंबेडकर की सेहत का बहुत ध्यान रखा। आंबेडकर ने अपनी किताब ‘बुद्ध और उसके धम्म’ में डॉ. सविता के द्वारा की गई सेवा का वर्णन किया है। उन्होंने लिखा था, “सविता आंबेडकर की वजह से मैंने 8-10 साल अधिक जीवन जिया है।”
दलित आंदोलन में योगदान
दलित आंदोलन में सविता आंबेडकर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। उन्होंने कई सामाजिक समारोह और कॉन्फ्रेंस का संबोधन किया। पैंथर्स आंदोलन के युवा कार्यकर्ताओं को उन्होंने हमेशा प्रोत्साहित किया। ‘रिडल्स इन हिंदुइज़म’ किताब में आंदोलन में उनके मार्गदर्शन के बारे में बताया गया। पुणे में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर म्यूजियम और मेमोरियल स्थापित में भी उन्होंने मदद की थी। अपने और बाबा साहब से जुड़ी अनके चीजें दान में दी थीं। उन्होंने मराठी में आत्मकथा और यादगार के रूप में ‘डॉ. आंबेडकरच्य सहवासत’ लिखी थी। यही नहीं उन्होंने बाबा साहब पर बननेवाली एक प्रमुख फिल्म में भी मदद की थी। पति की मृत्यु के बाद सविता आंबेडकर ने अपना अधिक वक्त अकेले गुजारा था। 19 अप्रैल 2003 में सांस मे तकलीफ़ के चलते वह जे.जे. हॉस्पिटल, मुंबई में भर्ती हो गई थीं। 29 मई 2003 में 94 साल की उम्र में उन्होंने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था।
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तस्वीर साभारः Wikipedia
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