नैंसी वेक द्वितीय विश्व युद्ध के समय की सबसे खतरनाक महिला जासूसों में से एक के रूप में जानी जाती हैं। उन्होंने साल 1943 में हजारों सैनिकों की जान बचाई। वह जर्मन गस्टापो की मोस्ट वांटेड लिस्ट में सबसे ऊपर आती थीं। नैंसी वेक ने इस बात पर कभी विश्वास नहीं किया कि महिलाओं को हमेशा घर में रहना चाहिए जबकि मर्दों को युद्ध में लड़ने जाना चाहिए। इसी भरोसे के साथ वह फ्रांस के प्रतिरोध आंदोलन का हिस्सा बनीं और खुद को एक काबिल लीडर के रूप में साबित किया।
नैंसी वेक का जन्म 30 अगस्त, 1912 को वेलिंगटन न्यूज़ीलैंड में हुआ था। वह 6 भाई बहनों में सबसे छोटी थीं। साल 1914 में, उनके जन्म के तुरंत बाद उनके माता-पिता ने न्यूजीलैंड से ऑस्ट्रेलिया का रुख किया और वे उत्तरी सिडनी में बस गए। नैंसी का बचपन गरीबी और अस्थिरता से भरा हुआ था। थोड़े समय के बाद उनके पत्रकार पिता न्यूजीलैंड वापस चले गए। नैंसी ने सिडनी के ही एक स्कूल से पढ़ाई की। लेकिन एक दिन वह घर से भाग गई और महज़ 16 साल की उम्र में एक नर्स के रूप में काम करना शुरू कर दिया। इसके बाद वह अपनी आंटी के साथ साथ लंदन आ गईं और वहां एक पत्रकार के रूप में काम करना शुरू कर दिया। फ्रांस में रहते हुए उन्हें एक बिजनेसमैन से प्यार हुआ जिसका नाम हेनरी फियोक था।
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नैंसी वेक ने इस बात पर कभी विश्वास नहीं किया कि महिलाओं को हमेशा घर में रहना चाहिए जबकि मर्दों को युद्ध में लड़ने जाना चाहिए। इसी भरोसे के साथ वह फ्रांस के प्रतिरोध आंदोलन का हिस्सा बनीं और खुद को एक काबिल लीडर के रूप में साबित किया।
साल 1930 के यूरोप में हिटलर के शासन के दौरान, वेक ने नाजियों के उदय के समय देखा कि नाज़ी गेस्टापो द्वारा यहूदियों को सड़कों पर प्रताड़ित और पीटा जा रहा है और वह कैसे भी इसे समाप्त करना चाहती थीं, इसलिए वह कुछ भी करने को तैयार थीं। यहूदियों के खिलाफ़ नाजियों द्वारा क्रूरता और अत्याचार के खुलेआम प्रदर्शन की वजह से नाजियों के प्रति उनकी नफरत बहुत गहरी हो गई थी। साल 1940 में जब नाजियों ने फ्रांस पर आक्रमण किया तो उनकी संपत्ति और उच्च सामाजिक स्थिति ने उन्हें इस शोषण से बचाया।
उस समय वह एक ट्रांसपोर्टर के रूप में काम करने लगी थीं ताकि वह यहूदियों को फ्रांस से बाहर सुरक्षित जगहों पर पहुंचा सकें। उन्होंने एक एम्बुलेंस भी खरीदी जिसका इस्तेमाल वह शरणार्थियों को सीमाओं के पार ले जाने के लिए करती थीं। उन्होंने फ्रांस में फंसे ब्रिटिश सैन्य अधिकारियों को घर वापस लाने में प्रसिद्ध स्कॉटिश अधिकारी इयान गैरो की सहायता भी की थी।
साल 1930 के यूरोप में हिटलर के शासन के दौरान, वेक ने नाजियों के उदय के समय देखा कि नाज़ी गेस्टापो द्वारा यहूदियों को सड़कों पर प्रताड़ित और पीटा जा रहा है और वह कैसे भी इसे समाप्त करना चाहती थीं, इसलिए वह कुछ भी करने को तैयार थीं। यहूदियों के खिलाफ़ नाजियों द्वारा क्रूरता और अत्याचार के खुलेआम प्रदर्शन की वजह से नाजियों के प्रति उनकी नफरत बहुत गहरी हो गई थी।
साल 1943 में नाजी गस्टापो को उनकी गतिविधियों की खबर लग गई और वह गस्टापो की मोस्ट वांटेड लिस्ट में टॉप पर थी, उनके सिर पर 5 मिलियन का इनाम भी रखा गया। गस्टापो ने उन्हे ‘व्हाइट माउस’ का नाम भी दिया। इस वजह से उन्हें अपने पति को छोड़कर फ्रांस से जाना पड़ा। बाद में उनके पति को पकड़ लिया और उन्हें प्रताड़ित करके मार डाला गया।
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वह फ्रांस से भागकर इंग्लैंड पहुंची और वहां उन्होंने ब्रिटिश सरकार की खुफिया एजेंसी ‘ब्रिटिश स्पेशल ऑपरेशंस एक्जिक्यूटिव’ की एक यूनिट में जासूस बनने का प्रशिक्षण प्राप्त किया। उनके प्रशिक्षण के बाद, साल 1944 में फ्रांस में डी-डे ऑपरेशन की तैयारी के लिए 39 अन्य महिलाओं और 430 पुरुषों के साथ उन्हे फ्रांस में पैराशूट किया गया। उनका काम गोला बारूद को व्यवस्थित करना, संचार और आपूर्ति लाइनों को स्थापित करना और डी-डे हमले की तैयारी में लोगों को संगठित करना था। लंदन से संपर्क को बनाए रखने के लिए उन्होंने करीब 400 किलोमीटर तक का सफर साइकिल से कई जर्मन चेक पॉइंट्स पार करते हुए किया था। वह मोंटुकोन में गेस्टापो मुख्यालय पर एक सफल छापेमारी का नेतृत्व करने के लिए भी जानी जाती हैं।
जून 1944 में जर्मन सेना ने फ्रांस छोड़कर भागना शुरू कर दिया, 26 अगस्त 1944 को पेरिस आज़ाद हो गया और वेक अपने साथी सैनिकों के साथ वापस फ्रांस लौटीं। इसके बाद वह ऑस्ट्रेलिया वापस लौटीं और उन्होंने जॉन फारवर्ड से शादी कर ली। ऑस्ट्रेलिया में रहते हुए उन्होंने राजनीति में भी रुचि ली और सिडनी में चुनावों में भी हिस्सा भी लिया। हालांकि, उन्हें राजनीति में सफलता नहीं मिली।
नैंसी वेक को उनकी बहादुरी के लिए जॉर्ज मेडल, मेडल ऑफ फ्रीडम जैसे सम्मान से नवाज़ा गया। साल 1985 में वेक ने अपनी आत्मकथा “द व्हाइट माउस” के नाम से प्रकाशित की। अपनी ज़िंदगी के आखिरी पल जीने के लिए वह फिर से वापस इंग्लैंड वापस आई। 99वें जन्मदिन के एक महीने से भी कम समय पहले 7 अगस्त 2011 में उनका निधन हो गया।
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तस्वीर साभार: Wikipedia
स्रोत:
1- The Guardian
2- The New York Times
3- D Day.org