समाजविज्ञान और तकनीक डॉ. गगनदीप कांगः भारत में वैक्सीन निर्माण की दिशा में दे रही हैं महत्वपूर्ण योगदान

डॉ. गगनदीप कांगः भारत में वैक्सीन निर्माण की दिशा में दे रही हैं महत्वपूर्ण योगदान

गगनदीप कांग एक चिकित्सक वैज्ञानिक हैं जिन्होंने 1990 से डायरिया बीमारी और भारत की सार्वजनिक चिकित्सा व्यवस्था के लिए काम करना शुरू कर दिया था। उनका मुख्य योगदान भारत की वैक्सीनोलॉजी के क्षेत्र में हैं। पिछले तीस सालों से उन्होंने रोटा वायरस के निदान की दिशा में काम किया।

विज्ञान के क्षेत्र में लैंगिक असमानता ठीक उसी तरह से व्याप्त है जिस तरह से अन्य क्षेत्रों में है। कुछ वैज्ञानिक तर्कों ने तो महिलाओं को और पीछे धकेलने का भी काम किया है। जैसे कहा गया है कि महिलाओं की बौद्धिक क्षमता पुरुषों के मुकाबले कम होती है, महिलाओं की विज्ञान और गणित में रूचि नहीं होती हैं। बावजूद इन तमाम धारणाओं के हर दौर में महिलाएं विज्ञान के क्षेत्र में नए-नए अविष्कार और तकनीक की खोज में आगे रही हैं। महिला वैज्ञानिकों की ही सूची में एक नाम हैं डॉ. गगनदीप कांग का। गगनदीप कांग भारत की एक मशहूर वॉयरोलॉजिस्ट हैं। इन्हें भारत की ‘वैक्सीन गॉड मदर’ के तौर पर भी जाना जाता हैं।

गगनदीप कांग एक वायरोलॉजिस्ट और प्रोफेसर हैं। भारत में रोटा वायरस की वैक्सीन के निर्माण में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी हैं। वह भारत की पहली महिला हैं जिन्हें रॉयल सोसायटी, इंग्लैंड के फेलो के तौर पर चुना गया। 300 साल से ज्यादा के इतिहास में यह उपलब्धि प्राप्त करने वाली पहली भारतीय हैं। गगनदीप कांग बेयलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन ह्यूस्टन में मैरी के. एस्टेस के साथ पोस्ट-डॉक्टरल शोध का हिस्सा भी रही हैं। 

गगनदीप कांग एक चिकित्सक वैज्ञानिक हैं जिन्होंने 1990 से डायरिया बीमारी और भारत की सार्वजनिक चिकित्सा व्यवस्था के लिए काम करना शुरू कर दिया था। उनका मुख्य योगदान भारत की वैक्सीनोलॉजी के क्षेत्र में हैं। पिछले तीस सालों से उन्होंने रोटा वायरस के निदान की दिशा में काम किया।

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प्रांरभिक जीवन

गगनदीप कांग का जन्म 3 नवंबर 1962 में शिमला, हिमाचल प्रदेश में हुआ था। उनके पिता भारतीय रेलवे में इंजीनियर थे। उनकी माता एक टीचर थीं जो अंग्रेजी और इतिहास पढ़ाया करती थी। गगनदीप का अधिकतर बचपन पिता की नौकरी की वजह से उत्तर और पूर्व भारत के क्षेत्रों में बीता था। इस वजह से उन्होंने अलग-अलग स्कूलों से अपनी शिक्षा पूरी करनी पड़ी थी। गगनदीप की रूचि बचपन से ही विज्ञान में थीं और कम उम्र में ही उन्होंने उसकी प्रैक्टिस करनी शुरू कर दी थी। 

उनके पिता ने घर पर ही एक विज्ञान की लैब बना दी थी जहां वह प्रयोग किया करती थी। जब वह 12 साल की उन्होंने जीव विज्ञान, भौतिक और रसायन विज्ञान से जुड़े प्रयोग करने शुरू कर दिए थे। साल 1987 में उन्होंने एमबीबीएस की डिग्री पूरी की। उसके बाद 1991 में क्रिस्टन मेडिकल कॉलेज, वेल्लौर से माइक्रो बायलॉजी में एमडी की डिग्री पूरी की। मास्टर की पढ़ाई पूरी करने के बाद 1998 में पीएचडी की पढ़ाई की।  

करियर और रिसर्च

गगनदीप कांग एक चिकित्सक वैज्ञानिक हैं जिन्होंने 1990 से डायरिया बीमारी और भारत की सार्वजनिक चिकित्सा व्यवस्था के लिए काम करना शुरू कर दिया था। उनका मुख्य योगदान भारत की वैक्सीनोलॉजी के क्षेत्र में हैं। पिछले तीस सालों से उन्होंने रोटा वायरस के निदान की दिशा में काम किया। इस वायरस से बच्चों में आंत का इंफेक्शन और टायफाइड हो जाता है। वंचित समुदाय के छोटे बच्चों में टीकों, आंतों के संक्रमण और पोषण पर ध्यान देते हुए उन्होंने भारत में संक्रमण रोगों के वैज्ञानिक शोध और योजनाओं दोंनो में योगदान दिया।

रोटा वायरस पर उनके व्यापक शोध ने भारत में इस वायरस के रोग के अधिक भार, वायरस की अनुवांशिकता, वायरस और वैक्सीन से कम प्रोटेक्शन और ओरल वैक्सीन के प्रभाव को सुधारने की दिशा में मुख्य तौर पर काम किया। वैक्सीन विकसित करने में उनके योगदान का परिणाम यह है कि रोटा वायरस की रोकथाम के लिए बनी वैक्सीन को विश्व स्वास्थ्य संगठन से मान्यता प्राप्त है। भारत में वैक्सीन की दिशा में उत्कृष्ठ काम करने की वजह से उन्हें वैक्सीन ‘गॉड मदर’ के तौर पर भी जाना जाता हैं।

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300 से ज्यादा वैज्ञानिक पेपर प्रकाशित

गगनदीप कांग के नाम अनेक उपलब्धियां दर्ज हैं। वह अबतक 300 से अधिक वैज्ञानिक पेपर पब्लिश कर चुकी हैं। इसके अलावा वह विज्ञान के क्षेत्र के अनेक प्रमुख पब्लिकेशन के एडिटोरियल बोर्ड में महत्वपूर्ण पदों पर रह चुकी हैं। इनमें पीएलओएस, नेगलेक्टिड ट्रॉपिकल डिसीज़, इंटरनेशनल हेल्थ, करेंट ओपिनियन इन इंफेक्शन डिसीज़ एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन जैसे नाम शामिल हैं। 

इसके अलावा गगनदीप कई अलग-अलग संस्थाओं से भी जुड़ी रहीं। वह कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय रिसर्च एंजेसियों की एडवाइज़री कमेटी में भी शामिल रही। मुख्य तौर पर वैक्सीन की दिशा में काम करने वाले संगठनों के साथ उन्होंने काम किया। वह विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ग्लोबल एडवाइज़री कमेटी ऑन वैक्सीन सेफ्टी और द इम्युनाइजेशन एंड वैक्सीन इम्पलीमेंटेशन रिसर्च एडवाइज़री कमेटी का भी हिस्सा रह चुकी हैं।  भारत उन्होने नैशनल टेक्नीकल एडवाइज़री ग्रुप ऑन इम्युनाइजेशन के साथ काम किया। गगनदीप कोविड-19 वैक्सीन बनाने के डब्ल्यूएचओ स्ट्रटीजिक एडवाइजरी ग्रुप ऑफ एक्सपर्ट से भी जुड़ी हैं। बिल एंड मेंडेला गेट्स फॉउंडेशन की ग्लोबल हेल्थ सांइटिफ एडवाइजरी कमेटी की भी वह सदस्य हैं।

गगनदीप कांग, दुनिया के बहुत से मेडिकल एजुकेशन इंस्टीट्यूट से भी जुड़ी हैं। वह मैरीलैंड के बाल्टीमोर में जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में एक एसोसिएट फैक्लटी मेंबर और टफ यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन, बोस्टन में सहायक प्रोफेसर के तौर पर नियुकत हो चुकी हैं।

गगनदीप कांग के नाम अनेक उपलब्धियां दर्ज हैं। वह अबतक 300 से अधिक वैज्ञानिक पेपर पब्लिश कर चुकी हैं। इसके अलावा वह विज्ञान के क्षेत्र के अनेक प्रमुख पब्लिकेशन के एडिटोरियल बोर्ड में महत्वपूर्ण पदों पर रह चुकी हैं।

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सम्मान

गगनदीप कांग अपने शोधकार्य के लिए कई फेलोशिप और पुरस्कार अपने नाम कर चुकी हैं। 1998-99 में वह डॉ. पी.एन. बैरी फेलोशिप मिली। साल 2005 में अनुसंधान में उत्कृष्टता के लिए उन्हें लौर्डू येदानपल्ली पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 2006 में वह वुमन बायोसाइंटिस्ट ऑफ द ईयर चुनी गई। साल 2016 में रोटावायरस और अन्य इंफेक्शन की बीमारियों के इलाज ढूढ़ने में दिए योगदान के लिए प्रतिष्ठित इंफोसिस प्राइज इन लाइफ साइंस से सम्मानित किया गया। वह यह सम्मान हासिल करने वाली नौवीं महिला वैज्ञानिक है। साल 2019 में प्रतिष्ठित रॉयल सोसायटी की फेलो चुनी गई। यह उपलब्धि हासिल करने वाली गगनदीप पहली भारतीय हैं। साल 2020 में वह इंफोसिस प्राइज की ज्यूरी भी रह चुकी हैं।       

पेगासस के तहत फोन टैप होने वालो की लिस्ट में नाम

गगनदीप कांग हमेशा से भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था के सुधार के लिए मुखर रही हैं। पिछले साल जुलाई में पेगासस सॉफ्टवेयर के जरिये फोन टैप होने वाले लोगों की लिस्ट में इनका नाम भी शामिल था। इंडिया टुडे में प्रकाशित ख़बर के हवाले से उनका इस मुद्दे पर कहना था, “इसका संबंध 2018 में निपाह वायरस की वैक्सीन के लिए अतिरिक्त सहयोग जुड़ाने से जुड़ा हो सकता है, लेकिन उस वक्त यह काम नहीं हो पाया था।” 

उस समय गगनदीप ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट के साथ काम कर रही थीं। यह फरीदाबाद में पब्लिक हेल्थ रिसर्च इंस्टीट्यूट है जो भारत सरकार के तहत काम करता है। वह केरल के निपाह वायरस के निजात के लिए काम कर रही थी। उन्होंने भारतीय स्वास्थ्य अधिकारियों से संक्रमितों के ब्लड सैंपल की मांग की थी, जिससे वे भविष्य में किसी प्रकोप से बचने के लिए वैक्सीन विकसित कर सकें।

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संदर्भः

  1. Wikipedia
  2. Indiatimes.com

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