जब भी भारतीय संविधान की बात होती है, तो हम उन प्रगतिशील महिलाओं के बहुमूल्य योगदान को क्यों भूल जाते हैं जिनके बगैर हमारा संविधान शायद उतना समावेशी नहीं हो पाता जितना की आज है? हम उनके बारे में भी उतनी ही बात क्यों नहीं करते जितना की संविधान सभा के अन्य सदस्यों के बारे में करते हैं? संविधान निर्माण में उन 15 महिला सदस्यों ने भी उतनी ही अहम भूमिका निभाई और उतना भी बहुमूल्य योगदान दिया जितना कि पुरुष सदस्यों ने।
संविधान सभा के सदस्यों के बहुमूल्य योगदान के कारण हीं भारतीय संविधान का निर्माण सफलतापूर्वक संभव हो पाया। शुरुआत में संविधान सभा में कुल 389 सदस्य थे, इन्हीं सदस्यों में से 208 कांग्रेस से थे, 73 मुस्लिम लीग से और 15 अन्य स्वतंत्र उम्मीदवार निर्वाचित हुए थे। आगे चलकर संविधान सभा में कुल सदस्यों की संख्या 299 हो गई थी। इसी सभा में कुल 15 महिला सदस्य शामिल थी। इन महिला सदस्यों को भारतीय समाज ने उतनी प्रतिष्ठा नहीं दी। फिर भी भारत के सर्वोच्च कानून में उनके बहुमूल्य योगदान को नकारा नहीं जा सकता। उनके प्रसंशनीय योगदान को पहचानना और याद रखना बहुत महत्वपूर्ण है। संविधान सभा में कुल 15 महिला सदस्य शामिल थी। उन्हीं 15 महिलाओं में से एक थीं कमला चौधरी। दुभार्ग्य से, कमला चौधरी के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।
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शुरुआती जीवन
22 फरवरी 1908 को कमला चौधरी का जन्म लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनके पिता का नाम राय मनमोहन दयाल था जो कि पेशे से एक डिप्टी कलेक्टर थे। कमला के नाना 1857 के स्वाधीनता संग्राम में लखनऊ में स्वतंत्र अवध बलों के कमांडर थे। डिप्टी कलेक्टर होने के कारण पिता का तबादला एक शहर से दूसरे शहर होता रहता था, जिसके कारण कमला चौधरी का बचपन देश के अलग-अलग क्षेत्रों में घूमते-फिरते बीता। इसी कारण वह देश की भौगोलिक, सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विविधता की झलक भी बचपन से ही पाती रही।
कमला चौधरी बहमुखी प्रतिभा की धनी थीं। वह एक लोकप्रिय लघुकथा लेखिका भी थीं। जातिगत भेदभाव, धर्मनिरपेक्षता, संप्रदायिकता, वर्गभेद, प्रेम, नैतिकता, आचार- व्यवहार उनकी कहानियों के महत्वपूर्ण विषय रहे हैं। महिलाओं से संबंधित विषयों पर उन्होंने अपनी लेखनी को बेझिझक होकर क्रान्तिकारी रूप प्रदान किया है।
शिक्षा
जैसा कि उस समय की लड़कियों को मूलभूत शिक्षा प्राप्त करने के लिए भी समाज के साथ बहुत संघर्ष करना पड़ता था, वैसे ही कमला चौधरी को भी पढ़ाई-लिखाई के लिए न केवल अपने समाज बल्कि अपने परिवार के साथ भी खूब संघर्ष करना पड़ा। हालांकि, वह एक शिक्षित और संपन्न परिवार से संबंध रखती थीं फिर भी शिक्षा प्राप्ति के मामले में उनकी दशा समाज की अन्य लड़कियों की तरह हीं थी। उनके लिए अपनी शिक्षा को जारी रखना आसान काम न था। इन सब परेशानियों से जूझते हुए उन्हें महिलाओं की सामाजिक स्थिति का ज्ञान हुआ। वह महिलाओं की समस्याओं के प्रति सचेत हो उठीं।
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कमला चौधरी को लिखने का बहुत शौक था। इसलिए उन्होंने बचपन से हीं अपने राष्ट्रवादी विचारों को कागज़ पर उतरना शुरू कर दिया था। देश के अलग-अलग क्षेत्रों में पली-बढ़ी कमला ने परिवार की आपत्तियों के बावजूद पंजाब विश्वविद्यालय से हिंदी में रत्न और प्रभाकर की डिग्री हासिल की। बचपन से ही साहित्य में उनकी गहरी रुचि थी। फरवरी, 1922 में उनका विवाह जे.एम चौधरी से हो गया था।
कमला चौधरी बहमुखी प्रतिभा की धनी थीं। वह एक लोकप्रिय लघुकथा लेखिका भी थीं। जातिगत भेदभाव, धर्मनिरपेक्षता, संप्रदायिकता, वर्गभेद, प्रेम, नैतिकता, आचार- व्यवहार उनकी कहानियों के महत्वपूर्ण विषय रहे हैं। महिलाओं से संबंधित विषयों पर उन्होंने अपनी लेखनी को बेझिझक होकर क्रान्तिकारी रूप प्रदान किया है। विधवाओं की ख़राब स्थिति, लैंगिक आसमानता, महिलाओं का मानसिक स्वास्थ्य और महिलाओं का शोषण- स्त्री जीवन से सम्बंधित उनके कुछ महत्वपूर्ण विषय रहे हैं। अपने लेखने के माध्यम से उन्होंने महिलाओं के जीवन की सच्चाई को उकेरा उन्माद (1934), पिकनिक (1936), यात्रा (1947), ‘बेल पत्र’ और ‘प्रसादी कमंडल’ उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं हैं।
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राजनीतिक सफर
कमला चौधरी के राजनीतिक सफर की शुरुआत 1930 में हुई। ब्रिटिश राज के प्रति अपनी पारिवारिक परंपरा को तोड़ते हुए वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गईं। साहित्यिक क्षेत्र में सक्रियता के साथ-साथ, देश को आज़ादी मिलने तक वह सविनय अवज्ञा आंदोलन का महत्वपूर्ण हिस्सा बनी रहीं। इसी दौरान उन्होंने कई बार कारावास तक का सफर भी तय किया।1946 में मेरठ में हुए कांग्रेस के 54वें सम्मेलन में कमला चौधरी पार्टी की वरिष्ठ उपाध्यक्ष बनाई गईं। साल 1952 तक वह भारत की प्रांतीय सरकार की सदस्य के रूप में भी कार्यरत रहीं।
अपने पूरे राजनीतिक करियर के दौरान कमला चौधरी ‘उत्तर प्रदेश राज्य समाज कल्याण सलाहकार बोर्ड’ की सक्रिय सदस्य होने के साथ-साथ ज़िला कांग्रेस कमेटी, शहर कांग्रेस कमेटी से लेकर प्रांतीय महिला कांग्रेस कमेटी के विभिन्न पदों पर सक्रिय रूप से अपनी भागीदारी सुनिश्चित करतीं रहीं। साल 1962 में वह हापुड़ से कांग्रेस की उम्मीदवार के रूप में आम चुनाव जीतीं और तीसरी लोकसभा की सदस्य बनीं। एक सांसद के रूप में कमला चौधरी पांच साल तक लोकसभा की सक्रिय सदस्य बनी रहीं।
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कमला चौधरी के राजनीतिक सफर की शुरुआत 1930 में हुई। ब्रिटिश राज के प्रति अपनी पारिवारिक परंपरा को तोड़ते हुए वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गईं। साहित्यिक क्षेत्र में सक्रियता के साथ-साथ, देश को आज़ादी मिलने तक वह सविनय अवज्ञा आंदोलन का महत्वपूर्ण हिस्सा बनी रहीं।
संविधान निर्माण में भागीदारी
भारतीय संविधान के निर्माण में योगदान देने वाली कमला चौधरी संविधान सभा की वह शक्तिशाली और प्रतिभाशाली महिला सदस्य थीं जिन्होंने संविधान निर्माण में अपना बहुमूल्य योगदान दिया। कमला चौधरी 1947 से 1952 तक संविधान सभा की सक्रिय सदस्य बनी रहीं।
समाज सुधारक के रूप में कमला चौधरी
कमला चौधरी उन समाज सुधारकों और लेखिकाओं में से एक थीं जिन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से महिलाओं के जीवन स्तर में उत्थान के लिए सामाजिक, राजनितिक और सांस्कृतिक धरातल पर सुधार किए। इन्होंने गांवों और पिछड़े क्षेत्रों में लड़कियों को शिक्षित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए।
साल 1970 में कमला चौधरी का मेरठ में निधन हो गया। एक कुशल राजनीतिज्ञ, सफल समाज सुधारक और क्रान्तिकारी लेखिका के रूप में कमला चौधरी भारतीय इतिहास के पन्नों में, आगे आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत बनी रहेंगी। कमला चौधरी का व्यक्तित्व बहुमुखी प्रतिभा से संपन्न था जो भारतीय इतिहास में सदैव उज्जवल रहेगा। भारतीय समाज को एक नयी दिशा देने में कमला चौधरी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आधुनिक भारत की निर्माता के रूप में कमला चौधरी के बहुमूल्य योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।
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