इतिहास कल्पना दत्त: देश की आज़ादी में हिस्सा लेने वाली एक क्रांतिकारी| #IndianWomenInHistory

कल्पना दत्त: देश की आज़ादी में हिस्सा लेने वाली एक क्रांतिकारी| #IndianWomenInHistory

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाएं भी सक्रिय भूमिका निभा रही थीं। इन महिला क्रांतिकारियों में एक प्रमुख नाम कल्पना दत्त का भी है।

देश को स्वतंत्र करवाने में अनेक क्रांतिकारियों का नाम आपने सुना होगा। तमाम नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गए। लेकिन कुछ ऐसे भी क्रांतिकारी थे जिनको न तो वह प्रसिद्धि मिली और न ही उनका नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हो पाया लेकिन उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाएं भी सक्रिय भूमिका निभा रही थीं। इन महिला क्रांतिकारियों में एक प्रमुख नाम कल्पना दत्त का भी है। इन्होंने अंग्रेजो से निडरतापूर्वक लोहा लिया। ऐसे ही एक क्रांतिकारी थीं कल्पना दत्त। कल्पना दत्त ने बंगाल के क्रांतिकारियों के साथ कदम से कदम मिलाकर स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कल्पना दत्त भेष बदलकर क्रांतिकारियों को गोला-बारूद पहुंचाया करती थीं। उन्होंने निशाना लगाने का प्रशिक्षण भी हासिल किया था।

कल्पना और उनके अनेक साथियों ने क्रांतिकारियों के मुकदमों की सुनवाई करनेवाली अदालत के दीवारों को बम से उड़ाने की योजना बनाई लेकिन इस योजना कि भनक पुलिस को लग गई। कल्पना को पुलिस ने एक मर्द के वेश में गिरफ्तार कर लिया लेकिन अपराध साबित न होने से उन्हें रिहा कर दिया गया था। हालांकि, बाद में आशंका की वजह से पुलिस का पहरा उनके घर पर बिठा दिया गया।

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तस्वीर साभार: Get Bengal

कल्पना दत्त का प्रारंभिक जीवन

कल्पना दत्त का जन्म बंगाल के चटगांव के श्रीपुर गांव में 27 जुलाई 1913 को हुआ था। कल्पना के पिता का नाम विनोद बिहारी दत्त था। मध्यमवर्गीय परिवार में जन्म होने के कारण परिवार में पढ़ाई-लिखाई का माहौल था। घर से क्रांतिकारियों की जीवनी को पढ़ने के बाद कल्पना विज्ञान की पढ़ाई करने कलकत्ता के बेथ्यून कॉलेज पहुंचीं। छात्र जीवन में छात्र संघ की गतिविधियों में शामिल रहीं। इस दौरान उनकी मुलाकात बीना दास और प्रीतिलता वड्डेदार जैसी क्रांतिकारी महिलाओं से हुई। उसके बाद क्रांतिकारी गतिविधियों में वह लगातार शामिल होने लगीं। इसी दौरान उनकी मुलाकात मास्टर सूर्यसेन ‘मास्टर दा’ से हुई और वह उनकी पार्टी ‘इंडियन रिपब्लिकन आर्मी’ में शामिल हो गईं और आज़ादी की मुहिम का हिस्सा बन गईं।

कल्पना दत्त ने बंगाल के क्रांतिकारियों के साथ कदम से कदम मिलाकर स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कल्पना दत्त वेश बदलकर क्रांतिकारियों को गोला-बारूद पहुंचाया करती थीं। उन्होंने निशाना लगाने का प्रशिक्षण भी हासिल किया था।

मास्टर सूर्यसेन और उनके क्रांतिकारी साथियों ने जब चटगांव शस्त्रागार लूट को अंजाम दिया। उसके बाद से अंग्रेजों ने कल्पना पर निगरानी को बढ़ा दिया था। कल्पना इसके कारण अपनी पढ़ाई छोड़कर गांव वापस लौट गईं लेकिन उन्होंने मास्टर सूर्यसेन के संगठन का दामन नहीं छोड़ा। इस दौरान संगठन के अनेक क्रांतिकारी नेता गिरफ्तार हुए। इसी दौरान कल्पना ने संगठन के लोगों को अंग्रेजी पुलिस से रिहा करवाने के लिए जेल को उड़ाने की योजना बनाई। कल्पना दत्त ने साल 1931 के सितंबर महीने में चटगांव के यूरोपियन क्लब पर हमले की योजना बनाई। हमले को अंजाम देने के लिए कल्पना ने अपना वेश बदलकर रखा था। हालांकि, पुलिस को इस योजना की भनक लगी और उनको गिरफ्तार कर लिया गया।

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फिर हुई गिरफ्तार, मिली उम्रकैद की सजा

इसके बाद सूर्य सेन को गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन कल्पना दत्त पुलिस को चकमा देकर भागने में पूरी तरह से सफल रहीं। क्रांतिकारी साथी सूर्यसेन के साथ मिलकर दो सालों तक कल्पना विभिन्न आंदोलनों को अंजाम देती रहीं। बाद में कल्पना के क्रांतिकारी साथी सूर्यसेन को गिरफ्तार किया गया और उनके साथियों सहित उनको फांसी की सजा और कल्पना को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। अब कल्पना को उम्रकैद की सजा मिल चुकी थी, वह किसी स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा नहीं बन सकती थी। लेकिन उनकी किस्मत में कुछ और ही लिखा था। 

1937 में प्रदेशों में मंत्री मंडल बनाए गए। तब देश के महात्मा गांधी और रवीन्द्रनाथ टैगोर आदि द्वारा क्रांतिकारियों को छुड़ाने की मुहीम शुरू की गई थी। इस आंदोलन उग्र होने पर अंग्रेजों को बंगाल के कुछ क्रांतिकारियों को रिहा करना पड़ा था। उन्हीं क्रांतिकारियों में कल्पना दत्त भी थीं। जेल से बाहर आने के बाद कल्पना ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई पूरी की। बाद में उनका झुकाव कम्युनिस्ट पार्टी की तरफ भी हुआ। 1943 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव पूरन चंद जोशी के साथ विवाह किया और अब कल्पना दत्त कल्पना जोशी बन गयी थी। इस समय बंगाल भी अकाल और विभाजन से जूझ रहा था। तब कल्पना जोशी ने यहां लोगों के लिए कई राहत कार्य भी किए।

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राजनीति में भी आजमाया हाथ

कल्पना दत्त राजनीति में भी सक्रिय भूमिका में रहीं। साल 1943 में उनको कम्युनिस्ट पार्टी की तरफ से विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार भी बनाया गया लेकिन वह विधानसभा चुनाव जीतने सफल नहीं हो पाई। हालांकि, पार्टी में मतभेदों के वजह से उन्होंने पार्टी छोड़ दी। कल्पना ने सक्रिय राजनीति से दूरी बना लेने के बाद चटगाँव लूट केस पर आधारित अपनी आत्मकथा को लिखा और उसके बाद वह एक सांख्यकी संस्थान में नौकरी करने लगीं। इसके बाद वह बंगाल से दिल्ली आ गईं। यहां वह इंडो सोवियत सांस्कृतिक सोसायटी का हिस्सा बनीं।

उनके निधन के बाद साल 2010 में उन पर एक फिल्म भी फिल्माई गई। फ़िल्म का नाम ‘खेले हम जी जान से’ था। कल्पना जोशी के दो बेटे थे जिनका नाम चांद जोशी और सूरज जोशी था। चांद जोशी की पत्नी मानिनी ने इस फिल्म को ‘डू एंड डाई: चटग्राम विद्रोह’ के नाम लिखा थी। आगे चलकर उन्हें ‘वीर महिला’ के खिताब से भी नवाजा गया। उनका निधन 8 फरवरी 1995 को पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर में हुआ। 

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