नारीवाद फ़ेमिनिस्ट मेंटरिंग: सामाजिक बदलाव की दिशा में एक प्रभावी नारीवादी प्रैक्टिस| नारीवादी चश्मा

फ़ेमिनिस्ट मेंटरिंग: सामाजिक बदलाव की दिशा में एक प्रभावी नारीवादी प्रैक्टिस| नारीवादी चश्मा

अगर हम किसी को लंबे समय के परजीवी के बजाय आत्मनिर्भर बनाना चाहते है तो उसके लिए हमें सलाहकार की नहीं बल्कि फ़ेमिनिस्ट मेंटर बनना होगा।

फ़ेमिनिज़म या नारीवाद के विचार से हम सभी वाक़िफ़ है, जो एक विचारधारा है। नारीवाद एक ऐसा दर्शन है, जिसका उद्देश्य है- समाज में महिलाओं की विशेष स्थिति के कारणों का पता लगाना और उनकी बेहतरी के लिए वैकल्पिक समाधान प्रस्तुत करना। नारीवाद ही बता सकता है कि किस समाज में नारी-सशक्तीकरण के लिए कौन-कौन सी रणनीति अपनाई जानी चाहिए। महिलाएं किसी भी मामले में पुरुषों से कम नहीं हैं, इसके बावजूद उन्हें अवसरों से वंचित कर दिया जाता है। नारीवाद ऐसी तमाम परिस्थितियों के विषय में बताता है। नारीवाद समतामूलक सामाजिक बदलाव की पैरोकारी समावेशी नज़रिए से करता है।

फ़ेमिनिज़म के इसी विचार से जुड़ा है ‘फ़ेमिनिस्ट मेंटरिंग’ का विचार। जब हम नारीवादी विचारधारा को अपनी ज़िंदगी में लागू करना शुरू करते है तो इसका स्वरूप ज़िंदगी के अलग-अलग आयामों में बदलता रहता है, लेकिन इसका मूल या लक्ष्य हमेशा स्पष्ट हो इसबात का ख़ास ख़्याल रखना चाहिए। ऐसे में फ़ेमिनिस्ट मेंटरिंग की अवधारणा और इसको अपनी ज़िंदगी में लागू करना, नारीवादी नज़रिए से सामाजिक बदलाव को मज़बूत करने और सशक्त होने की प्रक्रिया में अहम भूमिका अदा करता है।

क्या है फ़ेमिनिस्ट मेंटरिंग?

शाब्दिक रूप से ‘फ़ेमिनिस्ट मेंटरिंग’ का मतलब है – नारीवादी सलाहकार। लेकिन वास्तव में फ़ेमिनिस्ट मेंटरिंग में नारीवाद की विचारधारा तो है, लेकिन इसमें कोई भी सलाहकार की भूमिका की बजाय साथी की भूमिका में होता है। फ़ेमिनिस्ट मेंटरिंग ऊर्जा और विचारों के आदान-प्रदान की एक प्रक्रिया है, जो फ़ेमिनिस्ट मेंटर और मेंटी के बीच होती है, जो संवाद और चर्चा के माध्यम से नयी ऊर्जा का संचार सशक्तिकरण के माध्यम से नारीवादी आंदोलन को मज़बूत करने का प्रयास करता है। इसमें हम किसी को सलाह नहीं देते है, बल्कि अपने मेंटी की बातें सुनते है और उनको सपोर्ट करते है। ये एक शेयरिंग का रिश्ता है, जिसमें शेयरिंग के माध्यम से समस्याओं और जटिलताओं के हल निकाले जाते है।

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कैसे मदद करती है फ़ेमिनिस्ट मेंटरिंग?

फ़ेमिनिस्ट मेंटरिंग किसी भी इंसान को एक सेफ़ स्पेस उपलब्ध करवाती है, जहां हम बिना किसी डर या झिझक के अपनी बातों को साझा करते है और समस्या या जटिलता के हर पहलू पर बात करते है। फ़ेमिनिस्ट मेंटरिंग के माध्यम से हम खुद अपनी जटिलताओं से निजात पाने के रास्ते तलाशते है और जिसके लिए फ़ेमिनिस्ट मेंटरिंग भावनात्मक रूप से मेंटी की तैयारी करवाता है। फ़ेमिनिस्ट मेंटर की भूमिका हमेशा सामाजिक बदलाव की दिशा में एक सहयोगी के रूप में होती है, जो किसी भी इंसान को अपनी शक्ति को पहचानने में मदद करती है।

कौन हो सकता है फ़ेमिनिस्ट मेंटर?

फ़ेमिनिस्ट मेंटरिंग के लिए किसी डिग्री या कोर्स की नहीं बल्कि जुड़ाव की ज़रूरत होती है। वह एक साथी हो सकता है, कोई दोस्त या रिश्तेदार भी। बस शर्त ये है कि वो मेंटी की बात को बिना जज किए सुने और उसके सभी पहलुओं को जानने, उजागर करने और उनपर स्वस्थ संवाद करें। इसके साथ ही, इसमें मेंटर को इस बात का ख़ास ध्यान रखना चाहिए कि कभी भी वो मेंटी के साथ सलाहकार की भूमिका में न हो। वो हल के ओप्शन पर बात करें, लेकिन उसकी पहल या किसी हल की तरफ़ आगे बढ़ने के लिए किसी भी तरह का दबाव न बनाए।

अगर हम किसी को लंबे समय के परजीवी के बजाय आत्मनिर्भर बनाना चाहते है तो उसके लिए हमें सलाहकार की नहीं बल्कि फ़ेमिनिस्ट मेंटर बनना होगा।

फ़ेमिनिस्ट मेंटरिंग की ख़ास बातें :

  • मेंटर और मेंटी के बीच भावनात्मक जुड़ाव, जो दोनों को सेफ़ स्पेस का एहसास करवाए।  
  • ये एक लंबी प्रक्रिया है, जिसमें लंबा वक्त लग सकता है।
  • ये मेंटी के आत्मविश्वास को बढ़ाने में मदद करता है और परिस्थिति के सामने घुटने टेकने की बजाय उसका सामना करने का संबल देता है।
  • फ़ेमिनिस्ट मेंटरिंग में मेंटर की भूमिका हमेशा ‘साथी’ के रूप में होती है, न की सलाहकार के रूप में।
  • मेंटर को हमेशा मेटी को अपने हिसाब से अपने रास्ते तलाशने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
  • मेंटर कोई भी हो सकता है, उसके लिए कोई डिग्री या ट्रेनिंग की नहीं बल्कि जुड़ाव की ज़रूरत है।
  • मेंटर और मेंटी के बीच का रिश्ता हमेशा बराबरी का होता है, इसमें कोई भी ज्ञानी या अज्ञानी की स्थिति में नहीं होता है।
  • मेंटर हमेशा मेंटी की परिस्थिति को ध्यान में रखकर उनसे सवाल करें और बात करे।

फ़ेमिनिस्ट मेंटरिंग के लिए किसी डिग्री या कोर्स की नहीं बल्कि जुड़ाव की ज़रूरत होती है। वह एक साथी हो सकता है, कोई दोस्त या रिश्तेदार भी।

फ़ेमिनिस्ट मेंटरिंग का सशक्तिकरण कैसे हो सकता है?

याद करिए कि जब आख़िरी बार आपकी ज़िंदगी में कोई दिक़्क़त आयी थी तो आपने किस की सलाह मानी थी? हो सकता है आपने अपने हितैषी का कहा माना हो और ये भी संभव है कि आपने खुद ही अपनी समस्या को हल किया हो। ये दोनों अनुभव में कई बार समस्या हल हो जाती है और कई बार नहीं भी होती है। पर जब आप कभी भी किसी समस्या को लेकर खुद पहल करते है और नेतृत्व करते है तो इसका सीधा प्रभाव आपके आत्मविश्वास पर पड़ता है। इस बात को एक उदाहरण से समझा जा सकता है – प्रिया (बदला हुआ नाम) के साथ उसका पति हमेशा मारपीट करता था। उसको हमेशा प्रिया पर शक रहता था और वो किसी न किसी बहाने से प्रिया को डराकर रखता था। प्रिया ने जब ये बात अपनी दोस्त को बतायी तो उसने प्रिया को थाने में रिपोर्ट करने की सलाह दी। प्रिया ने उसकी सलाह मानी और रिपोर्ट करने चली गयी, लेकिन उसी बीच किसी ने उसके पति को इसके बारे में बताया और उसने धोखे से प्रिया को बहला फुसलाकर अपने गाँव ले गया और उसके सतह ख़ूब मारपीट की। इसके बाद प्रिया अपनी दोस्त को अपना दुश्मन मानने लगी क्योंकि उसका मानना था कि उसकी दोस्त की ग़लत सलाह से उसकी स्थिति और ख़राब हो गयी।

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गाँव में प्रिया अपनी जेठानी से सारी बातें कहती और वो उसकी सारी बातें सुनती। अपनी आपबीती कहते हुए बहुत रोती भी, लेकिन उसकी जेठानी उसे चुप कराने की बजाय हमेशा उससे ये कहती कि तुमने काफ़ी पढ़ाई की है और नौकरी भी की है, तो इस समस्या का हल बेहतर निकाल सकती हो, क्योंकि जिस समस्या को जो झेलता है वही उसका बेहतर हल कर सकता है। जेठानी के बातचीत प्रिया को काफ़ी बल देने लगा और एकदिन जब प्रिया के पति ने फिर से उसके साथ मारपीट तो उसने पुलिस को फ़ोन कर दिया। इसके बाद प्रिया ने उस हिंसा वाले रिश्ते से खुद को बाहर निकाला और आज वो अपने पैरों पर खड़ी है।

इस उदाहरण में प्रिया की जेठानी फ़ेमिनिस्ट मेंटर के रूप में है और उसकी दोस्त सलाहकार के रूप में। जब भी हम सशक्तिकरण की बात करते है तो कभी भी सशक्तिकरण, सलाहकार के साथ संभव नहीं है, क्योंकि अगर हर छोटे-बड़े फ़ैसले में हम सलाहकार का मुँह निहारेंगें तो कभी भी अपने निर्णयों को लेकर सशक्त नहीं हो सकते हैं। बेशक सलाहकार की भूमिका महत्वपूर्ण है। लेकिन अगर हम किसी को लंबे समय के परजीवी के बजाय आत्मनिर्भर बनाना चाहते है तो उसके लिए हमें सलाहकार की नहीं बल्कि फ़ेमिनिस्ट मेंटर बनना होगा।

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