भारतीय संसद की तस्वीर जब सामने उभरती है तो उसमें पुरुष नेताओं की संख्या ज्यादा नज़र आती है। इससे एक बात तो साफ होती है कि संसद तक पहुंचने वाली महिला जनप्रतिनिधियों की संख्या अभी बहुत कम है। आज़ादी के इतने लंबे वक्त बाद भी हमारी संसद के दोंनो सदन में लैंगिक असमानता बनी हुई है। इस वजह से संसद की शब्दावली भी पुरुषों पर केंद्रित है। संसद में भाषा के चयन को लेकर हाल के समय में ही कुछ महत्वपूर्ण बहसें हुई हैं।
हाल ही में द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति चुने जाने के ठीक बाद जेंडर न्यूट्रल शब्द के इस्तेमाल को लेकर चर्चा हुई थी। इसी क्रम में संसद में जेंडर न्यूट्रल भाषा की मांग को लेकर एक पत्र लिखा गया। इस पत्र में संसदीय प्रक्रिया में इस्तेमाल होने वाली भाषा में लैंगिक समानता पर ध्यान देने के लिए कहा गया। ‘द प्रिंट’ में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक़ शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने पिछले महीने निवदेन किया था कि संसद में इस्तेमाल करने वाली मौजूदा भाषा में बदलाव हो।
प्रियंका चतुर्वेदी ने एक पत्र लिखते हुए कहा था कि महिला सांसदों के सवाल पूछने पर ‘नो सर’ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। प्रियंका ने सांसदों को उनके जेंडर के अनुसार संबोधित करने के लिए उचित निर्देश जारी करने का आग्रह किया था। उन्होंने अपने पत्र में पुरुष प्रधान भाषा में बदलाव करने की मांग रखी थी। संसद में ‘नो सर’ शब्द का इस्तेमाल अक्सर सदन में जवाब देने के लिए किया जाता है। संसद में उठाए गए सवालों को जवाब देने के ‘नो सर’ शब्द का इस्तेमाल अक्सर उन मामलों में होता है, जहां उत्तर नकारात्मक होता है।
अब राज्यसभा की ओर से फैसला लिया गया है कि संसद में ‘सर’ शब्द का इस्तेमाल नहीं होगा। प्रियंका चतुर्वेदी ने 20 सितंबर को अपने ट्विटर अकांउट से राज्यसभा सचिवालय से मिले जबाव को साझा किया। इसमें लिखा है, “राज्यसभा में परंपरा, प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियमों के अनुसार संसद की सभी कार्यवाही सभापति को संबोधित होती है। संसदीय सवालों का जवाब देना भी कार्यवाही का हिस्सा होता है। हालांकि, सभी मंत्रियों को सूचित किया जाता है कि अगले सत्र से संसदीय सवालों का जवाब देने के लिए जेंडर न्यूट्रल भाषा का इस्तेमाल किया जाए।”
प्रियंका चतुर्वेदी ने ट्वीट करते हुए लिखा है, “छोटा कदम, बड़ा अंतर। मंत्रालयों से लेकर महिला संसदों के सवालों के जवाब तक में यह सुधार करने के लिए राज्यसभा सचिवालय को धन्यवाद। अब से मंत्रालयों के जवाब जेंडर न्यूट्रल होंगे।” हालांकि, जेंडर न्यूट्रल होना केवल महिलाओं तक सीमित नहीं होना चाहिए। इसमें अलग-अलग लैंगिक पहचान रखने वाले लोगों को भी शामिल करके बदलाव को और अधिक समावेशी बनाने पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
जेंडर न्यूट्रल भाषा होने के क्या हैं मायने
जेंडर न्यूट्रल भाषा से मतलब ऐसी भाषा से है जिसमें सभी तरह की लैंगिक पहचान वाले लोगों को शामिल किया जाए। इसके तहत लिखकर और बोलकर हम ऐसे व्यवहार को चलन में ला सकते हैं जिसमें किसी भी लिंग के व्यक्ति को वरीयता न दी गई हो। ऐसी भाषा के माध्यम से सामाजिक तौर पर बने जेंडर पूर्वाग्रहों को खत्म किया जा सकता है।
प्रियंका चतुर्वेदी ने ट्वीट करते हुए लिखा है, “छोटा कदम, बड़ा अंतर। मंत्रालयों से लेकर महिला संसदों के सवालों के जवाब तक में यह सुधार करने के लिए राज्यसभा सचिवालय को धन्यवाद। अब से मंत्रालयों के जवाब जेंडर न्यूट्रल होंगे।” हालांकि, जेंडर न्यूट्रल होना केवल महिलाओं तक सीमित नहीं होना चाहिए। इसमें अलग-अलग लैंगिक पहचान रखने वाले लोगों को भी शामिल करके बदलाव को और अधिक समावेशी बनाने पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
जेंडर न्यूट्रल शब्दों के इस्तेमाल से हम अपनी भाषा को समावेशी बना सकते हैं। इस भाषा का मुख्य उद्देश्य ऐसे शब्दों को नजरअंदाज करने से है जो लैंगिक भेदभाव और पूर्वाग्रह को खत्म करने में मदद करते हैं। जेंडर न्यूट्रल भाषा के प्रयोग से सेक्सिस्ट भाषा के चलन से भी बचा जा सकता है। यह भाषा सामाजिक बदलाव और लैंगिक समानता को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
दुनिया में किस तरह जेंडर न्यूट्रल भाषा-व्यवहार के लिए उठाए गए कदम
दुनिया के कई संस्थान और संसद में जेंडर न्यूट्रल भाषा के इस्तेमाल के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। यूरोप और अमेरिका के कई संस्थानों ने इस दिशा में पहल की है। हर फोरम में प्रकाशित लेख के अनुसार दुनिया में कई शब्दकोषों (डिक्शनरी) में जेंडर की तय बाइनरी से अलग ऐसे शब्दों को शामिल किया गया है। इस तरह के कदम अंग्रेजी भाषा के साथ-साथ स्वीडिश, फ्रेंच में भी उठाए गए हैं। मेरियम वेबस्टर डिक्शनरी ने “दे” (They) शब्द नॉनबाइनरी (जो लोग अपनी लैंगिक पहचान मेल-फीमेल तक सीमित नहीं रखते) के लिए शामिल किया। साल 2008 में यूरोपियन पार्लियामेंट दुनिया की पहली सरकारी संस्था थी जहां जेंडर न्यूट्रल भाषा को लागू करने के लिए गाइडलाइंस जारी की गई।
जेंडर न्यूट्रल शब्दों के इस्तेमाल से हम अपनी भाषा को समावेशी बना सकते हैं। इस भाषा का मुख्य उद्देश्य ऐसे शब्दों को नजरअंदाज करने से है जो लैंगिक भेदभाव और पूर्वाग्रह को खत्म करने में मदद करते हैं। जेंडर न्यूट्रल भाषा के प्रयोग से सेक्सिस्ट भाषा के चलन से भी बचा जा सकता है।
ठीक इसी तरह साल 2013 में जनवरी में एयर कनाडा ने अपने पैसेंजर के लिए लेडीज और जेंटलमैन संबोधन से अलग एवरीवन (everyone) का इस्तेमाल करना शुरू किया था। साल 2017 में एसोसिएट प्रेस स्टाइलबुक में भी पहली बार (they, pronoun) जेंडर न्यूट्रल के तौर पर इस्तेमाल करने के लिए शामिल किया गया। इस तरह से कुछ राजनीतिक, दफ्तर, और संस्थान ने सभी तरह की लैंगिक पहचान के लोगों के लिए समावेशी व्यवहार और भाषा को बढ़ावा देने के लिए इस तरह के कुछ कदम उठाए।
कार्यस्थल पर जेंडर न्यूट्रल भाषा का इस्तेमाल क्यों ज़रूरी
किसी भी संस्थान में इस्तेमाल होने वाली भाषा महिला-पुरुष की जेंडर की बाइनरी बाहर होनी चाहिए। इससे कार्यस्थल पर लैंगिक समानता स्थापित करने में सहायता मिलती है। अगर सार्वजनिक जगहों, दफ़्तरों और संस्थानों में सभी तरह की लैंगिक पहचान वाले लोगों के लिए समान व्यवहार और विकल्प मौजूद होंगे तो उससे लैंगिक समानता को बढ़ावा मिलेगा। ऑफिस में जेंडर न्यूट्रल के आधार पर नियम बनने से उस संस्थान में समावेशी नीतियों का निर्माण किया जा सकता है। एक रिसर्च के अनुसार 42 प्रतिशत नॉन-बाइनरी कर्मचारी अपने कार्यस्थल पर नकारात्मक अनुभवों का सामना करते हैं। यूएस ट्रांस सर्वे 2015 के अनुसार 20 प्रतिशत नॉन-बाइनरी कर्मचारी ने माना है कि उन्हें अपनी नौकरी केवल अपनी पहचना की वजह से गंवानी पड़ी।
कार्यस्थल पर लैंगिक असमानता को मिटाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाने की ज़रूरत है। भाषा और नीतियों को जेंडर-न्यूट्रल बनाने की पहल करनी चाहिए। किसी काल्पनिकता को दिखाने के लिए भी उसके, उसका और उनका सर्वनाम का प्रयोग करें। ऐसे शब्दों के इस्तेमाल करने से बचें जो सेक्स, जेंडर और लैंगिक पहचान को जाहिर करते हो। वैवाहिक और पारिवारिक रिश्तों को लेकर धारणा को न बनाएं। लैंगिक पहचान को लेकर बनी पूर्वाग्रह का अनुसरण न करें।