मुंबई की एक अदालत ने पिछले हफ्ते एक 25 वर्षीय व्यक्ति को एक नाबालिग लड़की को ‘आइटम’ कहकर उसका यौन उत्पीड़न करने के लिए दोषी ठहराया। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के व्यवहार से सख्ती से निपटने की ज़रूरत है। ऐसे सड़क किनारे ‘रोमियो’ को महिलाओं की सुरक्षा के लिए सबक सिखाने की ज़रूरत है।
इस केस में लड़की के पड़ोस में रहनेवाले व्यक्ति पर आरोप था कि साल 2015 में जब सर्वाइवर 16 साल की थी, तब आरोपी व्यक्ति उसे स्कूल आने-जाने के दौरान उत्पीड़ित करता था। कई बार वह उसे ‘आइटम’ कहकर भी उत्पीड़ित करता था। सर्वाइवर आरोपी को ऐसा न करने के लिए कहती थी लेकिन उसने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया। चूंकि सर्वाइवर नहीं चाहती थी कि मामला झगड़े में बदल जाए, इसलिए उसने अपने परिवार के सदस्यों को आरोपी द्वारा उसके द्वारा किए जा रहे उत्पीड़न के बारे में सूचित नहीं किया। 14 जुलाई 2015 को, जब सर्वाइवर स्कूल से घर जा रही थी, गली में अपने दोस्तों के साथ आरोपी उसके पीछे आया, उसके बाल खींचे और कहा “क्या आइटम किधर जा रही हो?”
विशेष अदालत के न्यायाधीश एस जे अंसारी ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा, “आइटम आमतौर पर लड़कों द्वारा अपमानजनक तरीके से लड़कियों को संबोधित करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है क्योंकि यह उन्हें यौन तरीके से ऑब्जेक्टिफाई करता है।”
सर्वाइवर को शर्मिंदगी महसूस हुई तो उसने आरोपी को ऐसा न करने के लिए कहा। इस पर उसने उसे गाली देना शुरू कर दिया और उससे कहा कि वह जो भी कर सकती है वह करे क्योंकि वह उसे किसी भी तरह से नुकसान नहीं पहुंचा सकती। इसके बाद सर्वाइवर ने पुलिस हेल्पलाइन नंबर 100 पर डायल किया और मदद मांगी। जब तक पुलिस पहुंची, तब तक आरोपी भाग चुके थे। उसने घर जाकर अपने पिता को सूचित किया, जिसके बाद उसने थाने में शिकायत दर्ज करवाई। आरोपी पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 354 (यौन उत्पीड़न), 354 (डी) (पीछा करना), 506 (आपराधिक धमकी), और 504 (जानबूझकर अपमान) के साथ-साथ यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा 12 के तहत केस दर्ज किया गया।
विशेष अदालत के न्यायाधीश एसजे अंसारी ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा, “आइटम आमतौर पर लड़कों द्वारा अपमानजनक तरीके से लड़कियों को संबोधित करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है क्योंकि यह उन्हें यौन तरीके से ऑब्जेक्टिफाई करता है।” न्यायाधीश ने आगे कहा कि यह “उसकी शील भंग करने” के उसके इरादे का संकेत देता है। अदालत ने फैसला सुनाया कि नाबालिग को ‘आइटम’ कहना और उसके बाल खींचना उसकी शील भंग करने के बराबर है, जो भारतीय दंड संहिता की धारा 354 के तहत दंडनीय है।
महिलाओं का ऑब्जेक्टिफिकेशन
हमारे भारतीय समाज सहित पूरी दुनिया विकासवाद, पुनर्जागरण और पश्चिमीकरण जैसे शक्तिशाली शब्दों में विश्वास करती है। लेकिन वास्तव में यह तब तक प्राप्त नहीं होगा जब तक हम अपनी महिलाओं पर आपत्ति करना बंद नहीं करते। प्रश्न यह है कि जिस आधुनिकीकरण पर हम सभी गर्व महसूस करते हैं, वह हमें बाधाओं को तोड़कर आगे बढ़ने का एहसास करवाता है, लेकिन क्या हमने वास्तव में सही मायने में आधुनिकीकरण किया है?
इसके लिए कुछ उदाहरण को ध्यान में रखकर समझा जा सकता है। टेलीविजन पर आने-वाले डियोड्रेंट के विज्ञापन में महिलाएं कैसे दिखाई जाती हैं? वे आमतौर पर महिलाओं को अप्सरा के रूप में चित्रित करते हैं या फिर महिला को इतना कमज़ोर इंसान के रूप में दिखाया जाता है जो कि केवल एक डियो की खुशबू से आकर्षित हो जाती है और अपने आपको पुरुष के सामने प्रस्तुत कर देती है। पुरुषों के अंडरवियर के ऐड में महिलाओं की क्या आवश्यकता है? पुरुषों के अंडरवियर विज्ञापन महिलाओं को कामुक प्राणी के रूप में चित्रित करते हैं, जिन्हें अपने शरीर तक यौन पहुंच प्रदान करने के लिए केवल एक ट्रिगर (सही अंडरवियर) की आवश्यकता होती है। अंडरवियर का मूल कार्य पहननेवाले को सहज रखना है। लेकिन कुछ अंडरवियर कंपनियों के विज्ञापन में अंडरवियर पर महिलाओं की लिपस्टिक के निशान दिखाए जाते हैं।
भारतीय सिनेमा का महिलाओं को ‘आइटम’ बनाने में अहम रोल
कई दशकों से भारतीय सिनेमा गाने और डांस सीक्वेंस के लिए जाना जाता है। ये गाने समय के साथ-साथ फिल्मों में बढ़ते जा रहे हैं और साथ ही अश्लील रूप भी धारण कर रहे हैं। फिल्मों में बिना किसी ज़रूरत के आइटम सॉन्ग डाल दिए जाते हैं । हालांकि, आइटम सॉन्ग का फिल्मों की कहानी के साथ कोई लेना-देना नहीं होता लेकिन फिर भी इन्हें फिल्म के हिस्से के रूप में दिखाए जाते हैं। भारतीय फिल्मों में आइटम गीत महिलाओं को यौन वस्तुओं के रूप में चित्रित करते हैं जिन्हें देखा और कामुकता से छुआ जाता है और नर्तकियों को इसका आनंद लेते हुए दिखाया जाता है। वे पुरुषों द्वारा किए जानेवाले का मज़ा ले रही होती हैं। ये गीत अनावश्यक, आक्रामक हैं और अगर देखा जाए तो ये समाज के लिए खतरनाक भी हो सकते हैं। इसलिए आम ज़िंदगी में भी पुरुष यही सोचते हैं कि “क्यों नहीं?”
इन गीतों के बोल आमतौर पर भद्दे, अपमानजनक होते हैं और इनके द्वारा महिलाओं को कामुक वस्तु के रूप में चित्रित किया जाता है। इन गीतों में एक महिला के साथ एक यौन वस्तु के रूप में व्यवहार किया जाता है, जबकि उसके आस-पास के शराबी पुरुष उसका यौन उत्पीड़न करते हैं या उस पर फब्तियां कसते हैं। कभी-कभी इन गीतों में एक महिला स्वेच्छा से अपने आपको आसपास के पुरुषों को पेश करती है।
ये गाने महिलाओं को ऐसे बढ़ावा देते हैं जैसे कि वे उत्पीड़न का आनंद ले रही हों, लेकिन वास्तव में कोई भी महिला ऐसे हिंसक वातावरण में नृत्य का आनंद नहीं ले सकती है। अवचेतन रूप से आइटम गीत समाज को प्रभावित करते हैं और व्यवहार के औचित्य को कैटकॉलिंग से लेकर बलात्कार तक ले जा सकते हैं।
अक्सर ऐसा देखा गया है कि हमारे नेताओं द्वारा भी औरतों के ऊपर भद्दी टिप्पणियां की जाती रही हैं। साल 2020 के चुनाव के समय एक रैली को संबोधित करते हुए मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ने बीजेपी नेता इमरती देवी को ‘आइटम’ कह दिया था। हालांकि, बाद में इलेक्शन कमीशन ने उनसे इस बारे में जवाब भी मांगा।
देश में रोज़ाना बढ़ते महिला हिंसा के मामले इन मुद्दों से कहीं न कहीं जुड़े होते हैं। हमारे देश का क़ानून तो सख्त है लेकिन उस क़ानून के ज़रिये आरोपियों को सजा दिलाना बड़ा मुश्किल है। कभी सबूतों के अभाव में तो कभी इज़्ज़त बचने की खातिर लड़की पक्ष का चुप रह जानेवाला रवैया आरोपियों को बढ़ावा देते हैं। इसी पर मुंबई कोर्ट ने टिप्पणी की कि इस तरह के अपराधों से सख्ती से निपटने की ज़रूरत है क्योंकि महिलाओं को उनके अनुचित व्यवहार से बचाने के लिए सड़क पर होनेवाले उत्पीड़न के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की ज़रूरत है, इसे गंभीरता से लेने की ज़रूरत है।। कोर्ट ने आरोपी लड़के को एक वर्ष और छह महीने की अवधि की सजा सुनाई।