इंटरसेक्शनलजेंडर जेंडर आधारित पूर्वाग्रहों के कारण तकनीक के क्षेत्र में पिछड़ती औरतें

जेंडर आधारित पूर्वाग्रहों के कारण तकनीक के क्षेत्र में पिछड़ती औरतें

टेक्नोलॉजी महिलाओं की समझ के बाहर का विषय है, महिलाएं इस बारे में ज्यादा जागरूक नहीं होती है जैसी बातों के आधार पर उन्हें आगे बढ़ने से रोका जाता है। इसी वजह से दुनिया भर में तकनीक से जुड़े कामों में महिलाओं और पुरुषों की संख्या में बड़ा अंतर बना हुआ है। 

दुनियाभर में अपनी पहचान दर्ज करवाने के लिए महिलाएं संघर्षरत हैं। लेकिन लैंगिक भेदभाव और जेंडर आधारित पूर्वाग्रहों के कारण वे हर क्षेत्र में अनेक तरह की चुनौतियों का सामना कर रही हैं। भले तकनीक से जुड़े हर काम में महिलाएं अपनी उपलब्धियां दर्ज करवा रही हैं बावजूद इसके उनके काम को लेकर आज भी पूर्वाग्रह बरकरार हैं। इन पूर्वाग्रहों की वजह से ही तकनीक के क्षेत्र में महिलाओं को कई तरह के भेदभावों का सामना करना पड़ता है। “टेक्नोलॉजी महिलाओं की समझ के बाहर का विषय है, महिलाएं इस बारे में ज्यादा जागरूक नहीं होती हैं,” जैसी बातों के आधार पर उन्हें आगे बढ़ने से रोका जाता है। इसी वजह से दुनियाभर में तकनीक से जुड़े कामों में महिलाओं और पुरुषों की संख्या में एक बड़ा अंतर बना हुआ है। 

कई अध्ययन बताते हैं कि टेक इंडस्ट्री में काम करने वालों में 75 प्रतिशत संख्या पुरुषों की है। विज्ञान और तकनीक से जुड़े क्षेत्रों में मौजूद लैंगिक असमानता को 2030 तक खत्म करने के लिए यूरोपीय यूनियन को सकल घरेलू उत्पाद में प्रति व्यक्ति 0.7 से 0.9 तक वृद्धि करनी होगी। अगर असमानता खत्म नहीं होती है तो 2050 तक 2.2 से 3.0 तक प्रति व्यक्ति वृद्धि करनी होगी। फोर्ब्स.कॉम में प्रकाशित लेख के मुताबिक यूके की टेक इंडस्ट्री में मौजूदा महिलाओं की संख्या में से लगभग 50 फीसदी ने भेदभाव का सामना किया है।

भारत में तकनीकी क्षेत्र में लैंगिक समानता हासिल करने के लिए भी लंबे समय का इंतजार करना पड़ेगा। तकनीकी क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत कम है। द मिंट में प्रकाशित लेख के अनुसार पिछले कुछ समय से तकनीकी क्षेत्र में काम करने वाली भारतीय महिलाओं की संख्या बढ़ी है लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि लैंगिक समानता अभी भी दूर का लक्ष्य है। लेख में कहा गया है कि इस साल के फरवरी के मध्य तक तकनीकी क्षेत्र की नौकरियों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व केवल 15 प्रतिशत था।

टेक के क्षेत्र में एंट्री से लेकर शीर्ष पद तक पहुंचने में महिलाओं को ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है। डिग्री से लेकर पद, वेतन और कार्यक्षेत्र में कई तरह के भेदभावों का सामना करना पड़ता है।

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भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रोद्योगिकी मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक आईटी और इससे जुड़ी अन्य इंडस्ट्री में बड़े स्तर पर रोज़गार पैदा हुआ है। 2021 में जारी रिपोर्ट के आकलन के अनुसार 4.47 मिलियन प्रोफेशनल्स को रोज़गार देने का अनुमान है। इसमें वित्त वर्ष 2019-20 में अतिरिक्त 1,38,000 लोगों के शामिल होने की संभावना जताई गई। लेकिन इस पूरी इंडस्ट्री में केवल 36 फीसद (1.4 मिलयन) महिला कर्मचारी ही हैं। डेटा क्वेस्ट नामक वेबसाइट में प्रकाशित लेख के मुताबिक़ भारत में 43 फीसद स्टेम (STEM) डिग्री धारक हैं लेकिन कार्यस्थल में महिलाओं की संख्या उचित अनुपात में नहीं है। आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस, डेटा साइंस और साइबर सिक्यूरिटी जैसे क्षेत्रों में लैंगिक असमानता बहुत अधिक है। ये क्षेत्र परंपरागत रूप से पुरुष प्रधान रहे हैं।

सॉफ्टवेयर डेवलेपमेंट और उससे जुड़े क्षेत्र में महिलाओं के काम को गंभीरता से नहीं लिया जाता है। उन्हें प्रमोशन के लिए पुरुषों के मुकाबले दोगुनी मेहनत करनी पड़ती है। की ग्लोबल वर्कफोर्स इनसाइट्स के अनुसार स्टेम में 81 फीसद महिलाओं ने प्रदर्शन के मूल्याकंन में लैंगिक पूर्वाग्रह का सामना किया है। बड़ी संख्या में महिलाओं ने महसूस किया है कि कंपनी ने उन्हें शीर्ष पद की पेशकश नहीं करेंगी। नैशनल सेंटर फॉर वीमन एंड इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (एनसीडब्लूयआईटी) के अनुसार अमेरिका में 2020 में चीफ टेक्नीकल ऑफिसर के पद पर केवल 13 फीसदी महिलाएं हैं। साल 2021 में कंप्यूटिंग वर्कफोर्स में 26 फीसदी महिलाएं थीं। इसमें केवल तीन फीसदी ब्लैक और अफ्रीकन अमेरीकी महिलाएं हैं। कंप्यूटिंग वर्कफोर्स में सात फीसदी एशियन महिलाएं है। दो फीसदी कंप्यूटिंग वर्कफोर्स में हिस्पैनिक और लैटिना महिलाएं हैं। 

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टेक के क्षेत्र में एंट्री से लेकर शीर्ष पद तक पहुंचने में महिलाओं को ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है। डिग्री से लेकर पद, वेतन और कार्यक्षेत्र में कई तरह के भेदभावों का सामना करना पड़ता है। कम्प्यूटर साइंस की पढ़ाई करने से लेकर आगे नौकरी में सर्वाइव करने के लिए कई तरह की चुनौतियों को पार करना पड़ता है। नैशनल साइंस फाउंडेशन के अनुसार डिग्री हासिल करने वाली केवल 38 फीसदी महिलाएं ही कंप्यूटर साइंस के क्षेत्र में काम कर पाती है जबकि पुरुषों में यह दर 53 फीसद है। ठीक इसी तरह इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने वाली 24 फीसदी महिलाएं ही कार्यक्षेत्र में जा पाती है।

महिलाओं को केवल जेंडर के बनाए खांचे की वजह से कार्यस्थल पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है। ख़ासतौर पर टेक फील्ड में पुरुषों का प्रतिनिधित्व अधिक होने की वजह से महिलाओं की संख्या बहुत कम है। इस वजह से कार्यस्थल का माहौल में सहजता नहीं आ पाती है। कई तरह के अध्ययनों में यह बात सामने आ चुकी है कि संख्या में अंतर की वजह से महिलाओं को प्रमोशन लेने में पुरुषों के मुकाबले ज्यादा मेहनत की ज़रूरत पड़ती है।

हर स्तर पर असमानता

वर्ल्ड इकनॉमी फोरम की एक रिपोर्ट के अनुसार टेक क्षेत्र में काम करने वाली 57 फीसदी महिलाओं ने कार्यस्थल पर लैंगिक भेदभाव का सामना किया है। पुरुषों में यह दर 10 फीसदी थी। ब्लैक लोगों ने अन्य समूहों के मुकाबले ज्यादा भेदभाव का सामना किया है। इक्विलिटी इन टेक, डाइस की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया है कि लगभग 48 फीसदी औरतों ने तकनीकी योग्यताओं के बावजूद भेदभाव देखा है। रिपोर्ट में 35 फीसदी महिलाएं अपने वर्तमान सैलरी से नाखुश थीं। वेतन में नस्ल के आधार पर असंतोष सबसे ज्यादा ब्लैक महिलाएं थीं। टेक क्षेत्र में काम करने वाले पुरुषों के मुकाबले महिलाएं अपनी वर्तमान भूमिका से कम खुश पाई गई।

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टेक कंपनियों में काम करने वाली 72 फीसदी महिलाओं का मानना है कि टेक फील्ड में ब्रो कल्चर (भाई संस्कृति) है। टेक कंपनियों में महिलाएं 83 फीसद सेल्स, 80 फीसद मार्केटिंग और 63 फीसदी महिलाएं आईटी या इंजीनियरिंग में हैं। रिपोर्ट के अनुसार 78 फीसदी महिलाओं ने कहा है कि उन्हें खुद को साबित करने के लिए अपने पुरुष सहयोगी के मुकाबले कड़ी मेहनत करनी पड़ती है।

जेंडर पे गैप

डायवर्सिटी इन टेक.कॉम.यूके में प्रकाशित लेख के मुताबिक 78 फीसदी बड़े संस्थानों ने स्वीकार किया है कि टेक्नोलॉजी सेक्टर में जेंडर पे गैप मौजूद है। यहां पुरुष, महिलाओं के मुकाबले ज्यादा कमाते हैं। महिलाएं समान भूमिका में होने के बावजूद अपने पुरुष सहयोगी से 28 फीसदी कम कमा पाती हैं। फोर्ब्स इंडिया में प्रकाशित लेख के मुताबिक भारत में महिला नौकरी में अपने पुरुष सहयोगी के मुकाबले 20 फीसद कम कमाती हैं। भारत में शीर्ष पदों पर मौजूद महिलाएं भी पुरुषों से कम वेतन पाती हैं। तमाम तरह के भेदभाव की वजह से ही महिलाएं किसी भी क्षेत्र में शीर्ष पद तक पहुंचने में पीछे रह जाती हैं। महिलाएं जब तक ऊंचे पद पर नहीं पहुंचती हैं तब तक महिला कर्मचारियों पर एक सकारात्मक असर नहीं पड़ेगा। एक संस्थान में जहां 50 प्रतिशत तक सीनियर लीडरशीप में महिलाएं शामिल हैं वहां समान वेतन, महिला कर्मचारी के लंबे समय तक काम करने का समय और काम से अधिक संतुष्टि देखी गई है।

सहयोग से हो सकता है सुधार

तमाम तरह के आंकड़े दिखाते हैं कि टेक के क्षेत्र में लैंगिक आधार पर समावेशी, विविधता और समानता की कितनी कमी है। विशेषाधिकार के आधार पर पुरुष किस तरह तकनीकी क्षेत्रों में पैदा अवसरों पर अपनी पकड़ मजबूत करते आ रहे हैं। महिलाओं के लिए पढ़ाई से लेकर कार्यस्थल तक बनाई गई इस असमानता को खत्म करने के लिए कई स्तर पर सुधार करने की आवश्यकता है। संस्थान में किसी भी तरह के जेंडर के आधार पर होने वाले भेदभाव के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाकर, उस पर बातचीत करके लोगों को जागरूक किया जा सकता है।

महिला कर्मचारियों के लिए एक बेहतर माहौल बनाने के लिए हर स्तर से बदलाव और कुछ पहल करने की ज़रूरत है। मीटिंग में महिलाओं को उनकी बात रखने का पूरा मौका देना और उसका ध्यान से सुनना सबसे ज्यादा ज़रूरी है। मेंटरशिप में महिलाओं की भागीदारी लैंगिक पूर्वाग्रह को खत्म करने में बहुत महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। महिलाओं का बात करना, उनकी राय रखना, शीर्षपद पर होना हर तरह ने उन पारंपरिक अवधारणाओं को पीछे छोड़ने का काम करती है जिसके तहत महिलाओं की योग्यताओं पर सवाल उठाए जाते हैं। 

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