मानसून सिर्फ बारिश ही नहीं अपने साथ बाढ़ भी लेकर आ रहा है, गर्मी का रिकॉर्ड हर साल बढ़ रहा है, पहाड़ों में भूस्खलन बार-बार हो रहा है, सूखा, शीत लहर, चक्रवात, तूफान की संख्या साल दर साल बढ़ रही है। यह भारत समेत दुनियाभर में प्रकृति के बिगड़ते स्वास्थ्य का नतीज़ा है। यह लगातार विकराल रूप लेकर धरती के अस्तित्व और मनुष्य के जीवन के लिए खतरा बनता जा रहा है। हालांकि, यह भी स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन से उपजे संकट का कारण भी खुद इंसान ही है। यही वजह है कि साल 2022 में जनवरी से लेकर सितंबर के महीने में भारत में रोज़ एक आपदा आई है।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट और डाउन टू अर्थ के “क्लाइमेट इंडिया 2022 की एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स” के नाम से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साल 1 जनवरी से लेकर 30 सितंबर तक अतिविषम मौसमी घटनाएं दर्ज की गई हैं। इस वजह से देश के किसी न किसी हिस्से में हीटवेव, कोल्डवेव, तूफान, भारी बारिश, लैंडस्लाईड, बिजली गिरने जैसी घटनाएं दर्ज की गई हैं। इसका मतलब यह निकलता है कि इन नौ महीनों में 88 फीसद से अधिक समय में देश के किसी न किसी क्षेत्र में अतिविषमता मौसम की घटनाएं घटित हुई है। इसी का नतीजा है कि इस दौरान 2,755 लोगों की जानें चली गई।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदू
1 जनवरी से 30 सितंबर 2022 के 273 दिन में से 241 दिन देश में प्राकृतिक आपदाओं का सामना किया है यानी लगभग हर दिन भारत ने प्राकृतिक आपदाओं का सामना किया है। इन अतिविषम मौसमी घटनाओं से इस दौरान 2000 से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। 18 लाख हेक्टेयर फसल क्षेत्र प्रभावित हुआ है। 70,000 के करीब पशु मारे गए। यही नहीं, 4 लाख से अधिक घर पूरी तरह बर्बाद हो गए। रिपोर्ट में यह कहा गया है कि प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली क्षति का यह अनुमान शायद कम करके आंका गया है क्योंकि प्रत्येक आपदा की घटना का नुकसान का अनुमान या मिलान नहीं किया गया है।
रिपोर्ट के अनुसार मध्य प्रदेश आपदाओं से सबसे प्रभावित राज्य रहा है। मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा अतिविषम मौसम के बदलाव से होने वाली घटनाएं दर्ज की गई हैं। हालांकि, हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक आपदाओं की वजह से 359 सबसे ज्यादा लोगों की जान गई हैं। असम में सबसे ज्यादा घरों को नुकसान और जानवरों की मौतें दर्ज की गई हैं। 198 में से 195 दिनों में देश के केंद्रीय और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में सबसे अधिक प्राकृतिक आपदाएं घटित हुई हैं। इस वजह से मध्य भारत के क्षेत्र में सबसे अधिक 887 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। इसके बाद पूर्व और उत्तर पूर्व भारत में 783 लोगों की जान गई है।
1 जनवरी से 30 सितंबर 2022 के 273 दिन में से 242 दिन देश में प्राकृतिक आपदाओं का सामना किया है यानी लगभग हर दिन भारत ने प्राकृतिक आपदाओं का सामना किया है। इन नौ महीनों में 88 फीसद से अधिक समय में देश के किसी न किसी क्षेत्र में अतिविषमता मौसम की घटनाएं घटित हुई है। इसी का नतीजा है कि इस दौरान 2,755 लोगों की जानें चली गई।
121 साल के इतिहास में गर्मी का रिकॉर्ड
यह जलवायु परिवर्तन का ही असर है कि भारत ने साल 1901 के बाद से 2022 में अपना सातवां सबसे नम जनवरी का महीना दर्ज किया। यही नहीं, मार्च में इस साल सबसे ज्यादा गर्मी देखी गई। 121 सालों के इतिहास में तीसरा सबसे बड़ा सूखा देखा गया। इस साल गर्मी के सारे रिकॉर्ड टूटते गए। साल 1901 के बाद से देश में तीसरा सबसे गर्म अप्रैल, ग्यारहवां सबसे गर्म अगस्त और आठवीं बार सबसे गर्म सितंबर का महीना रहा। 121 सालों में उत्तर पूर्व भारत में सबसे गर्म और शुष्क जुलाई रिकॉर्ड किया गया। इसी क्षेत्र में साल 2022 में दूसरा सबसे गर्म अगस्त और चौथा सबसे गर्म सितंबर का महीना देखा गया।
पिछले नौ महीनों में सभी तरह की अतिविषम मौसम से जुड़ी घटनाएं घटित हुई। 30 राज्यों में बिजली और तूफान के कारण 773 जिंदगियां खत्म हो गई। इसी तरह से मानसून के तीन महीने जून से अगस्त में हर दिन देश के कुछ हिस्सों में भारी से अधिक बारिश होने के संकेत मिले हैं। यही वजह है कि बाढ़ तबाही हर क्षेत्र में देखी गई। असम में बाढ़ की वजह से पूरे क्षेत्र में तबाही, जानमाल का नुकसान हुआ।
बढ़ते तापमान और भारी वर्षा की वजह से भारत को अपनी जीडीपी का 2.8 फीसदी खर्च करना पड़ सकता है। वर्ल्ड बैंक के आंकलन के अनुसार जलवायु परिवर्तन निम्न स्तर पर जीवन जीनेवाले लोगों को अधिक प्रभावित करता है। भारत की लगभग आधी आबादी पर इसका भीषण असर है।
बढ़ते तापमान की भीषण समस्या के परिणाम इस साल कई रूपों में देखने को मिले हैं। हीटवेव्स की वजह से 45 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। रिपोर्ट में यह बात भी कही गई है कि उत्तर भारत में अधिक तापमान का किसानों, निर्माण श्रमिकों पर पड़नेवाले असर के आधिकारिक डेटा को इकट्ठा नहीं किया गया है। लू की वजह से किसान और मजदूर वर्ग ने भीषण गर्मी का सामना किया है। देश में चक्रवात की वजह से होने वाली मौतों की संख्या कम थी। इसकी वजह तकनीक रही है। समय पर चक्रवात आने की घोषणा के बाद तैयारी की वजह से लोगों की जान बचाने में सफलता हासिल हुई है। उपलब्ध डेटा के अनुसार केवल दो लोगों ने अपनी जान गंवायी।
भारत के कई क्षेत्रों में तेज बारिश, भूस्खलन और बाढ़ की घटनाएं घटित हुई, जिस वजह से 1214 मौते दर्ज हुईं। 20 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 273 दिनों में से 66 दिन भारत में हीटवेव्स यानी लू का प्रकोप रहा। गर्म हवाओं की वजह से 45 लोगों की मृत्यु हुईं।
जलवायु परिवर्तन और आर्थिक नुकसान
प्राकृतिक आपदाओं की वजह से जान-माल का बड़ा नुकसान देखने को पड़ता है। मनुष्य का जीवन बुरी तरह प्रभावित होता है। बढ़ते तापमान और भारी वर्षा की वजह से भारत को अपनी जीडीपी का 2.8 फीसदी खर्च करना पड़ सकता है। वर्ल्ड बैंक के आकलन के अनुसार जलवायु परिवर्तन निम्न स्तर पर जीवन जीने वाले लोगों को अधिक प्रभावित करता है। यह भारत की आबादी का लगभग आधे भाग पर इसका भीषण असर है। भारत सरकार के अनुमान के अनुसार अतिविषम तापमान के बदलाव की वजह से खरीफ और रबी की फसलों के मौसम के दौरान किसानों की आय में 4.3 और 4.1 प्रतिशत का नुकसान हो रहा है। जलवायु परिवर्तन इस तरह से हर तरह से मनुष्य के जीवन पर असर डाल रहा है।
रिपोर्ट जारी करते हुए सेंटर फॉर साइंस और एनवायरमेंट की महानिदेशक सुनीता नारायण का कहना है, “2022 में देश ने जो देखा है यह गर्म होती दुनिया के लिए नया असमान्य है। हम स्पष्ट तौर पर अतिविषम घटनाओं में तेजी से बढ़ोतरी, तीव्रता और बार-बार होने की प्रक्रिया में बढ़ोतरी देख रहे हैं।” साथ ही उनका कहना है, “यह जलवायु परिवर्तन का वाटर मार्क है। यह केवल किसी एक घटना के बारे में नहीं है बल्कि लगातार ऐसी घटनाओं में वृद्धि के बारे में है। जो हमनें 100 सालों में अतिविषम मौसम में बदलाव के तौर पर देखा है अब पांच साल में एक बार या उससे भी कम समय में देख रहे हैं।”