समाजपर्यावरण ब्यूटी इंडस्ट्री की ग्रोथ से बढ़ रहा है धरती पर प्लास्टिक का बोझ

ब्यूटी इंडस्ट्री की ग्रोथ से बढ़ रहा है धरती पर प्लास्टिक का बोझ

तेजी से बढ़ती ब्यूटी इंडस्ट्री और उससे पैदा होता कचरा आज एक बड़ी समस्या बन गया है। एक आकलन के अनुसार हर साल ग्लोबल कॉस्मैटिक इंडस्ट्री से 120 बिलियन पैकजिंग प्रोडक्ट्स का उत्पादन होता है जिनमें से ज्यादातर को रिसाइकल नहीं किया जा सकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार 2050 तक 12,000 मैट्रिक टन्स प्लास्टिक कचरा धरती पर होगा।

सेल्फ केयर के नाम पर इस्तेमाल होने वाले ब्यूटी प्रॉडक्ट्स अक्सर ये दावे करते नज़र आते हैं कि इनके इस्तेमाल करने से रंगत निखर जाती है, बाल चमकीले हो जाते हैं और परफ्यूम से पूरा माहौल खुशनुमा हो जाता है। यही वजह है कि सुंदरता और केयर के नाम पर इन प्रॉडक्ट्स का वैश्विक स्तर पर एक बड़ा बाजार है। इसकी वजह से आम से लेकर ख़ास व्यक्ति के घर में इनकी रंगीन ट्यूब्स, बोतलें, पाउच लाइन से लगे दिख जाएंगे। प्लास्टिक से बनी ब्यूटी प्रोडक्ट्स की खाली होती बोतल के बाद कहानी में दूसरा मोड़ आता है। 

इंसान की सुंदरता और स्वच्छता को बढ़ाने का दावा करने वाले प्रॉडक्ट्स की खाली बोतलें, पाउच आदि प्रकृति की सुंदरता और स्वच्छता दोंनो को बर्बाद करने का काम करते हैं। तेजी से बढ़ती ब्यूटी इंडस्ट्री और उससे पैदा होता कचरा आज एक बड़ी समस्या बन गया है। एक आंकलन के अनुसार हर साल ग्लोबल कॉस्मैटिक इंडस्ट्री से 120 बिलियन यूनिट पैकजिंग प्रोडक्ट्स का उत्पादन होता है जिनमें से ज्यादातर को रिसाइकल नहीं किया जा सकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार साल 2050 तक 12 बिलियन मैट्रिक टन प्लास्टिक कचरा धरती पर होगा। 

साल 1960 से बड़े स्तर पर प्लास्टिक का उत्पादन शुरू हुआ था। पूरी दुनिया में इस्तेमाल होनेवाले प्लास्टिक का केवल 9 फीसदी ही रिसाइकल हो पाता है। प्लास्टिक पैकेजिंग के टुकड़े लैडफिल में छोड़ दिए जाते हैं। उनके माइक्रोप्लास्टिक के टुकड़े समुद्र में समा जाते हैं। साल 2018 में अकेले अमेरिका ने ब्यूटी प्रोडक्ट्स से 7.9 बिलियन कठोर कचरा पैदा किया था।

दुनियाभर में ब्यूटी इंडस्ट्री की ग्रोथ लगातार बढ़ रही है जो पर्यावरण के लिए एक खतरनाक स्थिति बना रही है। साल 2020 में ग्लोबल कॉस्मेटिक मार्केट 341.1 बिलियन यूएस डॉलर आंकी गई थी जिसके साल 2030 तक 560.50 बिलियन यूएस डॉलर तक बढ़ने की उम्मीद है। कॉस्मेटिक बाजार का यह इजाफा सीधा-सीधा प्लास्टिक प्रदूषण को बढ़ाने का काम करेगा। मौजूदा प्लास्टिक का 22-43 फीसदी कचरा लैंडफिल में खत्म किया जाता है और 10-20 मिलियन टन कचरा हर साल समुद्र में फेंक दिया जाता है। 

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धरती पर इस्तेमाल होने वाली प्लास्टिक का केवल 9 फीसदी ही रिसाइकल हो पाता है। प्लास्टिक पैकेजिंग के टुकड़े लैडफिल में छोड़ दिए जाते है। उनके माइक्रोप्लास्टिक के टुकड़े समुद्र में समा जाते हैं। साल 2018 में अकेले अमेरिका ने ब्यूटी प्रोडक्ट्स से पैदा हुए 7.9 बिलियन कठोर कचरा पैदा किया था। दुनियाभर में ब्यूटी इंडस्ट्री को ग्रोथ लगातार बढ़ रही है जो पर्यावरण के लिए एक खतरनाक स्थिति बना रही है।

प्लास्टिक का कचरा क्यों है बड़ी समस्या

प्लास्टिक, पर्यावरण प्रदूषण का एक बड़ा कारक है। सिंगल यूज़ प्लास्टिक केवल एक बार इस्तेमाल होनेवाले प्लास्टिक को प्रदूषण का प्राइमरी सोर्स माना जाता है। एक उपभोक्ता के तौर पर हर साल हम आधा मिलियन के करीब प्लास्टिक का इस्तेमाल कर लेते हैं। इसका एक बड़ा हिस्सा कचरे के तौर पर धरती पर छोड़ दिया जाता है। केवल अमेरिका ही हर साल 30 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा पैदा करता है। साल 2010 में हुए एक अध्ययन के मुताबिक यूके में प्रतिदिन एक आदमी औसत 0.22 किलो प्लास्टिक से जुड़ा कचरा पैदा करता है। 

सेल्फ केयर प्रॉडक्ट्स में मौजूद है माइक्रो प्लास्टिक

प्लास्टिक के कचरे में केवल प्रॉडक्ट्स की खाली बोतल और पाउच ही नहीं बल्कि माइक्रो प्लास्टिक यानी पांच मिलीमीटर के छोटे-छोटे कण भी शामिल होते हैं। ये कॉसमेटिक, क्लीनिंग प्रॉडक्ट्स, पर्सनल केयर प्रॉडक्ट्स जैसे टूथपेस्ट और साबुन में इस्तेमाल होते हैं। तमाम तकनीक के बावजूद वाटर फिल्टर सिस्टम इस तरह से डिजाइन नहीं किया गया है जो माइक्रोप्लास्टिक के टुकड़ों को छान सकें। पानी में घुले ये कण समुद्र को प्रदूषित करते है। ये मछली, पक्षियों और समुद्री जानवरों तक पहुंच जाते हैं और उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं। उसके बाद फूड चेन के ज़रिये मनुष्य के अंदर भी पहुंत जाते हैं। 

इन सूक्ष्म प्लास्टिक के कणों के सेवन से खुद इंसान नहीं बच पाया है। इस तरह के कण बंद बोतल पानी में पाए गए हैं जो कैंसर जैसी भयानक बीमारी होने का एक कारण बन सकते हैं। यही नहीं एक रिसर्च में वैज्ञानिकों ने प्लास्टिक के छोटे कणों को बारिश में भी पाया है। नेचर में प्रकाशित रिसर्च के मुताबिक वैज्ञानिको ने फ्रांस के पाइरेनीस पहाड़ियों पर माइक्रो प्लास्टिक के छोटे कणों, फाइबर और फिल्म्स को पाया है।

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भारत में ब्यूटी प्रॉडक्ट्स से पैदा होता कचरा

सुंदर बनाने और सेल्फ केयर के नाम पर भारत ब्यूटी प्रॉडक्ट्स का एक उभरता बाज़ार है जिसमें हर साल तेज़ी देखी जा रही है। साल 2021 में ब्यूटी और पर्सनल केयर मार्केट में सबसे अधिक रेवन्यू इकठ्ठा करने में विश्व में भारत चौथे नंबर पर रहा है। द मिंट में प्रकाशित लेख के मुताबिक ब्यूटी बिजनेस तेजी से आगे बढ़ रहा है जिसके 500 बिलियन यूएस डॉलर यानी 35.5 ट्रिलियन रुपये से बढ़कर 2023 में 820 बिलियन यूएस डॉलर होने का अनुमान है। यूरोमॉनिटर इंटरनैशनल स्टडी के अनुसार भारत 14 बिलियन यूएस डॉलर की ब्रिकी के साथ दुनिया में आठवें पायदान पर है। 

दुनिया हो या भारत ब्यूटी प्रॉडक्ट्स का जितना बाज़ार बढ़ेगा उसका पर्यावरण पर उतना ही बुरा असर पड़ेगा। फेमिना में छपे एक लेख के अनुसार जीरो वेस्ट यूरोप के अध्ययन के मुताबिक साल 2018 में अकेले भारत ने 142 बिलियन पैकेजिंग यूनिट का उत्पाद किया। कई रिपोर्ट्स के अनुसार भारत में पैकेजिंग इंडस्ट्री तेजी से बढ़ रही है। भारत में हर बड़ी कंपनी हर वर्ग के लोगों तक अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए छोटे पाउच में ब्यूटी प्रॉडक्ट को बाज़ार में उतार रही है जिससे सिंगल यूज प्लास्टिक का कचरा तेजी से बढ़ रहा है। 

बिजनेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित लेख के अनुसार भारत मे प्लास्टिक का इस्तेमाल पिछले पांच सालों में दोगुना हो गया है। हर साल इसमें तेज़ी देखी जा रही है। प्लास्टिक कचरा सालाना 21.8 की दर से बढ़ रहा है। भारत में प्लास्टिक का कचरा साल 2018-19 में 30.59 लाख टन था जो 2019-20 में 34 लाख टन पाया गया था।

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भारत मे प्लास्टिक का इस्तेमाल पिछले पांच सालों में दुगना हो गया है। हर साल इसमें तेजी देखी जा रही है। साल 2020 में देश में करीब 35 लाख टन प्लास्टिक कचरा तैयार हुआ है। इस तरह की खपत सालाना 21.8 दर से बढ़ रही है। भारत में प्लाटिक का कचरा साल 2018-19 में 30.59 लाख टन था जो 2019-20 में 34 लाख टन पाया गया था।

समस्या के समाधान के लिए किए जा रहे प्रयास

दुनियाभर में प्लास्टिक की बोतलों और इससे बने अन्य प्रॉडक्ट की खपत सबसे अधिक है। इस समस्या को गंभीरता से समझते हुए वैश्विक स्तर पर जागरूकता फैलाई जा रही है और कुछ ज़रूरी कदम उठाने के दावे लगातार किये जा रहे है। इसके लिए रिफिलिंग, पैकेजिंग मैटिरियल में बदलाव वे तरीके हैं जिससे प्लास्टिक की जगह ईको-फ्रेंडली पैकेजिंग का इस्तेमाल किया जा सकता है। प्रॉडक्ट्स में बदलाव लाकर प्लास्टिक के कचरे से भी बचा जा सकता है। शैंपू की लिक्विड फॉर्म से बेहतर है उसे पाउडर या साबुन के तौर पर बनाया जाए। इस तरह के बदलाव लाकर प्लास्टिक से होने वाली पैकेजिंग से बचा जा सकता है। दूसरी ओर प्लास्टिक के विकल्प पूरी तरह से सबकी पहुंच में होना बहुत ज़रूरी है।  

भारत में प्लास्टिक बैन कितना कारगर

भारत में प्लास्टिक के कचरे को रोकने के लिए उस पर प्रतिबंध लगाने की योजनाएं जारी होती रहती हैं। केंद्र से लेकर राज्य स्तर पर सरकारें प्लास्टिक बंद करने के बड़े आह्वान करती नज़र आती हैं। बावजूद इन सबके देश की राजधानी दिल्ली में ही प्लास्टिक के कूड़े के अंबार देखने को मिलते हैं। हाल ही में देश में दोबारा से सिंगल यूज़ प्लास्टिक यानी एक बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक पर रोक लगाई है। 

हमेशा की तरह बड़े पैमाने पर सिंगल यूज़ प्लास्टिक के बैन का ऐलान तो कर दिया गया है लेकिन नीतियों की कमी साफ देखने को मिलती है। भारत जैसे गरीब देश में प्लास्टिक को खत्म करने के लिए जिस तरह की नीतियों की आवश्यकता है वह इस तरह के प्रतिबंध की घोषणाओं से साफ़ गायब है। दूसरी ओर इस तरह के बैन निम्न आय वर्ग के लोगों के लिए एक परेशानी बनते हैं। छोटे-लघु उद्योग वाले लोगों को इसका ख़ामियाजा सबसे ज्यादा भुगतना पड़ता है। उन पर इसका आर्थिक भार पड़ता है। ईको-फ्रेंडली के नाम जो बाज़ार स्थापित किया जा रहा है उसकी पहुंच बहुत सीमित विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग तक है। बैन से पहले अन्य विकल्प न सामने लाना सरकार की नीयत को दर्शाता है।

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तस्वीर साभारः Living Cruelty free

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