शिक्षण संस्थान वे जगह है जो देश के भविष्य का निर्माण करते हैं। जो भेदभाव की धारणा को खत्म करने का काम करते है। लेकिन देश में लड़कियों को घर और बाहर दोंनो जगह अनेक रूढ़िवादी नियमों का सामना करना पड़ता है। हॉस्टल में रहने वाली छात्राओं के लिए कर्फ्यू नाइट उन्हीं में से एक है जिसके चलते लड़कियों को सुरक्षा का हवाला देकर कैंपस में लक्ष्मण रेखा खीच दी जाती है।
हाल में इसी तरह के एक मामले में केरल हाईकोर्ट ने कहा कॉलेज में आवासीय छात्रों पर सुरक्षा के नाम पर उनके अधिकारों को प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है। अदालत ने ऐसा हॉस्टल में रहने वाली छात्राओं पर लगे नाइट कर्फ्यू के नियम पर कहा है। साथ ही गर्ल्स हॉस्टल में कर्फ्यू पर सवाल उठाते हुए केरल हाईकोर्ट ने नराजगी जताते हुए कैंपस में लड़कियों के लिए चलने वाले प्रतिबंध पर प्रशासन से सवाल पूछा है। सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा है कि यह तभी हो सकता है जब कोई ज़रूरी वजह हो।
द न्यूज़ मिनट में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक केरल हाईकोर्ट कोझीकोड में गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में नाइट कर्फ्यू से जुड़े कुछ छात्राओं की याचिका पर विचार कर रहा था। इस याचिका में रात में 9.30 बजे के बाद छात्रावास से बाहर जाने पर रोक लगाने का विरोध किया गया है। मेडिकल कॉलेज की छात्राएं नवंबर की शुरूआत से इसका विरोध कर रही है। उनका कहना है कि कागजों पर यह हॉस्टल कर्फ्यू सभी के लिए था लेकिन छात्राओं पर सख्ती से इसका पालन किया गया। नियम के बावजूद पुरुष अपनी इच्छा से आने-जाने के लिए स्वतंत्र थे।
छात्राओं के लिए नाइट कर्फ्यू पर जस्टिस रामचंद्रन ने कहा कि किसी भी तरह के नाइट कर्फ्यू को लगाने से पहले ध्यान रखना चाहिए। “किसी भी पितृसत्तावाद के चलते यहां तक कि जेंडर के आधार पर सुरक्षा की पेशकश को नजरअंदाज करना होगा। क्योंकि लड़कियां, लड़को की तरह अपनी देखभाल करने में पूरी तरह समर्थ है। अगर ऐसा नहीं है तो यह राज्य और सार्वजनिक प्राधिकरणों का प्रयास होना चाहिए कि उन्हें बंद करने के बजाय उन्हें सक्षम बनाना चाहिए।” साथ ही अदालत ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के नियमों को ध्यान में रखने का भी आदेश दिया है।
इस याचिका में रात में 9.30 बजे के बाद छात्रावास से बाहर जाने पर रोक लगाने का विरोध किया गया है। मेडिकल कॉलेज की छात्राएं नवंबर की शुरूआत से इसका विरोध कर रही है। उनका कहना है कि कागजों पर यह हॉस्टल कर्फ्यू सभी के लिए था लेकिन छात्राओं पर सख्ती से इसका पालन किया गया।
इस तरह की पाबंदी नियमों के है विपरीत
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के उच्चतर शिक्षण संस्थान में लैंगिक हिंसा में महिला कर्मचारियों एवं छात्रों के लैंगिक उत्पीड़न के निराकरण, निषेध और सुधार 2015 में जारी विनियम के अनुसार छात्रों की तुलना में छात्रावास में स्थिति छात्राओं की सुरक्षा के मामले में भेदभावपूर्ण नियमों का आधार नहीं बनाया जाना चाहिए। सुरक्षा संबंधी नीतियों के तहत उनके आने-जाने की स्वतंत्रता में कटौती नहीं की जा सकती है। नाइट कर्फ्यू जैसे नियम विनियम, 2015 के खंड 3.2 (13) का उल्लंघन करते है। यूजीसी ने अपनी नियमावली स्पष्ट रूप से छात्राओं की बंदिश के विचार को अमान्य माना है बावजूद इसके देश के बहुत से शिक्षण संस्थानों में लड़कियों के लिए रात्रि में हॉस्टल में आवाजाही के नियम मौजूद है।
हॉस्टल कर्फ्यू में इस तरह की पांबदियां लैंगिक भेदभाव, मोरल पुलिसिंग, रूढ़िवादी सोच का प्रतीक है। स्कूल और कॉलेज जहां शिक्षा को माध्यम से लड़के और लड़की में बनाए भेदभाव को जड़ से खत्म करने का सबसे मजबूत माध्यम माना जाता है वहीं शिक्षण संस्थानों के ऐसे नियम पितृसत्ता को पोसते दिखते हैं। भारत में लड़कियों को पढ़ाई और घर से बाहर दूर रहकर पढ़ने के लिए तो बहुत ही कठनि संघर्ष का सामना करना पड़ता है। सुरक्षा के नाम पर शिक्षण संस्थानों में इस तरह की पांबदियां छात्राओं को उनके अधिकारों को पाने में भी बाधा लाता है।
अदालतों के कभी पक्ष तो कभी विपक्ष में रहें फैसले
हालांकि पूर्व में भी अदालतों की ओर से छात्राओं पर हॉस्टल में रात्रि कर्फ्यू पर लगी रोक को लेकर कई फैसले आ चुके हैं। पिछले साल ही लाइव वायर की ख़बर के अनुसार केरल हाईकोर्ट में जस्टिस ए. मुहम्मद मुस्ताक ने श्री केरल वर्मा कॉलेज से जुड़े गर्ल्स हॉस्टल के नियमों पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि पुरुष छात्रावासों में ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है। लड़कियों को भी आजादी का अधिकार है। अदालत ने कहा था कि नैतिक पितृसत्ता एक ऐसी चीज है जिसे खत्म किया जाना चाहिए। इससे अलग बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में सुरक्षा को महत्व देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने छात्राओं की मांग के विपरीत फैसला भी सुना चुकी हैं। द हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक़ कर्फ्यू का समय छात्राओं की सुरक्षा के लिए है। अवासीय छात्राओं पर लगी पांबदी को सही भी ठहरा चुकी है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के उच्चतर शिक्षण संस्थान में लैंगिक हिंसा में महिला कर्मचारियों एवं छात्रों के लैंगिक उत्पीड़न के निराकरण, निषेध और सुधार 2015 में जारी विनियम के अनुसार छात्रों की तुलना में छात्रावास में स्थिति छात्राओं की सुरक्षा के मामले में भेदभावपूर्ण नियमों का आधार नहीं बनाया जाना चाहिए। सुरक्षा संबंधी नीतियों के तहत उनके आने-जाने की स्वतंत्रता में कटौती नहीं की जा सकती है।
हॉस्टल के नियमों को लेकर आंदोलन
हॉस्टल में भेदभावपूर्ण नियमों के चलते देश के विभिन्न स्कूल और विश्वविद्यालय में छात्राओं के लिए समान अधिकारों को लेकर आंदोलन भी हो चुका है। देशभर के शिक्षण संस्थानों के परिसरों में पुरुषों और महिलाओं के छात्रवासों के असमान नियमों के ख़िलाफ़ ‘पिंजरा तोड’ के तहत व्यापक प्रदर्शन हुए थे। यह अभियान 2015 में दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय से शुरू हुआ था। पिंजरा तोड़ो आंदोलन के बाद कई संस्थानों से लड़कियों की सुरक्षा के नाम बनाने नियमों को वापस ले लिया था।
शिक्षा को हासिल करना महिलाओं के लिए संघर्ष रहा है यही वजह है कि देश के आज भी अनेक विद्यालयों और संस्थानों में छात्राओं को लेकर पांबदियां लगी हुई है। कहीं न कही से ऐसी ख़बरे लगातार सामने आती रहती है जहां छात्राएं कर्फ्यू नाइट का विरोध करती नज़र आती है। न्यू इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक पिछले साल कोच्चि में लड़कियां हॉस्टल में कर्फ्यू टाइमिंग के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया था। इस तरह के प्रदर्शन देश की शिक्षा व्यवस्था का पितृसत्तात्मक चेहरा है जहां लड़कियों को हॉस्टल में पहुंचकर अनेक पाबंदियों का सामना करना पड़ता है और लड़ना पड़ता है। उन्हें प्रशासन के बेतुके तर्कों का सामना करना पड़ता है। दूसरी ओर यह रवैया छात्रों के जीवन को नियंत्रित करना दिखाता है।