समाजकानून और नीति इलाहाबाद हाई कोर्ट की टिप्पणी और सोशल मीडिया पर महिला विरोधी अभियान

इलाहाबाद हाई कोर्ट की टिप्पणी और सोशल मीडिया पर महिला विरोधी अभियान

इस फैसले के बाद सोशल मीडिया पर एक ट्रेंड चल निकला। दहेज के केस से प्रताड़ित पुरुषों की कहानी और महिलाओं के द्वारा झूठे केस से जुड़ी तर्कहीन बातें दी जाने लगी। ट्विटर पर #Genderbaisedlaws और #498A के तहत महिलाओं को शादी के नाम पर मर्दों से पैसा वसूलने का जरिया बनाने की बात कही गई।

हाल ही में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक फैसला सुनाते हुए कहा है कि दहेज उत्पीड़न के मामलों में एफआईआर दर्ज होने के कूलिंग पीरियड से पहले आरोपी को गिरफ्तार नहीं करना चाहिए। अदालत ने अपने आदेश में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498-ए के गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए यह आदेश दिया है। लाइव लॉ में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गाइडलाइन्स जारी करते हुए कहा है कि इस धारा के तहत एफआईआर दर्ज होने के दो महीने के ‘कूलिंग ऑफ पीरियड’ के दौरान आरोपी के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई और उसकी गिरफ्तारी नहीं की जानी चाहिए। इस दौरान अदालत ने आदेश देते हुए कहा है कि इस तरह के मामले को परिवार कल्याण कमेटी (एफडब्ल्यूसी) को भेजने चाहिए।

बता दें कि कूलिंग पीरियड वह समय होता है जिस दौरान लिए गए फैसले पर दोबारा सोचा जाता है। मेरियम वेबस्टर डिक्शनरी के अनुसार ‘कूलिंग ऑफ पीरियड’ समय की वह अवधि होती है जो किसी काम को करने और समझौते होने से पहले होती है। 

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जस्टिस राहुल चतुर्वेदी की पीठ ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए का बिना सोचे समझे बड़े पैमाने पर गलत इस्तेमाल हो रहा है। यह हमारी सदियों की पुरानी शादी की संस्था की पारंपरिक खुशबू को पूरी तरह से खत्म कर रही है। 

आईपीसी की धारा 498ए क्या है

भारतीय दंड सहिता की धारा 498-ए के अनुसार अगर किसी महिला के पति या पति के रिश्तेदार ने महिला के साथ क्रूरता की है तो इसके लिए उसे तीन साल की सजा भी हो सकती है। सजा के साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता है। अदालत ने इसी धारा के गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए कुछ दिशानिर्देश दिए हैं। जस्टिस राहुल चतुर्वेदी की पीठ ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए का बिना सोचे समझे बड़े पैमाने पर गलत इस्तेमाल हो रहा है। यह हमारी सदियों की पुरानी शादी की संस्था की पारंपरिक खुशबू को पूरी तरह से खत्म कर रही है। 

क्या है पूरा मामला

अदालत में तीन लोगों (शिकायतकर्ता के ससुराल वालों) द्वारा रिवीजन पिटीशन पर सुनवाई हो रही थी जिसमें सेशन कोर्ट के ऑर्डर को चुनौती दी गई थी। आईपीसी की धारा 498-ए सहित अन्य धाराओं के साथ उनके ख़िलाफ़ दर्ज अपराधों को खारिज कर दिया गया। यह एफआईआर पत्नी ने अपने पति और ससुरालवालों के ख़िलाफ़ दर्ज कराई थी जिसमें उसने उसके ससुर उससे शारीरिक संबंध बनाना चाहते थे और इतना ही नहीं उसके देवर ने भी उसे शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने की कोशिश की के आरोप लगाए थे। इसके अलावा उसने लगातार अतिरिक्त दहेज की मांग का आरोप भी लगाया। उसके मना करने पर उसे बुरी तरह लातों से पीटा गया।

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अदालत ने इस पूरे विषय पर क्या कहा है

पत्नी के द्वारा रजिस्टर्ड एफआईआर में लिखी गई कहानी को सुनते हुए अदालत ने कहा है, “एफआईआर न केवल घृणित है, बल्कि अपने ही पति और ससुराल वालों के ख़िलाफ़ गंदे और घृणित आरोपों से भरी हुई है। अदालत ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा है बिना किसी शर्म या हिचकिचाहट के घटना का वर्णन, शिकायतकर्ता के दिमाग में जहर और उसकी मानसिक स्थिति को दिखाता है। उसने बिना कुछ बोले, घटना को बड़ा करते हुए अदालत के सामने तमाशा किया।”

इस फैसले के बाद सोशल मीडिया पर एक ट्रेंड चल निकला। दहेज के केस से प्रताड़ित पुरुषों की कहानी और महिलाओं के द्वारा झूठे केस से जुड़ी तर्कहीन बातें दी जाने लगी। ट्विटर पर #Genderbaisedlaws और #498A के तहत महिलाओं को शादी के नाम पर मर्दों से पैसा वसूलने का जरिया बनाने की बात कही गई। कहा गया कि ज्यादातर पढ़ी-लिखी महिलाएं अधिकारों के नाम पर पुरुषों को फंसाती हैं।

आगे अदालत ने निचली अदालत के आरोपी को बरी करने के आदेश में कोई गलती नहीं पाई क्योंकि अदालत का विचार था कि पत्नी जांच के समय भी उसके द्वारा लगाए गए आरोपों को साबित करने में असमर्थ थी और ये आरोप झूठे पाए गए थे। अदालत ने एफआईआर में शिकायतकर्ता के द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली भाषा के स्तर के पर सवाल किए है। अदालत ने कहा कि एफआईआर की भाषा सभ्य होनी चाहिए। कोर्ट ने आगे सोशल एक्शन फोरम फोर मानव अधिकार बनाम भारत संघ के केस के फैसले से पति और परिवार के सभी सदस्यों पर सामान्य और व्यापक आरोप लगाने की बढ़ती प्रवृति को देखते हुए कुछ प्रस्ताव रखें।

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महिलाओं के विरोध में खड़ा किया फिर से एक ट्रेंड

इस फैसले के बाद सोशल मीडिया पर एक ट्रेंड चल निकला। दहेज के केस से प्रताड़ित पुरुषों की कहानी और महिलाओं के द्वारा झूठे केस से जुड़ी तर्कहीन बातें दी जाने लगी। ट्विटर पर #Genderbaisedlaws और #498A के तहत महिलाओं को शादी के नाम पर मर्दों से पैसा वसूलने का जरिया बनाने की बात कही गई। कहा गया कि ज्यादातर पढ़ी-लिखी महिलाएं अधिकारों के नाम पर पुरुषों को फंसाती हैं। ट्विटर खंगालने पर हमें पुरुषों के अधिकारों के लिए उनको न्याय दिलाने के लिए कई हैंडिल्स बने हुए नज़र आते हैं। इन पर पुरुषों ने #498A के मुद्दे पर अपने विचार लिखे हुए हैं। साथ ही इन ट्वीट्स में महिला विरोधी और अपमानजनक भाषा का भी इस्तेमाल किया हुआ है।

सोशल मीडिया पर पूरा एक बड़ा वर्ग है जो समय-समय पर महिला के विरोध में ट्रेंड चलाकर और प्रतिक्रियाएं जाहिर कर पितृसत्तात्मक व्यवस्था को बनाए रखने की पैरवी करता है। इन हैंडल्स को देखकर ऐसा लगता है कि जैसे कानून में पुरुषों की बात सुनी ही नहीं जाती है और वे न्याय से वंचित है। यही नहीं इसके साथ-साथ महिला के शिक्षित होने को भी कोसा जाता है। इन हैंडल्स के मुताबिक महिलाओं को ही सारे अधिकार मिले हैं और वे उसका गलत इस्तेमाल कर पुरुषों का जीवन बर्बाद कर रही हैं।

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दहेज प्रथा और उससे जुड़ी हत्या के आंकडें

भारत में शादियों का जो महत्व है उतना ही ज्यादा उसमें दिए जाने वाले दहेज का है। रीति-रिवाज़ प्रथाओं के नाम पर जारी यह लेन-देन एक शान मानी जाती है। जो जितना दहेज देगा और जिसे जितना मिलेगा दोनों पर वाहवाही बंटोरी जाती है। इसी प्रथा की वजह से भारत में हर दिन 20 महिलाएं अपनी जान गंवा देती हैं। आंकड़ों के अनुसार औसत हर घंटे एक महिला की दहेज की वजह से मौत होती है। 

शादीशुदा महिलाओं पर उसके ससुराल पक्ष की ओर से दहेज की मांग को लेकर उसकी हत्या, उत्पीड़न और यातना देकर उसे आत्महत्या के लिए बाध्य करना दहेज हत्या के अंतर्गत आता है। दहेज और उससे जुड़े मामलों में भारत दुनिया में सबसे ऊपर है। नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार साल 2020 में भारत में 10,366 मामले दर्ज हुए थे। दहेज प्रथा से संबंधित हत्या के 6,966 मामले दर्ज हुए थे।

भारत में तमाम कानूनी प्रावधान होने के बावजूद दहेज प्रथा से जुड़ी हत्याओं की संख्या बढ़ती जा रही हैं। साल 2005 से 2020 के आंकड़े की बात करें तो यह संख्या तब से लेकर अबतक बढ़ी हैं। 2005 में 6,787 दहेज की वजह से हत्या के मामले दर्ज हुए थे, जो 2011 आते-आते 8,618 पर पहुंत गई थी। 2014 में 8,455 महिलाएं की दहेज की वजह से मौत हुई थी।  2017 में 7,466, 2018 में 7,167 और 2019 में  7,141 महिलाओं को दहेज प्रथा की वजह से जान गंवानी पड़ी। 

हमारे समाज में शादी और उसमें दिया जानेवाला दहेज लगातार चल रहा है। आए दिन अख़बारों और मीडिया में दहेज प्रथा से होने वाली मौतों की ख़बर सामने आती हैं। कानून होने के बावजूद हर रोज महिलाएं दहेज की रवायत न बरकरार रखने की वजह से जान गंवा देती हैं। अदालत के एक फैसले के बाद दहेज प्रथा से जुड़े अन्य केसों को झूठा करार दिया जाने लगा। ऐसा दिखाया जा रहा है जैसे दहेज निषेध कानून की वजह से पुरुषों को फंसाकर उनसे पैसा लिया जा रहा है। आंकड़ों को नज़रअंदाज कर एक आदेश को नज़ीर बनाकर देश में दहेज प्रथा की समस्या और उससे होने वाली मौतों को नकारने का काम किया जा रहा है। 

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तस्वीर साभार: India Legal, The Hindu

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