भारतीय सिनेमा शुरू से ही ‘हीरोवादी’ सिनेमा रहा है। ज्यादातर फिल्में एक पुरुष किरदार को केंद्र में रखकर ही बनाई जाती हैं। एक महिला का किरदार उस फिल्म में उसकी महबूबा, माँ या बहन के रूप में दिखाया जाता रहा है। आज भी अधिकतर फिल्मों में महिला का किरदार सिर्फ इसलिए रखा जाता है ताकि कहानी को आगे बढ़ाया जा सके वरना फिल्म का हीरो इतना ‘महान और ताकतवर’ होता है कि उसे किसी भी दूसरे किरदार की जरूरत नहीं है, अकेले ही वह सब कुछ कर सकता है। इसीलिए आज के इस लेख में हम साल 2022 की कुछ ऐसी फिल्मों के बारे में बात करेंगे जो महिला किरदार को केंद्र में रखकर बनाई गई हैं।
1- गंगूबाई काठियावाड़ी
गंगूबाई काठियावाड़ी संजयलीला भंसाली द्वारा निर्देशित एक हिंदी फिल्म है, जो एक जीवनी पर आधारित है। फिल्म की मुख्य भूमिका में आलिया भट्ट हैं। यह फिल्म गंगा हरजीवनदास काठियावाड़ी पर हुसैन जैदी द्वारा लिखित पुस्तक ‘माफिया क्वीन्स ऑफ मुंबई’ से प्रेरित है। इस फिल्म में संपन्न घर से ताल्लुक रखनेवाली लड़की गंगा अभिनेत्री बनना चाहती है और इसके लिए वह अपने साथी रमणीक के साथ बम्बई भाग जाती है। इसके बाद गंगा को पता चलता है कि रमणीक ने उसे बेच दिया होता है। यह फिल्म कई युवा महिलाओं की कहानी बताती है, जिन्हें कुछ पैसों के लिए सेक्स वर्क के काम के लिए बेच दिया जाता है लेकिन किस तरह वे समाज से लड़ते हुए अपनी अलग पहचान बनाती हैं। मेनस्ट्रीम फिल्मों के मुद्दे से इतर यह फिल्म समाज में सेक्सवर्कर्स के प्रति हो रहे अन्याय को दिखाती है।
2- डबल एक्सएल
डबल एक्सएल फिल्म दो ऐसी महिलाओं की कहानी है जिनका सपना कुछ बड़ा हासिल करने का है लेकिन पितृसत्तात्मक समाज की ‘परफेक्ट बॉडी साइज़’ में फिट न होने के कारण उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। सत्रम रमणी द्वारा निर्देशित इस फिल्म में सोनाक्षी सिन्हा और हुमा कुरैशी मुख्य किरदार में हैं। यह राजश्री त्रिवेदी और दिल्ली की सायरा खन्ना की कहानी है जिनको ओवरवेट होने के कारण अपने सपनों को पूरा करने में कई परेशानियों का सामना करन पड़ता है। जहां सायरा एक फैशन डिजाइनर बनना चाहती है तो वहीं दूसरी तरफ राजश्री को उसके वजन के चलते स्पोर्ट्स चैनल का एंकर नहीं बनाया जाता है। हमारे समाज में किस प्रकार महिलाओं को अक्सर बॉडी शेमिंग की वजह से मानसिक यातना झेलनी पड़ती है यह इस फिल्म का केंद्र है। इस फिल्म की खासियत यह है कि यह एक जरूरी मुद्दे को उठाती है। हालांकि, बॉडी स्टीरियोटाइप को तोड़ते हुए यह फिल्म खुद ही एक प्रकार का स्टीरियोटाइप दिखाते हुए नज़र आती है। फिल्म की कमज़ोर कहानी, किरदारों के साथ न्याय नहीं करती।
3-रेने (Natchathiram Nagargiradhu)
Natchathiram Nagargiradhu एक तमिल फिल्म है जिसे पा रंजीत द्वारा डायरेक्ट किया गया है। इस फिल्म में रेने का किरदार दुशारा वियजन ने निभाया है। रेने का किरदार फिल्म में एक आंबडेकरवादी है जो जातिगत भेदभाव, गैरबराबरी, प्रेम पर अपने सशक्त विचार सामने रखती है।
4- शाबाश मिट्ठू
श्रीजीत मुखर्जी द्वारा निर्देशित फिल्म ‘शाबाश मिट्ठू’ भारत की महिला राष्ट्रीय क्रिकेट टीम की पूर्व टेस्ट और एकदिवसीय कप्तान मिताली राज के जीवन पर आधारित इस फिल्म में तापसी पन्नू मुख्य किरदार में हैं। यह फिल्म हमें दिखाती है कि एक ऐसे समाज में जहां लड़कियों के बाहर जाने तक को लेकर आपत्ति जताई जाती है, वहां किस प्रकार एक महिला इन सब रूढ़ियों को तोड़कर महिला क्रिकेट टीम को पूरी दुनिया में नयी पहचान दिलाती है।
5- जहां चार यार
इस फिल्म में स्वरा भास्कर , शिखा तलसानिया, मेहर विज, पूजा चोपड़ा मुख्य भूमिका में हैं और इस फिल्म का निर्देशन कमल पांडे ने किया है । इस फिल्म में महिला सशक्तिकरण को एक अलग नजरिये से पेश किया गया जहां घरों की चारदीवारों में बंद महिलाएं आज़ाद होने के सपने देखती हैं और अपनी उबाऊ ज़िंदगी के बारे में शिकायतें करती नज़र आती हैं। इस फिल्म में एक सीन है जहां फिल्म की एक किरदार कहती है, “बताओ चुड़ैलो , कौन-कौन अपने पति परमेश्वर के साथ कहां-कहां घूमकर आया? इस पर दूसरी किरदार कहती है, एक बार गए थे वैष्णो देवी। इस पर दूसरी किरदार कहती है, हमारी किस्मत में स्विट्जरलैंड होता तो हम भर-भर के ये चुडियां कच्छे और धोतियां नहीं घिस रहे होते।” हालांकि फिल्म में महिला किरदार होने के बावजूद यह महिलाओं के नज़रिये को दिखाने में नाकामयाब नज़र आती है।
6- अनन्या
प्रताप फड़ द्वारा निर्देशित अनन्या एक मराठी भाषी फिल्म है। इस फिल्म में मुख्य किरदार में हुरता दुर्गुले हैं जो अनन्या की भूमिका निभा रही हैं। इस फिल्म में अनन्या के साथ एक दुर्घटना हो जाती है जिसके बाद उसका जीवन पूरी तरह बदल जाता है। वह दुर्घटना के बाद अपने दोनों हाथों को गवा देती हैं और अपने रोजमर्रा के काम करने के लिए भी उसे अपने दोस्त या घरवालों का सहारा लेना पड़ता है। धीरे-धीरे वह अपनी कमज़ोरी को ताकत बना लेती है और अपने हाथों की बजाए पैरों से खुद के काम करने का प्रयास करती है। जिसके बाद वह आत्मनिर्भर होने की लड़ाई लड़ती है। इस फिल्म में महिला को केंद्र में रख जीवन में विकलांगता के संघर्ष को दर्शाया गया है।
7- जनहित में जारी
जय बंसतू सिंह द्वारा निर्देशित फिल्म जनहित में जारी ऐसे मुद्दे के बारे में बात करती है जिसे आज भी हमारे समाज में टैबू समझा जाता है। यह फिल्म कॉन्डम के जरिए सेफ सेक्स, गर्भपात, गर्भनिरोधक जैसी गंभीर समस्या को लोगों के सामने रखती है। इस कहानी की मुख्य किरदार मनोकामना त्रिपाठी (नुसरत भरूचा) है जो आत्मनिर्भर होना चाहती है और इसी के चलते वह एक कंपनी में कॉन्डम सेल्स गर्ल के रूप में काम करने लगती है। मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव में जहां कॉन्डम को गंदी और अश्लील निगाहों से देखा जाता है, वहां मनोकामना यह नौकरी करती है समाज को जागरूक करने का काम करती है। फिल्म में कॉन्डम न इस्तेमाल करने से गर्भपात और डिलिवरी के समय होनेवाली हजारों महिलाओं की मौत जैसै संवेदनशील मुद्दे को उठाया गया है और उसके प्रति लोगों को जागरूक करने का काम इस फिल्म में बखूबी किया गया है।
8- यशोदा
यशोदा एक तेलुगू भाषी फिल्म है जिसका निर्देशन हरीश नारायण और हरि शंकर ने किया है। इस फिल्म में सांमथा प्रभु यशोदा का किरदार निभा रही हैं। इस फिल्म की कहानी ऐसी महिलाओं को केंद्र में रखकर बनाई गई है जो अपनी गरीबी के कारण अपनी कोख को किराए पर देने के लिए मजबूर हो जाती हैं। यशोदा भी अपनी मजबूरियों के चलते सेरोगेट बनने को तैयार हो जाती है। यह फिल्म सेरोगेसी के बारे में बात करते हुए, उसकी आड़ में चल रहे दूसरे कारोबारों को भी दर्शाती है।
9- जलसा
इस फिल्म में विधा बालन और शेफाली शाह मुख्य भूमिका में है इसका निर्देशन सुरेश त्रिवेणी ने किया है। माया मेनन (विद्या बालन) चर्चित न्यूज पोर्टल की एंकर है और रुखसाना ( शेफाली शाह) उसी के घर में हाउस हेल्प हैं। जब माया मेनन देर रात ऑफिस से घर आ रही होती तो उसकी कार से एक लड़की को टक्कर लग जाती है, वह लड़की शेफाली शाह की बेटी होती है। माया गिल्ट में कुछ बता नहीं पाती है लेकिन रुख़साना की हरसंभव मदद करती है। फिल्म में सिंगल मदर की चुनौतियां, कामकाजी महिलाओं पर दबाव, उनकी सामाजिक आर्थिक किरदारों की स्थिति को बताया गया है।
10- गार्गी
इस फिल्म में मुख्य किरदार साई पल्लवी ने निभाया है और इसका निर्देशन गौतम रामचंद्रन ने किया है। यह फिल्म एक गैंगरेप सर्वाइवर के दर्द को दर्शाती है। जब पुलिस गार्गी के पिता को 9 साल की बच्ची के रेप के मामले में 4 अन्य आरोपियों के साथ गिरफ्तार कर लेती है तो गार्गी वकील इंद्रन्स कालियापेरुमल की मदद से केस लड़ती है, वह उस लड़की के प्रति साहनुभूति रखती हैं। लेकिन अंत में जब उन्हें सच्चाई पता चलती है तो वह बहुत बुरी तरह निराश हो जाती है।
11- डार्लिंग्स
डार्लिंग्स घरेलू हिंसा के मुद्दे पर बनाई गई एक बेहतरीन फिल्म है। इस फिल्म की कहानी मुंबई की रहनेवाली बदरूनिसा यानी बदरू (आलिया भट्ट) और हमज़ा (विजय वर्मा) के प्यार से शुरू होती है। शादी के बाद हमज़ा को शराब की आदत लग जाती है और वह बदरू को हर बात पर पीटना शुरू कर देता है। फिल्म दिखाती है कि कैसे बदरू अपनी मां के साथ मिलकर घरेलू हिंसा के इस मुद्दे को सुलझाती है, अपनी पहचान के बारे में सोचती है।