समाजपर्यावरण जलवायु परिवर्तन कैसे बढ़ा रहा है महिलाओं के ख़िलाफ़ लैंगिक हिंसा की संभावना

जलवायु परिवर्तन कैसे बढ़ा रहा है महिलाओं के ख़िलाफ़ लैंगिक हिंसा की संभावना

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार मौसम में आने वाले असामयिक बड़े बदलावों के बाद महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा तथा यौन शोषण के मामले तेजी से बढ़ने लगे हैं।

जलवायु परिवर्तन को लेकर ऐसी कई रिपोर्ट्स सामने आती हैं जो मानव जाति को आनेवाले खतरे का संकेत देती रहती हैं। अभी तक हम जलवायु परिवर्तन के प्रभावों में बाढ़, सूखा, तूफान, लैंडस्लाइड, बढ़ते तापमान आदि के बारे में सुनते आए हैं। लेकिन हाल ही में जारी हुई संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन के लैंगिक प्रभावों पर बात करती है। इस रिपोर्ट के अनुसार मौसम में आनेवाले असामयिक बड़े बदलावों के बाद महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा तथा यौन शोषण के मामले तेजी से बढ़ने लगे हैं।

प्रकृति और मानव का जीवन भर एक दूसरे से ही रिश्ता रहा है। लेकिन मनुष्य ने जब-जब प्रकृति का दोहन किया है तो इसके विपरीत प्रभाव देखने को मिले हैं। इसी वजह से कहीं न कहीं महिलाओं के जीवन पर भी इसका प्रभाव पड़ रहा है। आज जब जलवायु परिवर्तन की समस्या दिन-ब-दिन गंभीर होती जा रही है तो इसका प्रतिकूल प्रभाव औरतों और लड़कियों के साथ होनेवाली हिंसा पर ख़ासकर देखने को मिल रहा है।

मौसम बदलने से बढ़ती लैंगिक असमानता की खाई 

संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट में भी जलवायु परिवर्तन के कारण महिलाओं और लड़कियों के साथ होनेवाली हिंसा बढ़ने का दावा किया गया है। संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि जलवायु परिवर्तन और मौसम की मार की वजह से दुनियाभर में महिलाओं और लड़कियों के प्रति हिंसा का जोखिम बढ़ रहा है। यूएन की गई इस रिपोर्ट के मुताबिक महिलाओं और लड़कियों पर बढ़ रहे खतरे की वजहों में एक बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन ही है जिसकी वजह से पहले से ही व्याप्त लैंगिक असामनता आनेवाले समय में और भी तेजी से बढ़ सकती है। साथ ही महिलाओं के ख़िलाफ़ शारीरिक, मानसिक और आर्थिक हिंसा हर तरह की लैंगिक हिंसा के मामले बढ़ने की संभावना जताई गई है।

दुनियाभर में हो रहे जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, आर्थिक समेत लैंगिक हिंसा के सभी आयामों को गंभीर बनाते हैं। इस वजह से बढ़ती लैंगिक हिंसा को रोकने और इससे बचने के उपयों में रुकावट आती है। साथ ही इस बढ़ती लैंगिक हिंसा की रोकथाम करने की संभावना काफी कमज़ोर हो जाती है।

यूएन द्वारा सचेत करते हुए कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन से पैदा होनेवाली लैंगिक चुनौतियां महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों पर प्रभाव डाल रही हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन सिर्फ एक पर्यावरण संकट नहीं है बल्कि इससे न्याय और लैंगिक समानता पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। जलवायु परिवर्तन न केवल एक पारिस्थितिक संकट है, बल्कि मूल रूप से न्याय, समृद्धि और लैंगिक समानता के सवाल से जुड़ा हुआ है। साथ ही यह आंतरिक रूप से संरचनात्मक असमानता और भेदभाव से संबंधित और प्रभावित है।

इन कारणों को देखते हुए यूएनएफपीए द्वारा महिलाओं और लड़कियों समेत 65 देशों में युवाओं के लिए 1.2 अरब डॉलर सहायता राशि की अपील की गई है। यूएनएफपीए द्वारा की गई यह सहायता अपील अब तक की सबसे बड़ी अपील मानी जा रही है। मदद की यह अपील संघर्ष क्षेत्रों में रह रहे लोगों, विस्थापित लोगों और जलवायु परिवर्तन के कारण पैदा हुई चुनौतियों को झेल रहे लोगों के लिए की गई है। यूएनएफ़पीए के मुताबिक इस मदद के ज़रिये  महिलाओं और लड़कियों को प्रजनन स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करवाई जा सकेंगी।

यूएन द्वारा सचेत करते हुए कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन से पैदा होनेवाली लैंगिक चुनौतियां महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों पर प्रभाव डाल रही हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन सिर्फ एक पर्यावरण संकट नहीं है बल्कि इससे न्याय और लैंगिक समानता पर भी नकारात्मक असर पड़ता है।

इन सेवाओं में मानसिक स्वास्थ्य और आपातकालीन स्थिति में जन्मे बच्चे और जच्चे की देखभाल के साथ-साथ, परिवार नियोजन और लैंगिक हिंसा की रोकथाम से जुड़ी सेवाएं भी शामिल होंगी। दरअसल, जलवायु परिवर्तन से पैदा होनेवाले संकट के आलावा कई अन्य संकटों ने भी महिलाओं और लड़कियों के स्वास्थ्य और अधिकारों पर विनाशकारी प्रभाव डाला हैं। इसलिए यूएनएफ़पीए के मुताबिक महिलाओं और लड़कियों को जीवन रक्षक सेवाओं की जरूरत है और इन्हे मानव सहायता की केंद्र में रखा जाना चाहिए। जलवायु परिवर्तन से विस्थापित होनेवाले लोगों में 80 फीसदी महिलाएं शामिल होती हैं। परिणामस्वरूप इनके साथ होनेवाली हिंसा की घटनाओं में अपने-आप बढ़ोतरी होती चली जाती है।

जलवायु परिवर्तन कैसे लैंगिक आधार पर बढ़ा रहा है चुनौतियां

दुनियाभर में हो रहे जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, आर्थिक समेत लैंगिक हिंसा के सभी आयामों को गंभीर बनाते हैं। इस वजह से बढ़ती लैंगिक हिंसा को रोकने और इससे बचने के उपयों में रुकावट आती है। साथ ही इस बढ़ती लैंगिक हिंसा की रोकथाम करने की संभावना काफी कमज़ोर हो जाती है। दरअसल, जलवायु परिवर्तन की वजह से जब कोई आपदा आती है तो सबसे पहले आजीविका पर खतरा पड़ता है जिससे इस वजह से कहीं न कहीं तस्करी, यौन शोषण और बाल विवाह जैसे अपराधों का सामना महिलाओं को बड़ी संख्या में करना पड़ता है। इसके अलावा अधिकतर महिलाओं और लड़कियों को जीवित रहने के लिए जोखिम भरे विकल्पों को चुनना होता है।

लैंगिक हिंसा का रूप सिर्फ शारीरिक नहीं होता। इसलिए जब बात हम लैंगिक हिंसा और जलवायु परिवर्तन की करते हैं तो हमें यहां ध्यान देने की ज़रूरत है कि हम सिर्फ शारीरिक हिंसा तक अपने विमर्श को न सीमित रखें। कैसे यह लैंगिक आधार पर महिलाओं को सामजाकि, आर्थिक रूप से और हाशिये पर धकेल रहा है, कैसे हिंसा के अलग-अलग रूप महिलाओं को झेलने पड़ रहे हैं, इसका भी विश्लेषण किए जाने की ज़रूरत है।

उदाहरण के तौर पर पाकिस्तान में इस साल आई भीषण विनाशकारी बाढ़ के बाद लड़कियों और महिलाओं के प्रति हिंसा की संभावना में बढ़ोतरी हुई। आजीविका का नुकसान, ख़राब आर्थिक स्थिति और बाढ़ से उपजे खतरे और संघर्ष ने महिलाओं और लड़कियों के ख़िलाफ़ घरेलू हिंसा और इंटिमेट पार्टनर वॉयलेंस की घटना की संख्या में इज़ाफा हुआ। ठीक इसी तरह लैटिन अमेरिका में चक्रवाती तूफान और अरब देशों में मौसम की घटनाओं के दौरान महिला हिंसा की बढ़ोतरी देखी गई है। अफगानिस्तान में खराब आर्थिक स्थिति, भुखमरी और बढ़ती ठंड की वजह से माता- पिता द्वारा अपनी बेटियों को बेचा जा रहा है ताकि वे अपने परिवार के अन्य सदस्यों का पेट पाल सकें।

जलवायु परिवर्तन के कारण परिवार में भोजन की किल्लत की वजह से छोटी उम्र में ही लड़कियों की शादी करने के मामले बढ़े हैं। वहीं कुछ इसी तरह की स्थिति होंडुरास में भी देखी गई जहां 2020 के चक्रवाती तूफान ईटा औऱ आयोटा के बाद एक लाख 80 हजार महिलाओं को परिवार नियोजन सेवाएं नहीं मिल पाईं। इसके अलावा खाद्य सुरक्षा की चुनौतियों के बाद कृषि क्षेत्र में काम करनेवाली तंजानियाई महिलाओं को आमदनी के लिए सेक्सवर्क का पेशा अपनाना पड़ा।

जलवायु परिवर्तन से खेती-किसानी से जुड़ी महिलाओं की बढ़ती परेशानियां 

जब मौसम की मार पड़ती है तो किसान परिवारों को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है। कृषि क्षेत्र और बागानों में महिलाएं अपना बढ़-चढ़कर योगदान देती हैं। वे असंगठित क्षेत्र के कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा हैं। गौरतलब है कि शहरी इलाकों की तरफ पुरुषों के पलायन की वजह से खेती-बाड़ी का जिम्मा महिलाओं पर आ जाता है। ऐसी स्थिति में मौसम की मार से अक्सर महिलाओं को अकेले जूझना पड़ता है। यही नहीं, ज्यादातर लड़कियों को बदलते जलवायु के चलते, खेतों में मदद करने के लिए अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ती है। फसल बर्बाद हो जाने के कारण जब महिलाओं को कोई आय नहीं मिल पाती तो उनके बच्चों को स्कूल की पढ़ाई मजबूरन छोड़नी पड़ती है।

बहुत कम उम्र में ही आय की कमी के कारण लड़कियों की शादी कर दी जाती है। इसके परिणाम के रूप में उन्हें छोटी उम्र से ही कई तरह की लैंगिक हिंसा का सामना करना पड़ता है। डीडब्लू की एक रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण भारत में तीन-चौथाई कामकाजी महिलाएं अपनी आजीविका के लिए खेती पर निर्भर हैं। इनमें से बहुत कम महिलाएं ऐसी हैं जो खुद किसान हैं या खेत का मालिकाना हक़ उनके पास है। इससे यह मालूम होता है कि कृषि क्षेत्र में काम करनेवाली महिलाओं पर बाकी चीजों के साथ ही बिगड़ते जलवायु ने भी नकारात्मक असर डाला है।

लैंगिक हिंसा का रूप सिर्फ शारीरिक नहीं होता। इसलिए जब बात हम लैंगिक हिंसा और जलवायु परिवर्तन की करते हैं तो हमें यहां ध्यान देने की ज़रूरत है कि हम सिर्फ शारीरिक हिंसा तक अपने विमर्श को न सीमित रखें। कैसे यह लैंगिक आधार पर महिलाओं को सामजाकि, आर्थिक रूप से और हाशिये पर धकेल रहा है, कैसे हिंसा के अलग-अलग रूप महिलाओं को झेलने पड़ रहे हैं, इसका भी विश्लेषण किए जाने की ज़रूरत है। इसलिए लोगों को जलवायु परिवर्तन और महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा के बीच गहरे संबंध को समझने की ज़रूरत है। 


Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content