“कोई भी बीमारी आती चींटी की चाल से है और जाती हाथी की चाल से है। साल 2018 से 2023 आ गया, अब कह सकती हूं कि राहत की सांस है।” धीमी आवाज़ में बात करते हुए पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गांव मोघपुर की रहनेवाली रविता का यह कहना अपनी फंगल इंफेक्शन की बीमारी के बारे में है। इसकी वजह से वह लगभग पिछले चार साल से कई तरह की परेशानियों का सामना कर चुकी हैं। फंगल इंफेक्शन एक आम समस्या है जो कई लोगों में देखने को मिल रही है। इस समस्या से निदान तब और कठिन हो जाता है जब ग्रामीण क्षेत्र की एक महिला इसका सामना करती है। हाल ही में हुए एक अध्ययन से यह बात सामने आई है कि भारत में पांच करोड़ से अधिक भारतीय गंभीर फंगल बीमारियों से प्रभावित हैं। रिसर्च का मानना है कि गंभीर फंगल इंफेक्शन का कुल बोझ भारत में टीबी की बीमारी के सालाना घटनाओं से 10 गुना अधिक है। यह भारत की आबादी की बड़ी संख्या को फंगल से प्रभावित दिखाता है।
भारत में बढ़ रहा है फंगल इंफेक्शन
भारत के परिदृश्य से बात कंरे तो फंगल इंफेक्शन बहुत बड़ी संख्या में होनेवाली आज एक आम समस्या बन चुकी है। कोविड-19 की दूसरी लहर में कोरोना के मरीजों में ब्लैक फंगस मामले तेजी से सामने आए थे। कई लोगों ने कोरोना के बाद ब्लैक फंगस की वजह से जान तक गवां दी थी। हाल ही में हुए एक अध्ययन के अनुसार भारत में पांच करोड़ से अधिक भारतीय फंगल डिसीज से प्रभावित हैं। भारत और मैनचेस्टर के शोधकर्ताओं के अनुसार 10 फीसदी भारतीय खतरनाक फंगस से संक्रमित हैं।
ओपन फोरम इंफेक्शियस डिसीज जर्नल में 400 से अधिक इंफेक्शन लेखों की समीक्षा की गई है। इस अध्ययन में यह भी सामने आया है कि भारत में बड़ी संख्या में महिलाएं यीस्ट इंफेक्शन से प्रभावित हैं। प्रजनन आयु की लगभग 2.4 करोड़ महिलाओं को बार-बार होनेवाले संक्रमण ने प्रभावित किया है।
इकॉनमिक्स टाइम्स में प्रकाशित ख़बर के अनुसार यह अध्ययन भारत के तीन अस्पतालों के विशेषज्ञ और मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी, यूके के रिसर्चर की टीम ने मिलकर किया। इस अध्ययन में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) नई दिल्ली, एम्स कल्याणी, पश्चिम बंगाल और पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ की टीम शामिल रही। विशेषज्ञों के अनुसार भारत के 5.7 करोड़ लोग फंगल इंफेक्शन से प्रभावित हैं। भारत की कुल आबादी का यह 4.4 प्रतिशत हिस्सा है। यह आंकड़ा दिखाता है कि सामान्य सी दिखाने वाली बीमारी कितनी बड़ी संख्या में लोगों को अपनी गिरफ्त में लिए हुए है। इससे अलग ऑक्सफोर्ड एकेडमिक में छपी स्डटी के अनुसार भारत में लोगों पर गंभीर फंगल इंफेक्शन का बोझ बढ़ता जा रहा है।
फंगल इंफेक्शन क्या है?
फंगल इंफेक्शन एक आम संक्रमण है। यह किसी को भी प्रभावित कर सकता है। हेल्थलाइन में प्रकाशित जानकारी के अनुसार ये शरीर के कई हिस्सों में हो सकता है। किसी के पैर में फंगल इंफेक्शन (एथलीट फुट), बच्चे के मुंह में फंगल इंफेक्शन (थ्रश) और महिलाओं में वजाइनल यीस्ट इंफेक्शन इसके कुछ उदाहरण हैं। हमारे वातावरण में बहुत तरह के कवक (फंगी) होते हैं।
हाल ही में हुए एक अध्ययन के अनुसार भारत में पांच करोड़ से अधिक भारतीय फंगल डिसीज से प्रभावित हैं। भारत और मैनचेस्टर के शोधकर्ताओं के अनुसार 10 फीसदी भारतीय खतरनाक फंगस से संक्रमित हैं।
अलग-अलग तरह के फंगी, फंगल इंफेक्शन का कारण बन सकते हैं। कुछ मामलों में यह शरीर के अंदर पहुंचकर या फिर शरीर के ऊपर होने पर इंफेक्शन का कारण बन जाते हैं। क्लीवलैंड क्लीनिक में छपी जानकारी के अनुसार फंगल इंफेक्शन एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक फैल सकते हैं। अधिकतर फंगल इंफेक्शन त्वचा, नाखून और फेफड़ों पर असर डालते हैं। कवक त्वचा के माध्यम से शरीर के अंगों पर बुरा असर डालता है। यह शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है। आमतौर पर टिनटिया वर्सीकलर एक ऐसी स्थिति है जो त्वचा पर हल्के से गहरे पैच का कारण बनती है।
फंगल इंफेक्शन के लक्षण
फंगल इंफेक्शन के लक्षण इसके प्रकार पर निर्भर करते हैं। लेकिन कुछ सामान्य लक्षण हैं जिसकी जानकारी समय रहते हो जाए तो गंभीर समस्या से बचा जा सकता है। इसका सबसे पहला कारण है त्वचा की रंगत में परिवर्तन आना। इसकी वजह से त्वचा में लाल रंग के चकते उभर आते हैं। चकते का रंग बदलना, त्वचा पर पपड़ी जमना और खाल उतरना, त्वचा का हिस्सा नरम पड़ना, प्रभावित क्षेत्र पर दाने होना या पस पड़ना आदि। नाखून की फंगस होने पर नाखूनों का रंग बदलना, नाखून का कमजोर पड़ना। इसके अलावा महिलाओं में यीस्ट फंगल इंफेक्शन होने पर वजाइना में जलन, खुजली, डिस्चार्ज और रेडनेस की समस्या हो जाती है।
कौन लोग इससे प्रभावित हो सकते हैं
फंगल इंफेक्शन होने के बहुत से कारण हैं। इसमें पर्यावरणीय कारण भी बहुत महत्व रखता है। साथ ही शरीर किन कवकों के संपर्क में आ रहा है। गर्म और नमी वाली जगह पर काम करने वाले लोग और पसीन की वजह से इसकी समस्या पैदा होती है। नमी और गर्म जगह पर कवक पनपते हैं। कमज़ोर इम्यून सिस्टम वाले लोगों में फंगल इंफेक्शन होने का खतरा ज्यादा बना रहता है। महिलाओं में मेनोपॉज की स्थिति भी इसकी एक वजह हो जाती है। महिलाओं के शरीर में मेनोपॉज से पहले होनेवाले हॉर्मोनल बदलाव की वजह से भी फंगल इंफेक्शन होने का खतरा रहता है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गाँव मोघपुर की रहने वाली रविता बीते कई सालों से फंगल इंफेक्शन का सामना करती आई है। रविता का कहना हैं, “पिछले चार साल से मैं लगातार फंगल की परेशानी का सामना करती आ रही हूं। अब कुछ समय से मुझे राहत है। बहुत बुरा समय देखा है। कहने को एक खुजली ही तो है लेकिन जो दर्द और परेशानी होती है उसे कहा नहीं जा सकता है।”
महिलाओं में यीस्ट इंफेक्शन
ओपन फोरम इंफेक्शियस डिसीज जर्नल में 400 से अधिक इंफेक्शन लेखों की समीक्षा की गई है। इस अध्ययन में यह भी सामने आया है कि भारत में बड़ी संख्या में महिलाएं यीस्ट इंफेक्शन से प्रभावित हैं। प्रजनन आयु की लगभग 2.4 करोड़ महिलाओं को बार-बार होनेवाले संक्रमण ने प्रभावित किया है। वजाइना या योनि में हुए छालों को यीस्ट इंफेक्शन कहा जाता है। इसके साथ ही बालों पर होने वाला फंगी इंफेक्शन टिनिया कैपिटस स्कूल जाने वाले बच्चों को बड़ी संख्या में प्रभावित करता है।
शर्म की वजह से महिलाएं लंबे समय तक रहती हैं परेशान
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गाँव मोघपुर की रहने वाली रविता बीते कई सालों से फंगल इंफेक्शन का सामना करती आई हैं। रविता का कहना है, “पिछले चार साल से मैं लगातार फंगल की परेशानी का सामना करती आ रही हूं। अब कुछ समय से मुझे राहत है। बहुत बुरा समय देखा है। कहने को एक खुजली ही तो है लेकिन जो दर्द और परेशानी होती है उसे कहा नहीं जा सकता है। शुरू में हल्की सी खुजली हुई। घर में किसी को बताया भी नहीं और खुद ही नारियल का तेल लगा लिया करती थी। लेकिन ये तो तेजी से फैलती जा रही थी। शरीर के कई हिस्सों में फैल गई। सबको बता भी नहीं सकते थे शर्म भी आती थी। शुरू में गाँव की ही दुकानों से खरीदकर कुछ लोशन लगाए। लेकिन काम नहीं चला। जब बर्दाश्त से बाहर हो गई बात तब जाकर मुझे शहर दिखाया गया।”
“गर्मी में जब पसीना आकर खुजली आती थी मैं रोती थी। मन बहुत परेशान रहने लगा था। घर का सारा काम भी करना होता है और ऊपर से हर वक्त यह परेशानी। भले ही कितनी भी साफ-सफाई का ध्यान रख लो लेकिन काम में कहां खुद का ध्यान रहता है। पशुओं का भी काम करना पड़ता है। शहर में भी कई डॉक्टरों की दवाई खाई है। पानी की तरह पैसा बर्बाद हुआ है। लगभग फंगल के इलाज में ही हमारे 14-15 हजार रूपये खर्च हुए हैं। इसकी दवाईयां बहुत मंहगी आती हैं। डॉक्टर की फीस अलग से देनी होती है। इससे भी ज्यादा शहर जाकर दवाई लाना। वह पूरा दिन और परेशानी लाता है। घर का काम करो उससे पहले किसी को तैयार (घर के पुरुष) करो कि डॉक्टर को दिखाने जाना है। पिछले तीन महीनों से जिस डॉक्टर की दवाई खाई है उससे मुझे राहत मिली है। आठ हजार की दवाई तो इसी डॉक्टर की है। कोई भी रोग आता तो चींटी की चाल से है लेकिन जाता हाथी की चाल से है। जब पूरी तरह से हताश और सब थक गए थे तब जाकर कुछ राहत मिली है। ऐसी परेशानियों के बारे में किसी को कुछ बता भी नहीं सकते, दिखा नहीं सकते, बस खुद ही सहते रहते हैं।”
स्कूल में पढ़ानेवाली वंशिका भी पिछले कुछ समय से फंगल की परेशानी का सामना कर रही हैं। इस पर वंशिका का कहना है, “पिछले साल गर्मी में मुझे पहली बार घुटने से ऊपर पैर में दाद जैसा कुछ दिखा था। शुरू में मुझे लगा मच्छर ने काटा होगा तो मैंने नज़रअंदाज कर दिया। उसके बाद इसमें जलन और खुजली तेजी से फैल गई। यह बहुत तेजी से फैलता गया और शरीर के कई हिस्सों में ऐसी परेशानी हो गई। मैं तो बहुत डर गई थी। हमारे गाँव में मैंने कई लोगों से सुना था कि आज कल एलर्जी बहुत हो रही है। शुरू में मैंने भी लोशन लगाए, घरेलू उपचार किए। लेकिन बाद में डॉक्टर की दवा से ही राहत है। मैं अभी भी दवाई खा रही हूं। लेकिन उससे ज्यादा ध्यान रख रही हूं।”
महिलाओं के लिए फंगल इंफेक्शन की समस्या उनकी लैंगिक पहचान की वजह से और अधिक बढ़ जाती है। महिलाओं की सामाजिक स्थिति इसका कारण है जिस वजह से वे समय रहते इससे बच पाने में असफल रहती हैं। महिलाओं में इसके संक्रमण को लेकर शर्म की बात ज्यादा देखने को मिलती है। इस वजह से वे अपने परिवार या जानकारों से इसके बारे मे बात करने से हिचकती हैं। साथ ही महिलाओं पर होने वाला इलाज का खर्च और डॉक्टर के आना-जाना उनपर एक किस्म का दबाव डालता है। यदि उपाय या बचाव की और ध्यान दे तो महिलाओं के काम का प्रकार या उनका रहन-सहन भी उनके लिए बाधा बनता है। महिलाएं रसोई में खाना बनाने के लिए पसीने आने को किसी भी कीमत पर नहीं रोक सकती हैं। दूसरा वे घर के रहती हैं। यदि घर में नमी ज्यादा है या धूप की कमी है तो भी वह उसी माहौल में रहती हैं। इस तरह की स्थिति महिलाओं के लिए प्राथमिक स्तर पर बचाव में समस्याएं पैदा करती है।
जागरूकता और संसाधन पैदा करने होंगे
सामान्य सी दिखनेवाली बीमारियां इस देश में बढ़ती जा रही हैं। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुए कई अध्ययनों से यह बात स्पष्ट भी हो चुकी है। फंगल इंफेक्शन जैसी समस्याएं वे हैं जिनपर ज्यादा गौर नहीं किया जाता है। लेकिन इसका सामाना करनेवाले लोगों की संख्या बताती है कि यह आम लोगों के लिए स्वास्थ्य और आर्थिक रूप से कितना भार बढ़ा रही है। भारत में इसको लेकर शर्म और झिझक लोगों के अंदर है। ख़ासतौर पर ग्रामीण अंचल में फंगल बीमारियों को लेकर पब्लिक हेल्थ सिस्टम को और बेहतर करना होगा। ग्रामीण स्तर पर लोगों को फंगल के बारे में ज्यादा जानकारी न होने की वजह से लोग शुरू में इससे नज़रअंदाज या घरेलू उपाय पर निर्भर रहते हैं जिस वजह से ऐसे इंफेक्शन गंभीर हो जाते हैं। इससे संक्रमित होने से लोगों पर आर्थिक बोझ भी बढ़ता है।