इतिहास डॉ. शिवरामकृष्ण अय्यर पद्मावती: ‘मदर ऑफ कार्डियॉलजी’| #IndianWomenInHistory

डॉ. शिवरामकृष्ण अय्यर पद्मावती: ‘मदर ऑफ कार्डियॉलजी’| #IndianWomenInHistory

हृदय संबंधी कोई भी रोग कई अन्य बीमारियों को जन्म देता है। इसलिए लोगों के लिए हृदय रोग विशेषज्ञों का होना ज़रूरी हो जाता है। ऐसे में कहीं न कहीं लोगों के अंदर सवाल भी उठता है कि देश का सबसे पहला हृदय रोग विशेषज्ञ कौन था? तो हम आपको बता दें कि देश की पहली और प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ शिवरामकृष्ण अय्यर पद्मावती रही हैं। इन्हें ‘मदर ऑफ कार्डियोलॉजी’ भी कहा जाता है। उनका जन्म  20 जून साल 1917 में म्यांमार में हुआ था। लेकिन 1942 में हुए दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान द्वारा किए गए हमले के बाद वह अपने परिवार के कुछ सदस्यों के साथ भारत आ गई थी। पिता और उनका एक भाई रंगून में ही रह गए थे।

उनके आने के चार साल बाद तक पद्मावती को पता तक न चला की उनके पिता और भाई कहां हैं। जीवित हैं भी या नहीं। हालांकि, जब उनके पिता का पता लगा तो वह भारत अपने परिवार के पास आ गए थे और यहां आकर उन्होंने वकालत की थी। शिवरामकृष्ण अय्यर पद्मावती की एक बहन भी थीं जिनका नाम एस जानकी था और वह भी पेशे से एक डॉक्टर थीं। जिस समयकाल में पद्मावती और उनकी बहन डॉक्टर बनीं उससे पता लगाया जा सकता है कि इनका परिवार उस दौर में कितने आधुनिक और खुली सोच रखता था।

बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक जब उन्होंने अपने पिता से तैराकी सीखने की इच्छा जाहिर की तो उनके पिता ने बिना सवाल जवाब किए सीधे हामी भर दी। पद्मावती के मुताबिक उस दौर में लड़कियों का स्विमिंग सीखना तो दूर उसके बारे में सोचना भी संभव नहीं था। उन्हें अपनी सेहत बनाए रखने का ऐसा जुनून था कि 95 साल की उम्र तक नियमित तौर पर तैराकी करती रहीं। पद्मावती ने अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई रंगून मेडिकल कॉलेज से की थी। आगे की पढ़ाई के लिए वह लंदन गई जहां उन्होंने रॉयल कॉलेज ऑफ़ फिजिशियन कर कार्डियोलॉजी दक्षता प्राप्त की। इसके बाद वह वहां से देश की पहली महिला हृदय रोग विशेषज्ञ बनकर दिल्ली पहुंचीं।

शिवरामकृष्ण अय्यर पद्मावती द्वारा किए गए काम 

साल 1953 में अय्यर पद्मावती के काम और लोकप्रियता को देखते हुए आज़ाद भारत की पहली स्वास्थ्य मंत्री अमृत कौर ने उन्हें राष्ट्रीय राजधानी के लेडी हॉर्डिंग मेडिकल कॉलेज में लेक्चरर के रूप कार्यरत होने का प्रस्ताव दिया। नेशनल एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंसेज के साथ काम कर साल 1954 में वह देश की पहली  महिला हृदय रोग विशेषज्ञ बनीं। इसके बाद उन्होंने उत्तर भारत में पहले कार्डियक कैथ लैब की स्थापना की। खास बात यह है कि यह एक महिला अस्पताल होने के बावजूद अय्यर पद्मावती ने वहां पुरुषों के रोगों को देखने की अलग व्यवस्था की थी। इन्हीं प्रयासों के चलते हृदय संबंधी रोगियों में पद्मावती लोकप्रिय होने लगीं।

तस्वीर साभार: Hindustan Times

उन्होंने साल 1966 में दिल्ली में ‘वर्ल्ड कांग्रेस ऑफ कार्डियोलॉजी’ का आयोजन करवाया। इस सफलता के बाद उन्हें और भी प्रसिद्धि मिलने लगी। इसके बाद उन्होंने साल 1967 में दिल्ली के मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में काम करना शुरू किया और उसी साल उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। उन्हें वहां के निदेशक का कार्यभार दिया गया। इसके अलावा अय्यर पद्मावती द्वारा जी. बी. पंत हॉस्पिटल में कार्डियोलॉजी के पहले विभाग को स्थापित किया गया। कहा जाता है कि साल 1971 में एम्स से भी पहले, जी. बी. पंत हॉस्पिटल में कार्डियोलॉजी के पहले विभाग को स्थापित किया गया था। पद्मावती द्वारा दिल के रोगियों के लिए 30 बिस्तर का पहला वातानुकूलित वार्ड भी वहां बनवा दिया गया था। मेडिकल स्टूडेंट इस अस्पताल में एमडी कर सकें इसके लिए वहां पाठ्यक्रम भी शुरू करा दिया गया। 

इसके बाद अस्पताल में शोध संस्थान के रूप में भी काम शुरू किए गए। इसी कड़ी में डॉक्टर पद्मावती ने रियूमैटिक बुखार पर शोध कर उपचार तलाशे। इसके अलावा वह दिल्ली के राष्ट्रीय हृदय संस्थान की निदेशक भी रहीं। राष्ट्रीय हृदय संस्थान की स्थापना उनका एक बड़ा सपना था जिसके सकार होने पर वह एक दिशा की ओर अग्रसर हुई। गौरतलब है कि डॉक्टर पद्मावती को पद्मभूषण,पद्मविभूषण के अलावा 1975 में डॉ बीसी रॉय जैसा प्रतिष्ठित सम्मान भी मिला।

डॉ शिवरामकृष्ण अय्यर पद्मावती को क्यों कहा जाता है ‘मदर ऑफ़ कार्डियोलोजी’

टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक रिपोर्ट मुताबिक डॉ. पद्मावती 12-12 घंटे तक काम करती थीं। इस प्रकार के जोश और जुनून ने उन्हें मदर ऑफ़ कार्डियोलॉजी इन इंडिया के नाम से मशहूर कर दिया। वह अन्य ह्रदय रोग विशेषज्ञ और महिलाओं के लिए रोल मॉडल थीं। गौरतलब है कि यह ख़िताब उन्हें नामी हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ अशोक सेठ ने दिया था,जो ‘फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इन्स्टीट्यूट’ के चेयरमैन हैं। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक डॉक्टर सेठ ने उन्हें यह ख़िताब इसलिए दिया क्योंकि वह देश की पहली  महिला थी जो हृदय रोग विशेषज्ञ थीं, डॉ पद्मावती के कई शिष्य रहे हैं जो उन्हें अपना गुरु मानते थे। लेकिन डाॅ पद्मावती के गुरु की बात करें तो वह एक अमेरिकन कार्डियोलॉजिस्ट थे। दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक डॉ पद्मावती का कहना था कि उनके कमरे में अमेरिकन कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. पॉल डुडले व्हाइट की तस्वीर लगी थी जिसे वह अपना गुरु कहती थीं। इसके अतिरिक्त इस फील्ड में आने का श्रेय वे म्यांमार के डॉक्टर लाइशंचीज को देती हैं, जिनसे प्रभावित होकर वे कार्डियोलॉजिस्ट बनीं।

डॉक्टर पद्मावती काफी अनुशासन भरा जीवन जीना पसंद करती थीं। इसके अलावा वह अपने स्वास्थ्य को लेकर भी काफी सतर्क रहती थीं। वह अपने विचारओं और नियमों को लेकर भी काफी पक्की थीं। द प्रिंट की एक रिपोर्ट में मुख्य कार्डियक सर्जन डॉ.ओपी यादव का कहना है कि साल 1990 में उन्होंने डॉ पद्मावती के साथ काम करने का मौका मिला। उस दौरान वह एक जूनियर और कार्डियक सर्जन थे। उसी संस्थान में डॉ पद्मावती मुख्य कार्डियक सर्जन थीं।

तस्वीर साभार: Times Now

उन्होंने एक घटना को याद करते हुए कहा कि फ्रैंक एंथनी जो राज्यसभा के सदस्य थे। उनकी गंभीर स्थिति होने की वजह से उन्हें एनएचआई में भर्ती कराया गया था। उस दौरान पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी नरसिम्हा राव उनसे मिलने आनेवाले थे। इसी वजह से सुरक्षाकर्मियों और खोजी कुत्तों द्वारा अस्पताल में निरीक्षण किया जाना था। हालांकि डॉ पद्मावती को जब यह सब मालुम हुआ तो वह तुरंत अपने कमरे से बाहर आई और सुरक्षाकर्मियों से साफ़ कह दिया कि अगर खोजी कुत्ते अस्पताल और मरीजों का निरीक्षण करने आ रहे हैं तो वह नहीं चाहती कि प्रधानमंत्री अस्पताल आएं। इससे मालूम होता है कि वह अपने अस्पताल और मरीजों का कितना ध्यान और सम्मान करती थीं। इसके अलावा उन्होंने चैरिटी के लिए भी काफी काम किया था। उन्होंने जानकी पद्मावती फाउंडेशन नाम से एक ट्रस्ट बनाया था। इस ट्रस्ट के तहत गरीब बच्चों की दिल की निशुल्क सर्जरी होती और गरीब तबके के लोगों के लिए पेसमेकर बैंक भी बनाया गया।       

103 साल की उम्र में दुनिया को कहा अलविदा        

अपनी फील्ड में प्रतिभा की धनी और पद्मविभूषण से सम्मानित डॉ अय्यर पद्मावती कोरोना काल के दौरान 103 साल  की आयु में दुनिया को अलविदा कह गई। कोरोना संक्रमण और निमोनिया की वजह से उनका 29 अगस्त को निधन हो गया। हालांकि वह अपनी सेहत को लेकर जागरूक रहती थी। दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट में डॉक्टर पद्मावती के अनुसार कहा गया था कि उनकी लम्बी आयु और सेहत का राज यह था कि उनका टाइम टेबल छात्र जीवन से आधारित था। जिसके हिसाब से वे अपने दैनिक कार्य करती थी। जिसमें खाना ,व्यायाम ,काम ,पढाई जैसी अन्य गतिविधियां भी शामिल थी। उन्होंने सेवानिवृत्ति होने के बाद भी गंभीर मरीजों को अपना वक्त दिया था । वे न तो मरीजों के लिए ज्यादा दवाएं लिखती थी और न ही बहुत जांचे करवाती । वे लक्षणों से बीमारी पकड़ती थी। वे रोजाना अपने फील्ड में बेहतर रहने और अपडेट रहने के लिए मेडिकल साइंस से जुड़ी किताबें भी पढ़ती । इसी के तर्ज पर उन्होंने एक किताब खुद पर भी लिखी थी। जिसका नाम माय लाइफ एंड मेडिसिन है। डॉ पद्मावती अय्यर की एक खास बात यह भी थी कि इन्हे हिंदी, अंग्रेजी, पंजाबी, बर्मी, तेलुगु, मलयालम समेत जर्मनी और फ्रेंच भाषा का अच्छा खासा ज्ञान था। 


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