स्वास्थ्यशारीरिक स्वास्थ्य भारत में अबॉर्शन के नये कानून से अनजान हैं 95% से अधिक महिलाएं: स्टडी

भारत में अबॉर्शन के नये कानून से अनजान हैं 95% से अधिक महिलाएं: स्टडी

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (अमेंडमेंट) एक्ट, 2021 को प्रभाव में आए लगभग डेढ़ साल हो चुका है। लोग खासकर महिलाएं इसके बारे में कितना जागरूक हैं, यह जानने के लिए FRHS ने रिसर्च की। जो आंकड़ें सामने आए हैं, वे काफी निराश करने वाले हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि इतने संवेदनशील मुद्दे के बारे में लोगों के बीच जागरूकता क्यों नहीं है?

हाल ही में जारी हुई फाउंडेशन फ़ॉर रिप्रोडक्टिव हेल्थ सर्विसेज (FRHS) की रिपोर्ट बताती है कि भारत में 95% से ज्यादा महिलाओं को अबॉर्शन के नये नियमों की जानकारी नहीं है। भारत ऐसा देश है जहां होनेवाले लगभग 67% अबॉर्शन असुरक्षित तरीके से होते हैं। साल 2022 की UNFPA की रिपोर्ट के अनुसार करीबन 8 महिलाओं की मौत हर दिन असुरक्षित अबॉर्शन होने की वजह से होती है।

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (अमेंडमेंट) एक्ट, 2021 को प्रभाव में आए लगभग डेढ़ साल हो चुका है। लोग खासकर महिलाएं इसके बारे में कितना जागरूक हैं, यह जानने के लिए FRHS ने रिसर्च की। जो आंकड़ें सामने आए हैं, वे काफी निराश करने वाले हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि इतने संवेदनशील मुद्दे के बारे में लोगों के बीच जागरूकता क्यों नहीं है?

महिलाओं को नहीं पता अबॉर्शन उनका एक अधिकार है

FRHS ने यह सर्वे मुख्य रूप से दिल्ली, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, सिर्फ 68% महिलाएं सुरक्षित अबॉर्शन को अपने स्वास्थ्य से जुड़ा एक अधिकार मानती हैं। हर 3 में से 1 महिला को यह नहीं पता कि सुरक्षित अबॉर्शन उनका अधिकार है। सर्वे में शामिल 56% महिलाओं को सोशल मीडिया के जरिए सुरक्षित अबॉर्शन के बारे में पता चला है। वहीं, 52% महिलाओं ने टेलीविजन पर सुरक्षित अबॉर्शन के बारे में देखा, सुना या पढ़ा है। ऐसी स्थिति में सरकारें और स्वास्थ्य महकमा सोशल मीडिया और टेलीविज़न का इस्तेमाल कर सुरक्षित अबॉर्शन और एमटीपी ऐक्ट को लेकर अधिक से अधिक लोगों तक जागरूकता फैला सकते हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक हर तीन महीने में 2-3 औरतें फ्रंटलाइन हेल्थ वर्कर्स के पास अबॉर्शन से संबंधित सलाह लेने आती हैं। ग्रामीण इलाकों, छोटे शहरों, स्लम आदि की महिलाएं सबसे पहले फ्रंटलाइन वर्कर्स के पास आती हैं। ऐसे में स्वास्थ्यकर्मियोंको अबॉर्शन के नये नियमों की जानकारी न होना स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल उठाता है।

अभी भी मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी को समाज की नज़रों में स्वीकार्यता नहीं मिली है। रिपोर्ट के अनुसार, करीबन 54% महिलाओं को ऐसी बाधाओं का सामना करना पड़ता है। अक्सर समाज के सवालो से बचने के लिए महिलाएं अबॉर्शन के घरेलू तरीकों, दवाओं आदि का इस्तेमाल करती हैं, जिससे उनकी जान तक जोखिम में पड़ जाती है। 

95% फ्रंटलाइन स्वास्थ्यकर्मी संशोधन से हैं अनजान 

फ्रंटलाइन स्वास्थ्यकर्मी जैसे कि आशा वर्कर्स को भी एएनएम मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (अमेंडमेंट) एक्ट, 2021 के प्रावधानों को लेकर जागरूक नहीं किया गया है। सर्वे में लगभग 100 हेल्थ वर्कर्स का इंटरव्यू किया गया। इसमें सरकारी और निजी अस्पतालों के डॉक्टर्स, फ्रंटलाइन वर्कर्स, मेडिकल ऑफिसर्स शामिल रहे। सर्वे बताता है कि लगभग 95% फ्रंटलाइन हेल्थवर्कर्स, आशा वर्कर्स को इसकी जानकारी नहीं है। FRHS की रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश के कई फ्रंटलाइन हेल्थ वर्कर्स ने अबॉर्शन को गैरकानूनी बताया। वहीं, दिल्ली के हेल्थ वर्कर्स ने अबॉर्शन को कानूनी बताया। बता दें कि FRHS ने दिल्ली, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर साथ ही कई वर्कर्स को यह तक नहीं पता कि अब कितने हफ़्ते तक के गर्भ का अबॉर्शन किया जा सकता है।

रिपोर्ट के अनुसार, सिर्फ 68% महिलाएं सुरक्षित अबॉर्शन को अपने स्वास्थ्य से जुड़ा एक अधिकार मानती हैं। हर 3 में से 1 महिला को यह नहीं पता कि सुरक्षित अबॉर्शन उनका अधिकार है।

समुदाय स्तर पर आशा वर्कर्स की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। वे समुदाय स्तर पर स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं को सभी तक पहुंचाने में मदद करती हैं। रिपोर्ट के मुताबिक हर तीन महीने में 2-3 औरतें फ्रंटलाइन हेल्थ वर्कर्स के पास अबॉर्शन से संबंधित सलाह लेने आती हैं। ग्रामीण इलाकों, छोटे शहरों, स्लम आदि की महिलाएं सबसे पहले फ्रंटलाइन वर्कर्स के पास आती हैं। प्रसव, गर्भावस्था, अबॉर्शन, पोषण आदि से जुड़ी जानकारी के लिए ये महिलाएं मुख्य रूप से इन पर ही निर्भर करती हैं। ऐसे में स्वास्थ्यकर्मियों को अबॉर्शन के नये नियमों की जानकारी न होना स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल उठाता है।

क्या है मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (अमेंडमेंट) ऐक्ट

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (अमेंडमेंट) एक्ट के तहत महिलाएं गर्भधारण के 20 से 24 हफ़्ते तक अबॉर्शन करवा सकती हैं। 20 हफ़्ते के अबॉर्शन के लिए एक डॉक्टर की राय लेना आवश्यक है। वहीं, 24 हफ़्ते के लिए दो डॉक्टरों की राय ज़रूरी है। 24 हफ़्ते का प्रावधान कुछ विशेष श्रेणियों के लिए है। यह रेप सर्वाइवर महिलाओं, नाबालिगों और विकलांग महिलाओं के लिए है। इसके अलावा होनेवाले भ्रूण में अगर कोई विसंगति है तो ऐसे मामले में भी 24 हफ़्ते के अबॉर्शन की अनुमति है। लेकिन इसके लिए राज्य स्तरीय मेडिकल बोर्ड की राय लेना अनिवार्य है। 

सरकारी अस्पताल में सुविधा और जागरूकता की कमी

एमटीपी एक्ट के मुताबिक अबॉर्शन सिर्फ स्त्री रोग या प्रसूति में विशेषज्ञता वाले डॉक्टर द्वारा किया जा सकता है। लेकिन समस्या यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों की कमी देखी जाती है। कई जगह पूरे अस्पताल का जिम्मा एक ही डॉक्टर के सिर पर होता है। ऐसे में गर्भवती महिलाओं के लिए सुरक्षित अबॉर्शन की सुविधा तक पहुंचना एक चुनौती है। रिपोर्ट में यह बताया गया है कि 62% से अधिक महिलाएं अबॉर्शन के लिए निजी अस्पतालों में गईं हैं। महज 23% महिलाओं ने अपना अबॉर्शन सरकारी अस्पताल में कराया है। रिपोर्ट के ये आंकड़ें देश की स्वास्थ्य व्यवस्था और लोगों में स्वास्थ्य (अबॉर्शन) के प्रति जागरूकता पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं। 

यह यह रिपोर्ट दर्शाती है कि कानून कैसे सिर्फ काग़ज़ पर दर्ज होकर रह जाता है। लोगों तक अबॉर्शन के नये नियमों की जानकारी पहुंचाने के लिए यह आवश्यक है कि सबसे पहले फ्रंटलाइन हेल्थ वर्कर्स को इसके बारे में जागरूक किया जाए।

सुरक्षित अबॉर्शन, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (अमेंडमेंट) एक्ट के बारे में लोगों के बीच जागरूकता का न होना बेहद चिंताजनक है। सही जानकारी के अभाव में महिलाएं कानून से बचने के लिए असुरक्षित अबॉर्शन का सहारा लेती हैं। यह यह रिपोर्ट दर्शाती है कि कानून कैसे सिर्फ काग़ज़ पर दर्ज होकर रह जाता है। लोगों तक अबॉर्शन के नये नियमों की जानकारी पहुंचाने के लिए यह आवश्यक है कि सबसे पहले फ्रंटलाइन हेल्थ वर्कर्स को इसके बारे में जागरूक किया जाए।


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