समाजख़बर दो भारतीय औरतों को मिला ऑस्कर और देश में महिलाओं का ज़ारी संघर्ष

दो भारतीय औरतों को मिला ऑस्कर और देश में महिलाओं का ज़ारी संघर्ष

गुनीत मोंगा को डॉक्यूमेंट्री फिल्म 'द एलिफेंट व्हिस्परर्स' के लिए ऑस्कर 2023 अवार्ड मिलना राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गर्व की बात है।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर जब हम महिलाओं की उपलब्धियों और विकास पर बात कर रहे है, ऐसे में हाल ही में गुनीत मोंगा और कार्तिकी गोंजाल्विस डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘द एलिफेंट व्हिस्परर्स’ के लिए ऑस्कर 2023 अवार्ड मिलना राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गर्व की बात है। इन दो औरतों को यह अवार्ड सर्वश्रेष्ठ डॉक्यूमेंट्री के लिए मिला है। इस कैटेगरी में यह भारत का पहला ऑस्कर है।

पूरा सोशल मीडिया गुनीत मोंगा की ऑस्कर अवार्ड की तस्वीरों के साथ भरा हुआ है। सभी भारतीय गुनीत मोंगा पर नाज़ कर रहे है और बड़े-बड़े सेलिब्रिटी उन्हें अवार्ड की बधाई दे रहे है। बिल्कुल ये गौरव का पल है, जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय महिलाएँ सिनेमा जगह में अपनी मज़बूत जगह बनाकर अपनी सफलता का परचम लहरा रही है। इस खबर में इस साल भारतीय महिला दिवस को मानो एक नयी चमक-सी दे दी है, जब सोशल मीडिया लोग भर-भर उन्हें बधाई देने के बहाने, महिलाओं के विकास और सशक्त स्वरूप पर बात करे हैं।  

कई खबरों में गुनीत मोंगा की अवार्ड फ़ंक्शन में पहनी हुई बनारसी साड़ी पर बात हो रही है तो कहीं उनके ट्वीट और अवार्ड पर उनकी प्रतिक्रिया को लेकर। इन खबरों को देखने के बाद एक पल को लग रहा है मानो वाक़ई में भारत में महिलाएं कितनी आगे बढ़ चुकी हैं। वह अब हर क्षेत्र में सशक्त रूप में आगे आ रही हैं।

लेकिन महिलाओं को समर्पित इस मार्च के महीने में जब हमलोग बीते सालभर में देश में महिलाओं की स्थिति, विकास और अवसर की बात करते है तो कई निराशाजनक तस्वीरें सामने आती है, जो महिला सशक्तिकरण और विकास के सिक्के का वो दूसरा पहलू है, जिसे अंधेरे की चादर से ढका जा रहा है, जिसमें हाथरस केस और बिलक़िस बानो केस में बरी आरोपी और असम में बाल-विवाह के नामपर चल रही सरकारी कार्यवाई के बीच हिंसा का शिकार होती महिलाओं के मुद्दे आज भी सोशल मीडिया के पोस्ट और चर्चा के उजाले से दूर बेहद सीमित हो दिखाई पड़ते है।

हाथरस रेप केस में बरी आरोपी

साल 2020 में उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक दलित युवती के साथ कथित गैंगरेप और हत्या के मामले में एक स्थानीय कोर्ट ने एक अभियुक्त को दोषी ठहराया है और उसे उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई गई है। दोषी पर 40 हज़ार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। लेकिन हाल में में इस मामले में रेप का आरोप साबित नहीं हो सका, जिसके बाद आरोपियों को बरी कर दिया गाय।  

हाथरस की इस घटना पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने एकजुट होकर आवाज़ उठायी थी, जिसमें पीड़िता दलित युवती (19 साल) के बयान के आधार पर गैंगरेप का मामला दर्ज किया गया था। पीड़िता की मौत के बाद हत्या का मामला भी दर्ज किया गया था। इस मामले की जांच सीबीआई ने की थी। पीड़िता की मौत दिल्ली के सफ़दरजंग अस्पताल में हुई थी। पुलिस ने मृतक लड़की चेहरा परिजन को दिखाए बिना ही आधी रात में उसका अंतिम संस्कार कर दिया था। इसे लेकर काफी नाराजगी जाहिर की गई थी।

2 मार्च 2023 को करीब ढाई साल बाद कोर्ट ने गुरुवार को अपना फ़ैसला सुनाया। बीबीसी में प्रकाशित खबर के अनुसार, कोर्ट के फ़ैसले के बाद पीड़ित पक्ष के एक अन्य वकील महिपाल सिंह ने पत्रकारों को बताया, “कोर्ट ने तीन लोगों को बरी कर दिया है। संदीप को दोषी माना है। एक को दोषी माना है। 310 (एससी एसटी एक्ट) और 304 (गैर इरादतन हत्या) में दोषी माना है. रेप सिद्ध नहीं हुआ है।”

सत्ता के सामने न्याय की लड़ाई हारी बिलक़िस बानो

गोधरा में ट्रेन जलाने की घटना के बाद भड़के दंगों से भागते समय बिलकिस बानो 21 साल की और पांच महीने की गर्भवती थीं। बानो के साथ दुष्कर्म हुआ था और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गई थी, जिसमें बानो की तीन साल की बेटी भी शामिल थी। मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी और सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमे को महाराष्ट्र की एक अदालत में स्थानांतरित कर दिया था। मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत ने 21 जनवरी, 2008 को बिलकिस बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के आरोप में 11 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

और बीते 15 अगस्त 2022 को बिलकिस बानो रेप केस में सजा काट रहे 11 दोषियों को गुजरात सरकार ने को रिहा कर दिया। ये रिहाई उसदिन हुई जब पूरा देश आज़ादी का जश्न मनाता है, उसदिन न्याय की लंबी लड़ाई के बाद अपने दोषियों की रिहाई होने से सत्ता के सामने न्याय की लड़ाई हारी बिलक़िस बानो आज भी देश में महिलाओं की स्थिति और न्याय तक उनकी पहुँच पर एक बड़ा सवाल खड़ा करती है।

असम सरकार की बाल-विवाह पर कार्रवाई का महिलाओं पर हिंसात्मक प्रभाव

असम में बाल-विवाह के ख़िलाफ़ सरकार की इस सख़्त कार्रवाई का असर अब सीधेतौर पर महिलाओं की ज़िंदगी में पड़ने लगा है। ‘बाल विवाह के ख़िलाफ़ अचानक जागी सरकार ने सिरे से हमारे परिवार के पुरुषों को गिरफ़्तार करना शुरू कर दिया है, वो पुरुष जिनकी कमाई से हमारा पेट पलता था। लेकिन अब हमारे और बच्चों के पास आय का कोई साधन नहीं है।‘

ऐसे में जब हम मौजूदा हालात का विश्लेषण करते है तो इसमें महिलाएँ ज़्यादा ख़तरे में ही नज़र आती है। जब असम के धुबरी जिले के पास मानकचर में रहने वाली माफ़िदा ख़ातून के सुसाइड करने की खबर सामने आती है। माफ़िदा ने ये कदम असम सरकार की तरफ़ से बाल विवाह के ख़िलाफ़ चलाए जा रहे अभियान से तंग आकर उठाया है और माफ़िदा जैसी कई ऐसी महिलाएं हैं जो आत्महत्या से मौत जैसे कदम उठाने को मजबूर हैं।

महिलाओं की सामने आती इन समस्याओं से साफ़ ज़ाहिर है कि भले ही इनके अधिकार के बचाव के नामपर ये कार्रवाई की जा रही है, लेकिन वास्तव में ये उनके लिए किसी सजा से कम नहीं है। क्योंकि बालवधू वैसे ही शिक्षा और विकास के बुनियादी अवसरों से दूर हो चुकी है और वे अपने दो वक्त के खाने के लिए भी परिवार के पुरुष सदस्यों पर पूरी तरह आश्रित हैं, ऐसे में अगर सरकार सीधी कार्रवाई पुरुषों पर करती है तो व्यवहारिक रूप से यातनाएँ महिलाओं और बच्चों को झेलनी पड़ेगी।

वो देश जो महिला फ़िल्म निर्माता को ऑस्कर अवार्ड मिलने के बाद बधाई और ख़ुशी में मशगूल है। सोशल मीडिया पर महिलाओं के विकास और सशक्त होने की लंबी-लंबी पोस्ट पब्लिश की जा रही है, वहाँ बिलक़िस बानो और हाथरस के आरोपी का बरी हो जाना या असम में बाल-विवाह का शिकार महिलाओं का आत्महत्या करने को मजबूर होना देश में महिलाओं के मौलिक अधिकार की सुरक्षा पर बड़ा  सवाल है, जिसे ऑस्कर अवार्ड के जश्न के बीच में भी अपनी चर्चा में शामिल करने की ज़रूरत है।


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