हमारे देश में आज भी विज्ञान के क्षेत्र में रिसर्च और प्रौद्योगिकी पर काम करनेवाली महिलाएं कम हैं। जिन महिलाओं ने इस लीक से जुड़कर काम किया उन्होंने अपने निजी और प्रोफेशनल, दोंनो स्तर पर कई मुश्किलों का सामना एकसाथ किया। अपने जीवन की ऐसी ही कठिनाइयों पर डॉ. चक्रवर्ती कहती हैं, “मैं अपने जीवन की तुलना समुद्र से कर सकती हूं, जहां लहरें आती हैं और जाती हैं।”
महारानी चक्रवर्ती एक मॉलिक्यूलर बायॉलजिस्ट थी और इस क्षेत्र में काम करनेवाली पहली भारतीय महिलाओं में से एक थीं। इनका जन्म साल 1937 में बिहार के भागलपुर शहर में हुआ था। वह एक शिक्षित मध्यवर्गीय परिवार से तालुक्क रखती थीं। वह विज्ञान और प्रयोगों में अपनी दिलचस्पी का श्रेय अपने दादा जी को देती हैं। साल 1950 में उन्होंने अपनी मेट्रिकुलेशन की परीक्षा पास की थी। उस दौरान भी विज्ञान और गणित इनके पसंदीदा विषय थे। आगे की पढ़ाई के लिए महारानी कलकत्ता गई जहां उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज से बीएससी और कलकत्ता यूनिवर्सिटी से एमएससी की डिग्री हासिल की।
इसके बाद इन्होंने कलकत्ता के बॉस इंस्टीट्यूट से डॉ. बर्मा के मार्गदर्शन में माइकरोबियल थीसिस पर पीएचडी की। पोस्टडॉक्टरल की उपाधि के लिए उन्होंने न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ़ मेडिसिन में दाख़िला लिया। यहां उन्होंने प्रोफेसर बी. एल. होरेकर की प्रयोगशाला में एंजाइम रसायन विज्ञान पर काम किया। इन्होंने प्रोफेसर माइरॉन लेविन की लैब में ह्यूमन जेनेटिक्स डिपार्टमेंट में भी काम किया।
भारत लौटकर कई मुद्दों पर की ज़रूरी रिसर्च
भारत लौटने पर डॉ. चक्रवर्ती सीएसआईआर में पूल अधिकारी के रूप में शामिल हुईं। इसके बाद इन्होंने यूनिसेलुलर ऑर्गनीज़म में मेटाबोलिज़्म के मुद्दे पर काम शुरू किया। इन्होंने 1969 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के चिकित्सा विज्ञान संस्थान में जैवरसायन विभाग में वरिष्ठ अनुसंधान अधिकारी के रूप में काम शुरू किया। साल 1972 में उन्हें बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के जैवरसायन विभाग में ही रीडर नियुक्त किया गया।
अपने जीवन की ऐसी ही कठिनाइयों पर डॉ. चक्रवर्ती कहती हैं, “मैं अपने जीवन की तुलना समुद्र से कर सकती हूं, जहां लहरें आती हैं और जाती हैं।”
यहां इनका मूल काम बैक्टीरियोफेज पर था। विशेष रूप से उनके काम ने लाइसोजनी से गुजर रहे मेजबान और लसीका से गुजर रहे मेजबान के बीच जैव रासायनिक अंतर को समझने में मदद की। यह बैक्टीरिया, वायरल संक्रमण के उपचार में चिकित्सा अनुप्रयोग है। क्षेत्र में उनके काम ने मानचित्रण, अनुक्रमण, क्लोनिंग (बैक्टीरियोफेज के) के क्षेत्रों में प्रगति के अनुसंधान को जन्म दिया।
विज्ञान में महिलाओं और पितृसत्तात्मक चुनौतियां
किसी भी महिला के लिए अपने कार्यक्षेत्र और सामाजिक और पारिवारिक स्थितियों में सामंजस्य बैठाना काफी मुश्किल रहता है। गृहस्थ महिलाएं अक्सर सामाजिक दबाव और जिम्मेदारियों के चलते अपने भविष्य को सेकेंडरी मान लेती हैं। लेकिन महारानी चक्रवर्ती दृढ़ इच्छाशक्ति को ज़रूरी मानती थी। उनका मानना था कि अगर आपकी अपने काम के प्रति लगन और रुचि है तो समस्याओं से जूझना ज़रूरी हो जाता है। वह बताती हैं, “न्यूयॉर्क में बी. एल. होरेकर की लैब में एंजाइम पर काम के दौरान मेरे पहले बच्चे का जन्म हुआ और एक हफ़्ते के भीतर मैं फ़िर से प्रयोगशाला वापस आ गई।
एक महत्त्वाकांक्षी माँ के लिए एक ही समय में बच्चे की देखभाल करना और एंजाइम पर काम करना बहुत मुश्किल था। वह अपनी प्रयोगशाला को नहीं छोड़ सकती थी इसलिए उनका बेटा सप्ताह में पांच दिन एक परिवार के साथ रहता और वह उसे केवल सप्ताह के अंत में घर लाती थीं। विज्ञान के क्षेत्र में काम करनेवाली महिलाओं को इन समस्यों से अक्सर जूझना पड़ता है। हमारा पितृसत्तात्मक समाज एक बड़ी वजह है कि आज भी विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काम करनेवाली महिलाओं की संख्या बेहद कम है।
डॉ. चक्रवर्ती अपने शिक्षकों, सहयोगियों और अपने पति को खासा महत्त्व देती हैं जिन्होंने उन्हें हर मोड़ पर प्रोत्साहित किया। उनका मानना था कि अगर आप ईमानदार और मुखर हैं तो आपको इस पुरुष प्रधान समाज में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। आपको आसानी से नौकरी नहीं मिलती।
एक महत्त्वाकांक्षी माँ के लिए एक ही समय में बच्चे की देखभाल करना और एंजाइम पर काम करना बहुत मुश्किल था। वह अपनी प्रयोगशाला को नहीं छोड़ सकती थी इसलिए उनका बेटा सप्ताह में पांच दिन एक परिवार के साथ रहता और वह उसे केवल सप्ताह के अंत में घर लाती थीं।
सम्मान और पुरस्कार
महारानी चक्रवर्ती द्वारा किए गए विशिष्ट कार्यों के लिए उन्हें तमाम पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। अगर उनकी उपलब्धियों की बात की जाए तो साल 1975-76 में चिकित्सा विज्ञान संस्थान बीएचयू द्वारा सर्टिफिकेट ऑफ मेरिट का अवार्ड मिला। साल 1979 में चिकित्सा विज्ञान संस्थान बीएचयू द्वारा सर्वश्रेष्ठ शोध पुरस्कार भी मिला। आईसीएमआर द्वारा साल 1979 में क्षणिका ओरेशन अवार्ड और साल 1981 में वाईएस नारायण राव अवार्ड से सम्मानित किया गया। साल 1981 में ही महारानी चक्रवर्ती को मेडिकल कौंसिल ऑफ इंडिया का हरिओम आश्रम एलेम्बिक रिसर्च अवार्ड भी दिया गया। साल 2007 में आईएनएसए ने जेसी सेनगुप्ता मेमोरियल अवार्ड और प्रोफेसर रंगनाथन मेमोरियल अवार्ड से पुरस्कृत किया।
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