इतिहास चारूसिता चक्रवर्तीः विज्ञान जगत में लैंगिक भेदभाव के मुद्दे पर जिसने उठाई आवाज़| #IndianWomenInHistory

चारूसिता चक्रवर्तीः विज्ञान जगत में लैंगिक भेदभाव के मुद्दे पर जिसने उठाई आवाज़| #IndianWomenInHistory

साल 1994 में चारूसिता चक्रवर्ती भारत वापस लौट आई और उन्होंने आगे भारत में काम करना तय किया। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पीएचडी के बावजूद चारूसिता को भारत में काम मिलने में परेशानी हुई।

आज साल 2022 में भी जब विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं का प्रतिनिधित्व देखते हैं तो बड़ा अंतर देखने को मिलता है। विज्ञान के क्षेत्र में महिला वैज्ञानिक पुरुषों के मुकाबले अभी भी बहुत कम हैं। विज्ञान भी उन्हीं दूसरे क्षेत्रों जैसा है जहां पुरुषों को ही केंद्र माना जाता है, वहां मौजूद अनुभव अभी भी पुरुषों के ज्यादा है। इस वजह से महिला वैज्ञानिकों को इस क्षेत्र में पुरुषों के मुकाबले ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है। वहीं इस क्षेत्र में आकर संघर्ष करने वाली महिलाओं ने उस बाधा को तोड़ने का काम किया जिसमें महिला वैज्ञानिकों को गंभीरता से ही नहीं लिया जाता था। इस राह को खोलने के लिए इतिहास में कई महिला वैज्ञानिकों ने संघर्ष किया, कई चुनौतियों और भेदभाव का सामना करते हुए अपना संघर्ष जारी रखा। ऐसी ही एक महिला हुई हैं डॉ. चारूसिता चक्रवर्ती। रसायन विज्ञान के क्षेत्र में काम करने वाली डॉ. चारूसिता ने न केवल विज्ञान जगत में महिलाओं के ख़िलाफ़ माहौल पर बात की बल्कि कई कठिनाईयों के बावजूद कई लोगों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित भी किया। 

जन्म और शुरुआती जीवन

चारूसिता चक्रवर्ती का जन्म 5 मई 1964 को अमेरिका के मैसाचुसेट्स के कैम्ब्रिज में हुआ था। उनके पिता का नाम सुखमय चक्रवर्ती था। वह भारत के प्रमुख अर्थशास्त्री थे। उनकी माता का नाम ललिता चक्रवर्ती था। उनका पालन-पोषण दिल्ली में हुआ था और बीस साल की उम्र में ही उन्होंने अपनी अमेरिकी नागरिकता को छोड़ना चुन लिया था। वह अपने माता-पिता के इकलौती संतान थी। चारूसिता का पालन-पोषण बहुत ही उदार माहौल में हुआ था। उन्होंने बचपन से ही कई सीमाओं को तोड़ना और उनपर सवाल उठाना शुरू कर दिया था।

डॉ. चक्रवर्ती अपने बेबाक अंदाज के लिए भी जानी जाती थी। उन्होंने हमेशा विज्ञान जगत में महिलाओं की कमी के मुद्दे पर अपनी आवाज़ उठायी। वह महिलाओं पर काम के दोहरे बोझ के बारे में भी बोला करती थी। साथ ही वह महिलाओं के कामकाजी होने पर ज्यादा जोर दिया करती थी।

प्रांरभिक शिक्षा

चारूसिता का रूझान बचपन से ही पढ़ाई की ओर अधिक था। उनकी स्कूली और कॉलेज की पढ़ाई दिल्ली में ही हुई थी। कक्षा 12 के बाद चक्रवर्ती का नैशनल साइंस टैलेंट स्कॉलर में चयन होने के बाद उन्होंने इंडियन इंस्ट्यिूट ऑफ टेक्नोलॉजी की परीक्षा पास की। इसके बाद उन्होंने सेंट स्टीफन कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से रसायन विज्ञान में स्नातक किया। साल 1985 में चारूसिता ने अपनी स्नातक की डिग्री स्वर्ण पदक के साथ पूरी की। इससे आगे की पढ़ाई के लिए वे विदेश चली गई थी। वहां उन्होंने नैचुरल सांइस ट्राइपॉस, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से किया। इसके बाद 1990 में उन्होंने कैम्ब्रिज से ही डेविड क्लेरी के मार्गदर्शन में क्वांटम स्कैटरिंग और स्पेक्ट्रोस्कोपी में पीएचडी की। इसके बाद चारूसिता कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में पोस्ट डॉक्टरेट स्कॉलर बन गईं। इस बीच वह कुछ समय के लिए भारत लौट आई लेकिन इसके बाद में वह स्वतंत्र पोस्ट डॉक्टरेट पद पर गुलबेंकियन जूनियर रिसर्च फेलो के लिए कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय वापस चली गई थी।

करियर

साल 1994 में चारूसिता चक्रवर्ती भारत वापस लौट आई और उन्होंने आगे भारत में काम करना तय किया। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पीएचडी के बावजूद चारूसिता को भारत में काम मिलने में परेशानी हुई। मास्टर डिग्री नहीं होने की वजह से आईआईटी ने उन्हें शिक्षक का पद देने से संकोच किया। बाद में उन्हें आईआईटी कानपुर से एक प्रस्ताव मिला। उसके बाद उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में रसायन विज्ञान विभाग में एक पद स्वीकार कर लिया। जहां उन्होंने अपनी मृत्यु तक पढ़ाया। 

डॉ. चारूसिता चक्रवर्ती, तस्वीर साभारः Wikipedia

जल्द ही आईआईटी दिल्ली से जुड़ने के बाद उन्होंने डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी में एक शोध प्रस्ताव लिखा। उनके शोध के लिए उन्हें आसानी से फंडिंग मिल गई और उन्होंने अपना काम शुरू कर दिया। उनका शुरुआती काम  परमाणु (ऑटोमिक) और आवणिक (मॉलिक्यूलर) समूहों से जुड़ा था। अपने पूरे करियर में वह विशेष तौर पर मोंटे कार्लो सिमुलेशन में अपने विशेष प्रयोगों के लिए प्रसिद्ध हो गई थी। उनके रूचि के क्षेत्रों में थ्योरिकल कैमेस्ट्री एंड कैमिकल फिजिक्स, द स्ट्रक्चर  एंड डायनामाइक ऑफ लिक्विड, वाटर एंड हाइड्रेशन, न्यूक्लियेशन एंड सेल्फ-एसेंबली शामिल थे। 

राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के जर्नल्स में उनके लिए लेख प्रकाशित हुआ करते थे। वह अपने एकल लेखन पत्रों के लिए बड़े स्तर पर जानी जाती थीं, जो उनके पूरे करियर में प्रकाशित हुए। उनके कुछ सह-लिखित कामों में मस्टीपल टाइम-स्केल बिहेवियर ऑफ द हाइड्रोजन बॉन्ड नेटवर्क वाटर (2004), एसटीमेटिंग द एनट्रापी ऑफ लिक्विड फ्रॉम एटम-एटम रेडिकल डिस्ट्रिब्यूशन फग्शनः सिलिका, बेरिलियम फ्लोराइड और वाटर (2008) और एक्सेस एनट्रापी स्केलिंग ऑफ ट्रासपोर्ट प्रॉपर्टीज़ इन नेटवर्क-फॉरमिंग ऑइकानिक मेल्ट्स (2011) शामिल है। 

साल 1994 में चारूसिता चक्रवर्ती भारत वापस लौट आई और उन्होंने आगे भारत में काम करना तय किया। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पीएचडी के बावजूद चारूसिता को भारत में काम मिलने में परेशानी हुई। मास्टर डिग्री नहीं होने की वजह से आईआईटी ने उन्हें शिक्षक का पद देने से संकोच किया।

महिलाओं के लिए रखी अपनी बात

डॉ. चक्रवर्ती अपने बेबाक अंदाज के लिए भी जानी जाती थी। उन्होंने हमेशा विज्ञान जगत में महिलाओं की कमी के मुद्दे पर अपनी आवाज़ उठायी। वह महिलाओं पर काम के दोहरे बोझ के बारे में भी बोला करती थी। साथ ही वह महिलाओं के कामकाजी होने पर ज्यादा जोर दिया करती थी। यही नहीं उन्होंने दुनिया में विज्ञान और अकादमिक क्षेत्र में मौजूद लैंगिक भेदभाव के लिए अन्य सहयोगियों को भी बोलने के लिए  प्रेरित किया। चारूसिता चक्रवर्ती की कविता और संगीत में भी बहुत रूचि थी। वह विज्ञान से अलग कला के क्षेत्र में भी जानकारी रखती थी। उन्हें रविन्द्र संगीत, कबीर के गीत, टी.एस. इलियट और वॉल्ट व्हिटमैन की कविताएं बहुत पसंद थी। 

डॉ. चारूसिता चक्रवर्ती पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ, तस्वीर साभारः Newsbugz

विज्ञान जगत में उपलब्धियां

चारूसिता चक्रवर्ती ने अपने जीवन में अपने कामों के लिए व्यापक प्रशंसा मिलीं। उन्हें अनेक पुरस्कार और सम्मानों से भी सम्मानित किया गया। चक्रवर्ती को सबसे पहले पुरस्कार साल 1996 में राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी की ओर से युवा वैज्ञानिक पदक से सम्मानित किया गया था। साल 1999 में इंडियन नैशनल साइंस एकेडमी की ओर से अनिल कुमार बोस मेमोरियल अवार्ड और बी.एम. बिरला मेमोरियल पुरस्कार भी दिया गया था। साल 2004 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की ओर से स्वर्णजयंती फैलोशिप और साल 2006 में उन्हें भारतीय विज्ञान अकादमी की फैलोशिप मिली थी। चारूसिता चक्रवर्ती ने 1996 से लेकर 2003 तक अब्दुस सलाम इंटरनेशनल सेंटर फॉर थ्योरेटिकल फिजिक्स ट्राएस्टे की सदस्य भी रह चुकी थीं। वह कम्प्यूटेशनल मेटिरियल साइंस, जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस साइंटिक रिसर्च, बैंगलुरू की एसोसिएट सदस्य थीं।

मृत्यु

डॉ. चारूसिता चक्रवर्ती ने जीवन में कई जंग लड़ी और वह उनमें कामयाब भी रहीं। लेकिन कैंसर के ख़िलाफ़ लड़ाई में वह जल्दी ही हार गई। ब्रेस्ट कैंसर की वजह से डॉ. चारूसीता की असमय मौत हो गई थी जिस वजह से हमने उन्हें जल्दी खो दिया। साल 2013 से इस बीमारी के उपचार के साथ-साथ डॉ. चारूसीता ने अपना काम भी जारी रखा। इस दौरान उन्होंने पढ़ाना और अन्य शोध कार्य हमेशा की तरह उत्साहपूर्वक जारी रखें। आखिर में 29 मार्च 2016 में डॉ. चारूसिता चक्रवर्ती ने हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। 

महिला विरोधी मानसिकता वाले विज्ञान जगत में डॉ. चारूसिता चक्रवर्ती ने लैंगिक भेदभाव के विषय पर अपनी राय सबके सामने रखी। उन्होंने अपने पूरे जीवन में विज्ञान और अकादमिक क्षेत्र में अनेक कीर्तिमान अपने नाम किए। अपने काम के ज़रिये वे आने वाली पीढ़ी के लिए अनुकरणीय रोल मॉडल बनकर कई महिलाओं को प्रयोगशालाओं और शोध के कामों में आगे आने के लिए प्रेरित किया। 

स्रोतः

  1. Wikipedia
  2. Mainstram Weekly
  3. IITD

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