दिल्ली हाई कोर्ट ने इनफर्टाइल कपल्स को सरोगेसी का लाभ उठाने से रोकने वाले सरोगेसी नियमों में बदलाव के खिलाफ दायर याचिका के संबंध में केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए जवाब तलब किया है। यह याचिका एक विवाहित जोड़े द्वारा दायर की गई है, जिसमें मेडिकल आधार पर गर्भवती होने में असमर्थ है। साथ ही वह ओसाइट्स (अंडे) का उत्पादन करने में असमर्थ है। दंपति का एक भ्रूण फर्टिलाईज़ड था जिसे वर्तमान में क्रायोजेनिक रूप से संरक्षित किया गया है। याचिका में कहा गया है कि दंपति ने एक डोनर एग की मदद ली थी जिसे पति के स्पर्म का इस्तेमाल करके इनविट्रो में फर्टिलाईज़ड किया गया था।
दंपति गर्भधारण करने के लिए सरोगेट की तलाश कर रहे थे। हालांकि, 14 मार्च की अधिसूचना के कारण उन्हें सरोगेसी सेवाओं का लाभ उठाने से रोक दिया गया था। दलील में कहा गया है कि संशोधन “प्रभावी रूप से बांझ दंपतियों द्वारा सरोगेसी सेवाओं के उपयोग पर रोक लगाता है” जब तक कि दोनों में युग्मक (गैमेट) उसी युगल द्वारा दिए गए हो। कोर्ट ने इसी संशोधन पर सरकार से जवाब मांगा है।
भारत में बांझपन को आमतौर पर एक सोशल टैबू के रूप में माना जाता है, हालांकि मेडिकल साइंस में हुई जबरदस्त प्रगति के कारण अब बांझपन का इलाज किया जा सकता है। सरोगेसी बांझपन के लिए एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, लेकिन कुछ दशकों से, सरोगेसी के व्यावसायीकरण ने भारत को प्रभावित किया है। चूंकि कुछ साल पहले तक भारत में सरोगेसी आज के मुकाबले एक नया शब्द था, इसलिए इसे विनियमित करने के लिए न तो कोई वैधानिक कानून था और न ही जागरूकता। देश में सरोगेसी सामाजिक रूप से स्वीकार्य भी नहीं थी। बता दें कि सरोगेसी अधिनियम सरोगेसी को एक ऐसी प्रैक्टिस के रूप में परिभाषित करता है जहां एक इच्छुक दंपत्ति के लिए एक महिला बच्चे को जन्म देती है ताकि जन्म के बाद बच्चे को इच्छुक दंपत्ति को सौंप सके। सरोगेसी दो प्रकार की होती है।
- अल्ट्रइस्टिक (altruistic) सरोगेसी – इसमें गर्भावस्था के दौरान मेडिकल खर्चे और बीमा कवरेज के अलावा सरोगेट मां के लिए कोई मुआवजा़ शामिल नहीं है।
- कमर्शियल सरोगेसी – इसके अंतर्गत सरोगेसी या उससे संबंधित प्रक्रियाओं में मूल चिकित्सा व्यय और बीमा कवरेज के अलावा दूसरे खर्चे भी शामिल हैं जहां इच्छुक दंपत्ति इस पूरी प्रक्रिया के दौरान आनेवाले हर खर्चे का वहन करते हैं।
सरोगेसी, दुनियाभर बांझपन का सामना कर रहे जोड़ों के लिए बेहद कारगर साबित हुई है। साथ ही यह समान रूप से चिकित्सा, कानूनी और नैतिक चिंताओं के कारण विवादों में भी रही है। सामान्य तौर पर इस प्रक्रिया में 3 वर्गों के लोग शामिल होते हैं, जैसे (i) सरोगेट मां; (ii) कमीशनिंग या इच्छुक माता-पिता; और (iii) जेनेटिक या डोनर माता/पिता। इस प्रक्रिया में सबसे अधिक चुनौतियां हर वर्ग की सहमति प्राप्त करने, गोपनीयता या गुमनामी बनाए रखने और राष्ट्रीयता में अंतर के मामले में का निर्धारण करने में सामने आती हैं।
भारत में क्यों लगाई गई कमर्शियल सरोगेसी पर रोक
भारत में इस प्रक्रिया के लिए, भारतीय सरोगेसी कानूनों में, सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 (अधिनियम) और सरोगेसी (विनियमन) नियम, 2022 (नियम) शामिल हैं। सरोगेसी फार्मिंग, सरोगेट माँ के शोषण और सरोगेसी की प्रक्रिया की तुलनात्मक रूप से सस्ती लागत के लिए भारत के मशहूर होने के बाद ये कानून अस्तित्व में आए। इससे पहले भारत में कमर्शियल सरोगेसी पर कोई विशेष रोक नहीं थी। इस पर केवल भारतीय चिकित्सा अनुसंधान और परिषद द्वारा निर्धारित दिशानिर्देश थे। लाभ-संचालित क्लीनिक और आर्थिक रूप से हताश सरोगेट के संयोजन ने भारत में सरोगेसी की नैतिकता, विशेष रूप से सरोगेट माँओं के उपचार के बारे में गंभीर चिंताएं पैदा कर दी थीं।
सरोगेसी अधिनियम ने व्यावसायिक सरोगेसी पर रोक लगाई और इसके लिए सज़ा का प्रावधान भी किया। इच्छुक दंपत्ति, इच्छुक महिला और सरोगेट मां के लिए योग्यता, प्रक्रिया शुरू करने के लिए ज़रूरी दस्तावेज आदि के संदर्भ में नियमों की एक श्रृंखला भी बनाई। दूसरी ओर, सरोगेसी नियम चिकित्सा कर्मियों द्वारा प्राप्त किए जाने वाले प्रमाण पत्र के प्रारूप, इच्छुक युगल / महिला द्वारा शपथ लेने के लिए शपथ पत्र, सहमति प्रारूप, आदि को निर्धारित करते हैं । इस अधिनियम और नियमों ने सामूहिक रूप से भारत में सरोगेसी के चेहरे को एक विनियमित और यकीनन अधिक सुव्यवस्थित प्रक्रिया के रूप में बदल दिया।
इस साल मार्च में हेल्थ मिनिस्ट्री द्वारा सरोगेसी (विनियमन) संशोधन नियम, 2023 के तहत उपचार के तरीकों में संशोधन किया गया। उपचार के तरीकों से संबंधित फॉर्म 2, नियम 7, पैरा 1 (डी) को संशोधित किया गया। पहले यह नियम था कि पति के शुक्राणु (स्पर्म) द्वारा एक दाता अंडाणु (oocyte) के फर्टिलिज़ेशन की अनुमति थी। मगर नये संशोधन ने इसमें बदलाव करके यह नियम बनाया कि सरोगेसी से गुजर रहे जोड़े के पास इच्छुक जोड़े से दोनों युग्मक होने चाहिए और डोनर युग्मक की अनुमति नहीं है। सरोगेसी से गुजर रही अकेली महिला (विधवा/तलाकशुदा) के मामले में सरोगेसी प्रक्रिया का लाभ उठाने के लिए खुद के अंडे और डोनर के शुक्राणुओं का उपयोग करना चाहिए।
संशोधन के बाद सरोगेसी ऐक्ट में क्या बदलाव किए गए
इस तरह, यह नया संशोधन पूरी तरह से डोनर युग्मक (gamete), यानी इच्छुक जोड़े के लिए अंडे या शुक्राणु और इच्छुक एकल महिला (विधवा / तलाकशुदा) के लिए डोनर एग के उपयोग की अनुमति नहीं देता है। एक पूर्व प्रतिबंध यह था कि सरोगेट मां को अपना खुद का युग्मक प्रदान करने की अनुमति नहीं थी, जैसा कि अधिनियम की धारा 4(iii)(बी (III) के तहत प्रदान किया गया है। परिणामस्वरूप, 2023 का संशोधन पात्र व्यक्तियों के पूल को सरोगेसी के लिए प्रतिबंधित करता है। परिणामस्वरूप, उम्र, वैवाहिक स्थिति, मेडिकल ज़रूरतों के संबंध में प्रतिबंधों के अलावा, भारत में सरोगेसी का विकल्प चुनने के लिए इच्छुक व्यक्तियों को अपने खुद के युग्मक (gamete) मुहैया करवाने होंगे। हालांकि, यह संशोधन अब स्थिति को स्पष्ट करता है, जो कि पहले अस्पष्ट थी, लेकिन इससे सरोगेसी का विकल्प चुनने वाले इच्छुक माता-पिता को कठिनाई हो रही है, जिन्हें अपने खुद के युग्मकों (gametes) के साथ एक चिकित्सा समस्या है और उन्हें एक बच्चे के गर्भ धारण करने के लिए एक डोनर युग्मक की ज़रूरत होती है।
भारतीय सरोगेसी ऐक्ट और पितृसत्तात्मक नज़रिया
अल्ट्रइस्टिक सरोगेसी मॉडल यह आशा करता है कि एक महिला केवल सहानुभूति या दया भाव से अपने रिश्तेदार के लिए सरोगेट माँ बन सकती है और गर्भावस्था के दौरान शारीरिक, भावनात्मक, सामाजिक और वित्तीय जरूरतों के लिए किसी पारिश्रमिक या अन्य मौद्रिक लाभ की उम्मीद नहीं करेगी। ऐसे में सवाल यह है कि भारतीय विधान सरोगेट माँ से इस प्रकार की अपेक्षा क्यों कर रहा है? सरोगेट माँ से इस तरह की उम्मीद अनैतिक, अवास्तविक, अमानवीय और पितृसत्तात्मक है। इसमें कोई शक नहीं कि भारत की एक बड़ी आबादी गरीब है और पूर्व में भारत में सरोगसी इंडस्ट्री के फलने-फूलने का एक बड़ा कारण यही गरीबी भी था। दूसरे देश के लोग भारत में आकर सरोगसी के ज़रिये अभिभावक बन रहे थे।
ऐसे में महिला द्वारा केवल सहानुभूति या दया के लिए सरोगसी करना समझ से परे है। सभी महिलाएं अमीर नहीं हैं और न ही केवल सहानुभूति के तहत इस काम को करने को तैयार हैं। यह उनकी आय के अपने स्रोत और सामाजिक स्वतंत्रता को भी छीन लेता है क्योंकि गर्भावस्था के कारण वे एक निश्चित समय के लिए काम करने में सक्षम नहीं होती हैं या अपनी गर्भावस्था के बारे में खुलकर चर्चा भी नहीं करती हैं। इसके अलावा, यह सरोगेसी के माध्यम से बच्चा पैदा करने की इच्छुक महिलाओं की संख्या को सीमित भी करता है और अप्रत्यक्ष रूप से माता-पिता को इसका लाभ उठाने के अवसर से वंचित करता है। यह LGBTQ+ समुदाय, लिव-इन कपल्स और सिंगल पेरेंट्स को इस माध्यम से बच्चा पैदा करने के अवसर से वंचित करता है। यह मॉडल अन्य चिकित्सीय स्थितियों पर विचार नहीं करता है जो सीधे तौर पर बांझपन से संबंधित नहीं हैं, और कठिनाइयों के कारण अगर कोई महिला माँ बनने का जोखिम भी उठाए तो यह उस महिला के लिए जोखिम या कठिन गर्भावस्था का कारण बन सकती है। यह मॉडल उन मामलों पर भी विचार नहीं करता है जहां महिलाएं करियर से संबंधित प्रतिबद्धताओं या गर्भवती न होने की व्यक्तिगत पसंद के कारण गर्भधारण नहीं करना चाहती हैं।